Thursday, 10 April 2014

लोकसभा चुनाव में ताजपोशी किसकी


  • ज्योतिष के ग्रहीय सुदर्शन चक्र में
  • नरेन्द्र मोदी, राहुल गांधी, लालकृष्ण आडवानी या कोई और
  • विषाक्त कालसर्प योगी अरविन्द केजरीवाल राजनैतिक चैपाल पर किसको डसेंगे?


चौदहवीं लोकसभा के चुनावी समर की तैयारी में जुट गए हैं, राजनैतिक खलीफा।10, जनपथ को जीतने की चिन्ता नहीं? बल्कि दिल्ली सरीखी राजनीतिक चौपाल पर अपनी 8 सीटों के बल पर 32 सीटों वाली भाजपा को सत्ता से बाहर कर अरविन्द केजरीवाल की 28 सीटों वाली आम आदमी पार्टी को सत्तारूढ़ करवा दिया। उसी तर्ज पर कांग्रेस: नरेन्द्र मोदी की दिल्ली की गद्दी पर ताजपोशी रोकने के लिए शरद पवार या किसी अन्य को समर्थन देकर प्रधानमंत्री बनवाने के राजनैतिक चक्रव्यूह की रचनाकार बन सकती है। दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुरी उस्ताद नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी के लिए कैसी व्यूह रचना करेंगे, इसकी तैयारी बदस्तूर चालू है। उन्हें खतरा है, लालकृष्ण अडवानी के उन राजनैतिक रणनीतिकारों से, जिसमें नीतिश कुमार, ममता बनर्जी, जगन रेड्डी, शिवसेना, अकाली दल तथा भा.ज.पा. का वह घड़ा, जो चुनावी संख्या बल के आधार पर  लालकृष्ण अडवानी की ताजपोशी में सिद्धहस्त एवं संकलित है।
ज्योतिष में सटीक भविष्यवाणी करने हेतु कुछ नये अनुसंधानों का सहारा लेकर भावी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की खोज करने का हम प्रयास कर रहे हैं।  1. दक्षिण भारत में नवांश कुण्डली के महत्व को प्रमुखता से स्वीकारा गया है, क्योंकि वर्गोत्तम ग्रह की खोज बिना नवांश कुण्डली के संभव नहीं। 2. अष्टक वर्ग के शुभ बिन्दु जातक के शुभाशुभ फल की वैज्ञानिक पद्धति है।  3. वर्ष कुण्डली, संबंधित वर्ष के फलाफल का चमत्कारिक आईना है। साथ ही विंशोत्तरी एवं योगनी महादशाओं का सहारा लेकर ज्ञात किया जा सकता है कि किसकी कुण्डली में दिल्ली के तख्ते-ताऊस पर ताजपोशी करवाने के योग प्रबल हैं।
इस आलेख के केन्द्र बिन्दु हैं: नरेन्द्र मोदी, राहुल गांधी और भाजपा के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवानी। विषाक्त कालसर्प योगी अरविन्द केजरीवाल के राजनैतिक बजूद का परीक्षण भी इन संसदीय चुनाव में स्वमेव हो जायेगा। यह प्रश्न अनुत्तरित है? आईये देखें! ज्योतिष के ग्रहीय सुदर्शन चक्र में कौन किस पर भारी पड़ रहा है?

14वीं लोकसभा के चुनाव का शंखनाद बजने वाला ही है। आतुर है! राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के रक्षा कवच से सुरक्षित भा.ज.पा. के घोषित प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी  नरेन्द्र मोदी, दूसरी ओर कांग्रेस के अघोषित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार  राहुल गांधी। भाजपा के पितृपुरूष  लालकृष्ण अडवानी भले ही प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर मौन हों? किन्तु शतरंज की बिसात पर उनकी उपस्थिति हैरतअंगेज मानी जा रही है। कांग्रेस भले ही हाल ही में सम्पन्न पांच विधानसभाओं में से चार विधान सभाओं में मिली पराजय से व्यथित हो, किन्तु लोकसभा चुनावों में वह पुन: सत्तासीन होने की हसरत पालकर बैठी है। कांग्रेस का राजनैतिक कौशल किसी तिलस्म से कम नहीं है। अल्पमत होने पर भी विगत् 10 वर्षों से सत्तासीन है।  सत्ता के गलियारों में ध्वनित एक ओर सच बनते बिगड़ते राजनैतिक समीकरणों में प्रतिबिम्बत हो रहा है कि कहीं यू.पी.ए. का प्रमुख घटक दल कांग्रेस भले ही 125-130 सीटों पर सिमट जाए, किन्तु अन्य घटक दल जो तेरहवीं लोकसभा अर्थात् 2009 में अपनी राजनैतिक काया ण कर चुके थे यदि वे सबल हो जाएं जैसे लालू यादव, रामविलास पासवान, शरद पवार तथा सत्ता से दूरी बनाये रखने वाले वामदल। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का मायावी राजनैतिक घटोत्कच्छ यदि 15-25 सीटें लोकसभा में जीत गया तो परकाया प्रवेश के माध्यम से कांग्रेस का लालीपॉप बन सकता है, दिल्ली सरकार की सुरक्षा के एवज में।  भा.ज.पा. के वेटिंग प्राइम मिनिस्टर  नरेन्द्र मोदी गुजरात के विकास की दुहाई देते नहीं थकते, किन्तु वे इतने आत्ममुग्ध न हों कि यह भूल जाएं कि गुजरात पहले से ही समृद्ध राज्य है तथा गुजरात के अधिसंख्य नागरिक परिवारों के सदस्य अप्रवासी भारतीय के रूप में विदेशों में रहकर अपने परिवारों को विदेशी मुद्रा भेजकर प्रदेश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इसमें मोदी चमत्कार कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण है।  भा.ज.पा. ही नहीं शिवसेना तथा अकाली दल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एक धड़ा चिन्तित है कि मोदी के अहंकारी उद्घोष से सत्ता का स्वर्ण मारीच कहीं निगाहों से ओझल न हो जाए? और यही है यक्ष का मौन तोड़ता प्रश्न? कि कहीं लालकृष्ण अडवानी, ममता, नवीन पटनायक, जगन रेड्डी, चन्द्रबाबू नायडू, नीतिश कुमार तथा जे. जयललिता की राजनैतिक वैशाखियों पर एन.डी.ए. की सरकार बना कर दिल्ली के तख्तेताऊस पर विराजमान न हो जाएं? आईये! ज्योतिष के आईनें में देेखें 14वीं लोकसभा का चुनावी भविष्य। मूल पात्र हैं  नरेन्द्र मोदी,  राहुल गांधी तथा  लालकृष्ण आडवानी और राजनैतिक नवजात शिशु, जिसने अपने शाब्दिक मायाजाल से दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री पद की गद्दी हथिया ली।

जन्मकुंडली - 4
नरेन्द्र मोदी: जन्म 17 सितम्बर, सन् 1950,
समय: दिन के 11 बजे, स्थान: मेहसाना (गुजरात)  
 
 नरेन्द्र मोदी की जन्म राशि वृश्चिक है। शनि की साढ़े साती का प्रथम चरण चल रहा है। राजभवन में विराजे शुक्र में पराक्रमेश शनि की अन्तर्दशा में गुजरात के मुख्यमंत्री बने। 02.12.2005 को शुक्र की महादशा के बाद राज्येश सूर्य की महादशा जो 03.02.2011 तक चली। तत्पश्चात् 03.02.2011 से भाग्येश चन्द्र की महादशा का शुभारम्भ हुआ। ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित है कि एक तो भाग्येश की महादशा जीवन में आती नहीं है और यदि आ जाए तो जातक रंक से राजा तथा राजा से महाराजा बनता है।  मोदी भाग्येश की महादशा में मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन सकते हैं, किन्तु चन्द्रमा में राहु की अन्र्तदशा ग्रहण योग बना रही है तथा 20.04.2014 से 20.07.2014 के मध्य व्ययेश शुक्र की प्रत्यन्तर दशा कहीं प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के प्रबल योग को ण न कर दें? यद्यपि योगनी की महादशा संकटा में सिद्धा की अन्तर्दशा तथा वर्ष कुण्डली में वर्ष लग्न जन्म लग्न का मारक भवन (द्वितीय) होते हुए भी मुंथा पराक्रम भवन में बैठी है तथा मुंथेश शनि अपनी उच्च राशि का होकर लाभ भवन में विराजमान है। जो अपनी तेजस्वीयता से जातक को 7 रेसकोर्स तक पहुंचा सकता है। किन्तु एक अवरोध फिर भी शेष है और वह है सर्वाष्टक वर्ग के राज्य भवन में लालकृष्ण आडवानी और राहुल गांधी की तुलना में कम शुभ अंक अर्थात् 27.  साथ ही ''मूसल योग'' जातक को दुराग्रही बना रहा है तथा केमद्रुम योग, जो चन्द्रमा के द्वितीय और द्वादश में कोई ग्रह न होने के कारण बन रहा है। उसका फल भी शुभ कर्मों के फल प्राप्ति में बाधा। वर्तमान में भाग्येश चन्द्रमा की महादशा चल रही है, जो दिल्ली के तख्ते ताऊस पर  मोदी की ताजपोशी कर तो सकती है किन्तु केमद्रुम योग तथा ग्रहण योग इसमें संशय व्यक्त करता नजर आ रहा है? 

जन्मकुंडली-4
राहुल गांधी: जन्म 19 जून, 1970
समय: प्रात: 5.50 बजे, स्थान: नई दिल्ली   

 राहुल गांधी,  नरेन्द्र मोदी की तरह वृश्चिक वाले जातक हैं। शनि की साढ़े साती का प्रथम चरण इन्हें भी चल रहा है। शनि के प्रभा मण्डल में दोनों जातक प्रजातांत्रिक तरीके से प्रधानमंत्री बनने की जोर अजमाइश कर रहे हैं।  राहुल गांधी की कुण्डली में बुध और गुरु ग्रह वर्गोत्तम है।  विंशोत्तरी में चन्द्रमा की महादशा में बुध की अंतर्दशा चल रही है। चन्द्रमा द्वितीय श्रेणी का मारक ग्रह है, वहीं बुध वर्गोत्तम होकर लग्न तथा मातृ भवन का स्वामी होकर द्वादश भवन में विराजमान है। अस्तु, माँ (मति सोनिया गांधी) का पुण्य प्रताप अनेक अवरोधों से निजात दिलाता नजर आ रहा है। चन्द्र में बुध की अन्तर्दशा तथा बुध में भाग्येश शनि की प्रत्यंतर दशा 06.04.2014 से 27.06.2014 तक चलेगी। शनि भाग्येश होकर अपनी उच्चराशि तुला में भ्रमणरत है।  साथ ही  राहुल गांधी की कुण्डली में योगनी महादशा में सिद्धा में सिद्धा की महादशा चल रही है, जो दिनांक 08.12.2014 तक चलेगी। सिद्धा की महादशा भी कार्यों की सिद्धि तथा सफलता में सहायक होती है।  वर्ष कुण्डली की लग्न जन्म लग्न मिथुन है। ताजिक नीलकंठी के अनुसार जब वर्ष लग्न जन्म लग्न बने तो वह वर्ष में संबंधित जातक को पुनर्जीवन वर्ष के सदृश्य होगी अर्थात् विगत् की राजनैतिक शून्यता शिखर पुरुष भी बना सकती है। किन्तु एक अवरोध है - मुंथा अष्टम् भवन में है, जो शारीरिक स्वास्थ्य की विपरीतता या किसी दुर्घटना की सूचक है।  आवश्यक चुनावी व्यवस्था में यात्राओं के दौरान सतर्कता बरतने से स्वास्थ्य हानि से बचा जा सकता है। कुण्डली में बने योगों में प्रमुख योग ''चक्रवर्ती राज योगÓÓ। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में देश का प्रधानमंत्री बनना भी चक्रवर्ती राजयोग के समकक्ष है। इसकी समयावधि 28.07.2020 तक है। सर्वाष्टक वर्ग के राज्य भवन में 35 शुभ बिन्दु देश के शिखर पद पहुंचाने में सहयोगी हो सकते हैं?

जन्मकुंडली-4
लालकृष्ण अडवानी: जन्म 08 नवम्बर, 1927
समय: प्रात: 9:16 बजे, स्थान: करांची (पाकिस्तान)

 लालकृष्ण आडवानी जी की कुण्डली वृश्चिक लग्न वाली है।  मोदी की जन्म लग्न भी वृश्चिक है। स्वभावगत् देखा जाए तो कोई भी किसी से कम नहीं।
 आडवानी जी की कुण्डली में वर्गोंत्तम ग्रह शनि है, जो पराक्रमेश और सुखेश भी है तथा गोचर में अपनी उच्चराशि तुला मे भ्रमणरत है। विंशोत्तरी दशा में वर्गोत्तम ग्रह शनि की महादशा में लाभेश बुध की अंतर्दशा 30.05.2014 तक चलेगी। लोकसभा के चुनावी परिणाम 30.05.14 तक आने की संभावना है।
यदि चमत्कार ने शनिदेव का नमस्कार कर लिया तो विचित्र किन्तु सत्य में घटित चुनावी सफलताएं  अडवानी को शिखर पद पर पहुंचा सकती है। योगनी महादशा में सिद्धा में सिद्धा की अंतर्दशा 01.06.2014 तक चलेगी। ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित है सिद्धा की महादशा जातक के समस्त प्रकार के कार्यों में सफलताओं के हस्ताक्षर करती हैं।  नवांश कुण्डली में सूर्य जो जन्म कुण्डली में राज्येश है, चन्द्र जो भाग्येश है, गुरु जो पंचमेश है तीनों ग्रह नवांश कुण्डली में अपनी-अपनी उच्च राशि में विराजमान है। अष्टमेश एवं लाभेश बुध भी नवांश कुण्डली में स्वक्षेत्री होकर केन्द्रस्थ है। सर्वाष्टक वर्ग की कुण्डली के राज्य भवन में 40 शुभ बिन्दु प्राप्त है, जो  राहुल गांधी और  नरेन्द्र मोदी से भी अधिक है। वर्ष कुण्डली, जन्म लग्न का द्वितीय भवन तथा मुंथेश शनि अपनी उच्च राशि तुला के साथ लाभ भवन में पदस्थ हैं। ज्योतिषीय गणनाओं का समग्र आंकलन कर यदि संकल्पित शब्दों में कहा जाए तो  नरेन्द्र मोदी अथवा  राहुल गांधी की तुलना में भा.ज.पा. का यह भीष्म पितामह दिल्ली के तख्ते-ताऊस पर विराजमान हो जावें, तो अकल्पनीय नहीं कहा जा सकता।

जन्मकुंडली-4
अरविन्द केजरीवाल (विषाक्त कालसर्प योग)
जन्म 16 अगस्त, 1968, समय: रात्रि 11:48 बजे, स्थान: हिसार (हरियाणा)    

वर्गोत्तम ग्रह: शनि और बुध विषाक्त कालसर्प योगधारी यह जातक भारतीय राजनीति में सुनामी की तरह 15 वर्षों तक स्थापित दिल्ली की मुख्यमंत्री मति शीला दीक्षित को विधान सभा के चुनावी समर में पराजित कर दिल्ली राज्य का स्वयं मुख्यमंत्री बन बैठा।   नरेन्द्र मोदी से लेकर भा.ज.पा. के अनेक कद्दावर नेता भी दिल्ली में भा.ज.पा. को सिंहासत्तारूढ़ कराने में असफल रहे। कालसर्प योग में जन्में पं. जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई, पी.व्ही. नरसिम्हाराव, मार्टिन लूथर किंग, मति सोनिया गांधी, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सद्दाम हुसैन, नेल्सन मण्डेला, पं. मदनमोहन मालवीय, हेराल्ड विल्सन, मोरारी बापू सरीखे विशिष्ट व्यक्तित्व भी काल सर्पयोग से प्रभावित रहे।   अरविन्द केजरीवाल की कुण्डली में शंख योग, मेरी योग, पर्वत योग, अखण्ड साम्राज्य योग, अमर योग, केन्द्र त्रिकोण आदि प्रबल राजयोगों ने देश की राजधानी दिल्ली प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवा दिया।  विधानसभा 2013 के चुनावी समर में किसी भी एक्जिट या ओपिनियन पोल ने 16 से अधिक सीटें नहीं दीं, किन्तु मैंने अपने चुनावी आलेख में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में ''आम आदमी पार्टीÓÓ के लिए लिखा था कि आम आदमी पार्टी राजनैतिक हनीमून मनायेगी तथा कांग्रेस पार्टी सत्ताच्युत होकर भी विपक्ष में नहीं बैठेगी - भविष्य वाणी अक्षरस: सत्य हुई।  अरविन्द केजरीवाल की कुण्डली में शनि और शुक्र स्वक्षेत्री है, जो भाग्येश तथा राज्येश एवं लग्नेश है। शनि गोचर में उच्च राशिगत् होकर शत्रु भवन में विचरण कर रहा है। सम्भव है राजनैतिक शत्रुओं के पराभव की ऐतिहासिक समीक्षा करने में यह आतुर हो।

राजनीतिक समीकरण
चौदहवीं लोकसभा के चुनावों के राजनैतिक समीकरण  नरेन्द्र मोदी एवं  राहुल गांधी के मध्य शक्ति प्रदर्शन के रूप में प्रतिफलित होंगे। आशय यह कि भा.ज.पा. या कांग्रेस में से कौन सत्ता सिंहासन पर कब्जा जमाने में सफल होगा? प्रश्न का उत्तर स्पष्ट है कि जनादेश किस पार्टी एवं उसके सहयोगी दलों को बहुमत की सीमा रेखा में लाता है। ज्योतिष परिदृश्य मिले-जुले संकेत दे रहा है।  नरेन्द्र मोदी और  राहुल गांधी दोनों की कुण्डलियां वृश्चिक राशि तथा शनि की साढ़ेसाती से प्रभावित हंै। दोनों का स्वामी मंगल है।   नरेन्द्र मोदी की कुण्डली महादशाओं की दृष्टि से भाग्येश चन्द्र की दशा में, राहु की अन्तर्दशा ग्रहण योग, वर्ष मुंथा पराक्रम भवन में, मुंथेश शनि अपनी उच्च राशि लाभ में तथा दूसरी ओर  राहुल गांधी की कुण्डली के अनुसार चन्द्रमा जो मारक है कि महादशा में लग्नेश-सुखेश बुध की अंतर्दशा चल रही है और प्रत्यन्तर दशा शनि की, जो मारकेश तथा भाग्येश भी हैं। योगनी महादशा में सिद्धा में सिद्धा की अन्तर्दशा 08.12.2014 तक चलेगी। वर्ष कुण्डली में लग्न जन्म लग्न है, इसे पुनर्जन्म वर्ष के रूप में स्वीकारा जाता है। सर्वाष्टक वर्ग के राज्य भवन में  नरेन्द्र मोदी के शुभ बिन्दु 27 तथा  राहुल गांधी को शुभ बिन्दु 35 मिले हैं। दोनों में से कोई भी कम नहीं है, किन्तु नरेन्द्र मोदी की पराक्रम भवन में मुंथा, मुंथेश शनि उच्च तथा भाग्येश की महादशा के कारण  राहुल गांधी की तुलना में प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार  नरेन्द्र मोदी बनते दिख रहे हैं। किन्तु इन दोनों की तुलना में छिपे रुस्तम  लालकृष्ण आडवानी की कुण्डली को देखें तो नरेन्द्र मोदी की तुलना में ग्रहीय प्रभाव  आडवानी जी के प्रबल हैं। सर्वाष्टक वर्ग के राज्य भवन में शुभ बिन्दु 40 जो मोदी और गांधी की तुलना में सर्वाधिक है। विंशोत्तरी महादशा शनि में बुध की अन्तर्दशा। शनि वर्गोत्तम है। पराक्रमेश और सुखेश शनि की महादशा में लाभेश बुध की अन्तर्दशा जातक को प्रभावशाली बनाती है। शनि अपनी उच्च राशि तुला में भ्रमणरत है।  आडवानी की नवांश कुण्डली में सूर्य जो राज्येश है, चन्द्र जो भाग्येश है और गुरु जो पंचमेश (विवेक) है तीनों अपनी-अपनी उच्च राशि में विराजमान हैं। वर्ष कुण्डली में मुंथेश शनि अपनी उच्च राशि में भ्रमणरत् है। योगिनी महादशा में सिद्धा में सिद्धा की अन्तर्दशा 01.06.2014 तक चलेगी। ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित है कि सिद्धा अपने महादशा काल में कार्यों की सफलताओं के हस्ताक्षर करती है। यदि ज्योतिष की दृष्टि में संकल्पित शब्दों में कहा जाए कि भा.ज.पा. का यह भीष्म पितामह दिल्ली के तख्ते-ताऊस पर बैठकर देश का प्रधानमंत्री बन जाए, तो अकल्पनीय नहीं कहा जा सकता।  अरविन्द केजरीवाल इस चुनावी समर में कांग्रेस तथा भा.ज.पा. एवं स.पा. के लिए एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींचेगें जो विजय के पास खड़े चुनावी मुहरों को पराजय की दास्तान लिखने को मजबूर कर सकेंगे। आम आदमी पार्टी की 'लाईफ लाईन' इन्हीं चुनावों में छोटे या बड़े आकार में खींची जा सकती है। दिल्ली राज्य का भविष्य भी इसी चुनावी परिणाम से जुड़ा होगा?

