Thursday, 10 April 2014

ज्योतिष के आइने में मर्यादा पुरुषोत्तम राम



ब्रह्माण्ड नायक प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव पर विशेष

सृष्टि संचालक विराट महापुरुष की सूर्य व चन्द्रमा के समान ये दोनों आंखें, सम्पूर्ण मानव सभ्यता को प्रेरणा देती रहेंगी। मर्यादा पुरुषोत्तम राम युग-युगाब्द तक याद किए जाएंगे। भगवान श्रीराम राघवेन्द्र थे। इनका जन्म अयोध्या में हुआ। वे समस्त भारत भू-मंडल के चक्रवर्ती सम्राट कहलाते थे। सूर्यवंशीय श्रीराम चैत्र शुक्ल, नवमी, दिन को ठीक 12 बजे अभिजित मुहूर्त में अवतीर्ण हुए। भगवान श्रीराम की कुंडली में सूर्य, मंगल, गुरु, शनि उच्च राशिगत तथा चन्द्र स्वक्षेत्री थे। भगवान राम का जन्म चर लग्न में हुआ। उनकी जन्म पत्रिका के चारों केन्द्रों में उच्च के ग्रह पंच महापुरुष के योग का निर्माण कर रहे है। वृृहस्पति से हंस योग, शनि से षष योग, मंगल से रूचक योग का निर्माण हो रहा है। लग्नस्थ कर्क राशि गत गुरु और चंद्र गजकेसरी योग। कर्क लग्न में सप्तमस्थ उच्च राशिगत मंगल पंचमेश और राज्येश बन कर प्रबल राजयोग बना रहा है। सूर्य उच्च राशिगत होकर राज्य भाव (कर्म भाव) में होने से भगवान राम चक्रवर्ती बने। उन्होंने युगों तक राज्य किया। भगवान श्रीरामचन्द्र जी की जन्म कुंडली पर अपनी अल्प बुद्धि से ज्योतिषीय विवेचना का प्रयास किया। विद्वतजनों से आग्रह है त्रुटियों को क्षमा करें। भगवान श्रीराम के जन्मदिन पर प्रस्तुत हैं बड़े विनम्र भक्तभाव से यह ज्योतिषीय कलेवर, कौतुकता से इसे निहारें। भगवान श्रीराम दीर्घकाल तक सभी जातकों की रक्षा करें।

भगवान श्रीराम की जन्म कुंडली
भगवान श्रीराम की कुंडली के दसम भवन में सूर्य उच्च राशि में विराजमान हैं। सूर्यदेव 12 कलाओं में मर्यादित हैं, फलत: श्रीराम का चरित्र मर्यादित है। इसलिये उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा गया है। वे सत्य वक्ता थे। उनके मुख से जो वचन निकल गया वह सत्य होता था, पूर्ण होता था, अमोघ होता था। महाकवि तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाहि पर वचन नहीं जाही। सूर्य, दसम भवन में राज्य, कीर्ति का कारक ग्रह भी हैं, अस्तु प्रभु राम चाहें वे अयोध्या में रहे हों या अपने विद्याकाल में गुरु वसिष्ठ के गुरुकुल में अथवा वन में या चक्रवर्ती सम्राट के रूप में अयोध्या में रहे हों। उनकी यश, कीर्ति, न्याय व्यवस्था मानव सभ्यता में सदैव स्तुत्यनीय तथा अनंतकाल तक कीर्ति पताका दिग्दिगंत तक फहराती रहेगी। दशरथ पुत्र राम की जन्म कुंडली में चन्द्र देव स्वक्षेत्री कर्क लग्न में उच्च राशिगत देव गुरु वृहस्पति के साथ विराजमान होकर कह रहे हैं कि यह जातक तन, मन से विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न होकर सुदर्शनीय तो होगा ही, साथ ही शील तत्व, स्वभाव कार्यकुशलता की दृष्टि से एक ऐेसे विराट व्यक्तित्व का धनी होगा, जिसे विश्व मानव समाज श्रद्धामयी दृष्टि से अपलक निहारता हुआ राममय हो जाएगा।

