Thursday, 24 November 2011

परिवर्तनों की गाथा लिखेगा शनि का तुला राशि में प्रवेश




शनि का उच्च राशि तुला में प्रवेश की तिथियों पर विवाद है। मतान्तर में गणितज्ञ 2.6.14 नवंबर 2011 मान रहे हैं। इन परिस्थिति में 2 से 14 नवंबर 2011 के मध्य जन्में जातकों की कुंडलियों में शनि की गणना में निश्चित रूप से अन्तर-विरोध खड़े होंगे। यह एक गहन शोध का विषय है, किन्तु सामान्यत: ज्योतिर्विद शनि का तुला राशि में प्रवेश 13 नवंबर 2011 को रात्रि 10 बजकर 22 मिनट पर मान रहे हैं। यक्ष प्रश्न निरुत्तर खड़ा है? तुला राशि में 2 वर्ष 6 माह के लगभग का भ्रमण काल क्या राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक तथा आर्थिक जगत में किसी बड़े उलट फेर का संकेत तो नहीं दे रहा? किन-किन राशियों में शुभ-अशुभ, उत्थान-पतन की इवारत लिखेंगे-शनिदेव।
विचलित मत होइए, ज्योतिषीय दर्पण में शनिदेव क्या संकेत दे रहे हैं? उन्हीं की काल गणना में रंक से राजा और राजा से रंक बनते नजर आएंगे- अनेक जातक। पूंजीपतियों से लेकर राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक तथा सामाजिक क्षेत्रों के चमकदार चेहरों को शनिदेव कब खलनायकों की पंक्ति में खड़ा कर दें, आज इसका अनुमान लगाना कुंडलियों की कालगणना से ही संभव हो सकेगा।
क्या तुला राशि के भ्रमणकाल में बिलखती मानवता, दीनों, दलितों, शिक्षित बेरोजगारों के जीवन में शनिदेव अपनी आशीषों की इन्द्रधनुषी छटा बिखेरेंगे। दस्तक दे रहे हैं- परिवर्तनों की गाथा के सृजक।
आकाशस्थ ग्रहों में शनि सबसे सुन्दर ग्रह माना जाता है। इसके चारों ओर तीन वलय-कंकण जैसे चक्र निरंतर घूमते रहते हैं। जिसके कारण अन्य ग्रहों की तुलना में इसकी शोभा अधिक बढ़ जाती है। अन्य किसी ग्रह में ऐसे वलय नहीं हैं।
सात ग्रहों में शनि सुमेरू है। राहु-केतु छाया ग्रह हैं। ऑग्ल भाषा में इसे स्ड्डह्लह्वह्म्ठ्ठ कहते हैं। अरबी में जौहल, फारसी में केदवान व संस्कृत में असित सूर्य पुत्र कहते हैं। मकर-कुंभ स्वयं शनि की राशियां हैं। शनि की 3,7,10 वीं दृष्टियां हैं। दैत्य पुत्र शुक्र तथा बुध मित्र हैं, वहीं गुरु प्रबल शत्रु तथा सूर्य, चंद्र, मंगल के साथ भी शत्रुवत व्यवहार करता है। वृष, मिथुन मित्र राशियां, कर्क, सिंह, वृश्चिक शत्रु राशियां हैं। लोहा, सीसा, शनि की विशेष धातुएं हैं।
जन्म कुंडली में शनि की स्थितिनुसार-आयु, मृत्यु, चौरकर्म, द्रव्य हानि, कारावास, मुकद्दमा, पांसी, शत्रुता, राज्यभय, त्यागपत्र, बाहु पीड़ा, तस्करी, दुष्कर्म, अंधेरे के कार्यादि का ज्ञान शनि द्वारा किया जाता है।
वृष-तुला में योग कारक हैं-शनिदेव। अश्विनी, मघा, मूल, विशाखा, पुनर्वसु पर उत्तम फल। पुष्य, अनुराधा, मृगशिरा, धनिष्ठा व भरणी नक्षत्र पर अशुभ फल ही प्रदान करते हैं-शनिदेव। शनिदेव भगवान शिव के उपासक हैं।
शनि को ज्योतिष में विच्छेदात्मक ग्रह माना गया है। एक ओर शनि मृत्यु प्रदान ग्रह माना गया है, वहीं दूसरी ओर शुभ होने पर जीवन में श्रेष्ठता देता है। राज्य, वैभव, शान, शौकत, ख्याति शनिदेव की कृपा से मिलती है। शनि देव तत्काल फल देते हैं।
मनुष्य के मन का भेद लेने में शनि प्रधान व्यक्ति दक्ष होता है। सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक क्रांति में शनि का चमत्कारिक योगदान रहता है। शनि प्रधान व्यक्ति किसी से शत्रुता हो जाने पर जब तक शत्रु को जड़ मूल से नष्ट (नाश) न कर दे तब तक शान्ति से नहीं बैठते और किसी से मित्रता रखते हैं, तो अपने अस्तित्व को दांव पर लगाकर मित्र का सुरक्षा कवच बन जाते हैं।
भारतीय राजनैतिक आकाश में चाणक्य का शनि प्रधान व्यक्तित्व इतिहास के सुनहले पृष्ठों में सदियों से अंकित है।