पंडित पीएन भट्टअंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
मोबाइल : 09407266609, 8827294576
फोन: 07582-223168, 223159








सृष्टिरूपा दस महाविद्याएं शक्तितत्व रहस्य



यह विश्व शक्तिमय है। विश्व के अतिरिक्त भी जो कुछ सत्ता है, वह भी शक्ति है। शक्ति ही जड़ और चेतन दोनों हैं - ब्रह्म, जीव और माया तीनों हैं। शक्ति ही परात्पर है। शक्ति ही भगवती है, शक्ति ही भगवान है। शक्ति ही शक्तिमान है। शक्ति और शक्तिमान में अन्तर नहीं है। जो कुछ है शक्ति है जो कुछ नहीं है वह न होना भी शक्ति ही है। आइये जानते हैं आज की कवर स्टोरी में बसंत नवरात्र में मां आद्यशक्ति की आराधना, शक्ति तत्व का रहस्य।

योगवासिष्ठ महारामायण भारतीय अध्यात्म शास्त्रों में एक उच्च कोटि का ग्रंथ है। विद्वतजनों की ऐसी मान्यता है कि चारों वेदों के अध्ययन मनन के बाद योग वासिष्ठ के अर्थ को समझना ज्यादा सटीक होगा। योग वसिष्ठ में भगवान राम और उनके गुरू वसिष्ठ जी के मध्य संवाद है। भगवान राम, गुरू वसिष्ठ जी से पूछते हंै, हे गुरूदेव ! क्या आप सरीखे गुरू वसिष्ठ और मुझ सरीखे राम इस धरा पर पूर्व में भी जन्मे हैं ? गुरूदेव वसिष्ठ जी ने कहा है राम ! जिस तरह सम्रुद में लहरे उठती हैं और मिट जाती है, उसी प्रकार 14 राम और 14 वासिष्ठ इस धरा पर पूर्व में भी जन्में हैं। इसी ग्रंथ में वासिष्ठ जी कहते हैं, हे राम ! वह अनादि स्पन्द शक्ति प्रकृति, परमेष्वर षिव की इच्छा जगत-माता आदि के नाम से विख्यात हैं। सृष्टि का कारण होने से वह प्रकृति और अनुभूत दृष्य पदार्थों के उत्पादन करने से वह क्रिया कहलाती है। इस महाषक्ति के दूसरे नाम शुष्का, चण्डिका, उत्पला, जया, सिद्धा, जयन्ती, विजया, अपराजिता, दुर्गा, उमा, गायत्री, सावित्री, सरस्वती, गौरी, भवानी और काली आदि भी हैं।

माता का गुरुत्व

- मातृ देवों भव, पितृ देवों भव, आचार्य देवो भव ।
- मातृवान, पितृ मानाचार्यवान् पुरूषो वेद।।

मंत्रों में माता का स्थान सबसे पहले दिया गया है। इसका भी यही कारण है कि माता ही आदि गुरू है और उसी की दया और अनुग्रह से बच्चों का ऐहिक पारलौकिक और पारमार्थिक कल्याण निर्भर रहता है। सनातन वैवाहिक मंत्र- ''सम्राज्ञी भव हमारे वैवाहिक मंत्रों से ही स्पष्ट है कि स्त्री को अपने पति के घर में सर्वोत्तम अधिकार दिया जाता है, क्योंकि विवाह करने वाला पुरूष अपनी पत्नि से कहता है- ''सम्राज्ञी भवÓÓ। अर्थात ,मेरे घर की रानी, महारानी नहीं बल्कि सम्राज्ञी अर्थात सर्वाभौमिक चक्रवर्तिनी बनो। '' इसी से स्त्री को अपने पति के घर में कोई हीन पदवी नहीं मिलती, बल्कि सर्वोत्तम पदवी ही मिलती है।
अंतिम आश्रय: जगन्माता : जो जगन्माता - न केवल साधारण रेषु सर्वेषु, सुप्तेषु जागर्ति अपि तु सुप्तेेपि जगन्नाथे जागर्ति '' अर्थात साधारण सब जीवों के ही नहीं, बल्कि जगत्पिता के सोते रहने पर भी जो अपने बच्चों की रक्षा और कल्याण के लिए दिन-रात सदा-सर्वदा जागती रहती है, जिसका इसी प्रसंग के कारण चण्डीपाठ सप्तषती के एक ध्यान श्लोक में वर्णन है- ''यामस्तौत्सवपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम। और जिसको शंकरावतार और याति सर्वभौम भगवान जगद्गुरू श्री शंकराचार्यजी ने अत्यंत श्रद्धाभाव से कहा -  देशिकरूपेण दर्षिताभ्युदयाम् ।  विभिन्न श्लोकों के माध्यम से जगन्माता को जगदगुरू बताया है। आज के कलयुगी संकट काल में किसका आश्रय लें। इसी जगन्माता और जगदगुरू के श्री चरणों में शरणागत होकर अपने हृदयोदगार प्रार्थना के रूप में समर्पित कर दें।

शक्ति तत्व
शक्ति तत्व क्या है? जो निर्विषेष शुद्व तत्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार है उसी को पुंस्त्वदृष्टि से चित और स्त्रीत्व को चिति कहते हैं। शुद्व चेतन और चिति ये एक ही तत्व के दो नाम हैं। माया में प्रतिबिम्बित उसी तत्व को जब पुरूष रूप से उपासना की जाती है तब उसे ईष्वर, षिव अथवा भगवान आदि नामों से पुकारते हैं और जब स्त्री रूप से उपासना करते हैं तो उसी को ईष्वरी, दुर्गा अथवा भगवती कहते हैं। शक्तिं की उपासना प्राय: सिद्वियों की प्राप्ति के लिए की जाती  है। तंत्र शास्त्र का मुख्य उद्देष्य सिद्धि लाभ ही है। आसुरी प्रकृति के पुरूष मद्य-मांस आदि से पूजते हैं, जिससे उन्हें मारण उच्चाटन आदि आसुरी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। देवी प्रकृति के पुरूष गन्ध-पुष्प आदि सात्विक पदार्थों से पूजते हैं, जिससे वे नाना प्रकार की दिव्य सिद्धियां प्राप्त करते हैं। यद्यपि शक्ति के उपासक प्राय: सकाम पुरूष ही होते हैं किन्तु निष्काम उपासक भी होते हैं। राम कृष्ण परमहंस निष्काम उपासक थे। ऋग्वेद के दसम मण्डल के 125 वें सूक्त में आदि शक्ति जगदम्बा कहती हैं -
'' मैं ब्रहाण्ड की अधीष्वरी हँू। मैं ही सारे कर्मो का फल भुगताने वाली और ऐष्वर्य देने वाली हूँ। मैं चेतन एवं सर्वज्ञ हूँ। मैं एक होते हुए भी अपनी शक्ति से नाना रूप धारण करती हूँ । मैं मानव जाति की रक्षा के लिए युद्ध कर शत्रुओं का संहार कर पृथ्वी पर शक्ति की स्थापना करती हूँ। मैं ही भू लोक, स्वर्ग लोक का विस्तार करती हूँ । जैसे वायु अपने आप चलती है, वैसे ही मैं भी अपनी इच्छा से समस्त विष्व की स्वयं रचना करती हूँ। मैं सर्वथा स्वतंत्र हूँ । मुझ पर किसी का प्रभुत्व नहीं। अखिल विष्व मेरी विभूति है।
इस प्रकार जगदम्बा को सब कुछ कहा गया है। उस जगज्जननी के अन्दर ही हम जीवन धारण करते हैं, चलते फिरते हैं और अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं।

शक्ति तत्व व कलाएं
शक्ति तत्वों के साथ कलाओं का भी संबंध है। ये कलाएं शक्ति रूप में तत्वों की क्रियाएं हैं। उदाहरणत: सृष्टि ब्रह्मा की कला है, पालन विष्णु की कला है और मृत्यु रूद्र की कला है।  शाक्त तंत्रों में चौरानवे कलाओं का उल्लेख मिलता है, जिनमें 19 कलाएं सदाषिव की, छ: ईष्वर की, ग्यारह रूद्र की, दस विष्णु की, दस ही ब्रह्मा की, उतनी ही अग्नि की, बारह सूर्य की, सोलह चन्द्रमा की मानी गई हंै। ''सौभाग्य रत्नाकर ग्रंथÓÓ के अनुसार निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या, शान्ति, इन्धिका, दीपिका, रेचिका, मोचिका, परा, सूक्ष्मा, सूक्ष्मामृता, ज्ञानामृता, अमृता, आव्यायिनी, व्यापिनी, व्योमरूपा, मूलविद्या मंत्र कला, महामंत्र कला और ज्योतिष कला ये उन्नीस कलाएं सदाषिव की हैं। पीता, श्वेता, नित्या, अरूणा, असिता और अनन्ता ये छ: कलाएं ईष्वर की हैं। तीक्ष्णा, रौद्री, भया, निद्रा, तद्रा , क्षुदा, क्रोधिनी क्रिया, उद्गारी अभाया और मृत्यु- ये ग्यारह रूद्र की कलाएं हैं। जड़ा, पालिनी, शान्ति, ईष्वरी, रति, कामिका, ह्लादिनी, प्रीति और दीक्षा- ये दस विष्णु की कलाएं हैं। सृष्टि, सिद्धि, स्मृति, मेघा, कान्ति, लक्ष्मी, द्युति, स्थिरा, स्थिति और सिद्धि-ये दस ब्रह्मा की कलाएं हैं। ध्रूमार्चि, उष्मा, ज्वलिनी, जवालिनी, विस्फुलिंगनी, सुश्री, सुरूपा, कपिला, हव्यवहा और कव्यवहा- ये दस कलाएं अग्नि की हैं। तापिनी, तपनी, धूम्रा, मरीचि, ज्वालिनी, रूचि, सुषुम्णा, भोगदा, विष्वा, बोधिनी, धारिणी और क्षमा  ये बारह सूर्य की कलाएं हैं। अमृता, मानदा, पूषा, तुष्टि, पुष्टि रति, धृति, शषिनी, चन्द्रिका, कान्ति, ज्योत्सना , श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्णा और पूर्णामृता, ये सोलह कलाएं चन्द्रमा की है। इन चौरानवें कलाओं में से पचास मातृका-कलाएं हैं। जो इस प्रकार हैं - निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या , शान्ति, इन्धिका, दीपिका, रेचिक, मोचिका, परा, सूक्ष्मा, सूक्ष्मामृता, ज्ञानामृता, आव्यायिनी, व्यापिनी, व्योमरूपा अनन्ता, सृष्टि, ऋद्धि, स्मृति, मेधा, कान्ति, लक्ष्मी, द्युति, स्थिरा, स्थिति, सिद्धि, जडा, पालिनी, शान्ति, ऐष्वर्या, रति, कामिका, वरदा, ह्लादिनी, प्रीति, दीर्घा, तीक्ष्णा, रौद्री, भया, निद्रा-तन्द्रा, क्षुधा, क्रोधिनी, क्रिया उदगारी, मृत्युरूपा, पीता, श्वेता, असिता, और अनंता इन पचास कलाओं का उस सुरा कुम्भ में पूजन होता है, जिसमें तारा द्रवमयी निवास करती है। इनका नाम संवित्कला है। यह बाल योगनी हृदय- तंत्र में की गई है।

शक्ति पूजा और योग रहस्य
हिन्दुओं की समस्त साधना की कुंजी है ''तंत्रÓÓ । सब सम्प्रदायाओं की सब प्रकार की साधना का गूढ़ रहस्य तंत्र-षास्त्र में निहित है। तंत्र केवल शक्ति उपासना का ही नहीं अपितु सभी साधनाओं का एक मात्र आश्रय है। जिस प्रकार मनुष्य की प्रकृति सात्विक, राजसिक और तामसिक भेद में तीन प्रकार की है- उसी प्रकार तंत्र शास्त्र भी सात्विक, राजसिक और तामसिक भेद से तीन प्रकार का है तथा उसकी साधना प्रणाली भी उसी प्रकार गुण भेद से तीन प्रकार की व्याख्यात होती है।।

महाकाल पुरूष और उसकी शक्ति
1. महाकाली
परात्पर नाम से प्रसिद्ध विष्वातीत महाकाल पुरूष की शक्ति का नाम ही महाकाली है। शक्ति शक्तिमान से अभिन्न है। अतएव अद्वैतवाद अक्षुण रहता है। अग्नि की दाहक शक्ति अग्नि से अभिन्न है, प्रकाष शक्ति जैसे सूर्य से अभिन्न है। वह एक ही तत्व शक्ति रूप से परिणत हो रहा है। शक्ति से पहिले इसी महाविद्या का साम्राज्य रहता था। वह पहला स्वरूप है। अतएव महाकाली आगम शास्त्र में प्रथमा, आद्या आदि नामों से व्यवहृत हुई है। सूर्योदय से पहिले- रात्रि के 12 बजे से बीच का समय महाकाली का है। सृष्टि काल उनकी प्रतिष्ठा नहीं, प्रलय काल उनकी प्रतिष्ठा है। अनंताकाष रूप चतुर्भुज रूप में परिणत होकर ही, वह विष्व का संहार करती है।
2.अक्षोम्य पुरूष और उसकी महाषक्ति 'तारा
महाकाली की सत्ता रात्रि 12 बजे से सूर्योदय के पूर्व तक रहती है। इसके पष्चात् ''तारा का साम्राज्य है। हिरण्यगर्भ विद्या के अनुसार निगम शास्त्र ने सम्पूर्ण विष्व की रचना का आधार सूर्य माना है। सौरमण्डल आग्नेय होने से हिरण्यमय कहलाता है। जिस प्रकार विष्वातीते काल पुरूष की शक्ति महाकाली थी वैसे ही विष्वधिष्ठाता इस हिरण्यगर्भ पुरूष की शक्ति 'तारा है। यह पुरूष तंत्र शास्त्र में अक्षोम्य नाम से प्रसिद्ध है। जब तक अन्नाहुति होती रहती है तब तक तारा शान्त रहती है। अन्नाभाव में वही उग्र बन कर संसार का नाष कर डालती है। महाकाली और उग्र तारा दोनों का काम प्रलय करना है।
3.पंचवक्त्र षिव और उसकी महाषक्ति षोडषी
आगम रहस्यानुसार स्वर - वाक की अधिष्ठाती यही हैं। इसी पंचवक्त्र षिव की शक्ति का नाम षोडषी है। भू: भुव: स्व: रूप तीनों ब्रह्मपुर इसी महाषक्ति से उत्पन्न हुए हैं अतएव तंत्र में यह त्रिपुर सुन्दरी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। सूर्य को लोक चक्षु कहा जाता है। ताप (अग्नि) आहुत सोम (चन्द्रमा) और सूर्य प्रकाष- षिव शक्ति ने इन्हीं तीन रूपों से विष्व को प्रकाषित किया है। सोमाहुति से यह शान्ति बनी रही। प्रात: काल का बाल सूर्य इनकी साक्षात प्रतिकृति है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, पालक विष्णु, संहारक, रूद्र खण्ड प्रलय के अधिष्ठाता, यम, ये चारों देवता उसके अधीन है।
4.त्रयम्बक षिव और उनकी महाषक्ति ''भुवनेष्वरी
यह चैथी सृष्टि धारा है, चैथी सृष्टि विद्या है। यदि सूर्य में सोमाहुति न होती तो यज्ञ असम्भव था। बिना यज्ञ के भुवन - रचना का अभाव था। बिना भुवन के भुवनेष्वरी उन्मुग्ध थी। संसार में जितनी भी प्रजा है सबको उसी त्रिभुवन व्याप्ता भुवनेष्वरी से अन्न मिल रहा है। भुवनों को उत्पन्न कर उनका संचालन करती हुई वही शक्ति आज भुवनेष्वरी बन गई है।
5.कबन्ध षिव और महाषक्ति छिन्न मस्ता -
पाड्क्तों वै यज्ञ: (ष. 1/1/12) के अनुसार सृष्टि का मूल यज्ञ- पाक यज्ञ, हविर्यज्ञ, महायज्ञ, अतियज्ञ और षिरो यज्ञ- भेद से पांच भागों में विभक्त है। स्मार्त यज्ञ पाक यज्ञ है। अग्नि चयन, राजसूय, अष्वमेघ और वाजपेय ये चार अति यज्ञ हैं। जो महामाया षोडषी तथा भुवनेष्वरी बन संसार का पालन करती हैं वहीं अन्त काल में छिन्नमस्ता बनकर नाष कर डालती हैं।
6.दक्षिणामूर्ति काल भैरव और उसकी महाषक्ति: भैरवी
यमराज को दक्षिण दिषा का लोकपाल बतलाया जाता है। दक्षिण में अग्नि की सत्ता है। उत्तर में सोम का साम्राज्य हे। सोम स्नेह - तत्व है, संकोच धर्मा है। अग्नि तेज तत्व है, रूद्र की शक्ति का नाम व भैरवी किवा त्रिपुर भैरवी हैं। कल्याणेच्छुकों को उनका निरन्तर ध्यान करना चाहिए।
7.पुरूष शून्या अथवा विघवानाम से प्रसिद्व महाषक्ति ''धूमावती
संसार में दुख के मूल कारण- रूद्र, यम, वरूण, निर्ऋूति ये चार देवता है। विविध प्रकार के ज्वर महामारी, उन्माद आदि आग्रेय (सन्ताप) संबंधी रोग रूद्र की कृपा से होते हैं। मूच्र्छा, मृत्यु, अंग-भंग आदि रोग यम की कृपा के फल हैं। गठिया शूल- गृध्र्रसी लकवा आदि के अधिष्ठाता वरूण हैं एवं सब रोगों में भयंकर शोक कलह दरिद्रता आदि की संचालिका निर्ऋति है। ध्यान से ही निदान स्पष्ट है। आषाढ़ शुक्ल एकादषी से वर्षाकाल प्रारंभ हो जाता है तथा कार्तिक शुक्ला एकादषी वर्षा की परम अवधि मानी जाती है। इस चार महीनों को चातुर्मास्य कहते हैं। चातुर्मास्य देवताओं का सुषुप्तिकाल कहलाता है। इतने दिनों तक आसुरी प्राण का साम्राज्य रहता है। इसीलिए दिव्य प्राण की उपासना करने वाले कोई दिव्य कार्य (विवाह-यज्ञोपवीत, यात्रा आदि) नहीं करता। निर्ऋति रूपा धूमावती प्रधान रूप से चतुर्मास्य में रहती हैं।
8.एक वक्त्र महारूद्र और उसकी महाषक्ति ''बगुलामुखी-
प्राणियों के शरीर में एक अर्थवा नाम का प्राण सूत्र निकला करता है। प्राण रूप होने से हम इसे स्थूल दृष्टि से देखने में असमर्थ रहते हैं। यह एक प्रकार की वायरलेस टेलीग्राफी है। सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले आत्मीयजनों के दुख से हमारा चित्त परोक्ष रूप से व्याकुल हो उठता है, उसी परोक्ष सूत्र का नाम अथर्वा है। निगमोक्त बल्गा - शब्द आगम में बगला के रूप में परिणत हो गया। निगम-शास्त्र की बगला ही आगम की बगलामुखी हं। इस कृत्या शक्ति की आराधना करने वाला मनुष्य अपने शत्रु को मनमाना कष्ट पहुंचा सकता है।
9.मतंग षिव और उसकी महाषक्ति ''मातंगी
नवमी महाविद्या शक्ति मातंगी देवी हैं। यह तंत्र में अपना प्रमुख स्थान रखती हंै। इन्हें राज मातंगी भी कहते हंै। इस शक्ति से उन्मत्त हाथी भी वष में हो जाते हैं। यह राजसी भाव से उपासित होकर आराधना करने से राज योग प्रदायनी महाषक्ति बन जाती हैं। इसमें वषीकरण करने की शक्ति है। इनका स्वरूप तंत्र शास्त्र में इस प्रकार लिखा है कि यही राज मातंगी श्यामला, शुक्र श्यामला, राज श्यामला विद्या हैं।
10. सदाषिव पुरूष और उसकी महाषक्ति ''कमला -
धूमावती और कमला में प्रतिस्पर्धा है। वह ज्येष्ठा थी और यह कनिष्ठा। वह अवरोहिणी थी, यह रोहणी है। वह आसुरी थी यह दिव्या है। वह दरिद्रा थी, यह लक्ष्मी है। दसवीं सदाषिव की महाषक्ति ''कमला महाविद्या है। जिसका रोहणी नक्षत्र में जन्म होता है, वह सुखी और समृद्ध होता है। कमला ही महालक्ष्मी हैं। ये धन धान्य, वसु, रत्नप्रदा, रत्नधारा, कनकधारा वसुधारा हैं। यह दरिद्रता का विनाष करती हैं। इस प्रकार उपरोक्त दस महाविद्या शक्तियों का संक्षिप्त दिग्दर्षन नाम मात्र से किया गया हैं।