द्वितीय भवन
भरताग्रज राम की कुंडली के द्वितीय भवन का स्वामी नवग्रहों का राजा सूर्य विराजमान है, सूर्य कुलभूषण श्रीराम इक्ष्वाकु वंश की महानता को कलकल करती गंगा की तरह सदैव यशस्वी बनाये रखेंगे। द्वितीय भवन ज्योतिषीय ग्रंथों में द्वितीय भवन से जातक के नाक, कान, नेत्र, मुख, दंत, कंठ स्वर, सौन्दर्य, प्रेम आदि से जातक के व्यक्तित्व को देखा जाता है। भगवान श्रीराम सौन्दर्य की अद्भुत प्रतिमा तथा प्रेम के अर्थ को समझने के लिए तीनों माताओं के प्रति श्रद्धा, भाइयों के प्रति अगाध स्नेह, सुमंत से लेकर समस्त अयोध्यावासियों के प्रति कर्तव्यपरायणता, सुग्रीव, विभीषण आदि अनगिनत मित्रों के प्रति चिरस्मरणीय स्नेहमूर्ति तथा भार्या जनकनंदिनी सीता के प्रति अलौकिक प्रीति ने ही उन्हें लंकापति रावण से युद्ध की अनिवार्यता स्वीकारी थी।
तृतीय भवन - पवन पुत्र हनुमानजी के इष्ट प्रभु श्रीराम की कुंडली के तृतीय भवन में कन्या राशिगत स्वक्षेत्री राहु विराजमान हैं। तृतीय भवन बन्धु, पराक्रम, शौर्य, योगाभ्यास, साहस आदि का मीमांसा का गृह है। भगवान श्रीराम का शौर्य, पराक्रम तो राम-रावण के भीषण युद्ध में परिलक्षित होकर सदैव अविस्मरणीय रहेगा। भ्रात प्रेम में तो प्रभु श्रीराम का भरत प्रेम, जो समस्त प्रेमों की ज्ञानगंगा है।

चतुर्थ भवन

कौशल्यानंदन श्रीराम की जन्म कुंडली के चतुर्थ भवन में तुला राशि में उच्च राशिगत शनिदेव विराजमान हैं। ज्योतिष ग्रंथों में चतुर्थ भवन से व्यक्ति के अन्त:करण, सुख, शान्ति, भूमि, भवन बाग-बगीचा, निधि, दया, औदार्य, परोपकार, मातृ सुख आदि का निरूपण जातक की जीवन शैली में देखा जा सकता है। प्रभु श्रीराम की कुंडली का चतुर्थेश शुक्र, भाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजमान हैं। उच्च राशिगत शनि प्रभु श्रीराम से मर्यादित जीवन के प्रति आग्रहशील हैं। भूमि, भवन का सुख तो चक्रवर्ती राजा के लिए सहज सुलभ हैं। अन्त:करण की दृष्टि से सर्वत्र प्रेम का अनुग्रह तथा दया और औदार्यता महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या को श्रापमुक्त कर पाषाण से नारी रूप प्रदान करना तथा शबरी के जूठे बेर खाना औदार्यता का सुखद पक्ष है। मातात्रय कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा के प्रति मातृ भक्ति सदैव स्तुत्यणीय एवं प्रेरणास्पद रहेगी।