मेष
अश्विनी, भरणी, कृतिका के 9 चरणों के योग से बनी यह राशि देव, मनुष्य और राक्षस गणों की प्रकृति को समाहित कर अपने व्यक्तित्व में सात्विक, राजसी तथा तामसी स्वभाव के गुणों से परिपूर्ण रहती है। शनि की सप्तम दृष्टि इस राशि के जातकों, विशेषकर महिला वर्ग को आने वाले 30 माहों के अन्तराल में ग्रहीय अनुकूलताओं में पुरुस्कृत कर चुनावी विजय, कार्यों में
सफलता, पदोन्नति, सेवा क्षेत्र में सुअवसर तथा विवाह योग्य जातकों को दाम्पत्य जीवन की मधुरता का रसास्वादन कराती नजर आएगी। किन्तु? सावधान, ग्रहीय प्रतिकूलता में आपका स्वास्थ्य, खासकर रक्तचाप, उदर विकार, जोड़ों का दर्द तथा षडयंत्रकारी व्यूह रचना में आपको संकटों का सामना करना पड़ सकता है। संकटों से मुक्ति हेतु इष्ट की साधना तथा भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करने से अनिष्टों का शमन सहज होगा।

वृष
कृतिका, रोहणी एवं मृगशिरा के 9 चरणों के योगदान से बनी यह राशि एवं मनुष्यगण क्रमश: तामसी और राजसी गुणों का जातक के व्यक्तित्व पर असर डालती है। शनिदेव का आभा मंडल दैत्य गुरु शुक्राचार्य से सामान्जस्य बनाकर आश्वस्त कर रहा है। वृष राशि के जातकों को कि आपने बहुत पीड़ा भोगी है बीते 30 माहों में। मैं आपकी पीड़ा का हरण कर आपको पुन: स्वस्थ, तेजोमय, शैक्षणिक सफलताएं, आर्थिक संकटों से मुक्ति तथा सेवा क्षेत्र से प्रभावित जातकों को सुयोग प्रदान कर, परिवार में मांगलिक कार्यों के आयोजन के अवसर प्रदान कराऊंगा। शक्ति सम्पन्न बनाने में सहयोग दूंगा।कुंडली में ग्रहीय प्रतिकूलताएं पीड़ा तो अवश्य देगी आपको। कर्म के उपहार के रूप में, मैं आपकी सामथ्र्यता को पुनर्जागृत करूंगा। राजनैतिक परिदृश्य से ओझल हो चुके जातकों की, सत्ता क्षेत्र में पुन: पदचाप सुनाई देगी। चुनावी जंग आपको चुस्त दुरुस्त रखेगी। स्वास्थ्य के प्रति आप असावधान रहे तो नेत्र पीड़ा, कमर के नीचे के दर्दों का अहसास तो आप करेंगे ही, साथ ही धन हानि भी संभव है। आपदाओं, विपदाओं से रक्षा हेतु भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करें तथा इष्ट की साधना आपके मनोबल को सुदृढ़ बनाएगी।