शक्ति ही जड़ और चेतन
यह विष्व शक्तिमय है। विष्व के अतिरिक्त भी जो कुछ सत्ता है, वह भी शक्ति है। शक्ति ही जड़ और चेतन दोनों हैं - ब्रह्म, जीव और माया तीनों हैं। शक्ति ही परात्पर है। शक्ति ही भगवती है, शक्ति ही भगवान है। शक्ति ही शक्तिमान है। शक्ति और शक्तिमान में अन्तर नहीं है। जो कुछ है शक्ति है जो कुछ नहीं है वह न होना भी शक्ति ही है। भगवती शक्ति क्या नहीं है? कौन कह सकता है ? 'सर्वस्य या शक्ति: सा त्वं किं स्तूयसे मयाÓÓ  कौन स्तुति करने में समर्थ है।

श्री शतचण्डी पूजन: सप्तषती महामंत्र
किसी षिवालय अथवा दुर्गा मंदिर के निकट एक सुन्दर मण्डप बनावे, जिसमें दरवाजे और वेदी भी बनी हो। उसके चारों ओर तोरण (बन्दनवारे) लगावें और ध्वाजारोपण भी करें। मण्डप के अंतर्गत पष्चिम भाग या मध्य भाग में होम कुण्ड बनावे। स्नान और नित्य क्रिया से निवृत्त होकर दस उत्तम ब्राम्हणों का वरण करें। ये ब्राम्हण जितेन्द्रिय, सदाचारी कुलीन, सत्यवादी तथा बोधयुक्त हों साथ ही दयालु और प्रतिदिन दुर्गा सप्तषती का पाठ करने वाले हों। उन्हें विधिवत विधि पूर्वक (पाद्य अध्र्य, आचमनीय के साथ अनन्तर) निवेदन करके वस्त्रादि दान, जप के लिए आसन और माला दें तथा हविष्य - भोजन अर्पण करें। तथा विधि विधान पूर्वक जप सम्पुट- पाठ से (प्रत्येक मंत्र के आदि- अंत में किसी बीज अथवा अन्य मंत्र का उच्चारण करने से मंत्र सम्पुटित होता है) एक सहस्त्र जाप प्रत्येक ब्राह्मण को करना चाहिए।  अनुष्ठान में यजमान को नव कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो कि दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की उम्र वाली हो उनके नाम क्रमष: 1 कुमारी, 2. त्रिमूर्ति, 3. कल्याणी 4. रोहिणी, 5. कालिका, 6. शाम्भवी 7. दुर्गा, 8. चण्डिका 9. सुभद्रा। इन्हीं नाम मंत्रों से इनकी पूजा करना चाहिए। अपने सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिए ब्राह्मण कन्या का, यष के लिए, क्षत्रिय कन्या का, धन के लिए वैष्य कन्या का और पुत्र के लिए शूद्र कन्या का पूजन करना चाहिए। गंध, पुष्प, धूप, दीप, भक्ष्य भोज  तथा वस्त्राभरणों द्वारा अपनी शक्ति के अनुसार कन्याओं का पूजन करें। इनका आवाहन करने के निमित्त शंकरजी का कहा हुआ मंत्र बतलाया जा रहा हैं। ''मैं मन्त्राक्षरमयी, लक्ष्मीरूपिणी, मातृ रूपधारिणी तथा साक्षात दुर्गा स्वरूपिणी कन्या का आवाहन करता हूं।
महायन्त्रादि- पूजन विधि
वेदी पर सुन्दर सर्वतो भद्र मण्डल बना कर उस पर विधि पूर्वक कलष स्थापन करें और कलष के ऊपर मां भगवती पार्वती जी का आवाहन करें। पीठ की पूर्वादि दिषाओं में गणेष आदि चार की स्थापना करें उनके नाम है भगवान जय महागणेष, क्षेत्रपाल, दो पादुकाएं और तीन बटुक। आग्नेय आदि चारों कोणों में जया, विजया, जयन्ती और अपराजिता इन चार देवियों की आराधना करें एवं पूर्वादि दिषाओं में इन्द्रादि देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इसी प्रकार चार दिनों तक पूजा करें। उनमें भी प्रथम दिन सप्तषती का एक पाठ, दूसरे दिन दो, तीसरे दिन तीन और चैथे दिन चार पाठ प्रत्येक ब्राह्मण करें पांचवे दिन हवन होना चाहिए।

होम द्रव्य
विधि पूर्वक स्थापित हुए अग्नि में तीन बार मधु से भिगोये हुए हविष्य, द्राक्षा, केला, मातुलिंग, ईख, नारियल, तिल, जातीफल, आम तथा अन्य मधुर द्रव्यों से दस आवृत्ति सप्तषती के प्रत्येक मंत्र पर हवन करें और एक सहस्त्र नवार्ण मंत्र से भी हवन करें। फिर आवरण देवताओं के लिए उनके नाम मंत्रों द्वारा हवन करके यथोचित रूप से पूर्ण आहूति दें। तत्पष्चात् ब्राह्मणवृन्द देवताओं सहित अग्नि का विसर्जन करके यजमान को कलष के जल से अभिषित करें। यजमान प्रत्येक ब्राह्मण को एक सहस्त्र मुद्राएं दक्षिणा रूप में प्रदान करें । फिर नाना प्रकार के भक्ष्य भोज्यों द्वारा ब्राह्मणों को भोजन करावे और उन्हें दक्षिणा देकर आषीर्वाद लें। ऐसा विधि विधान से पूजन करने पर मां जगदम्बा की कृपा से सुबुद्धि समृद्धि और आपदा, विपदा और झंझाओं से मुक्ति मिल सकेगी। शतचण्डी श्रीदुर्गा सप्तषती का परम अस्त्र है और उसकी शक्ति तथा प्रयोग सन्निहित है इस महामंत्र में। इसकी विधिवत साधना से साधक का जीवन दिव्य और पूर्ण हो जाता है। सप्तषती महायंत्र भोज पत्र पर लिखना हो तो केषरयुक्त चन्दन से बिल्व लेखनी द्वारा अंकित करना चाहिए तथा विधि- विधान से यंत्र की पूजा-प्रतिष्ठा करना चाहिए।

- पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
मोबाइल : 09407266609, 8827294576
फोन: 07582-223168, 223159


ज्योतिष के आइने में मर्यादा पुरुषोत्तम राम



ब्रह्माण्ड नायक प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव पर विशेष

सृष्टि संचालक विराट महापुरुष की सूर्य व चन्द्रमा के समान ये दोनों आंखें, सम्पूर्ण मानव सभ्यता को प्रेरणा देती रहेंगी। मर्यादा पुरुषोत्तम राम युग-युगाब्द तक याद किए जाएंगे। भगवान श्रीराम राघवेन्द्र थे। इनका जन्म अयोध्या में हुआ। वे समस्त भारत भू-मंडल के चक्रवर्ती सम्राट कहलाते थे। सूर्यवंशीय श्रीराम चैत्र शुक्ल, नवमी, दिन को ठीक 12 बजे अभिजित मुहूर्त में अवतीर्ण हुए। भगवान श्रीराम की कुंडली में सूर्य, मंगल, गुरु, शनि उच्च राशिगत तथा चन्द्र स्वक्षेत्री थे। भगवान राम का जन्म चर लग्न में हुआ। उनकी जन्म पत्रिका के चारों केन्द्रों में उच्च के ग्रह पंच महापुरुष के योग का निर्माण कर रहे है। वृृहस्पति से हंस योग, शनि से षष योग, मंगल से रूचक योग का निर्माण हो रहा है। लग्नस्थ कर्क राशि गत गुरु और चंद्र गजकेसरी योग। कर्क लग्न में सप्तमस्थ उच्च राशिगत मंगल पंचमेश और राज्येश बन कर प्रबल राजयोग बना रहा है। सूर्य उच्च राशिगत होकर राज्य भाव (कर्म भाव) में होने से भगवान राम चक्रवर्ती बने। उन्होंने युगों तक राज्य किया। भगवान श्रीरामचन्द्र जी की जन्म कुंडली पर अपनी अल्प बुद्धि से ज्योतिषीय विवेचना का प्रयास किया। विद्वतजनों से आग्रह है त्रुटियों को क्षमा करें। भगवान श्रीराम के जन्मदिन पर प्रस्तुत हैं बड़े विनम्र भक्तभाव से यह ज्योतिषीय कलेवर, कौतुकता से इसे निहारें। भगवान श्रीराम दीर्घकाल तक सभी जातकों की रक्षा करें।

भगवान श्रीराम की जन्म कुंडली
भगवान श्रीराम की कुंडली के दसम भवन में सूर्य उच्च राशि में विराजमान हैं। सूर्यदेव 12 कलाओं में मर्यादित हैं, फलत: श्रीराम का चरित्र मर्यादित है। इसलिये उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा गया है। वे सत्य वक्ता थे। उनके मुख से जो वचन निकल गया वह सत्य होता था, पूर्ण होता था, अमोघ होता था। महाकवि तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाहि पर वचन नहीं जाही। सूर्य, दसम भवन में राज्य, कीर्ति का कारक ग्रह भी हैं, अस्तु प्रभु राम चाहें वे अयोध्या में रहे हों या अपने विद्याकाल में गुरु वसिष्ठ के गुरुकुल में अथवा वन में या चक्रवर्ती सम्राट के रूप में अयोध्या में रहे हों। उनकी यश, कीर्ति, न्याय व्यवस्था मानव सभ्यता में सदैव स्तुत्यनीय तथा अनंतकाल तक कीर्ति पताका दिग्दिगंत तक फहराती रहेगी। दशरथ पुत्र राम की जन्म कुंडली में चन्द्र देव स्वक्षेत्री कर्क लग्न में उच्च राशिगत देव गुरु वृहस्पति के साथ विराजमान होकर कह रहे हैं कि यह जातक तन, मन से विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न होकर सुदर्शनीय तो होगा ही, साथ ही शील तत्व, स्वभाव कार्यकुशलता की दृष्टि से एक ऐेसे विराट व्यक्तित्व का धनी होगा, जिसे विश्व मानव समाज श्रद्धामयी दृष्टि से अपलक निहारता हुआ राममय हो जाएगा।

द्वितीय भवन
भरताग्रज राम की कुंडली के द्वितीय भवन का स्वामी नवग्रहों का राजा सूर्य विराजमान है, सूर्य कुलभूषण श्रीराम इक्ष्वाकु वंश की महानता को कलकल करती गंगा की तरह सदैव यशस्वी बनाये रखेंगे। द्वितीय भवन ज्योतिषीय ग्रंथों में द्वितीय भवन से जातक के नाक, कान, नेत्र, मुख, दंत, कंठ स्वर, सौन्दर्य, प्रेम आदि से जातक के व्यक्तित्व को देखा जाता है। भगवान श्रीराम सौन्दर्य की अद्भुत प्रतिमा तथा प्रेम के अर्थ को समझने के लिए तीनों माताओं के प्रति श्रद्धा, भाइयों के प्रति अगाध स्नेह, सुमंत से लेकर समस्त अयोध्यावासियों के प्रति कर्तव्यपरायणता, सुग्रीव, विभीषण आदि अनगिनत मित्रों के प्रति चिरस्मरणीय स्नेहमूर्ति तथा भार्या जनकनंदिनी सीता के प्रति अलौकिक प्रीति ने ही उन्हें लंकापति रावण से युद्ध की अनिवार्यता स्वीकारी थी।
तृतीय भवन - पवन पुत्र हनुमानजी के इष्ट प्रभु श्रीराम की कुंडली के तृतीय भवन में कन्या राशिगत स्वक्षेत्री राहु विराजमान हैं। तृतीय भवन बन्धु, पराक्रम, शौर्य, योगाभ्यास, साहस आदि का मीमांसा का गृह है। भगवान श्रीराम का शौर्य, पराक्रम तो राम-रावण के भीषण युद्ध में परिलक्षित होकर सदैव अविस्मरणीय रहेगा। भ्रात प्रेम में तो प्रभु श्रीराम का भरत प्रेम, जो समस्त प्रेमों की ज्ञानगंगा है।

चतुर्थ भवन

कौशल्यानंदन श्रीराम की जन्म कुंडली के चतुर्थ भवन में तुला राशि में उच्च राशिगत शनिदेव विराजमान हैं। ज्योतिष ग्रंथों में चतुर्थ भवन से व्यक्ति के अन्त:करण, सुख, शान्ति, भूमि, भवन बाग-बगीचा, निधि, दया, औदार्य, परोपकार, मातृ सुख आदि का निरूपण जातक की जीवन शैली में देखा जा सकता है। प्रभु श्रीराम की कुंडली का चतुर्थेश शुक्र, भाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजमान हैं। उच्च राशिगत शनि प्रभु श्रीराम से मर्यादित जीवन के प्रति आग्रहशील हैं। भूमि, भवन का सुख तो चक्रवर्ती राजा के लिए सहज सुलभ हैं। अन्त:करण की दृष्टि से सर्वत्र प्रेम का अनुग्रह तथा दया और औदार्यता महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या को श्रापमुक्त कर पाषाण से नारी रूप प्रदान करना तथा शबरी के जूठे बेर खाना औदार्यता का सुखद पक्ष है। मातात्रय कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा के प्रति मातृ भक्ति सदैव स्तुत्यणीय एवं प्रेरणास्पद रहेगी।

पंचम भवन
लवकुश के पिता प्रभु श्रीराम की जन्म कुंडली में पंचम भवन में वृश्चिक राशि है। वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल सप्तम भवन में उच्च राशि में (मकर में)  विराजमान हैं। पंचम भवन से जातक की संतान, स्थावर जंगम, हाथ का यश, बुद्धि चातुर्य, विवेकशीलता, सौजन्य तथा परीक्षा में यश प्राप्ति से जुड़ी है। लवकुश के रूप में महान प्रतापी पुत्र तथा स्थावर संपत्ति के रूप अयोध्या का चक्रवर्ती साम्राज्य एवं अपनी बुद्धि-विवेक के बल सीता की खोज में सुग्रीव से मित्रता, लंंका विजय में लंकापति रावण के अनुज विभीषण का युद्ध के पूर्व लंकापति बनाने के लिए राजतिलक करना तथा मर्यादा में रहते हुए खर दूषण, कुम्भकरण, लंकापति रावण से लेकर अनेक आतातायी असुरों का वध कर रामराज्य की स्थापना करना बुद्धिचातुर्य की रहस्यमयी परिणिति के सिवा और क्या है?
असुर विजेता राम
षष्टम् भवन - श्रीराम की जन्म कुंडली षष्टम् भवन धनु राशि अवस्थित है। षष्टम् भवन रोग, शत्रुओं से जातक की कथा व्यथा का सांकेतिक है। इस भाव से शत्रु कष्ट के अभाव से जुड़े प्रश्नों की रहस्यमयता को उजागर करते हैं।
श्रीराम की कुंडली का षष्ठेष धनु राशि के स्वामी देव गुरु वृहस्पति लग्न भवन में कर्क राशिगत चन्द्रमा के साथ अपनी उच्च राशि (कर्क) में विराजमान होकर गजकेसरी योग बना रहे हैं। जिसका सामान्य भाषा में अर्थ है : वनराज सिंह हाथियों को अपनी एक हुंकार (गर्जना) में भगा देता है। गज याने हाथी, केशरी याने सिंह। गुरु विश्वामित्र से शस्त्र शिक्षा में अनेक रहस्यमयी विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया। जिसका सर्वप्रथम प्रयोग ताड़का और सुबाहु के वध के रूप में घटित हुआ। श्री रामचंद्र जी ने जहां जहां अपने पग रखे, वहां उन्हें यश मिला। शत्रु विजय सीता स्वयंवर से लेकर खरदूषण तथा वानरराज बालि तथा दशानन रावण तक अनेक शक्तिशाली अपराजेय योद्धाओं का वध किया।

तुलसी की रामचरित मानस में
खरदूषण मो सम बलबन्ता। मार सकें न बिनु भगवन्ता।
रावण संहिता में दशानन रावण ने धनु राशिगत षष्टम् भवन की व्याख्या करते हुए लिखा है ऐसा जातक शत्रुओं का घमंड चूर करने वाला तथा अपने बड़ों को मान देने वाला होता है। त्रेतायुगीन राम ने धरती पर आसुरी शक्तियों का तो नाश किया, साथ ही अपने गुरुओं, ऋ षियों-मुनियों को यथेष्ठ सम्मान देकर उनका मान भी बढ़ाया है।

सीता पति रघुनन्दन श्रीराम सप्तम भवन
रघुनन्दन श्रीराम की जन्म कुंडली के सप्तम भवन में मकर राशि में उच्च राशिगत भूमि पुत्र मंगल विराजमान हैं। सप्तमस्य मंगल होने सेे श्रीरामजी की कुण्डली मंगली बन गई। मंगल पंचमेश और राज्येश है। गजकेशरी योग की सप्तम दृष्टि दाम्पत्य जीवन को भी प्रभावित कर रही है। जनकनंदिनी सीताजी सेे उनका विवाह धनुषभंजन के बाद विवाह हुआ, किन्तु भूमि पुत्र मंगल उच्चासीन होकर कह रहे हंै। जातक को दाम्पत्य जीवन का सुख तो दूंगा, किन्तु अल्पकालीन।