पंचम भवन
लवकुश के पिता प्रभु श्रीराम की जन्म कुंडली में पंचम भवन में वृश्चिक राशि है। वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल सप्तम भवन में उच्च राशि में (मकर में)  विराजमान हैं। पंचम भवन से जातक की संतान, स्थावर जंगम, हाथ का यश, बुद्धि चातुर्य, विवेकशीलता, सौजन्य तथा परीक्षा में यश प्राप्ति से जुड़ी है। लवकुश के रूप में महान प्रतापी पुत्र तथा स्थावर संपत्ति के रूप अयोध्या का चक्रवर्ती साम्राज्य एवं अपनी बुद्धि-विवेक के बल सीता की खोज में सुग्रीव से मित्रता, लंंका विजय में लंकापति रावण के अनुज विभीषण का युद्ध के पूर्व लंकापति बनाने के लिए राजतिलक करना तथा मर्यादा में रहते हुए खर दूषण, कुम्भकरण, लंकापति रावण से लेकर अनेक आतातायी असुरों का वध कर रामराज्य की स्थापना करना बुद्धिचातुर्य की रहस्यमयी परिणिति के सिवा और क्या है?
असुर विजेता राम
षष्टम् भवन - श्रीराम की जन्म कुंडली षष्टम् भवन धनु राशि अवस्थित है। षष्टम् भवन रोग, शत्रुओं से जातक की कथा व्यथा का सांकेतिक है। इस भाव से शत्रु कष्ट के अभाव से जुड़े प्रश्नों की रहस्यमयता को उजागर करते हैं।
श्रीराम की कुंडली का षष्ठेष धनु राशि के स्वामी देव गुरु वृहस्पति लग्न भवन में कर्क राशिगत चन्द्रमा के साथ अपनी उच्च राशि (कर्क) में विराजमान होकर गजकेसरी योग बना रहे हैं। जिसका सामान्य भाषा में अर्थ है : वनराज सिंह हाथियों को अपनी एक हुंकार (गर्जना) में भगा देता है। गज याने हाथी, केशरी याने सिंह। गुरु विश्वामित्र से शस्त्र शिक्षा में अनेक रहस्यमयी विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया। जिसका सर्वप्रथम प्रयोग ताड़का और सुबाहु के वध के रूप में घटित हुआ। श्री रामचंद्र जी ने जहां जहां अपने पग रखे, वहां उन्हें यश मिला। शत्रु विजय सीता स्वयंवर से लेकर खरदूषण तथा वानरराज बालि तथा दशानन रावण तक अनेक शक्तिशाली अपराजेय योद्धाओं का वध किया।

तुलसी की रामचरित मानस में
खरदूषण मो सम बलबन्ता। मार सकें न बिनु भगवन्ता।
रावण संहिता में दशानन रावण ने धनु राशिगत षष्टम् भवन की व्याख्या करते हुए लिखा है ऐसा जातक शत्रुओं का घमंड चूर करने वाला तथा अपने बड़ों को मान देने वाला होता है। त्रेतायुगीन राम ने धरती पर आसुरी शक्तियों का तो नाश किया, साथ ही अपने गुरुओं, ऋ षियों-मुनियों को यथेष्ठ सम्मान देकर उनका मान भी बढ़ाया है।

सीता पति रघुनन्दन श्रीराम सप्तम भवन
रघुनन्दन श्रीराम की जन्म कुंडली के सप्तम भवन में मकर राशि में उच्च राशिगत भूमि पुत्र मंगल विराजमान हैं। सप्तमस्य मंगल होने सेे श्रीरामजी की कुण्डली मंगली बन गई। मंगल पंचमेश और राज्येश है। गजकेशरी योग की सप्तम दृष्टि दाम्पत्य जीवन को भी प्रभावित कर रही है। जनकनंदिनी सीताजी सेे उनका विवाह धनुषभंजन के बाद विवाह हुआ, किन्तु भूमि पुत्र मंगल उच्चासीन होकर कह रहे हंै। जातक को दाम्पत्य जीवन का सुख तो दूंगा, किन्तु अल्पकालीन।

सप्तम भवन
पारिवारिक झगड़े तथा भूत, भविष्य, वर्तमान की स्थिति का सिंहावलोकन भी किया जाता है। मंथरा की षडयंत्रमयी योजना ने कैकेयी की मति भ्रष्ट की। परिणितीवश श्रीराम को वनगमन, सीताहरण, आसुरी शक्तियों का विनाश, लंका विजय के पश्चात् अध्योध्या में राजतिलक, वैदेही सीता का त्याग, ऋ षि वाल्मीकि के आश्रम में श्रीसीताराम के पुत्रों लवकुश का जन्म, जनकनंदिनी सीता का भूमि में प्रवेश। ये सारे कथानक सप्तमस्थ उच्च राशिगत मंगल की चेष्टाओं का फल है।