मिथुन
मृगशिरा, आद्र्रा और पुनर्वसु के 9 चरणों के सहयोग से बनी मिथुन राशि देव तथा मनुष्य गण के गुणों से आच्छादित है। शनि के अढैया के कुप्रभाव से जिन जातकों ने पीड़ा भोगी उन्हें उच्चराशि के शनि से लंबित कार्यों में सफलता से सुखद अनुभूतियों का अहसास होगा। विवाह योग्य जातकों के वैवाहिक योग बनेंगे, सुखद दाम्पत्य जीवन के। रोगों से मुक्ति, आय के साधनों में वृद्धि अर्थात् नौकरी अथवा व्यवसाय में शनि की नवम-पंचम दृष्टि सौभाग्य की सूचक बनेगी।
मिथुन राशि के जातको, आप में से अनेकों ने कुंडली में आए ग्रहीय सुयोगों से बीते 30 माहों में आपने अपने पद और कद से अधिक शक्तिशाली दिखे होंगे। किन्तु अब आप सावधान हो जाइए- यदि, ंिशोत्तरी/योगिनी महादशाओं की प्रतिकूलता रही, तो संकटों के ऐसे जलजले आएंगे, जो आपके व्यक्तित्व को कहीं तिरोहित न कर दें? कर्म की साधना तथा भाग्येश का रत्न धारण करने से कष्टों से शमन संभव है।

कर्क
कर्क राशि पुनर्वसु, पुष्य और अश्लेषा के 9 चरणों के सुयोग तथा देव एवं राक्षसगण की प्रकृति से प्रभावित होती है। इस राशि के जातक की कर्क जलचर राशि है। शनि की दशम दृष्टि कर्क राशि पर आ जाने से शनि का अढैया अपना मिश्रित फल देगा। जलोदर बीमारियों से इस राशि को सावधान रहना चाहिए, उदर विकार तथा मधुमेह अथवा गैसीय बीमारियां भी जातक को पीड़ा दे सकती है। जातक आवश्यकतानुसार चिकित्सीय मार्गदर्शन लेते रहें। वाहनादि से सावधानी रखें। चंद्र एवं गुरु के सहयोग से बनने वाले गजकेसरी योग से युक्त जातक मनोकूल सफलताएं प्राप्त कर सकेंगे। सफलताओं की प्राप्ति हेतु कर्मेसु कौशलम् का यथेष्ट पालन परमावश्यक है। भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करें-सुखद होगा। अनिष्ट से बचाएगा इष्ट।

सिंह
मघा, पूर्वा फाल्गुनी तथा उत्तरा फाल्गुनी के 9 चरणों के योग से बनने वाली राशि राक्षस एवं मनुष्य गण की स्वभावगत कृति है। तामसी एवं राजसी गुणों से मुखर यह राशि नवग्रहों के राजा सूर्य के अधिपत्य में है। सिंह राशि के जातकों ने बीते साढ़े सात वर्षों में सुखों से अठखेलियां भी की हैं और दु:खों ने उन्हें जिन वेदनाओं का अहसास कराया, वे भी अकथनीय रही होंगी। अब भाग्य की देवी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है, और कह रही है- हे जातक, भूल जाओ, उव पीड़ाओं को, अपमान का हलाहल काफी पी लिया। अब मैं आपके सौभाग्य की ऐसी इवारत लिखने को आतुर हूं, जो आपके व्यक्तित्व को ऊर्जावान बनाकर सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक दृष्टि से श्री समृद्धि बना देगा। किन्तु आपकी राशि में नवग्रहों के राजा सूर्य के कारण अहंकार भी है। अगर अहंकार का परिमार्जन नहीं किया तो आपका पराभव भी सुनिश्चित है। भाग्येश का रत्न, इष्ट की साधना आपकी गरिमा को सुरक्षित रखने में रक्षा-कवच का काम करेगी।