सप्तम भवन
पारिवारिक झगड़े तथा भूत, भविष्य, वर्तमान की स्थिति का सिंहावलोकन भी किया जाता है। मंथरा की षडयंत्रमयी योजना ने कैकेयी की मति भ्रष्ट की। परिणितीवश श्रीराम को वनगमन, सीताहरण, आसुरी शक्तियों का विनाश, लंका विजय के पश्चात् अध्योध्या में राजतिलक, वैदेही सीता का त्याग, ऋ षि वाल्मीकि के आश्रम में श्रीसीताराम के पुत्रों लवकुश का जन्म, जनकनंदिनी सीता का भूमि में प्रवेश। ये सारे कथानक सप्तमस्थ उच्च राशिगत मंगल की चेष्टाओं का फल है।

रघुनंदन का आयु भवन 
अष्टम भवन : श्रीराम जी की कुंडली में अष्टम भवन में कुम्भ राशि का स्वामी शनि चतुर्थ भवन में अपनी उच्चराशि तुला में विराजमान है। अष्टमेश शनि जातक की दीर्घायु का परिचायक है। किन्तु सप्तमेश और अष्टमेश शनि बलवान स्थिति में होकर जातक को दीर्घायु तो देता है, वहीं दूसरी ओर दाम्पत्य जीवन में अशुभता भी लाता है। साथ ही मृत्यु स्थान भी यह निर्धारित करता है। अष्टमेश शनि चतुर्थ भवन में होने से पारिवारिक विवाद के कारण वनगमन से सुख की हानि हुई। किन्तु वहां असुरों का विनाश कर यश मिला। रण रिपु अर्थात युद्ध क्षेत्रों में शत्रुओं का वमन भी किया। पृथ्वी से प्रस्थान के बाद चिरकाल तक यशोगाथा अनेक प्रतीकों में बनी रहेगी। यह भी उनके अष्टमेश उच्च राशिगत न्याय के देवता शनि की महिमा का फल है।

भाग्य भवनस्थ शुक्र
श्री राघव की कुंडली का भाग्य भवन कम चमत्कारी नहीं है। भाग्य भवन का स्वामी नवमेश गुरु अपनी उच्च राशि कर्क में चन्द्रदेव की युति के साथ लगनस्थ है। भाग्येश गजकेशरी योग बन रहा है, लग्न भवन में। भाग्य भवन में उच्च राशिगत शुक्र चतुर्थेश तथा द्वादशेष का स्वामी है। माता से लेकर भूमि, भवन, वाहन (रथ) आदि सभी सुखों से पूरित रहे, किन्तु अपनी सप्तम् दृष्टि से पराक्रम भवन को निहारते शुक्र ने पराक्रम के प्रदर्शन का माध्यम नारी जाति को बनाया। शुक्र स्त्री ग्रह है। महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या की मुक्ति, रावण से युद्ध में विजयश्री प्राप्त कर अशोक वाटिका से जनक नंदिनी सीता जी की मुक्ति, बालि वध से सुग्रीव की पत्नी रोमा की मुक्ति, श्रीराम की यशोगाथा का एक पक्ष है। वहीं दूसरी ओर आसुरी शक्तियों का नाश कर ऋ षियों तथा जन-जन को निर्भय जीवन दिया, यह प्रभु श्रीराम के भाग्य भवन का पुण्य प्रताप ही तो था।

दसमस्थ सूर्य बुध
रघुनंदन श्रीराम की कुंडली के दसम भाव अर्थात राज्य भवन में सूर्य के साथ बुध की युति बुध आदित्य योग तो बना रहा है, किन्तु बुध व्ययेश होने से राजतिलक होते होते 14 वर्षीय वनवास का योग बन गया। व्ययेश बुध ने राजयोग खंडित किया, क्योंकि व्ययेश जिस भवन में विराजमान होता, उसे किंचित सम्मान की हानि तो देता ही है। बुध ने ही उन्हें पिता के सुख से वंचित किया। किन्तु सूर्य उच्च राशिगत होकर राजभवन में विराजने से गौरव, ऐश्वर्य एवं नेतृत्व का स्वामी बनाया।  पिता की आज्ञा से वन गये। पिता का मान बढ़ाया। आसुरी शक्तियों के विनाश हेतु वानर जाति की सेना का नेतृत्व कर विजयश्री प्राप्त की। अधिकार प्राप्ति के रूप में सम्राट बने अयोध्या के। ईश्वर प्राप्ति भी दसम भवन से देखी जाती है, तो जो स्वयं त्रिभुवनपति हो उसे अपनी भक्ति में लगाकर मोक्ष प्रदान कराने में बुध का योगदान महत्वपूर्ण है। क्योंकि द्वादश भवन मोक्ष का भवन भी है। अपनी भक्ति से अनेक साधु, संतों, भक्तों तथा पापियों को भी मोक्षगामी बनाने में पथ-पथ पर प्रेरणा दी। प्रभुता भी दसम भवन का एक गुण है। तो श्रीराम प्रभुता पाकर भी दीनों के प्रति भी सहृदय बने रहे, यही उनकी अनुग्रहमयी प्रभुता है। किन्तु स्मरणीय रहे। चतुर्थ भवन उच्चराशिगत शनि की सप्तम दृष्टि नीच राशि पर होने के कारण ही उन्हें वनवास में 14 वर्षीय वनवासी जीवन बिताना पड़ा। भले ही प्रकृति की रहस्यमयता आसुरी शक्तियों के विनाश के रूप मेें रूपांतरित हो गई हो। किन्तु मंगल की चतुर्थ स्वक्षेत्री दृष्टि और सूर्य के उच्च राशिगत प्रभाव से वनवास की समाप्ति के पश्चात् पुन: राज्यारोहण ग्रहों की अपनी रहस्यमयी कलात्मक शक्तियों की ओजस्वीयता है।

एकादश : लाभस्थ भवन
एकादश भवन मूलत: लाभ, सम्पन्नता, वाहन, वैभव, स्वतंत्र चिन्तन के रूप में ज्योतिषीय ग्रंथों में स्वीकारा गया है। जन-जन के प्रभु राम स्वतंत्र चिन्तन के रूप में नैसर्गिक अर्थात प्राकृतिक सम्पदाओं से मुक्ति का बोध कराते हैं। भक्तवत्सल श्रीराम का मानव से लेकर समस्त जीवों के प्रति उदार भाव तो था ही, किन्तु एकादशेष शुक्रभाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजने से सभी के प्रति करुणा भाव बनाए रखने के प्रति संकल्पित रहे। अवतारी होने के बाद भी अपनी मानवीय मर्यादा में बने रहे। एक पत्नी व्रतधारी होने से उन्होंने सम्पूर्ण नारी समाज को गरिमा प्रदान की। मित्रों को सहोदर की तरह मान दिया। शत्रुओं के प्रति भी मानवीय मूल्यों का क्षरण उन्होंने नहीं स्वीकारा। वचन बद्धता राघव की निष्ठा का अमोघ शस्त्र रही।

मोक्ष का पर्याय द्वादश भवन
सीता पति राघव की कुंडली के बारहवें भवन में मिथुन राशि की स्थापना ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कथनी करनी में कहीं भी अवरोध पैदा नहीं होने दिया। द्वादश भवन से ज्ञान तन्तु, स्वभाव, शान्ति, विवेक, व्यसन, संन्यास, शत्रु की रोक तथा धन, सुख, सम्मान का व्यय आदि का लेखाजोखा देखा जाता है। द्वादश भवन में मिथुन राशि होने सीता पति राघव भावुक थे। वैदेही हरण एवं लक्ष्मण को शक्तिलगने पर वे कैसे व्यथित हुए, यह तुलसीकृत रामायण में रोमांचकारी शब्द शैली में अंकित है। वनवास में राज सत्ता से 14 वर्षों तक दूर रहे, किन्तु पिता की आज्ञा को सर्वोपरि माना। सीता हरण में सुख और सम्मान का व्यय हुआ, किन्तु अपने विवेक से वानर सेना का नेतृत्व कर शत्रुओं पर रोक ही नहीं लगाई, अपितु उनका नाश भी किया। वनवासी राम ने एक संन्यासी के रूप में 14 वर्ष वनों में बिताए। किसी भी नगर में 14 वर्षों की अवधि में उन्होंने प्रवेश नहीं किया, ऐसे थे संन्यासी राम।

ब्रह्माण्ड नायक राम
राम, ब्रह्मवादियों का ब्रह्म, ईश्वरवादियों का ईश्वर, अवतारवादियों का अवतार, आत्मवादियों व जीववादियों का आत्म एवं जीव है। रामायण महाकाव्य बना। उतरोत्तर राम नाम के साथ साहित्य में भक्तिभाव का वातावरण बनता गया। ईसा के पांच सौ वर्ष के बाद इसका ज्यादा विस्तार हुआ तथा ईसा के एक हजार वर्ष बाद दाशरथि राम परमात्मा के रूप में गूंज गये। हमारी भारतीय सभ्यता के उषाकाल में साहित्य चार वेदों में था, जिनमें ऋ ग्वेद प्रथम था। वैदिक साहित्य में खेती की अधिष्ठात्री देवी का नाम सीता था, क्योंकि मूल में सीता लांगल पद्धति (खेत की हराई) थी। इसीलिए मिथिला में जनक के हल चलाते समय खेत में, जो नवजात बच्ची पाई गई, उसका नाम सीता रखा गया। ऋ ग्वेद में इक्ष्वाकु दशरथ और राम के नाम आए हैं। ऐतिहासिक ढंग से अध्ययन करने वाले प्राय: समस्त विद्वान एक स्वर में कहते हैं कि महाभारत तथा प्रचलित वाल्मीकि रामायण के पूर्व राम कथा संबंधी आख्यान प्रचलित थे। ये आख्यान निश्चित रूप से बुद्धकाल के आसपास के रहे होंगे। इसी आधार पर भारत (महाभारत का प्रथम रूप) तथा बौद्ध जातक कथाओं में राम कथा के अंश आये हंै। वाल्मीकि रामायण में महाभारत के पात्रों तथा कथानकों की चर्चा नहीं है, परन्तु महाभारत के प्राचीन अंशों में रामकथा के पात्रों की चर्चा है। महाभारत के शान्ति पर्व के 29 वे अध्याय के 12 वें श्लोक में नारद संजय को उपदेश देते हुए कहते हैं कि संसार में कौन नित्य रहने वाला है। सुना गया है कि दशरथ पुत्र राम बड़े प्रजापालक थे, किन्तु उन्हें भी इस संसार से जाना पड़ा। महाभारत में भी राम का अवतार रूप पहुुंच गया था। बौद्ध साहित्य में अनामक जातकम् के नाम से अन्य कथा भी है, जिसमें राम कथा है, इस जातक में राम-सीता का वनवास, सीताहरण, जटायु वृतान्त, बाली और सुग्रीव का युद्ध, सेतु बन्ध, सीता की अग्नि परीक्षा, इन सभी के संकेत मिलते हैं।

वाल्मीकि रामायण और अवतारवाद
रामकथा के स्फुट रूप देशी भाषा में बुद्धकाल के थोड़े पूर्व से ही उत्तरी भारत में प्रचलित थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व वाल्मीकि ऋ षि ने रामकथा के स्फुट रूप एवं लोकगीत को एक काव्य रूप में गुंफित किया। भगवतगीता के लेखक श्रीकृष्ण के मुख से कहलाते हैं : मैं शस्त्रधारियों में राम हूं। श्राम: षस्त्रभृतामहम् (गीता 10:31) तक राम की प्रसिद्धि केवल शस्त्रधारी योद्धा के रूप में थी। किन्तु श्रीकृष्ण को अवतार के रूप में मान्यता पहले मिल चुकी, बाद में श्रीराम को। अवतारवाद के विकास में छठी या सातवीं शताब्दी में महात्मा बुद्ध भी विष्णु के अवतार माने जाने लगे।

पुराण साहित्य
हरिवंश पुराण, मार्केडेय पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, मत्स्य पुराण, भागवत पुराण, कूर्मपुराण आदि सभी पुराणों में भगवान राम को विष्णु का अवतार मानने की बात दोहराई गई है। इसके आगे वाराह पुराण (800 ई.) अग्नि पुराण तथा स्कंद पुराण (900 ई.), लिंग पुराण, गरूण पुराण (1000 ई.) वामन पुराण और भविष्य पुराण अधिक अर्वाचीन हैं। इन सब पुराणों में रामावतार तथा राम भक्ति का प्राबल्य होता गया।


रामायण साहित्य
योग वासिष्ठ महारामायण (11 वीं सदी), अध्यात्म रामायण (1500 ई.), अद्भुत रामायण (1600 ई.), आनंद रामायण (1600 ई.), तत्व संग्रह रामायण (1700 ई.), कालनिर्णय रामायण तथा अन्य रामायण जिसमें अपने अपने ढंग से राम चरित्र वर्णन है। अन्य बीस रामायणों की सूची :-
1. महारामायण (35000 श्लोक),
2. संवृत रामायण (2400 श्लोक),
3. अगस्त्य रामायण (16000 श्लोक),
4. ओम रामायण (32000 श्लोक)
5. राम रहस्य रामायण (22000 श्लोक)
6. मंजुल रामायण (120000 श्लोक)
7. सौ पद्म रामायण (62000 श्लोक)
8. रामायण महामाला (56000 श्लोक)
9. सौहार्द्र रामायण (40000 श्लोक)
10. रामायण मणिरत्न (3600 श्लोक)
11. शौर्य रामायण (62000 श्लोक)
12. चांन्द्र रामायण (75000 श्लोक)
13. भैंद रामायण (52000 श्लोक)
14. स्वायंभुव रामायण (18000 श्लोक)
15. सुब्रह रामायण (32000 श्लोक)
16. सुवर्चस रामायण (15000 श्लोक)
17. देव रामायण (100000 श्लोक)
18. श्रमण रामायण (125000 श्लोक)
19. दुरन्त रामायण (61000 श्लोक)
20. रामायण चंपू (15000 श्लोक)

महाकाव्य रामायण
वाल्मीकि रामायण का कवि जगत में बहुत प्रभाव पड़ा और राम कथा लिखने की एक बाढ़ सी आ गई। ईसा की चौथी शताब्दी से संस्कृत ललित (श्रृंगार प्रधान) साहित्य में महाकाव्य, नाटक, खण्ड काव्य आदि लिखे जाने लगे।

विदेशी भाषाओं में राम कथा
1. तिब्बती रामायण (800 ई.)
2. खेतानी रामायण (900 ई.)
3. रामायण कविन (हिंदेनेशिया 1000 ई.)
4. हिकायत सेरीराम
5. राम केलिंग
6. पतानी राम कथा
7. सेरत कांड
8. रामकेर्ति
9. रामकियेन
10. राम गायन (1800 ई.)

पाश्चात्य भाषा में राम कथा
1.लिब्रो डा सैंटा : लेखक: जे. फेनिचियों (1609 ई.)
2.दि ओपन दोरे : लेखक ए. रोजेरियुस (1700 ई.)
3.आफ गोडेरैयउर इण्डिषेहाइडेनन : लेखक पी. बलडेयुस (1700 ई.)
4.असिया : लेखक ओ. डेप्पर (1700 ई.)
5.असिया पोर्तुगेसा : लेखक डे फरिया (1700 ई.)
6.रलसियों डे एरयर (1700 ई.)
7.ला जानिटिलिटे डु वेंगाल (1700 ई.)
8.पुर्तगाली वृतांत, क (1700 ई.)
9.पुर्तगाली वृतांत, ख (1800 ई.)
10.पुर्तगाली वृतांत, ग (1800 ई.)
11.ट्रावल्स इन इंडिया : लेखक जे. पी. टापर्निये (1700 ई.)
12.वोयाज ओस एन्ड आरियन्टाल : लेखक एम सोनेरा (1800 ई.)
13.मिथोलॉजी डेस इण्डू : लेखक डे. पोलियो (1800 ई.)
14. हिन्दू मेनर्स, कस्टम एन्ड सेरेमोनिस : लेखक जे. ए. दुब्वा (1900 ई.)
15. इलवियाजियो अल इन्डिये आरियेन्टालि : लेखक पी. एफ. विनजेनजा मरिया (1700 ई.)
16. स्टोरिया डी मोगोर : लेखक एन. मनुच्ची (1700 ई.)
17.हिस्तोरिया दो मालावार : लेखक दिओगो गोंसाल्वेस (1700 ई.)

Z1पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
मोबाइल : 09407266609,
फोन : 07582-223168, 



Monday, 2 April 2012

हंसयोगी भगवान महावीर स्वामी की कुंडली





पंडित पी.एन. भट्ट ज्योतिषाचार्य, सागर

अहिंसा के अवतार भगवान स्वामी के जन्म के समय निर्मल नभ मंडल में मकर लग्न उदय में थी। मकर लग्न में मंगल और केतु ग्रह अवस्थित हैं। मंगल, गुरु और शनि क्रमश: लग्न में मकर राशि गत सूर्य चतुर्थ भवन में मेष राशि गत, गुरु सप्तम भवन में कर्क राशि गत एवं शनि दसम भवन में तुला राशि गत होकर उच्च राशिगत है।

रूचक योग
जन्मांक में मंगल उच्च राशि गत होकर रूचक नामक योग बनाता है। ज्योतिष सिद्धान्तानुसार इस योग में जन्म लेने वाले जातक का शरीर अत्यन्त बलिष्ठ और बज्रमयी होता है। ऐसा व्यक्ति अपने सम्यक विचारों तथा सत्कार्यों से विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त करता है। ऐसा जातक सम्राटों का सम्राट तथा प्राणी-मात्र उसकी आज्ञा मानने के लिए सदा तत्पर रहते हैं। रूचक महायोग वाला महापुरुष अपने भक्त और श्रद्धालुओं से चारों ओर से घिरा रहता है। ऐसा जातक प्रलोभन या दबाव में आकर अपने निश्चिय को कभी नहीं बदलता।
सूर्य और बुध के मेष राशि में स्थित होने से लग्न में बैठे हुए मंगल की और भी अधिक विशेषता होती है। मंगल पर गुरु की सप्तम दृष्टि ने जातक के शरीर को सर्वोत्कृष्ट कुल में जन्म लेने का अधिकार प्राप्त कराया।
केतु ग्रह कह रहा है कि मुझमें अकस्मात परिवर्तन लाने का विशिष्ट गुण है तथा मुक्ति दिलाने का अधिकार प्राप्त है। अत: इस जातक के शरीर को अचानक ही परिवर्तनशील बनाऊंगा एवं समस्त ऐहिक सुखों से वंचित करके एक अनोखे आदर्श पथ पर चलने के लिए जातक के शरीर को बाध्य करूंगा। पुनश्च: केतु ग्रह कह रहा है कि मैं तुच्छ विषय सुखों की ओर ले जाऊंगा। क्योंकि मुझमें उच्च के सूर्य, मंगल एवं गुरु के गुण विद्यमान हैं। गुरु की सत्कृपा से और ग्रहों के योगा योग से भगवान महावीर को यश कीर्ति उपलब्ध हुई जो आज तक न भुलाई जा सकी है और न युग-युगान्तरों तक भुलाई जा सकेगी।
मकर लग्न चर लग्न है। पृथ्वी तत्व है अतएव भगवान महावीर स्वामी ने अपना निवास स्थान स्थिर रूप से एक जगह नहीं किया। भूमि पर ही शयन किया। चतुर्थ भवन में सूर्य मेष राशि में उच्च राशि गत हैं। सूर्य आत्म कारक हैं, सूर्य प्रखर ज्योति स्वरूप हैं, सूर्य पिता कारक हैं। सूर्य अश्व का स्वामी है। नभ मंडल में सूर्य के समक्ष समस्त ग्रह विलीन हो जाते हैं। चतुर्थ स्थान से माता का, जनता का, स्वयं के सुख का तथा बूमि पर विचार किया जाता है। सूर्य के साथ बुध का योग है। बुध छठवें एवं नवम भवन का स्वामी है एवं सूर्य अष्टम भवन का स्वामी होने से जातक की कुंडली में अष्टेश एवं नवमेश का योग होने से राजभंग योग बनता है। सुख स्थान में मातृ-भूमि, वाहन (रथ, हाथी, घोड़े) एवं अन्य सभी सुखों से वंचित कराने का विचार सूर्य ने किया। आत्मा ने बुध को याज्ञिक कर्म (आत्म साधन) में प्रवृत्त किया। साथ बुध वाणी का कर्ता होने से वाणी एवं बुद्धिबल द्वारा जन साधारण से सम्पर्क स्थापित कर जातक के मन में याज्ञिक कर्म करने की भावनाएं जागृत कीं।
चतुर्थ भवन में पदस्थ उच्च राशिगत सूर्य कह रहा है कि मैं सब सुखों को तप के तेज से अग्नि में जलाकर भस्म कर दूंगा। बुध कह रहा है कि मैं जातक को भाग्य पर भरोसा न करने वाला कर्म शूर बना दूंगा, क्योंकि मुझ पर और सूर्य पर शनि और मंगल की पूर्ण दृष्टि, साथ ही मंगल और केतु केन्द्रस्थ हैं। यदि इनकी दृष्टि न होती तो मैं जातक को सांसारिक सुखों का आनंद ही आनंद दिलाता। इस परिस्थिति में मैं चाहता हूं कि भगवान महावीर स्वामी की आत्मा परम-धाम (मोक्ष) में पहुंचकर आवागमन के बंधन से मुक्त हो जाये।