रघुनंदन का आयु भवन 
अष्टम भवन : श्रीराम जी की कुंडली में अष्टम भवन में कुम्भ राशि का स्वामी शनि चतुर्थ भवन में अपनी उच्चराशि तुला में विराजमान है। अष्टमेश शनि जातक की दीर्घायु का परिचायक है। किन्तु सप्तमेश और अष्टमेश शनि बलवान स्थिति में होकर जातक को दीर्घायु तो देता है, वहीं दूसरी ओर दाम्पत्य जीवन में अशुभता भी लाता है। साथ ही मृत्यु स्थान भी यह निर्धारित करता है। अष्टमेश शनि चतुर्थ भवन में होने से पारिवारिक विवाद के कारण वनगमन से सुख की हानि हुई। किन्तु वहां असुरों का विनाश कर यश मिला। रण रिपु अर्थात युद्ध क्षेत्रों में शत्रुओं का वमन भी किया। पृथ्वी से प्रस्थान के बाद चिरकाल तक यशोगाथा अनेक प्रतीकों में बनी रहेगी। यह भी उनके अष्टमेश उच्च राशिगत न्याय के देवता शनि की महिमा का फल है।

भाग्य भवनस्थ शुक्र
श्री राघव की कुंडली का भाग्य भवन कम चमत्कारी नहीं है। भाग्य भवन का स्वामी नवमेश गुरु अपनी उच्च राशि कर्क में चन्द्रदेव की युति के साथ लगनस्थ है। भाग्येश गजकेशरी योग बन रहा है, लग्न भवन में। भाग्य भवन में उच्च राशिगत शुक्र चतुर्थेश तथा द्वादशेष का स्वामी है। माता से लेकर भूमि, भवन, वाहन (रथ) आदि सभी सुखों से पूरित रहे, किन्तु अपनी सप्तम् दृष्टि से पराक्रम भवन को निहारते शुक्र ने पराक्रम के प्रदर्शन का माध्यम नारी जाति को बनाया। शुक्र स्त्री ग्रह है। महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या की मुक्ति, रावण से युद्ध में विजयश्री प्राप्त कर अशोक वाटिका से जनक नंदिनी सीता जी की मुक्ति, बालि वध से सुग्रीव की पत्नी रोमा की मुक्ति, श्रीराम की यशोगाथा का एक पक्ष है। वहीं दूसरी ओर आसुरी शक्तियों का नाश कर ऋ षियों तथा जन-जन को निर्भय जीवन दिया, यह प्रभु श्रीराम के भाग्य भवन का पुण्य प्रताप ही तो था।

दसमस्थ सूर्य बुध
रघुनंदन श्रीराम की कुंडली के दसम भाव अर्थात राज्य भवन में सूर्य के साथ बुध की युति बुध आदित्य योग तो बना रहा है, किन्तु बुध व्ययेश होने से राजतिलक होते होते 14 वर्षीय वनवास का योग बन गया। व्ययेश बुध ने राजयोग खंडित किया, क्योंकि व्ययेश जिस भवन में विराजमान होता, उसे किंचित सम्मान की हानि तो देता ही है। बुध ने ही उन्हें पिता के सुख से वंचित किया। किन्तु सूर्य उच्च राशिगत होकर राजभवन में विराजने से गौरव, ऐश्वर्य एवं नेतृत्व का स्वामी बनाया।  पिता की आज्ञा से वन गये। पिता का मान बढ़ाया। आसुरी शक्तियों के विनाश हेतु वानर जाति की सेना का नेतृत्व कर विजयश्री प्राप्त की। अधिकार प्राप्ति के रूप में सम्राट बने अयोध्या के। ईश्वर प्राप्ति भी दसम भवन से देखी जाती है, तो जो स्वयं त्रिभुवनपति हो उसे अपनी भक्ति में लगाकर मोक्ष प्रदान कराने में बुध का योगदान महत्वपूर्ण है। क्योंकि द्वादश भवन मोक्ष का भवन भी है। अपनी भक्ति से अनेक साधु, संतों, भक्तों तथा पापियों को भी मोक्षगामी बनाने में पथ-पथ पर प्रेरणा दी। प्रभुता भी दसम भवन का एक गुण है। तो श्रीराम प्रभुता पाकर भी दीनों के प्रति भी सहृदय बने रहे, यही उनकी अनुग्रहमयी प्रभुता है। किन्तु स्मरणीय रहे। चतुर्थ भवन उच्चराशिगत शनि की सप्तम दृष्टि नीच राशि पर होने के कारण ही उन्हें वनवास में 14 वर्षीय वनवासी जीवन बिताना पड़ा। भले ही प्रकृति की रहस्यमयता आसुरी शक्तियों के विनाश के रूप मेें रूपांतरित हो गई हो। किन्तु मंगल की चतुर्थ स्वक्षेत्री दृष्टि और सूर्य के उच्च राशिगत प्रभाव से वनवास की समाप्ति के पश्चात् पुन: राज्यारोहण ग्रहों की अपनी रहस्यमयी कलात्मक शक्तियों की ओजस्वीयता है।