कन्या
कन्या राशि के प्रभा मंडल में उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा नक्षत्रों के 9 चरणों का सुयोग बना है। तीनों नक्षत्रों में क्रमश: मनुष्य, देवता और राक्षसगण प्रभावी है। अस्तु इस राशि के जातकों का स्वभाव सात्विक, राजसी तथा तामसी प्रकृति के अधीन रहता है। बौद्धिक सामथ्र्य इस राशि के जातकों में अद्वितीय रहती है। कन्या राशि पर शनि की साढ़े साती के दो चरण अर्थात् लगभग 5 वर्ष बीत गए हैं। निश्चित रूप से किसी को प्रथम चरण में, किसी को दूसरे चरण में शनिदेव ने व्यथित किया होगा। अब स्थितियां बदल जाएंगी। उच्च राशि में शनि यदि जन्मांक में भी उच्च राशिगत होगा, तो शनिदेव उन्हें पुरुष्कृत करने में आतुर रहेंगे। न्यायालयीन प्रकरणों से उन्हें राहत मिलेगी। खोई हुई प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त होगी। आय के स्रोतों में तरलता महसूस करेंगे। राजनैतिक दृष्टि से उच्च राशिगत शनि संगठन और सत्ता में सबलता प्रदान करेंगे। ग्रहीय प्रतिकूलता में दंत क्षय, नेत्र विकार अथवा आपरेशन, जोड़ों में पीड़ा भी प्रभावित कर सकती है। ज्योतिषीय परामर्शनुसार पन्ना या नीलम धारण करें। इष्ट साधना आपकी मानसिक शक्ति को सबल बनाएगी। विवाह योग्य जातक दाम्पत्य सूत्र में बंधेंगे। सेवा क्षेत्र में प्रवेश के सुयोग बन रहे हैं।

तुला
चित्रा, स्वाति, विशाखा नक्षत्रों के 9 चरणों के योगदान से तुला राशि स्वरूप ग्रहण करती है। दैत्य पुत्र शुक्र इस राशि का स्वामी है। इस राशि की प्रकृति में देवगण एवं राक्षस गण अर्थात सात्विक एवं तामसी स्वभाव की प्रबलता रहती है। अनुभव में भी आता है कि स्वभावगत अन्तर कला पक्ष (चित्रकारी, काव्य, संगीत, नृत्य, लालित्य कलाएं) इस राशि का सबल पक्ष है। तुला राशि में उच्च राशि गत शनि अचल संपत्ति के क्रय-विक्र या निर्माण के सुयोग बनाएगा। सेवा क्षेत्र की प्रतियोगी परीक्षा में चयन की संभावना के योग बन सकते हैं। जन्म कुंडली में अन्य ग्रह सहयोगी हों, तो विदेश यात्रा के इच्छुक तुला राशि के जातक समुद्रपारीय यात्राओं का आनंद ले सकेंगे। शनि की साढ़े साती का द्वितीय चरण चमत्कारी हो सकता है। सेवारत जातक पदोन्नित/अनुकूल पदस्थापना, विवाह योग्य जातक दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करेंगे। चुनावी जंग में प्रभावी भूमिका निभाएंगे। उदर विकार, उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह की प्रभावना से बचकर रहें। सुरक्षा कवच हेतु इष्ट साधना तथा नीलम या भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करें।