दयाद्र्र आत्मा
भगवान महावीर स्वामी के समय हिंसा का अधिकाधिक बोलवाला था। यज्ञ में जीवित अश्वादिकों की आहुति दी जाती थीं। तत्कालीन हिंसात्मक असत् धर्म की प्रवृत्ति का अवलोकन, जीवित प्राणियों का हवन कुण्ड की प्रज्ज्वलित अग्नि में भस्म होते देखकर भगवान महावीर स्वामी की दयाद्र्र आत्मा हाहाकार कर उठी और अत्यन्त द्रवीभूत होकर अपने समस्त ऐहिक सुखों का परित्याग कर प्राणी मात्र को आकुलता रहित सच्चा सुख प्राप्त कराने का उन्होंने दृढ़ संकल्प किया। यह सत्कार्य भी उच्च राशि गत सूर्य ने ही किया।
पंचम भवन (क्रीड़ा भवन) में पदस्थ स्वराशिगत शुक्र कह रहा है कि मुढ में आठ ग्रहों का बल है। मकर लग्न होने से मैं केन्द्र एवं त्रिकोण का स्वामी होता हुआ विशेषाधिकार को प्राप्त हूं। अत: मैं इस जातक को यंत्र, मंत्र, तंत्र तथा उच्च कोटि की ऋद्धि-सिद्धियां प्राप्त कराने में समर्थ हूं। मैं जातक (भगवान महावीर स्वामी) को ऐसी अलौकिक विद्या से विभूषित करूंगा, जो जन-जन को सदैव आकर्षित करती रहे और इन गुणों की पूजा एवं अर्चना होती रहे।

हंस योग
भगवान महावीर स्वामी को यंत्र-मंत्र संबंधी उच्च कोटि की विद्याएं, विशिष्ट बुद्धिमत्ता, महाज्ञानी, सर्वज्ञ होने का जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त हुआ। अपने जीवन काल में उन्होंने ऐसे-ऐसे चमत्कार दिखाए, जिससे प्राणी मात्र को उनके समक्ष नतमस्तक होना पड़ा। सप्तम भवन में गुरु उच्च राशि (कर्क) गत है, और राहु भी कर्क राशि में विद्यमान है। गुरु उच्च राशि का केन्द्र में होने से हंस नामक योग बनता है। हंसयोग वाला जातक अत्यन्त सुन्दर, रक्तिम आभायुक्त, मुखाकृति, ऊंची नासिका, प्रफुल्लित कमलोचन, सुन्दर चरण युगल, विशाल वक्ष स्थल वाला होता है। गुरु विद्या, संतान, धन एवं भाग्य का विधायक है एवं प्रशस्त पथ प्रदर्शक होता है। राहु एवं गुरु की पूर्ण दृष्टि तन स्थान में होने से भगवान महावीर का शरीर बज्र के समान मजबूत और अत्यन्त पुष्ट था।
राहु और गुरु कह रहे हैं कि हम सप्तम भवन में स्थित होने से पृथकोत्पादक कारण बनाना हमारा स्वभाव हो गया है। अतएव हम स्त्री सुख से जातक को पृथक रखेंगे और हम पर शनि की दसवीं दृष्टि है अत: राज्य भवन में पदस्थ उच्च राशि गत शनि के माध्यम से जातक के पिता के राज्य वैभव से मुक्त कराकर वन खण्डों की पद यात्रा कराएंगे। किन्तु सूर्य बुध का हम पर केन्द्रीय शासन होने से जातक वन खण्डों और निर्जन स्थानों में वास करते हुए भी केवल ज्ञान कराने की हमारी प्रतिज्ञाएं हैं।
नवम भवन में कन्या राशि में चन्द्रमा पदस्थ है। नवम भाव धर्म और भाग्य का स्थान है। अत: विद्या से परमोत्कृष्ट विद्या की ओर बढऩे का और सम्पूर्ण कलाओं से बाग्य स्थान में स्थित होकर भाग्योन्नति करने का संकेत दे रहा है। चन्द्र, मन का स्वामी है। चतुर्थ स्थान का कर्ता है। ऐसे चन्द्र को राहु, गुरु ने अपनी भावनाएं समर्पित करके मन में त्याग और पृथकता, एकान्तवास, धर्म के मर्म की सच्ची खोज करने के लिए दृढ़ निश्चयी बना दिया। चन्द्र ने कन्या राशि में बैठकर बुध को समस्त गुण प्रदान कर दिये और बुध ने सूर्य से योग बनाया। अत: उस अमृत का स्वाद आत्मा को आया और उस अमृत को पान करने के उपरान्त सभी सांसारिक सुख, चमचमाती समस्त संपदाएं हेय प्रतीत हुईं और संसार के समस्त सुखों का वियोग कराके मुक्ति बधू से नाता जुड़वा दिया।

मुक्ति मार्ग
ध्यान रहे, केतु की नवम दृष्टि चन्द्र पर है। केतु की इच्छा के विपरीत मुक्ति मार्ग मिलना असंभव ही है। दसवें भवन में शनि अपनी उच्च राशि तुला में स्थित है। शनि उच्च राशि गत केन्द्रस्थ होने से शशक योग बनाता है। शशक योग में जन्म लेने वाला जातक सौम्य-मुद्राधारी एवं दिग्दिगंत में भारी प्रशंसा का पात्र होता है। शनि का प्रबाव नभ मंडल में सर्वोपरि है। दसम भवन से पिता तथा निज कर्मों का विचार किया जाता है। अत: शनि कह रहा है कि दसम भवन में उच्च राशि के अंतर्गत होकर उच्च कोटि के कर्म कराने की क्षमता एवं अधिकार सुरक्षित रखता हूं। अतएव उच्च कर्म कराकर ऐसे पद पर पदारूढ़ कराऊंगा, जहां पर पहुंचने का स्वप्न में भी विचार नहीं आया हो।
मुझमें शुक्र को छोड़कर समस्त ग्रहों की भावनाएं विद्यमान हैं और उसमें बी दो ग्रहों की भावनाएं मुख्य हैं। मुझमें मंगल और केतु के गुण होने से परम सुख और मोक्ष में ले जाने हेतु पुरुषार्थ कराने का अधिकार प्राप्त है। सूर्य आत्मा है और मैं शरीर का स्वामी हूं और दूसरे भवन का लक्ष्मीपति हूं। सूर्य आत्मेश है। इस कारण से काया क्लेश पूर्वक भी आत्मा को परमात्मा बनाने का निर्वाण पद पर पहुंचाने का तथा अपने (जातक) कुटुम्ब को त्याग कराने का सम्पूर्ण अधिकार मुझे प्राप्त है। मैं दु:ख का कारण हूं। मेरा नाम सुनकर बड़े-बड़े योद्धाओं एवं शूरमाओं के पराक्रम नष्ट हो जाते हैं। परन्तु जिस जातक पर मेरी कृपा दृष्टि हो जाती है, उसकी कीर्ति भी अजर-अमर हो जाती है।
शनि कह रहा है, मैं अपने समस्त गुण शुक्र को दे रहा हूं, क्योंकि मैं वृद्ध हीं, मेरी गति मंद है। मैं अपने मित्र शुक्र को आज्ञा देता हूं, कि तुम भौतिक सुखों का त्याग करके तप त्याग पूर्वक ऐसी ऋद्धि-सिद्धियां प्राप्त कराना, जिससे तीनों लोकों में भगवान महावीर स्वामी का नाम प्रख्यात रहे तथा हमेशा उनकी पूजा एवं अर्चना, उपासना होती रहे।
आज भगवान महावीर स्वामी का जन्मोत्सव है। आप सभी से अनुरोध है कि भगवान महावीर स्वामी के बतलाए हुए सन्मार्ग पर चलकर उनके अगणित असंख्य अनुयायी भक्तजन और श्रद्धालुजन उनका बारम्बार स्मरण करें।

Friday, 23 March 2012

इंसानी आइना : ज्योतिष का तिलस्म




शब्दों और अंकों के रहस्य  में छिपा आपका भविष्य


संसार के प्रत्येक देश में नाम को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषियों ने नाम की संख्या (संयुक्त अंक) बनाकर फलादेश करने की विधि बतलाई है। भारतीय ज्योतिष में नाम के पहले अक्षर का विशेष महत्व होता है, क्योंकि प्रथम नामाक्षर द्वारा राशि और नक्षत्र आदि का ज्ञान हो जाता है।

अंक विज्ञान विश्व का सर्वाधिक प्राचीन और उन्नत विज्ञान है। आज के युग में जिस गति से यह मानव के निकट आता जा रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि अंक ही आज के मानव का सर्वाधिक विश्वस्त मित्र है, उसका सहचर है, सुख-दु:ख का भागी है, पथ-प्रदर्शक है। काल गणना में हमारे महर्षियों ने अंकों का सहारा लिया। जीवन का मूलाधार ग्रहों का राजा सूर्य है। मन-मस्तिष्क पर प्रभाव चन्द्रमा का है, जो सदैव चलायमान व अस्थिर रहता है। मंगल ग्रहों का सेनापति व सेनानायक है। मंगल युद्ध का देवता बन रक्त का प्रतिनिधित्व करता है, बुध युवराज तर्कशक्ति का स्वामी है। वृहस्पति तो देव गुरु हैं, अत: शिक्षा-दीक्षा और संतानकारक हैं। शुक्र भोग, ऐश्वर्य और काम भाव का स्वामी है। शनि न्यायाधीश है। राहु शनि का और केतु मंगल का छाया ग्रह है।
सप्ताह के सात दिन इन्हीं ग्रहों के परिणाम हैं और उन्हीं के आधार पर  प्रत्येक देश और धर्म में सप्ताह के दिनों के नाम रखे गए हैं। हमारा पूरा जीवन अंकों का जीवन है। लोक कथा प्रचलित है कि प्रभु ने शनिवार के दिन हिब्रू लोगों को यह आदेश दिया कि इस दिन कोई काम न किया जाए। आदेश देते हुए उन्होंनेे कहा था सदा के लिए यह मेरे और इजरायल के बच्चों के बीच एक करार है और यह आश्चर्य की बात है कि आधुनिक सभ्यता के इस युग में भी शनिवार का दिन, छुट्टी का दिन बनता जा रहा है। दार्शनिक साहित्यकार शेक्सपियर ने जिसके विचार सदा सदा के लिए अंग्रेजी साहित्य की शोभा बढ़ाते रहेंगे, एक महत्वपूर्ण सूक्ति लिखी है- मनुष्य के जीवन में कठिनाइयों के तूफान आते हैं, परन्तु जब वह उन पर नियंत्रण कर लेता है, तो भाग्य के द्वार खुल जाते हैं। यह प्रकार बार-बार पूछा जाता है कि क्या मनुष्य कठिनाइयों के तूूफान पर काबू पाने का समय जान सका है? ज्योतिष इस प्रश्न का उत्तर हां में देता है? प्राचीन कैलेडियन और हिब्रू वर्ण माला के प्रत्येक अक्षर का अंक अथवा उसकी क्षमता निर्धारित की गई है। उसकी व्युत्पत्ति कब हुई, यह बात अतीत के गर्भ में समा गई, परन्तु विश्वास किया जाता है कि कैलेडियन लोगों ने इसका आविष्कार किया था, क्योंकि वे गुप्त जादू की कला में दक्ष थे, उनसे यह रहस्य हिब्रू लोगों ने सीखा।
संसार के प्रत्येक देश में नाम को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषियों ने नाम की संख्या (संयुक्त अंक) बनाकर फलादेश करने की विधि बतलाई है। भारतीय ज्योतिष में नाम के पहले अक्षर का विशेष महत्व होता है, क्योंकि प्रथम नामाक्षर द्वारा राशि और नक्षत्र आदि का ज्ञान हो जाता है। प्रचलित नाम है या जिस नाम से व्यक्ति पुकारा जाता है, जैसे स्व. पंडित जवाहरलाल नेहरू। पूरा नाम शायद ही कोई लेता हो। पंडित जी या नेहरू जी के नाम से ज्यादा पुकारते थे। इसी प्रकार स्व. मोहनदास, करमचन्द्र गांधी। इनके नाम भी

बापू और गांधी ये दोनों नाम प्रचलित थे।
कहने का अर्थ यह है कि जिस नाम से जो व्यक्ति ज्यादा जाना जाए, उन्हीं नाम के अक्षरों की संयुक्त संख्या बना कर फल कथन की विधि लिखी जाती है।

विश्व प्रसिद्ध हस्तरेखा विशेषज्ञ एवं अंक शास्त्री कीरो के मतानुसार
ए-1    एफ-8    के-2    पी-8    यू-6
बी-2    जी-3    एल-3    क्यू-1    व्ही-6
सी-3    एच-5    एम-4    आर-2    डब्ल्यू-6
डी-4    आई-1    एन-5    एस-3    एक्स-5
ई-5    जे-1    ओ-7    टी-4    जेड-7

महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या मूल नाम या उपनाम के सभी अक्षरों को अन्तिम अंक निकालने के लिए जोड़ लेना चाहिए? उसका उत्तर यह है कि हमें अत्यंत प्रचलित नामों को ही जोडऩा चाहिए। जब उपनाम अधिक प्रचलित हो और व्यवहार में आता हो, तब ही उसे मूल अंक प्राप्त करने के लिए जोडऩा चाहिए।  आइएगा! नामाक्षर द्वारा संयुक्तांक कैसे बनाया जाए, इसे देखें, समझें और फिर स्वयं और परिवार के सदस्यों का भविष्य इस अंक विज्ञान द्वारा जानें। सर्वप्रथम अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार नाम केपिटल अक्षरों में लिखिए, तदोपरान्त ऊपर लिखी सारणी में दिए गए अक्षरों के अंकों को उस अक्षर के सामने लिखिए और इसका योग कर लीजिए, यही संयुक्तांक होगा।

नामाक्षर से शुभ अशुभ का विचार
किसी भी नाम का शुभ होना या अशुभ होना उसके नाम का अंकों में परिवर्तित कर देना, पर ज्ञात होगा।
जैसे महात्मा गांधी
MAHATMA    GANDHI
4151441    315451= 39
महात्मा का नामांक    4+1+5+1+4+4+1=20
गांधी शब्द का नामांक  3+1+5+4+5+1=19

20 अंक  : इस अंक को अंक विशेषज्ञों ने न्याय का प्रतीक माना है। अनीति उसे सहन नहीं, पक्षपात से परे ऐसा व्यक्ति न्याय की तुला पर ही सबको तौलता है।
19 अंक : यह अंक व्यक्ति की उच्चाकांक्षाओं और श्रेष्ठता का द्योतक है। ऐसा व्यक्ति साधारण कुल में जन्म लेकर उन्नति की तरफ अग्रसर होता है। सीमित परिवेश से निकलकर निश्चित ही ख्याति, यश एवं प्रशंसा प्राप्त करते हैं।
39 अंक : यह धीरता का अंक है तथा मानसिक उर्वरता एवं जीवन्तता का प्रतीक है। चाहे कितनी ही कठिनाइयां आएं, चाहे कैसी भी बाधाएं उपस्थित हों, ये अपने मार्ग से हटते नहीं, अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ते और यही ओजस्वीयता उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता दिलाती है।

नामांक की संख्या में परिवर्तन
नाम के अक्षरों का जीवन में बहुत प्रभाव पड़ता है। नेपोलियन बोनापार्ट अपना नाम Nepolean Bounaperte लिखता था, जिसकी संख्या क्रमांक इस प्रकार थी -
NAPOLEAN BOUNAPERTE
51873515    2765185245
35        45

कुल योग- 35+45=80

80 अंक का प्रभाव : पूर्ण सफलता का परिचायक यह नामांक, व्यक्ति को अत्यंत उच्च धरातल पर प्रतिष्ठित करने में सफल हुआ। यह जातक सम्पूर्ण यूरोप का प्रथम और अंतिम सम्राट बना। पर दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद नेपोलियन ने अपने नाम के हिज्जे बदल दिए और अपना नाम Nepolean bounaparte लिखना शुरू कर दिया। इस प्रकार कुल संयुक्तांक 76 ही रह गया। यह अंक अभाग्य का सूचक है। और नेपोलियन बोनापार्ट वाटरलू के मैदान में पराजित हुआ और जीवन की अंतिम सांस बंदी के रूप में ली।

संयुक्त अथवा आध्यात्मिक अंक

10 से आगे के अंक संयुक्त अंक कहलाते हैं। 1 से 9 तक के अंकों का संबंध व्यक्तियों के शारीरिक और भौतिक पक्ष से है और इससे आगे के अंकों का संबंध जीवन के तंत्र अथवा आध्यात्मिक पक्ष से है। आगे 80 तक के संयुक्त अंकों के अर्थ और प्रतीक दिये हैं।

अंक 10 
इस अंक को भाग्य चक्र के प्रतीक के रूप में माना जाता है। यह अंक सम्मान, विश्वास व जीवन में उतार-चढ़ाव से संबंधित है। इस अंक का अर्थ यह है कि व्यक्ति को नाम प्राप्त होगा, भले ही वह अच्छे कार्यों के कारण हो या बुरे कार्यों के कारण। ऐसा होना उसकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। इस दृष्टिकोण से यह अंक सौभाग्यशाली है। इस अंक वाले व्यक्ति की योजनाओं की पूर्ति की सदैव संभावना बनी रहती है। खलील जिब्रान के शब्दों में -थक गये हो। बैठकर आराम कर लो, पर रोओ नहीं, वरना मंजिल और लंबी हो जाएगी।ÓÓ

अंक 11
तंत्र विद्या में यह अंक अशुभ माना जाता है। इसमें अन्य व्यक्तियों से इस अंक वाले व्यक्ति को धोखा दिए जाने या मुकदमे आदि में फंसाने की चेतावनी है। इसका प्रतीक है, मुट्ठी बंद हाथ अथवा मुंह बंद सिंह। इस अंक वाले व्यक्ति को अनेक कठिनाइयों से संघर्ष करना पड़ता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल के शब्दों में- जिसकी मांगों में न्याय नहीं होता, जनता का साथ नहीं होता, वही दंगा करते, कराते हैं।ÓÓ

अंक 12
यह अंक दु:ख, कष्ट एवं मानसिक अशान्ति का प्रतीक है। जिसके नाम का यह अंक बनता है, वे दूसरों के द्वारा अपने हित साधन एवं स्वार्थ पूर्ति के लिए बलि के बकरे बनाए जाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि ऐसा व्यक्ति दूसरों के षड्यंत्रों का शिकार बनता है। अत: आवश्यक है कि अशुभ विचारों की परछाई तक मत पडऩे दो तथा पलायनवादी प्रवृृत्ति वालों से दूर रहें। पुरुषार्थी की बाहों में ही लक्ष्मी समाती है।