एकादश : लाभस्थ भवन
एकादश भवन मूलत: लाभ, सम्पन्नता, वाहन, वैभव, स्वतंत्र चिन्तन के रूप में ज्योतिषीय ग्रंथों में स्वीकारा गया है। जन-जन के प्रभु राम स्वतंत्र चिन्तन के रूप में नैसर्गिक अर्थात प्राकृतिक सम्पदाओं से मुक्ति का बोध कराते हैं। भक्तवत्सल श्रीराम का मानव से लेकर समस्त जीवों के प्रति उदार भाव तो था ही, किन्तु एकादशेष शुक्रभाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजने से सभी के प्रति करुणा भाव बनाए रखने के प्रति संकल्पित रहे। अवतारी होने के बाद भी अपनी मानवीय मर्यादा में बने रहे। एक पत्नी व्रतधारी होने से उन्होंने सम्पूर्ण नारी समाज को गरिमा प्रदान की। मित्रों को सहोदर की तरह मान दिया। शत्रुओं के प्रति भी मानवीय मूल्यों का क्षरण उन्होंने नहीं स्वीकारा। वचन बद्धता राघव की निष्ठा का अमोघ शस्त्र रही।

मोक्ष का पर्याय द्वादश भवन
सीता पति राघव की कुंडली के बारहवें भवन में मिथुन राशि की स्थापना ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कथनी करनी में कहीं भी अवरोध पैदा नहीं होने दिया। द्वादश भवन से ज्ञान तन्तु, स्वभाव, शान्ति, विवेक, व्यसन, संन्यास, शत्रु की रोक तथा धन, सुख, सम्मान का व्यय आदि का लेखाजोखा देखा जाता है। द्वादश भवन में मिथुन राशि होने सीता पति राघव भावुक थे। वैदेही हरण एवं लक्ष्मण को शक्तिलगने पर वे कैसे व्यथित हुए, यह तुलसीकृत रामायण में रोमांचकारी शब्द शैली में अंकित है। वनवास में राज सत्ता से 14 वर्षों तक दूर रहे, किन्तु पिता की आज्ञा को सर्वोपरि माना। सीता हरण में सुख और सम्मान का व्यय हुआ, किन्तु अपने विवेक से वानर सेना का नेतृत्व कर शत्रुओं पर रोक ही नहीं लगाई, अपितु उनका नाश भी किया। वनवासी राम ने एक संन्यासी के रूप में 14 वर्ष वनों में बिताए। किसी भी नगर में 14 वर्षों की अवधि में उन्होंने प्रवेश नहीं किया, ऐसे थे संन्यासी राम।