वृश्चिक
विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा नक्षत्रों के 9 चरणों के योग से वृश्चिक राशि स्वरूप ग्रहण करती है। यह राक्षस एवं देवगण से प्रभावित होकर सात्विक एवं तामसिक स्वभाव से प्रभावित होते हैं- इस राशि के जातक। शनि की साढ़े साती के प्रथम चरण की शुरुआत होने से इस राशि के जातकों के जीवन में कुछ ऐसा घटित होगा जो जीवन की धारा को बदल देगा। स्वभाव से ऐसे जातक उग्र होते हैं। शनि की साढ़े साती का प्रथम चरण इन्हें शैक्षणिक, सफलताएं प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता दिला सकती है। अनुकूल ग्रहीय स्थितियां पदोन्नति से उच्च सोपान की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करेगी। राशि स्वामी मंगल-भूमि भवन का स्वामित्व दिलाने में सफलता दिलाएगा। यदि इस राशि के जातकों को षष्ठेश (रोग+शत्रु) अष्टमेश (दुर्घटना, अस्थि रोग) की महादशा या अन्तर्दशा चल रही हो तो स्वास्थ्य या अप्रत्याशित दुर्घटना में हानि की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। जातक यदि संयम से अपने कर्तव्य का निर्वाहन करेंगे तो पद, प्रतिष्ठा, परिवार में मांगलिक कार्य तो सम्पन्न होंगे ही साथ ही श्री समृद्धि के सुयोग भी प्राप्त कर सकेंगे।

धनु
मूल, पूर्वाषाढ़ तथा उत्तराषाढ़ा के 9 चरणों के योग से बनने वाली धनु राशि राक्षस एवं मनुष्य अर्थात् तामसिक तथा राजसी गुणों से प्रभावित रहती है। इस राशि के जातक कुसंगति में पड़कर दुव्र्यसनों की लत में गिरफ्त हो जाते हैं। माननीय संवेदनाओं की अतिरेकता और कभी-कभी ऐसे जातक षडय़ंत्रों की संरचना में लिप्त पाए जाते हैं। ग्रहीय अनुकूलता और देव गुरु बृहस्पति की कृपा से सत्ता की चाहरदीवारी में ऐसे राजनीतिज्ञों की पदचाप अनेक महारथियों की वाचालता को मूक और बघिरता की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है। ऐसे जातकों में चुनावी समरागण में विजयश्री को वरण की क्षमता भी अद्वितीय होती है। तुला राशि स्थित शनि अपनी तृतीय दृष्टि से धनु राशि को निहार रहा है। तृतीय दृष्टि से पराक्रम भाव की मीमांसा की जाती है। स्पष्ट है कि धनु राशि पर शनि की पराक्रमी दृष्टि जातक को बलशाली बना सकने में समर्थ होगी। जातक को शनि से मिला पराक्रम, स्त्री जाति के सहयोग से व्यसायिक सफलताएं प्रदान कराएगा। अन्य अर्थों में यह भी संभव है कि जीवन साथी का नौकरी में होना या ससुराल से संपत्ति मिलना या विवाह में मिलने वाली संपदा। पुखराज या भाग्येश का रत्न धारण करने से धनु राशि के जातक ग्रहीय प्रतिकूलता में भी संबल पाकर अपने आत्मविश्वास से अन्तोगत्वा सफलता अर्जित कर ही लेते हैं।

मकर
उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा नक्षत्रों के सुयोग से मकर राशि स्वरूप ग्रहण करती है। यह राशि विचित्र होती है। इसमें मनुष्य, राक्षस तथा देवगण वाले जातक आते हैं। इनमें राजसी, तामसी तथा सात्विक प्रवृत्तियों का मिश्रण देखने में आता है। इनका व्यक्तित्व विश्वास की परिधि में रहस्यमय होता है। इस राशि के जातक मित्र को शत्रु और शत्रु को मित्र बना लेने में सिद्धहस्त होते हैं। स्वार्थजन्य प्रवृत्ति के कारण इन्हें आकाशीय सफलताएं और रसातलीय पतन के दौर से गुजरना पड़ सकता है। मकर राशि, स्वामी शनि अपनी उच्च राशि में भ्रमणरत है। गजकेसरी योग वाले मकर राशि के जातक निर्माण कार्यों अथवा पुलिस, आर्मी के त्रेज्ञ में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। धन, वैभव तथा प्रतिष्ठा की दृष्टि से शनि का उच्च राशि में होना इस राशि के जातकों को अनेक क्षेत्रों में सफलता दिलाएगा। शनि अपनी उच्च राशि में गोचरवश जब-जब वक्री होगा तब-तब इस राशि के जातकों को ग्रहीय प्रतिकूलता के कारण समस्याओं से सामना करना पड़ेगा। नीलम या भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण सुखद रहेगा।