अंक 13
यह अंक ध्वंसात्मक शक्ति का प्रतीक है। यह अंक यह भी संकेत देता है कि व्यक्ति अपनी योजनाएं और स्थान परिवर्तन कब, कैसे करेगा, किसी को आभास तक नहीं हो पाता। कुछ प्राचीन लेखों में 13 के अंक के संबंध में

लिखा है, जो व्यक्ति 13 के अंक को समझ लेगा, उसे शक्ति, अधिकार और राज्य प्राप्त होगा। यह अंक कठिनाइयों, उतार-चढ़ाव और विनाश को दर्शाता है। यह शक्ति का प्रतीक है, लेकिन यदि उस शक्ति को गलत ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो वह स्वयं को नष्ट कर देगी। यदि किसी व्यक्ति की गणना में यह संयुक्तअंक आए तो यह अज्ञात और ऐसे कार्यों के होने की चेतावनी देता है, जिसकी आशा नहीं की जा सकती।

अंक 14
यह अंक प्रकृति की खतरनाक प्रवृत्ति जैसे आंधी, तूफान, भूकम्प, जल और अग्नि की आशंका प्रकट करता है। जुए, सट्टे, शेयर इत्यादि से धन संबंधी कार्यों के लिए यह अंक शुभ है, किन्तु दूसरों की गलती द्वारा भय की संभावना भी रहती है। व्यापार परिवर्तन के मामलों में शुभ और सौभाग्यशाली है। इस अंक वाले व्यक्ति को भावी घटनाओं के प्रति समझदारी और सतर्कता से काम लेना चाहिए अर्थात यह अंक एक चेतावनी है कि व्यक्तिसोच-समझ कर कदम उठाए।

अंक 15
यह अंक रहस्य भेद, मंत्र ( मंत्रणा, गोपनीयता) का प्रतीक है। अगर किसी के प्रसिद्ध नाम का यह अंक बनता हो तो उन्हें भाग्यशाली माना जाता है। दूसरों द्वारा धन मिलने के लिए भी यह अंक शुभ है। ऐसे व्यक्ति या तो स्वयं कलाकार होते हैं अथवा इनका सम्मान जांच की परिधि में आता है। आज के परिदृश्य में ऐसे व्यक्ति उन पदों पर कार्यरत भी देखे जा सकते हैं, जिन्हें पदीय सामथ्र्य के अनुसार आयकर की भाषा में अनुपातहीन सम्पत्ति जोडऩे के सुयोग मिल जाते हैं, फिर वे चाहे मंत्री या जन प्रतिनिधियों के परिजन हो या अधिकारियों के अन्तरंग कमीशन एजेन्ट, भी इसी की श्रेणी में आते हैं। यह अंक चमत्कारिक और अत्यंत महत्व का है। इस अंक से संबंधित व्यक्ति अपने कार्य व स्वार्थसिद्धि के लिए प्रत्येक कार्य करने को तैयार हो जाते हैं। आश्चर्य की बात है कि इस अंक का संबंध अच्छे वक्ताओं से होता है। उनकी वाणी में प्रभाव होता है। इस अंक के व्यक्ति संगीत और कला में निपुण होते हैं। और उनका व्यक्तित्व नाटकीयता पूर्ण एवं आकर्षक होता है। अन्य व्यक्तियों से धन, उपहार तथा कृपा या अनुग्रह प्राप्त कराने में यह अंक भाग्यशाली है।

अंक 16
यह अंक भयानक घटनाओं का प्रतीक माना जाता है। जो व्यक्ति इस अंक द्वारा प्रभावित होता है, वह काफी उन्नति करेगा, परन्तु अन्त में अद्य:पतन को भी पहुंचेगा। उनकी महत्वाकांक्षाएं पूर्ण नहीं होतीं। इन्हें अपने आपको दुर्घटनाओं से बचाना चाहिए। यह अंक व्यक्ति के जीवन में आने वाली संघातिक विपत्ति, दुर्घटना और योजनाओं में विफल रह जाने की चेतावनी का सूचक है। यदि भविष्य के संबंध में यह संयुक्तअंक निकलता है, तो व्यक्ति को भावी संकट से बचने के लिए अपनी योजनाएं पहले ही बना लेनी चाहिए।

अंक 17
यह अत्यधिक आध्यात्मिक अंक है। इसका चिह्न है अष्टाकोणी शुक्र, जिसे शान्ति और प्रेम का प्रतीक माना गया है। इसे मेजी का सितारा ईसा को लेने गए तीन फरिश्ते भी कहते हैं। इस अंक के संबंध में कहा गया है कि इस अंक वाला व्यक्ति अपने जीवन व व्यवसाय में आने वाली कठिनाइयों पर अपनी उत्कृष्ट भावना से विजय प्राप्त कर लेता है, उन पर काबू पा लेता है। इस अंक को अमरत्व का प्रतीक माना जाता है अर्थात व्यक्ति का नाम उसकी मृत्यु के बाद

भी अमर रहता है। यदि इसका संबंध मूलांक 4 और 8 से नहीं है, तो भावी घटनाओं के संबंध में इस अंक को सौभाग्यशाली माना जाता है। यह शुभ अंक है। इसे आत्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है। जिसके नाम का यह अंक बनता है, वे विपत्ति की पाठशाला में पढ़कर कठिनाइयों से जूझ कर अन्तत: मान, सम्पदा प्राप्त कर लेते हैं। इनके अवसान के बाद भी इनकी कीर्ति पताका फहराती है।

अंक 18
इस अंक को अशुभ माना है। यह कलह और शत्रुता को प्रकट करता है। जिनका यह अंक बनता है। ऐसा जातक गृह कलह एवं शत्रुओं की गतिविधियों द्वारा पीडि़त होता है। यदि किसी तारीख का संयुक्तांक 18 बनता हो तो किसी शुभ कार्य के लिए इसे प्रयुक्त नहीं करना चाहिए यथा- 9 अप्रैल 2012 का यह अंक बनेगा 9 4 2 0 1 2-18 यह अंक भौतिकता का प्रतीक है और इसका अर्थ है कि यह अंक व्यक्ति के स्वाभाविक आध्यात्मिक पक्ष को नष्ट करना चाहता है। सामान्यतया इस अंक से संबंधित व्यक्ति झगड़ों में फंसे होते हैं। ये झगड़े पारिवारिक भी हो सकते हैं, कुछ मामलों में इस अंक से संबंधित व्यक्तियुद्ध अथवा युद्धों द्वारा धन-दौलत अथवा ऐसी स्थिति प्राप्त करता है। यह दूसरे व्यक्तियों द्वारा गद्दारी व धोखाधड़ी के प्रति चेतावनी का भी सूचक है। यदि इस अंक वाले जातक विद्युत संयंत्रों अथवा गोला बारूद या घातक रसायनों अथवा भूगर्भीय खदानों में कार्यरत हों, तो  उन्हें अपनी सुरक्षा का विशेष ध्यान देना चाहिए।

अंक 19
इस अंक को सौभाग्यशाली और अनुकूल माना गया है। इसे सूर्य का प्रतीक माना जाता है और स्वर्ग का शहजादा कहा जाता है। यह अंक प्रसन्नता, सफलता तथा आदर, सम्मान के साथ भविष्य की योजनाओं की सफलता के लिए संकेत करता है। जिनका यह अंक बनता है, वे सम्माननीय व्यक्ति अपने उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। आपकी एक छोटी से छोटी कोशिश बड़ी से बड़ी बुराई को मिटा सकती है।

अंक 20
इस अंक को जागृति के साथ विवेक सहित निर्णय का अंक भी कहा जाता है। इस अंक की व्याख्या बहुत अद्भुत है। जागृति का अर्थ है, किसी नए ध्येय, नई योजना अथवा नई इच्छा का उत्पन्न होना और उसे कार्य रूप में परिणित करना, परन्तु यह सब किसी महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, कर्तव्य समझ कर की जाने वाली बातें हैं। इस अंक का भौतिकता से कोई संबंध नहीं। अत: इसमें सन्देह है कि इस अंक को सांसारिक सफलताओं का प्रतीक माना जाए। यदि इस अंक को भावी घटनाओं के संदर्भ में देखा जाए तो प्रकट होता है कि उसमें देरी होगी, रुकावटें आएंगी, परन्तु उन कठिनाइयों का मुकाबला केवल आध्यात्मिक पक्ष को सुदृढ़ करके ही किया जा सकता है।

अंक 21
यह शुभ अंक है,  जिसका यह अंक बनता है वह जीवन में उन्नति, मान प्रतिष्ठा एवं उच्च पद प्राप्त करते ही हैं। भले ही कितना संघर्ष करना पड़े। प्रश्न में यदि यह संख्या आए तो निश्चित ही कार्य में सफलता का संकेत है। इस अंक को ब्रह्माण्ड के चित्र द्वारा प्रकट किया जाता है, और इसे ÓÓमेजीÓÓ का मुकुट भी कहा जाता है। यह अंक जीवन में उन्नति करने, आगे बढऩे, श्रेष्ठता प्राप्त करने और सामान्य रूप से सफलता का प्रतीक है। इस अंक का अर्थ है दीर्घकालीन संघर्ष के बाद सफलता की प्राप्ति। मेजी का मुकुट लम्बे समय तक दृढ़ निष्ठा के परीक्षण के बाद ही प्राप्त होता है। भावी घटनाओं के संदर्भ में यह अंक उनमें सफलता की आशा का प्रतीक है।

अंक 22
जिसके नाम का यह अंक हो वह अच्छा आदमी है परन्तु स्वप्न संसार में विचरण करता रहता है। ख्याली पुलाव पकाता रहता है। अपने सपनों को साकार होते देखने की आशा में समय बर्बाद करता रहता है। जब मुसीबत मुंह बांये सामने खड़ी होती है, तो चौंकता है। उसके द्वारा बनाई गई धारणाएं भी गलत होती हैं। यह अंक उन व्यक्तियों के लिए चेतावनी का प्रतीक है जो गलतफहमी के कारण कल्पना लोक में रहते हैं। ऐसा व्यक्ति तभी जागता है, जब वह विपत्तियों से घिर जाता है तथा अन्य लोगों के प्रभाव में आकर गलत निर्णय ले लेता है।

अंक 23
इस अंक को ÓÓसिंह का शाही सिताराÓÓ कहते हैं। यह अंक सफलता, अपने से अधिक समर्थ व्यक्तियों से सहायता और उच्चाधिकारियों से संरक्षण का संकेत देता है। भावी घटनाओं और योजनाओं की सफलता के प्रति यह अंक आशाप्रद समझा जाता है।  जिसके नाम का यह संयुक्तांक बने वे जीवन में सफलता एवं उच्च पद पा लेते हैं। परन्तु यह उनके स्वयं के प्रयासों द्वारा संभव न होकर उच्च पदस्थ अधिकारियों या इनसे श्रेष्ठ पुरुषों की कृपा से होता है।

अंक 24
यह अंक भी सौभाग्यशाली है। इस अंक में व्यक्ति को अपने काम की सफलता और पूर्ति के लिए अधिकार प्राप्त व्यक्तियों से सहायता मिलती है और यह अंक यह भी दर्शाता है कि विपरीत योनि अर्थात पुरुष हो तो स्त्री से और यदि स्त्री हो तो पुरुष के प्रेम से लाभ होगा। भावी घटनाओं के संबंध में यह अंक अनुकूल रहता है। यह अंक शुभ है। प्रश्न में यह अंक आए तो शुभ फल का द्योतक है जिनके नाम की यह संख्या बनती है वे अपने कार्यों में अपने निकट के व्यक्तियों की सहायता प्राप्त कर लेते हैं।

अंक 25
यह अंक शक्तियों और व्यक्तियों अथवा वस्तुओं को देखने से प्राप्त होने वाले अनुभवों का सूचक है। वास्तविक रूप से इस अंक को सौभाग्यशाली नहीं माना जाता, क्योंकि इस अंक वाले व्यक्ति को सफलता प्रारंभिक जीवन में कठिनाइयों और संघर्षों के बाद ही प्राप्त होती है। भावी जीवन के संबंध में यह अंक अनुकूल माना जाता है।

अंक 26
यह अंक भविष्य के प्रति भयंकर आशंकाओं से परिपूर्ण है। यह अंक अन्य व्यक्तियों के कारण विपत्तियों और सट्टेबाजी से विनाश का इशारा करता है। दूसरे लोगों से साझेदारी, गलत संगति और गलत परामर्श से हानि की संभावना को दर्शाता है। यदि यह अंक भावी घटनाओं से संबंधित हो, तो व्यक्ति को सोच समझकर ही अपने मार्ग का निर्धारण करना चाहिए। ये शुभ अंक नहीं है। जिसके नाम का यह अंक हो, उसे जुए, सट्टे साझेदारी से एवं विवाह से धन हानि होने की आशंका होती है। अन्य लोग भी इसके लिए कष्टदायी एवं विपत्तिदायक होते हैं।

अंक 27
यह अच्छा अंक है और इसका प्रतीक राजदण्ड यानि सत्ता से अधिकार को दर्शाने वाला दण्ड है। यह अधिकार, शक्ति और आज्ञा का संकेत देता है। यह अंक प्रकट करता है कि व्यक्ति को क्रियात्मक बुद्धिमत्ता से फल की प्राप्ति होगी अर्थात व्यक्ति को भौतिक शक्तियों या गुणों के कारण उसे अच्छे फल प्राप्त होंगे। इस अंक वाले व्यक्तियों को अपने विचारों के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए।
यह अंक भावी योजनाओं के संबंध में भी सौभाग्यशाली माना जाता है। यह अंक शासन एवं उच्चाधिकारियों का प्रतीक है। जिस जातक के नाम का ये अंक बने, वे यदि अपने स्वयं के विचारों पर चलकर अपने निर्णयों को कार्यान्वित करें तो सफलता प्राप्त कर सकते हैं। भविष्य विषयक प्रश्न में यह संख्या शुभ मानी गई है।

अंक 28
यह अंक विरोधाभाषों से पूर्ण तथा इस बात का संकेत देता है कि अच्छी संभावनाओं वाले व्यक्तियों से भी सब कुछ छिन जाता है, यदि वह भविष्य का भली प्रकार ध्यान नहीं रखता। यह अंक इस बात की ओर भी इशारा करता है कि अन्य लोगों में विश्वास, व्यापार में कई मुकाबले और विरोध एवं कानून द्वारा हानि हो सकती है और व्यक्ति को बार-बार जीवन के मार्ग पर आरंभ से चलना पड़ सकता है अर्थात उसे बार-बार नया जीवन शुरू करना पड़ सकता है। इस संख्या को भी विशेष शुभ नहीं माना गया है, जिसके नाम का यह अंक बने वे अपने कार्यों द्वारा अधिक सफलता की आशा कर सकते हैं, यदि सावधान रहे तो, अन्यथा निराशा ही हाथ लगेगी। इनको वाद-विवाद अन्य न्यायालयीन आदेश, मुकदमे, प्रतिस्पर्धा आदि के कारण व्यापार में घाटे की आशंका होती है। इनके विश्वास को ठेस लगती है। प्रश्न में इस संख्या के शुभ परिणाम ही सामने आते हैं।

अंक 29
भावी घटनाओं के संबंध में यह अंक सौभाग्यशाली नहीं है। यह अंक अनिश्चितता, विश्वासघात और दूसरे लोगों से ठगे जाने का सूचक है। इस  अंक वाले व्यक्ति को मुकदमों, संकटों और असंभावित विपत्तियों का डर रहता है। उसे अविश्वासी मित्रों और लिंग भेद वालों से धोखा और दु:ख हो सकता है। भावी घटनाओं के बारे में यह अंक भयंकर चेतावनी देता है। यह अशुभ संख्या है। जिसके नाम का यह अंक बनता हो वे अस्थिर मति अपने विचारों को बार-बार बदल देते हैं। इनकी कोई निश्चित स्थिति नहीं होती। इनके मित्र भी धोखेबाज एवं अविश्वासी होंगे और उनके द्वारा कष्ट और भय की आशंका बनी रहेगी। अगर यह संख्या किसी पुरुष के नाम की है, तो स्त्री द्वारा वह धोखा खाता है, ठगा जाता है। अगर स्त्री के नाम की यह संख्या है, तो उसे पुरुष द्वारा उपरोक्त फल भोगने पड़ते हैं।

अंक 30
यह अंक सोच समझ कर परिणामों पर पहुंचने, पुनरावलोकन तथा अपने साथियों पर बौद्धिक श्रेष्ठता का द्योतक है। इस अंक का संबंध पूर्णतया बौद्धिक पक्ष से होता है, परन्तु जिन लोगों का इस अंक से संबंध है, वे सभी भौतिक वस्तुओं को एक पक्ष में रखते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि वे ऐसा करने के लिए विवश होते हैं, परन्तु इसलिए कि वे ऐसा स्वयं चाहते हैं। इसी कारण से यह अंक न तो सौभाग्यशाली कहा जा सकता है और न भाग्यहीन, क्योंकि सब कुछ व्यक्ति के बौद्धिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। यह अंक शक्तिशाली सिद्ध हो सकता है, लेकिन व्यक्ति की इच्छा अथवा इरादों  के कारण प्राय: ऐसा हो नहीं हो पाता। भौतिक दृष्टि से यह अंक शुभ नहीं माना गया, क्योंकि जिनके नाम का यह अंक बनता है, ये धन संचय करने की बजाय विद्या संचय की

ओर अधिक ध्यान देते हैं। वे कुशाग्र बुद्धि एवं अत्यंत प्रतिभाशाली होते हैं। इन्हें इसी कारण अर्थाभाव बना रहता है।

अंक 31
यह अंक बहुत कुछ 30 जैसा है। अन्तर केवल इतना है कि अंक का प्रतिनिधि अपने आप में सीमित एकांकी तथा दूसरे लोगों से अलग थलग होता है। सांसारिक अथवा भौतिक दृष्टिकोण से भी यह सौभाग्यशाली अंक नहीं है। कवि, साहित्यकार अथवा कला क्षेत्र से जुड़े अधिकांश व्यक्ति आर्थिक साधनों के संचय में लापरवाह होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मां सरस्वती की कृपा तो जीवनपर्यन्त बनी रहती है, किन्तु धन की देवी लक्ष्मी जी ऐसे जातकों से थोड़ी सी दूरी बना कर चलती है, याचक तो नहीं होते, किन्तु दानशीलता का भाव होने पर भी मौन रहते हैं। भौतिक दृष्टि से यह अशुभ संख्या है, ये एकांकी जीवन बिताने के इच्छुक रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ऐसे व्यक्ति अन्तर्मुखी होते हैं। उच्चकोटि के वैज्ञानिक अथवा साधक होते हैं। इनका सच्चा सुख एवं नई नई खोजे, उत्तम साहित्य की रचना अथवा आध्यात्मिकता की त्रिवेणी में गोते लगाना।

अंक 32
यह अंक 5 अथवा 14 या 23 के समान जादू के जैसा प्रभाव वाला है। यह प्राय: व्यक्तियों के समूह या राष्ट्रों से संबंधित होता है। यदि इस अंक वाला व्यक्ति अपने निर्णय और विचारों पर दृढ़ रहे तो यह अंक 31 के लिए भी सौभाग्यशाली होता है। यदि ऐसा न हो तो उस व्यक्ति की योजनाएं, दूसरे लोगों की मूर्खता या हठधर्मी से नष्ट हो जाती है। यदि इसका संबंध भविष्य की घटनाओं से देखा जाए, तो यह अनुकूल मालूम होता है। यह संख्या शुभ मानी गई है। समुदाय, व्यक्ति अथवा राष्ट्रों की प्रतीक संख्या है। जिसके नाम की यह संख्या बनती है। उन्हें चाहिए कि वे दूसरों की जिद अथवा गलत सलाह को मान्यता न देकर अपने स्वयं की योजनाओं एवं विचारों पर अमल करें, इससे वे विशेष सफलता पा सकेंगे। अपने जीवन के प्रश्न में भी ये शुभ संख्या है।