ब्रह्माण्ड नायक राम
राम, ब्रह्मवादियों का ब्रह्म, ईश्वरवादियों का ईश्वर, अवतारवादियों का अवतार, आत्मवादियों व जीववादियों का आत्म एवं जीव है। रामायण महाकाव्य बना। उतरोत्तर राम नाम के साथ साहित्य में भक्तिभाव का वातावरण बनता गया। ईसा के पांच सौ वर्ष के बाद इसका ज्यादा विस्तार हुआ तथा ईसा के एक हजार वर्ष बाद दाशरथि राम परमात्मा के रूप में गूंज गये। हमारी भारतीय सभ्यता के उषाकाल में साहित्य चार वेदों में था, जिनमें ऋ ग्वेद प्रथम था। वैदिक साहित्य में खेती की अधिष्ठात्री देवी का नाम सीता था, क्योंकि मूल में सीता लांगल पद्धति (खेत की हराई) थी। इसीलिए मिथिला में जनक के हल चलाते समय खेत में, जो नवजात बच्ची पाई गई, उसका नाम सीता रखा गया। ऋ ग्वेद में इक्ष्वाकु दशरथ और राम के नाम आए हैं। ऐतिहासिक ढंग से अध्ययन करने वाले प्राय: समस्त विद्वान एक स्वर में कहते हैं कि महाभारत तथा प्रचलित वाल्मीकि रामायण के पूर्व राम कथा संबंधी आख्यान प्रचलित थे। ये आख्यान निश्चित रूप से बुद्धकाल के आसपास के रहे होंगे। इसी आधार पर भारत (महाभारत का प्रथम रूप) तथा बौद्ध जातक कथाओं में राम कथा के अंश आये हंै। वाल्मीकि रामायण में महाभारत के पात्रों तथा कथानकों की चर्चा नहीं है, परन्तु महाभारत के प्राचीन अंशों में रामकथा के पात्रों की चर्चा है। महाभारत के शान्ति पर्व के 29 वे अध्याय के 12 वें श्लोक में नारद संजय को उपदेश देते हुए कहते हैं कि संसार में कौन नित्य रहने वाला है। सुना गया है कि दशरथ पुत्र राम बड़े प्रजापालक थे, किन्तु उन्हें भी इस संसार से जाना पड़ा। महाभारत में भी राम का अवतार रूप पहुुंच गया था। बौद्ध साहित्य में अनामक जातकम् के नाम से अन्य कथा भी है, जिसमें राम कथा है, इस जातक में राम-सीता का वनवास, सीताहरण, जटायु वृतान्त, बाली और सुग्रीव का युद्ध, सेतु बन्ध, सीता की अग्नि परीक्षा, इन सभी के संकेत मिलते हैं।

वाल्मीकि रामायण और अवतारवाद
रामकथा के स्फुट रूप देशी भाषा में बुद्धकाल के थोड़े पूर्व से ही उत्तरी भारत में प्रचलित थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व वाल्मीकि ऋ षि ने रामकथा के स्फुट रूप एवं लोकगीत को एक काव्य रूप में गुंफित किया। भगवतगीता के लेखक श्रीकृष्ण के मुख से कहलाते हैं : मैं शस्त्रधारियों में राम हूं। श्राम: षस्त्रभृतामहम् (गीता 10:31) तक राम की प्रसिद्धि केवल शस्त्रधारी योद्धा के रूप में थी। किन्तु श्रीकृष्ण को अवतार के रूप में मान्यता पहले मिल चुकी, बाद में श्रीराम को। अवतारवाद के विकास में छठी या सातवीं शताब्दी में महात्मा बुद्ध भी विष्णु के अवतार माने जाने लगे।

पुराण साहित्य
हरिवंश पुराण, मार्केडेय पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, मत्स्य पुराण, भागवत पुराण, कूर्मपुराण आदि सभी पुराणों में भगवान राम को विष्णु का अवतार मानने की बात दोहराई गई है। इसके आगे वाराह पुराण (800 ई.) अग्नि पुराण तथा स्कंद पुराण (900 ई.), लिंग पुराण, गरूण पुराण (1000 ई.) वामन पुराण और भविष्य पुराण अधिक अर्वाचीन हैं। इन सब पुराणों में रामावतार तथा राम भक्ति का प्राबल्य होता गया।