कुं भ
धनिष्ठा, शतभिषा तथा पूर्वाभाद्रपद के संयोग से बनी यह राशि राक्षस एवं मनुष्यगण से प्रभावित है, जो राजसी और तामसी प्रकृति से जुड़ी है। शनि के अढैया ने इन्हें बीते 2 वर्ष 6 माहों में इनका ऐसी अग्नि परीक्षा ली कि भूल गए, अपने कौशल को। अस्वस्थता, मानसिक व्यथा, असफलता, पारिवारिक क्लेश और धन हानि ने इन्हें दु:खी तो अवश्य किया  होगा। किन्तु कुंभ राशि को अब शनि के अढैया से मुक्ति मिल गई है। उच्च राशि में भ्रमण करता शनि इस राशि के जातकों को सुख, वैभव, भवन सुख, वाहन सुख, रोगों से मुक्ति का सुयोग तथा आपके जीवन में मनमाफिक सफलताओं के आशादीप भी जगमागाएंगे। मांमलिक कार्यों का आयोजन, पद प्रतिष्ठा बढ़ेगी। सेवा क्षेत्र में पदोन्नति के योग हैं। प्रतिकूल परिस्थितयों में में खासकर, शत्रु भवन या मारक भवन करे स्वामियों की महादशा में जातकों को न्यायालयीन प्रकरणों तथा व्यवसायिक परेशानियों से निजात पाने हेतु नीलम/भाग्येश का रत्न ज्योतिषीय परामर्श लेकर विधि विधान से धारण करें। इष्ट साधना समर्थता तथा मनोबल को बढ़ाएगी। राजनैतिक परिदृश्य में कुंभ राशि के जातक चुनावी समर में अपनी उपस्थिति दर्ज तो कराएंगे, सफलता मिलना अन्य ग्रहीय योगों पर निर्भर करेगी।

मीन
पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के 9 चरणों के सुयोग से बनी राशि मनुष्य एवं देवगण के प्रभामंडल से आवृत्त है। राजसी और सात्विक अवधारणा लिए ऐसे जातक जिन भी पदों पर रहें उच्च स्तरीय मानसिकता को लेकर जीते हैं। अनुभव सिद्ध देखने में यह आया है कि तामसी मानसिकता वाले व्यक्तियों के आभामंडल से प्रभावित या अनजाने में विधि सम्मत कार्यों के न करने से ऐसे जातक परेशानियों में फंस जाते हैं।
शनि का अढैया मीन राशि वालों के लिए षडाष्टक योग से भी प्रभावित करेगा। इससे शत्रुहन्ता योग बनकर जातकों को गद्दीनसीन करवाएगा। शत्रुओं का पराभव सुनिश्चित है। प्रशासनिक क्षेत्रों में कार्यरत जातक अपनी तेजोमय ऊर्जा से सफलताओं के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकेंगे- यदि कुंडली में भाग्येश की अनुकूलता तथा गजकेसरी योग का सुयोग बन रहा हो तो पुखराज रत्न/भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करने से जीवन में प्रतिकूलता अनुकूलन में परिवर्तित ले सकेगी। इष्ट साधना सुरक्षा कवच का काम करेगी।

- पं. पीएन भट्ट (ज्योतिर्विद)
जी-4/4 जीएडी कॉलोनी,
गोपालगंज, सागर (मप्र)
फोन: 07582-223168, 227159
मोबाइल : 09407266609






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