अंक 33
यह भाग्यशाली अंक है। जिस जातक के नाम का संयुक्तांक 33 बनता हो वे अपने मातहत अधिकारी अथवा कर्मचारियों, संबंधितों तथा परिचितों से अपना कार्य करवाने में सिद्धहस्त होते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए कि ऐसे जातक स्वयं अधिकार युक्त होकर दूसरों से अपनी इच्छानुसार काम करवाने में समर्थ होते हैं।

अंक 34
यह अंक माथे की लकीरों को भाग्य में बदलने की सामथ्र्य तो रखता है, किन्तु जीवन के प्रारंभ में सोने की तरह तपा कर शुद्ध करता है। संघर्ष की गाथा लिखते लिखते जातक को प्रशासनिक अथवा राजनैतिक क्षेत्र में शक्ति सामंत बनवाने में सहयोगी होता है। ऐसा जातक स्वयं के अनुभवों और दूसरों के तौर तरीके देखकर अनुभव सिद्ध होकर प्रगति करता है।

अंक 35
संभल कर रहें, 35 संयुक्तांक के जातक विवाह हो या बीमारी, राजनैतिक बुखार हो या प्रेम रोग, सभी क्षेत्रों में पराजित होने का भय बना रहता है। पार्टनरशिप में व्यवसाय हानिप्रद हो सकता है। आपदाएं, विपदाएं झंझाएं इनके, जीवन को कष्टपूर्ण बनाने में सहभागिनी बनती हैं। व्यापारिक क्षेत्रों में कार्यरत

व्यक्ति यदि सोच-समझकर निर्णय लेंगे, तो हानिप्रद स्थितियां कम बनेंगी। मनोवैज्ञानिक फ्र ायड के शब्दों में - '' बाद में ही पता लगता है कि बात करने वाला कैसा है ? बात चरित्र और स्वभाव का दर्पण है।

अंक 36
इस अंक वाले जातक इतरा सकते हैं, अपने भाग्य पर। चमत्कारी हैं, यह अंक। जिसके नाम का संयुक्तांक 36 हो तो सत्ता के गलियारों में अपनी चमक से जुड़े जातक ऐश्वर्य की देवी के सदैव कृपा पात्र बने रहते हैं। प्रशासनिक अथवा राजनैतिक क्षेत्रों से जुड़े जातक अपनी प्रतिभा तथा अपनी बौद्धिक क्षमता से शक्ति सामंतों की कतार में खड़े नजर आएंगे। समाजसेवा से जुड़े व्यक्तित्व समाज के प्रेरणास्रोत होते हैं।

अंक 37
यह अंक शुभ है। 37 संयुक्तांक वाले जातक शक्तिके प्रतीक होते हैं। चतुर चाणक्य की तरह व्यवहार करते हैं, अपने कार्य क्षेत्रोंं, चिकित्सा, इंजीनियरिंग  अथवा न्याय के क्षेत्र से जुड़े जातक अपनी कार्य प्रणाली से पद, सम्मान, के साथ साथ आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न होते देखे गए हैं। भाग्य की देवी ऐसे व्यक्तियों पर सदैव कृपा बनाए रखती है। महान दार्शनिक सुकरात के शब्दों में -'' जब कोई तुम्हारी स्तुति या निंदा करें, तो बहरे बन जाओ।ÓÓ    

अंक 38
इस अंक वाले जातक सावधान एवं सतर्क  रहें, अपने अपने कार्य क्षेत्रों में, अन्यथा कलह  एवं भय अथवा ठगे जाने से मन व्यथित हो सकता है। किन्तु नीर, क्षीर विवेक की कार्यशैली में दु:ख और परेशानियां दूर से ही आपको प्रणाम करती नजर आएंगी। नये मित्रों और पुराने शत्रुओं पर एकाएक विश्वास न करें अन्यथा हानि और भय की आशंका रहेगी। हर व्यक्ति में प्रतिभा  होती है। पहचाने नहीं, तो इसमें किसका दोष। आचार्य अष्टावक्र के शब्दों में - '' छोटी छोटी बातों को प्रतिष्ठा मान कर प्रतिष्ठा का मूल्य कम न करें।ÓÓ

अंक 39
यह अंक निश्चित फल देने वाला है। इस संयुक्तांक वाले जातक आर्थिक परेशानियों में जीवनपर्यन्त घिरे रहते हैं। धन योग की अपेक्षा विद्या योग प्रबल रहता है, इस अंक वाले जातकों का। ये कुशाग्र बुद्धि एवं अत्यंत प्रतिभाशाली होते हैं। अपने बौद्धिक चातुर्य से राजनैतिक एवं प्रशासनिक गलियारों में अपनी धाक जमाने में सफल रहते हैं। समाज सेवा से जुड़े जातक सम्मानजनक स्थिति में रहते हैं, पद-प्रतिष्ठा इन्हें ईस्वरीय कृपा से सहज सुलभ होती है। इनकी मित्र मण्डली का दायरा विस्तृत रहता है। यदा-कदा अर्थाभाव इनकी सोच को अस्थायी रूप से भले बदल दें, किन्तु इनका व्यक्तित्व समाज के लिए सदैव अनुकरणीय रहता है।

अंक 40
इस अंक वाले जातक अन्तर्मुखी वृत्ति वाले होते हैं। एकला चल के सिद्धान्तों के अनुगामी होते हैं। शिक्षा, चिकित्सा तथा व्यापार जगत से जुड़े व्यक्ति कु छ रहस्यमयी प्रकृति के भी होते हैं। इनके दिल की बात सहज रूप में कोई दूसरा जान नहीं पाता। दूसरों के मामलों में भी ये तटस्थ रहते हैं। इनमें एक अच्छा गुण यह रहता है कि ये बिना मांगे सलाह नहीं देते। महारथी कर्ण के अनुसार ÓÓभाग्य से बड़ा कर्म है।ÓÓ यूनानी के महान दार्शनिक अरस्तु के शब्दों में ÓÓकर्म की जय हो, अकर्मण्य का मैं मुंह नहीं देखना चाहता।

अंक 41
यह संयुक्तांक भी भाग्य की शक्ति को प्रदर्शित करता हैं। जिनके नाम की ये संख्या बनती हो उन्हें चाहिए वे अन्यों के सलाह मशविरा को ध्यान न देकर अपने स्वयं के विचारों तथा योजनाओं पर कार्य करें। जो जातक ÓÓनीर क्षीर विवेकÓÓ के अनुसार कार्य करते हैं उन्नति उनके चरण चूमती है। सफलताएं उनके द्वार पर दस्तक देती है। महान दार्शनिक प्लेटो के शब्दों में- तुम्हारा कार्य ही तुम्हारा मूल्यांकन कराता है।ÓÓ

अंक 42
यह संयुक्तांक विश्वास का परिचायक है। एक अच्छे मित्र और सलाहकार का ंअंक है। ऐसे जातक सफल उद्यमी, चतुर राजनीतिज्ञ अथवा दूरदर्शी प्रशासक होते हैं। मित्रों में ये जल्दी लोकप्रिय हो जाते हैं। दूसरों से काम निकालने में ये चतुर होते हैं। किन्तु इस संयुक्तांक वाले जातक आर्थिक पक्ष को संभालें अन्यथा खर्चीलापन आपको ऋ णी बना सकता है। स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही भी इस अंक वाले जातकों के लिए सुखद नहीं है। चाणक्य के शब्दों में ÓÓछोटे छोटे कार्य करते करते मनुष्य महान बन जाता है।ÓÓ

अंक 43
बाधाकारक है, यह अंक। जिनके नाम का यह अंक बनता है, उन्हें जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। बाधाएं - चाहे पारिवारिक पृष्ठभूमि की हों अथवा कार्यक्षेत्र की, इनका अनवरत पीछा करती रहती हैं। किन्तु बड़े जीवट वाले होते हैं, 35 अंक के जातक । विदुर नीति में कहा गया है - ÓÓ दूसरों के गुण देखो, अवगुण नहीं।ÓÓ  कहने का अर्थ है- अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते रहो, सफलताएं आपके जीवन पथ पर प्रकाश स्तम्भ के रूप में नजर आएंगी। चार्वाक के शब्दों में - ''निरन्तर चलने वाले ही मंजिल पाते हैं। ÓÓ

अंक 44
यह संयुक्तांक जीवन में संघर्ष का प्रतीक है। आपत्ति और विपत्तियां इस अंक वाले जातक की तब तक सहचरी बनी रहती हैं, जब तक जातक संघर्षमय कर्म का आशा-दीप'' अपनी भावना में साकार नहीं कर लेते। इस अंक वाले जातक दृढ़ संकल्पित होकर जब कर्तव्य पथ पर चल पड़ते हैं, तो रंक से राजा और राजा से महाराजा बनते देर नहीं लगती। कार्ल माक्र्स के शब्दों में -'' जिसके सिर पर छप्पर नहीं होता, सभी उसे फटकारते हैं। महल वालों को कोई आंख उठा कर भी नहीं देखता।ÓÓ

अंक 45
यह संयुक्तांक सत्ता और महत्वांकाक्षाओं का प्रतीक है। बाधाओं, संकटों एवं तकलीफों में भी इस अंक वाले राह निकाल लेते हैं। साधारण कुल में भी जन्म लेकर विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करते करते अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में सफल होते देखे गए हैं। इस संयुक्तांक वाले व्यक्ति भाग्य के धनी होते हैं, इसमें सन्देह नहीं । आचार्य चाणक्य के शब्दों में - दंड का प्रयोग भले ही न करो, पर हाथ में लिए रहो। लोगों में भय बना रहेगा।

अंक 46
यह अंक भाग्यशाली अंक है। जिन लोगों के नाम का संयुक्तांक 46 होता है, उनके जीवन में अचानक ही ऐसी घटनाएं घट जाती हैं? जिनके द्वारा इनके सामने सफलता के द्वार खुल जाते हैं। ऐसे जातक कोई भी कार्य बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से करते हैं। इसी कारण लोग इसकी प्रशंसा करते हैं और इनका यश हर

जगह फैल जाता है। जीवन क्षेत्र में यह अंक शुभ माना जाता है। मार्क ट्वेन ने अपनी पत्नी को श्रद्धांजलि देते हुए एक बार कहा था,'' वह जहां भी थी, वहीं स्वर्ग था।ÓÓ भावार्थ है कि एक दोस्त जैसी शुभकामना से ज्यादा जिन्दगी के पास और कुछ नहीं है।ÓÓ

अंक 47
यह अंक अनिश्चित स्थिति का प्रतीक है। जो जातक इस अंक से संबंधित होते हैं,  उनके जीवन में कब, किस तरह की आकस्मिक घटना घट जायेगी, इसका इन लोगों को कोई आभास नहीं रहता । ऐसे व्यक्ति अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत करते देखे गये हैं। इसके विपरीत बहुत से लोगों को उच्च पद पर आसीन होकर जिम्मेदारी का कार्य करते भी देखा गया है। इसलिए इस अंक को अनिश्चित  स्थिति का प्रतीक माना गया है। महान दार्शनिक सुकरात के शब्दों में - ''अपनी बराबरी किसी से न करो। अपना अलग अस्तित्व बनाये रखो। ÓÓ

अंक 48
यह अंक तीव्र  मानसिक शक्ति का परिचायक है। जिन लोगों के नाम का यह संयुक्तांक होता है, उनमें दूरदर्शिता, गहरी सूझबूझ और व्यवहारिक कुशलता होती है। इन्हीं गुणों के आधार पर ऐसे लोग समाज में अपना अलग और महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल होते है। वैसे आर्थिक रूप से ऐसे जातक यदाकदा असफल होते देखे गए हैं। विदुर नीति कहती है-''यश प्राप्त कर लेना सरल है, पर बचाये रखना बहुत कठिन है।ÓÓ

अंक 49
जिन लोगों के नाम का संयुक्तांक 49 होता है, वे जीवन की कठिनाईयों एवं संघर्षों  में बहुत जल्दी हार मान जाते हैं। इनकी यही कमजोरी इन्हें जीवन में एकाकी और अन्तर्मुखी बना देती है। ऐसे लोग बहुत कम बोलते हैं। किसी प्रकार के उत्सव आदि में कम सम्मलित होते हैं । ऐसे लोगों के मित्रों की संख्या कम होती है। अपने कार्य की सिद्धि न होने तक वे विद्रोही समझे जाते हैं। ऐसे जातक परम्परागत नियमों के विरुद्ध  होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें कि ये समाज से संबंधित प्रश्नों के प्रति सुधारवादी होते हैं। प्रसांगिक है - जिसे आप बदल सकते हैं, उसे बदल दीजिए और जिसे नहीं बदल सकते, उसे स्वीकार कर लीजिए। अगर आपको आलोचना भी करनी है, तो प्यार से कीजिए।

अंक 50
यह अंक कल्पना शक्ति का प्रतीक है। जिन व्यक्तियों के नाम का संयुक्तांक 50 होता है, वे लोग सहनशील, भावुक एवं कल्पना प्रिय होते हैं। ऐसे लोग यर्थाथ जगत से दूर सदैव कल्पना में ही विचरण करना चाहते हैं। इसके साथ इस अंक में एक जबरदस्त कमी होती है। इन लोगों में स्थिरता बिल्कुल नहीं होती। इसीलिए ये लोग सदैव मानसिक अशान्ति से घिरे रहते हैं, और जीवन की समस्याओं से कभी मुक्ति नहीं पाते । प्रासांगिक है: नेपोलियन बोर्नापार्ट जानता था कि अपनी शक्तियों को दुश्मन के सबसे कमजोर हिस्से पर केन्द्रित करना, कितना महत्वपूर्ण है - यही युद्ध के मैदान में उसकी सफलता का रहस्य था।


अंक 51
यह अंक शक्ति का प्रतीक है। इस अंक से योद्धा प्रवृत्ति एवं विजय की सूचना मिलती है। ऐसा व्यक्ति, जो भी कार्य करता है, उसमें सफलता प्राप्त होती है। सैनिकों के लिए यह संयुक्तांक विशेष शुभ माना जाता है। नेताओं के लिए भी यह अंक शुभ है। लेकिन एक ओर जहां संघर्ष की दृष्टि से यह अंक शुभ है वहीं दूसरी ओर यह भी निश्चित है कि इस अंक से संबंधित व्यक्ति के शत्रु भी बहुत होते हैं। लेकिन व्यक्ति परवाह न करते हुए अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता जाता है।
ÓÓअक्ल सुनने - पढऩे से नहीं आती, ठोकरे खाने के बाद आती हैÓÓ - यूनानी दार्शनिक- सुकरात।

अंक 52
यह संख्या जीवन में पराजय एवं परेशानियों की सूचक है। इस संयुक्तांक को शुभ नहीं समझा जाता। ऐसे व्यक्तियों के नसीब में सुख -चैन से बैठना नहीं होता। जीवन में जो भी काम करता, उसी में असफलता मिलती है और लगातार की असफलताओं से ऐसा व्यक्ति थक जाता है, हार जाता है और जिन्दगी की गाड़ी को किसी तरह घसीटता रहता है। शक्ति हमेशा परिवर्तनशील होती है। अत: संघर्षों के तदोपरान्त विजयश्री अथवा आकांक्षाओं की पूर्ति के प्रति आशावान  रहना चाहिए। नारद संहिता के अनुसार - तुम्हारे पांव में ताकत है, तुम कहीं भी खड़े हो सकते हो।ÓÓ रूस के महान साहित्यकार टालस्टाय के शब्दों में '' मैंने उससे पूछा, तुम्हारी पूंजी क्या है ? उसने अपने दोनों हाथ ऊपर कर दिए । शब्दार्थ है '' कर्म ही पूजा है।ÓÓ

अंक 53
यह अंक उन्नति का सूचक है। जिस व्यक्ति के नाम का संयुक्तांक 53 होता है, वह गुप्तचर का काम बहुत सफलतापूर्वक कर सकता है। ऐसा व्यक्ति सैनिक संचालन भी बहुत कुशलतापूर्वक कर सकता है। वास्तव में यह अंक रहस्य का प्रतीक है। कोई भी गहरी से गहरी बात वे अपने मन में छिपाने में सफल होते हैं। इनकी बात तक तब कोई नहीं जान सकता, जब तक वे स्वयं न बता दें। इनमं एक विशेषता यह भी होती है कि इनके चेहरे को देख कर कोई भी नहीं जान सकता कि इनके मन में क्या है। प्रासांगिक है, चाणक्य का कथन - '' भीड़ से चलता है जो अलग। वही सबका ध्यान आकर्षित करता है। इस अंक के जातक शेखसादी के शब्दों पर भी ध्यान दें - ''जिन्दगी के हर मोड़ पर दुश्मन खड़े हैं। संभल कर चलो।ÓÓ

अंक 54
यह अंक विद्वता का सूचक है। ऐसा व्यक्ति विद्वान, वक्ता तथा धनी होता है और लोगों में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति में बोलने की तथा तर्क देने की अभूतपूर्व शक्ति होती है। जिसके कारण शत्रु पक्ष भी इनकी ओर झुक जाता है। और इनकी बात मानने को विवश होता है। ऐसे व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति द्वारा ख्याति एवं सम्मान में वृद्धि करते हैं।  जार्ज बनार्ड शॉ के शब्दों में - ''स्त्री की शोभा लचक में, बड़े की शोभा अकड़ में है। शिक्षा सभ्यता की जननी है। ÓÓ

अंक 55
यह अंक नेतृत्व का प्रतीक है। जिस व्यक्ति के नाम का संयुक्तांक 55 होता है , वह तीव्र बुद्धि का होता है, लोगों का नेतृत्व करने की उसमें अपूर्व शक्ति होती है। ये लोग धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। इनकी मानसिक शक्ति विलक्षणता से परिपूर्ण होती है, इसलिए किसी बात में ये तुरन्त और सही निर्णय ले लेते हैं। सामाजिक परिवर्तन लाने में ऐसे लोग अग्रणी होते हैं। ग्रीक समुद्री देवता प्रोटियस के अनुसार - '' विद्वानों के बीच विद्वान बने, संतो ंके बीच में संत। यह सबका दिल जीतने की कला है। गम्भीर या मजाकिया व्यक्ति की बातों का उन्हीं के अन्दाज में जवाब दें।ÓÓ

अंक 56
यह अंक शुभ और अशुभ दोनों का मिश्रण है। ऐसा व्यक्ति सौभाग्ययुक्त होता है और दूसरों पर नेतृत्व करने की चेष्ठा भी करता है। परन्तु कई बार इसके क्रिया-कलाप निकृष्ट प्रकार के होते हैं। ऐसा व्यक्ति घबड़ाया हुआ सा , बेचैन रहता है। ऐसे व्यक्तियों को चाहिए कि अपने मानसिक आवेश पर सन्तुलन रखें। विश्वविख्यात लेखक खलील जिब्रान लिखित पुस्तक - '' दि अर्थ गॉड्सÓÓ के शब्दाशों में ÓÓ इंसान के यश का नक्षत्र उस समय उदित होता है, जब देवताओं के पवित्र ओंठ उसके जीवन को चूमते हैं।ÓÓ बचपन का भोलापन, जवानी  के मधुर हर्षोन्माद, दृढ़ पौरुष  की तीव्र  प्रेम भावनाएं और बुढ़ापे की बुद्धिमत्ता, राजाओं का वैभव, योद्धाओं की विजय, कवियों की ख्याति, ध्यानियों और संतों का सम्मान, जो इनमें हैं, वह इन्सानों का आनंदमय भोग है।ÓÓ