रामायण साहित्य
योग वासिष्ठ महारामायण (11 वीं सदी), अध्यात्म रामायण (1500 ई.), अद्भुत रामायण (1600 ई.), आनंद रामायण (1600 ई.), तत्व संग्रह रामायण (1700 ई.), कालनिर्णय रामायण तथा अन्य रामायण जिसमें अपने अपने ढंग से राम चरित्र वर्णन है। अन्य बीस रामायणों की सूची :-
1. महारामायण (35000 श्लोक),
2. संवृत रामायण (2400 श्लोक),
3. अगस्त्य रामायण (16000 श्लोक),
4. ओम रामायण (32000 श्लोक)
5. राम रहस्य रामायण (22000 श्लोक)
6. मंजुल रामायण (120000 श्लोक)
7. सौ पद्म रामायण (62000 श्लोक)
8. रामायण महामाला (56000 श्लोक)
9. सौहार्द्र रामायण (40000 श्लोक)
10. रामायण मणिरत्न (3600 श्लोक)
11. शौर्य रामायण (62000 श्लोक)
12. चांन्द्र रामायण (75000 श्लोक)
13. भैंद रामायण (52000 श्लोक)
14. स्वायंभुव रामायण (18000 श्लोक)
15. सुब्रह रामायण (32000 श्लोक)
16. सुवर्चस रामायण (15000 श्लोक)
17. देव रामायण (100000 श्लोक)
18. श्रमण रामायण (125000 श्लोक)
19. दुरन्त रामायण (61000 श्लोक)
20. रामायण चंपू (15000 श्लोक)

महाकाव्य रामायण
वाल्मीकि रामायण का कवि जगत में बहुत प्रभाव पड़ा और राम कथा लिखने की एक बाढ़ सी आ गई। ईसा की चौथी शताब्दी से संस्कृत ललित (श्रृंगार प्रधान) साहित्य में महाकाव्य, नाटक, खण्ड काव्य आदि लिखे जाने लगे।

विदेशी भाषाओं में राम कथा
1. तिब्बती रामायण (800 ई.)
2. खेतानी रामायण (900 ई.)
3. रामायण कविन (हिंदेनेशिया 1000 ई.)
4. हिकायत सेरीराम
5. राम केलिंग
6. पतानी राम कथा
7. सेरत कांड
8. रामकेर्ति
9. रामकियेन
10. राम गायन (1800 ई.)

पाश्चात्य भाषा में राम कथा
1.लिब्रो डा सैंटा : लेखक: जे. फेनिचियों (1609 ई.)
2.दि ओपन दोरे : लेखक ए. रोजेरियुस (1700 ई.)
3.आफ गोडेरैयउर इण्डिषेहाइडेनन : लेखक पी. बलडेयुस (1700 ई.)
4.असिया : लेखक ओ. डेप्पर (1700 ई.)
5.असिया पोर्तुगेसा : लेखक डे फरिया (1700 ई.)
6.रलसियों डे एरयर (1700 ई.)
7.ला जानिटिलिटे डु वेंगाल (1700 ई.)
8.पुर्तगाली वृतांत, क (1700 ई.)
9.पुर्तगाली वृतांत, ख (1800 ई.)
10.पुर्तगाली वृतांत, ग (1800 ई.)
11.ट्रावल्स इन इंडिया : लेखक जे. पी. टापर्निये (1700 ई.)
12.वोयाज ओस एन्ड आरियन्टाल : लेखक एम सोनेरा (1800 ई.)
13.मिथोलॉजी डेस इण्डू : लेखक डे. पोलियो (1800 ई.)
14. हिन्दू मेनर्स, कस्टम एन्ड सेरेमोनिस : लेखक जे. ए. दुब्वा (1900 ई.)
15. इलवियाजियो अल इन्डिये आरियेन्टालि : लेखक पी. एफ. विनजेनजा मरिया (1700 ई.)
16. स्टोरिया डी मोगोर : लेखक एन. मनुच्ची (1700 ई.)
17.हिस्तोरिया दो मालावार : लेखक दिओगो गोंसाल्वेस (1700 ई.)

Z1पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
मोबाइल : 09407266609,
फोन : 07582-223168, 



1 comment:

  1. महाभारत में ज्योतिष तथा रामायण में ज्योतिष पर आपका कोई लेख हो तो बताइएगा

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