अंक 57 -
यह अंक कार्य एवं व्यवहार कुशलता का प्रतीक है। ऐसा व्यक्ति खुश मिजाज होता है और अपने व्यवहार से बहुत जल्दी दूसरों को अपना बना लेता है।  ऐसा व्यक्ति जिस क्षेत्र में होता है -चाहे वह नौकरी में हो, या व्यवसाय - उसमें अवश्य सफलता प्राप्त करता है।  ऐसे लोग कभी निष्क्रिय नहीं बैठ सकते । हर समय कुछ न कुछ करते रहना - इनका विशेष गुण होता है, और इसी कारण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ये लोग सफलता प्राप्त करते हैं। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में - ''संकल्प शक्ति से हथेली पर हिमालय उठा सकते हो।

अंक 58
इस अंक वाले जातक अच्छे चिकित्सक होते हैं। ऐसे लोग खुले और स्पष्ट विचार एवं व्यवहार वाले होते हैं। ऐसे लोग दोहरे व्यक्तित्व  वाले नहीं होते । जो इसके मन में होता है, उसे ही यह कहते हैं, और वैसा ही व्यवहार करते हैं। दुराव -छिपाव इनके स्वभाव के विपरीत होता है।  इनके इसी स्पष्ट खुले व्यवहार के कारण जहां इनके मित्रों की संख्या बहत होती है, वहीं शत्रुओं  की संख्या भी कम नहीं होती । ऐसे व्यक्ति सौम्य, सरल, निष्कपट एवं सहृदय होते हैं। दूसरों से अपनत्व भरा मधुर व्यवहार करते हैं।  चाणक्य नीति के अनुसार: '' कुमित्र पर कदापि विश्वास न करें, क्योंकि कुमित्र नाराज होने पर आपकी सारी पोल खोल देगा।ÓÓ

अंक 59
इस अंक वालों को जीवन में बहुत संघर्ष देखने पड़ते हैं। लेकिन हर संघर्ष में अन्तिम विजय संयुक्तांक 59 वालों की ही विजय होती है। ऐसा व्यक्ति विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करता है और यात्राएं  भी बहुत करता है। यात्राएं भी लाभकारी होती हैं। ऐसे लोग बैंकिंग, या दलाली का कार्य करें, तो विशेष सफलता प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इन लोगों में बेईमानी की प्रवृत्ति होती है। इसलिए खतरा बना रहता है। ऐसा व्यक्ति प्राय: सफल और दीर्घजीवी होता है।  जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए ये लोग हर प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं। झूठ, कपट, धोखाधड़ी, बेईमानी, सट्टा आदि कार्यों में संलग्न रहते हैं । इनका उद्देश्य धन संग्रह करना होता है।  पापी को पुण्य, पुण्यात्मा को पाप दिखलायी नहीं पड़ते। - चार्वाक

अंक 60
यह अंक प्रसन्नता का सूचक है। हर परिस्थिति में मुस्कराते रहना, संयुक्तांक 60 वालों की विशेषता है । ये लोग स्वयं हंसते मुस्कराते हैं, बल्कि दूसरों को भी खुश रखना  अपना कर्तव्य समझते हैं। कठिन से कठिन परिस्थिति में भी इनके होठों की मुस्कराहट समाप्त नहीं होती ।  ऐसे व्यक्ति चिकित्सा, देश सेवा, समाज सुधार जैसे कार्यों  में पूर्ण सफल होते हैं। आचार्य चाणक्य के शब्दों में -''सेवा के अवसर पर सेवकों की, दुख के समय बन्धुओं की, आपत्ति काल में मित्रों की, धन हानि होने पर पत्नी की परीक्षा होती है।
अंक 61
जिनका संयुक्ताक 61 होता है। ऐसे व्यक्ति आत्मसंयमी होते हैं। कम बोलते है और शान्ति प्रिय होते हैं। हालांकि ऐसे व्यक्तियों को जीवन के प्रारंभिक वर्षो में भयानक कष्ट एवं संघर्ष का सामना करना पड़ता है किन्तु लगातार जूझते रहने के बाद अन्त में अपनी मंजिल पर पहुॅचने में ये लोग सफल हो जाते हैं। ऐसे जातक अपने लक्ष्यों तक पहुॅचने के लिए दूसरों की समझदारी, ज्ञान और मेहनत का इस्तेमाल करते हैं ऐसे जातकों की गिनती सफल लोगों में होती है। विदुर नीति: यश प्राप्त कर लेना सरल है, पर बचाये रखना कठिन है।

अंक 62
जिस व्यक्ति के नाम का संयुक्तांक 62 होता है वे सेना, पुलिस या सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में नेतृत्व करने में सफल होते हैं तथा अपनी योग्यता के बल पर कार्यरत क्षेत्रों में उच्च पदों पर पहुॅचने में सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसा व्यक्ति कर्मठ होता है और सूझबूझ से कार्य कर सफलता के कीर्तिमान स्थापित करता है। ऐसा जातक जब अपने पथ पर बढ़ता है तो तूफान की गति से बढ़ता हुआ अन्तोगत्वा अपनी सफलता की मंजिल पर पहुॅच जाता है। महान दार्शनिक सुकरात वही काम शीघ्रता से सफल होता है, जिसकी भनक तक किसी  को न लगे।

अंक 63
संयुक्तांक 63 वाले जातक स्वस्थ्य और दूसरों की उन्नति तथा उपकार में सहायक होते हैं। प्राचीन सामाजिक मान्यताओं को बदलने में और उनके स्थान में स्वस्थ्य परम्परा कायम करने के लिए ऐसे लोग विशेष प्रयत्नशील रहते हैं। इस अंक वाले जातक व्यापार के क्षेत्र में विशेष सफल होते हैं लेकिन व्यर्थ का खर्च करने की इनमें बुरी आदत होती है। इसलिए कभी कभी ये लोग गंभीर आर्थिक संकट में फंस जाते हैं। ऐसे लोग दूसरों की भलाई करने में, दूसरों की उन्नति की राह बनने में धार्मिक कार्यो में बहुत खुश होते हैं। आचार्य चाणक्य के शब्दों में ''विद्या कामधेनु के समान गुण वाली है। वह असमय में भी फल देती है। परदेश में वह भाई के समान है। वह एक प्रकार से गुप्त धन है। इस कारण विद्या का संचय अवश्य कर चाहिए।

अंक 64
जिन लोगों के नाम का संयुक्तांक 64 है अवश्य वे व्यापार की अपेक्षा नौकरी में सफल होते हैं। ऐसे जातक साहित्यिक रूचि वाले होते हैं। इनका वैवाहिक जीवन कुछ कडुवा कुछ मीठा होता है, जिससे मानसिक परेशानी बनी रहती हैं।  इस अंक वाले जातक महत्वाकांक्षी भी होते हैं। वे चाहते हैं, उनका आदर किया जाये। तकदीर और तदवीर, दोनों का सहारा लेकर ऐसे जातक समाज में अग्रणी, राजनीति में चतुर चालाक तथा प्रशाासनिक क्षेत्रों में अपनी प्रशासनिक क्षमता से राष्ट्र के उत्थान में अग्रणी रहते हैं। किन्तु ऐसे जातक अपने विचारों दृढ, हठी तथा दृढ निश्चय वाले होते हैं।  प्रासांगिक है यहां आचार्य चाणक्य के नीति वाक्य 'पौथी पढऩे से पंडित हो जाने से ही विद्वता नहीं होती, उसे व्यवहार का भी ज्ञान होना चाहिए।

अंक 65
जिन जातकों के नाम का संयुक्तांक 65 होता है, उनका जीवन प्राय: खतरों से भरा रहता है। कई बार चोट लगती है, दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है। ग्रहीय प्रतिकूलताओं के कारण न्यायालयीन विवादों तथा कारावास की संभावनाएं भी बन सकती हैं। ऐसे लोग शांत जीवन बिताना पंसद नहीं करते। वे लोग सदैव कुछ न कुछ करते रहते हैं। यदि इनके जीवन में एकरसता हो तो ये लोग बहुत जल्दी ऊब जाते हैं। इनके जीवन में सदैव किसी न किसी प्रकार की घटनाएं घटती रहती हैं।  यह अशुभ अंक है किन्तु प्रयासों से अशुभता शुभता में बदलती जा सकती है। उचित तैयारी करके खराब प्रदर्शन से बचा जा सकता है। खुशियां मानने के लिए दुखों और विफलताओं को स्वीकार करें, यह सिर्फ दिमाग की सम्पन्नता है जो कि आदमी को सम्पन्न और खुश बनाती है। इमर्सन के शब्दों में: परीक्षा में वही खरे उतरतें हैं, जिनमें आत्म विश्वास होता है।

अंक 66
यह शुभांक है। यह अंक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता का सूचक है। चाहे व्यापार हो अथवा नौकरी, कोई भी क्षेत्र क्यों न हो ? जिस व्यक्ति के नाम का संयुक्तांक 66 होगा, वह अपने अपने कार्य क्षेत्र में सफलता अवश्य  प्राप्त करता है।  ऐसा व्यक्ति जीवन में कुछ न कुछ करता रहता है। बेकार बैठना ऐसे व्यक्तियों को बिल्कुल पसन्द नहीं आता । अपनी उन्नति के लिए ऐसे जातक सतत प्रयत्नशील रहते है। ऐसे जातक जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, वे दरअसल हमें अपने शब्दों पर सोचने के लिए आमांत्रित करते है। शब्दों के कारण वे रक्षात्मक स्थिति पर पहुॅचते हैं और जीवन में सफलताओं हेतु नित नये चक्रव्यूह की रचना करते देखे जा सकते हैं। चाणक्य के शब्दों में ''प्रतिकूल को अनुकूल बनाना ही कूटनीति है।

अंक 67
यह अंक मधुरता का प्रतीक है। इस अंक वाले जातक बहुत व्यवहार कुशल होते हैं। ये लोग शान्त स्वभाव के और व्यवहार कुशल होते हैं। इस बात को सदा ध्यान रखते हैं कि इनके व्यवहार से दूसरों को कष्ट न पहुॅचे । ये लोग दोहरे व्यक्तित्व वाले नहीं होते । मन में कोई भी बात छिपा कर नहीं रखते । जो इनके दिल में होता है, उसे स्पष्ट कह देते हैं। इनकी सच्चाई और स्पष्टवादिता ही इनका प्रधान गुण होता है। इन्हीं गुणों के कारण ये उन्नति कर पाते हैं। ऐसे व्यक्ति प्राय: अच्छे लेखक, चित्रकार और कवि भी होते हैं। परन्तु इनके कार्यो में एक विशेष प्रकार का दार्शनिक दृष्टिकोण पाया जाता है। रामकृष्ण परमहंस के शब्दों में भलाई करने से बुराई मिलें तो भी भलाई न छोड़ो।
अंक 68
यह अंक घबड़ाहट और परेशानी का सूचक है। जिन व्यक्तियों के नाम का संयुक्तांक 68 होता है वे बहुत विचलित और परेशान रहते हैं। वास्तव में इनका मस्तिष्क किसी न किसी बात को लेकर हर समय चिन्ताग्रस्त रहता है, जिसके कारण ये परेशान तथा उत्साह से रहित होते हैं। अपने स्वार्थ के लिए यह किसी को भी धोखा दे सकते हैं।  मार्कण्डेय मुनि के शब्दों में ''ईश्वर ने केवल मनुष्य को ही विचार शक्ति दी है । वह इसका उपयोग न करें तो इसमें ईश्वर का क्या दोष ?
अंक 69
यह अंक उन्नतशीलता का प्रतीक है। ऐसा व्यक्ति अपने कार्यों द्वारा जीवन में बहुत उन्नति करते हुए यश लाभ प्राप्त करता है। ऐसे  व्यक्तियों का यश दूर दूर तक फैल जाता है और समाज में ऐसे जातक प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं।  समाज सेवा राष्ट्रहित से जुड़े व्यक्ति ही वास्तव में मानव जीवन के प्रेरणास्त्रोत हंै। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में संयम सुख का साधन है, संयमी सच्चा तपस्वी होता है।

अंक 70
यह अंक सौभाग्य का प्रतीक है। जो व्यक्ति इस अंक से संबंधित होते हैं वे जिस क्षेत्र में जाते हैं उसी में उन्नति करते हैं। इन्हें यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है।  इनमें यात्राओं तथा विदेशों से संबंधित बातों की जानकारी लेने की विशेष रूचि होती है। इस अंक वाले स्वभाव से दयालु, सहृदय, कल्पनाशील, कलापूर्ण रोमान्टिक स्वभाव के होते है। किन्तु 69 अंक के अनुपात में इस अंक वाले जातक को कम यश प्राप्त होता है। इनकी वृद्धावस्था बहुत सुख पूर्ण व्यतीत होती हे।

अंक 71
यह संयुक्तांक अशुभ माना जाता है। जो व्यक्ति इस संख्या से संबंधित होते हैं, उनके जीवन में कोई न कोई परेशानी लगी ही रहती है। हर समय ये लोग ऐसा महसूस करते है, जैसे इनके जीवन में कोई अनिष्ट होने वाला है। इसी कारण ये जीवन के किसी क्षेत्र में भी सफलता की उचाईयॉं छूने में असफल होते हैं। यही कारण है कि अशुभ चिन्तन ऐसे जातकों रोगी तथा भ्रमित बना देता हैं।

अंक 72
यह अंक परिश्रम का सूचक हैं। जो व्यक्ति संयुक्तांक 72 से संबंधित होता है, उन्हें कठिन परिश्रम के बाद सफलता का द्वार दिखाई देता है। जितना वे परिश्रम करते हैं उस अनुपात में इन्हें सफलता नहीं मिलती । वैसे इन लोगों में एक विशेषता होती है कितना भी ये लोग परिश्रम करें किन्तु चेहरे पर थकान या बैचैनी न होती इसके विपरीत ये लोग सदैव मुस्करातें रहते हैं तथा ताजगी से भरे रहते है वस्तुत: इनका जीवन दर्शन कर्म ही पूजा है।

अंक 73
यह अंक साधारण जीवन का सूचक है। इस अंक से संबंधित व्यक्ति आमतौर पर एकदम सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं। जीवन के प्रारम्भिक काल में , ये लोग अवश्य ऊॅचा  उठने का प्रयास करते हैं, लेकिन जीवन की असफलताएं इन्हें हतोत्साहित कर देती हैं और अन्त में यह लोग इस बात को स्वीकार कर लेते हैं कि इनके भाग्य में साधारण जीवन बिताना ही लिखा हुआ है। इसलिए अन्त में उत्साहहीन होकर बैठ जाते हैं ।

अंक 74
यह अंक श्रेष्ठता का प्रतीक है। इस संयुक्तांक से संबंधित व्यक्ति किसी भी साधारण वंश में जन्म लेकर अध्यव्यसाय एवं परिश्रम से ये लोग उन्नति के शिखर पर पहुंचते हैं और यश प्राप्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में भी घबड़ाते नहीं । लगातार परिश्रम, लगन, दृढ़ता और अपने अदम्य साहस से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं और यही इनका विशेष गुण हैं।

अंक 75
यह अंक पूर्णता भौतिकता का प्रतीक है। जिन लोगों के नाम का संयुक्तांक 75 होता है, वे जीवन में मौजमस्ती करना ही अपना प्रमुख उद्देश्य समझते हैं। दूसरे दिन की चिन्ता ऐसे लोग नहीं करते, जो वर्तमान होता है? उसी को लोग पूरी तरह जीते हैं और मस्त रहते हैं। धन का संग्रह करना इन्हें बिल्कुल नहीं आता। ऐसे जातकों में बुरी संगति के कारण बुरी लतें तथा सामाजिक बुराईयां भी घेर लेती हंै, इन्हें चार्वाक के सिद्धांतों के ये अनुयायी होते हैं - खाओ  पिओ, और मौज करो ।  इसीलिए इन लोगों की वृद्धावस्था बड़ी  दुखदायी होती है।

अंक 76
यह अंक पतन का का प्रतीक है। ऐसे जातक प्रत्येक कार्य तथा प्रत्येक संबंधों में स्वार्थ की भावना से प्रेरित रहते हैं। वह जीवन के पूर्वार्द्ध में भले ही सफलताओं के शिखरों को छू लें किन्तु पतनोन्मुखी होकर या तो बीमारी की अवस्था में बिस्तरों पर या जेल की कोठरी में अपमानित जीवन भोगते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो इनके भाग्य में सफलताओं की अपेक्षा विफलताओं के कुयोग ज्यादा प्रभावी होते हैं। ग्रहीय अनुकूलताएं सुख के वातायन में झांकने  तथा मधुरता का रसास्वादन कराने में ंसफल हो सकती हैं।

अंक 77
यह अंक स्वार्थ का प्रतीक है। ऐसे जातक अपने कार्य क्षेत्र में या सामाजिक परिदृश्य में स्वार्थ की भावना से प्रेरित होकर कार्यो को गति देते हैं । वह किसी से मित्र भाव भी स्थापित करते हैं, या पहचान बढ़ाते हैं तो उसमें उनकी सोची समझी स्वार्थ भावना जुड़ी होती है।  धीरे -धीरे लोग इनकी स्वार्थता को समझने लगते हैं और इनसे दूरी बनाने में अपनी खैरियत समझते हैं, और फिर ऐसा समय आता है जब इनका साथ देने वाला भी कोई नजर नहीं आता और यहीं से इनके जीवन में असफलता का दौर प्रारम्भ हो जाता है। हीन भावना से प्रभावित होकर ऐसे जातक उन्नति के मार्ग से भटक जाते हैं। ऐसे लोग स्वभाव से डरपोंक और अदूरदर्शी होते हैं।

अंक 78   
यह अंक शुभ माना जाता है । धन के मामले में यह अंक अत्याधिक लाभदायक समझा जाता है। जो व्यक्ति इस संयुक्तांक से संबंधित होते हैं, उनके जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं, जब इन्हें अनायास ही धन की प्राप्ति होती रहती है। जो कार्य ये करते हैं उसी में धन लाभ की प्राप्ति सहज होती है। कार्यशील व्यक्तियों के लिए यह अंक सौभाग्यशाली है। ऐसे जातक सफल व्यवसायी होते हैं। जिस व्यवसाय में दूसरे लोग असफल होते हैं, उसमें भी ऐसे जातक सफलता के कीर्तिमान स्थापित कर लेते हैं। प्रसन्नता का एक रहस्य यह भी है, और वह है उत्सुकता।

अंक 79
यह अंक परोपकार का सूचक है। जिन लोगों के नाम का संयुक्तांक 79 होता है वे अपना नुकसान करके भी दूसरों को लाभ पहुॅचाते हैं। दूसरों की सहायता करके दूसरों के हित साधन में ये लोग खुश होते हैं। इसलिए समाज में लोग इनका सम्मान करते हैं। ऐसे जातकों के जिम्मे जो काम सौंपा जाता है, उसे पूरी लगन निष्ठा एवं ईमानदारी से पूरा करते हैं। इनमें स्वाभिमान की मात्रा भी अत्याधिक होती है। महान दार्शनिक सुकरात का कथन '' सदैव याद रहें दायरे के बाहर सम्हल कर पैर रखना।
अंक 80
यह अंक पूर्ण सफलता का सूचक है। इस अंक से संबंधित व्यक्ति जीवन में बहुत उन्नति करते हैं और अत्यंत उच्च पद पर पहुचते हैं। ऐसे लोग न केवल धन के मामले में बल्कि धर्म के मामले में बहुत प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। यह अंक सत्ता के अधिकार को दर्शाने वाला तथा अधिकार , शक्ति और आज्ञा का संकेत देने वाला अंक है। इस अंक वाले जातक को क्रियात्मक बुद्धिमत्ता से फल की प्राप्ति होती है। यह अंक भावी योजनाओं के संबंध में सौभाग्यशाली माना गया है। व्यक्ति की भौतिक शक्तियों या सदगुणों के कारण उसे अच्छे फल प्राप्त होते हैं।  थामस आलवा: ''प्रकृति की तीक्ष्ण आंखें हर समय तुम्हारी निगरानी करती रहती है।