Friday, 2 December 2011

दाम्पत्य जीवन : मांगलिक कुंडलियों की विवेचना


मांगलिक कुंडलियों का चमत्कार


अनादिकाल से लेकर आज के वैज्ञानिक परिदृश्य में यदि हम आविष्कारिक दृष्टिकोण अपनाएं और ज्योतिष की पृष्ठभूमि में देवज्ञजन (ज्योतिर्विद) यदि मांगलिक कुंडलियों पर दृष्टिपात करें, तो वे पाएंगे कि अखिल विश्व में चाहे हमारी दृष्टि विशाल आर्यावर्त पर रहे या चीन, यूरोप, अमेरिका अथवा अफ्रीका की सरजमीं पर, अनेक विश्वात्माओं से लेकर उद्भट विद्वानों, आचार्यों, संतों तथा तानाशाहों से लेकर प्रजातांत्रिक मूल्यों की वसीयत थामे अनेक राजनयज्ञों की मांगलिक कुंडलियां आपको नजर आएंगी।
अभिप्राय, मेरा मात्र इतना है कि मांगलिक कुंडलियां जातक को प्रेरित करती हैं, उत्साहित करती हैं कि वे आगे बढ़ें, मार्ग प्रशस्त है। आप उच्चतम शिखरों को छू सकते हैं। मांगलिक कुंडलियां मंगलदायिनी होती हैं। फर्क मात्र इतना है कि आप जन्मे किस नक्षत्र में, गण आपका कौन सा है, देव मानव अथवा राक्षस।
आइये और निहारिये? उन मांगलिक कुंडलियों के नामों को-
विश्वात्माओं में प्रथम भगवान रामचंद्रजी, भगवान गौतम बुद्ध, भगवान महावीर स्वामी, आचार्यों एवं संतों में गुरु नानकदेव, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, जगद्गुरु चंद्रशेखर सरस्वती (कांचीपुरम), राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, आचार्य अरविन्द घोष। राजनयज्ञों में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ. केनेडी, जार्ज बुश, बिल क्लिंटन, शेख मुजीबुर्रहमान (बंगलादेश), एडोलफ हिटलर (जर्मन), मुसोलिनी (इटली), अयूब खां (पाकिस्तान)। चन्द्र कुंडली के अनुसार मांगलिक योग माओत्से सुंग (पूर्व राष्ट्रपति, चीन), ईरान के शक्तिशाली पूर्व राष्ट्रपति नासिर हुसैन, ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री और द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रख्यात रणनीतिकार सर चर्चिल, जुल्फिकार अली भुट्टो (पाकिस्तान) हेनरी फोर्ड (कार-उद्योगपति-अमेरिका) और ब्रिटेन की महारानी श्रीमती एलिजाबेथ द्वितीय आदि अनेक व्यक्तित्व नजर आएंगे- मांगलिक कुंडली धारी।
भारतीय राजनैतिक आकाश में धूमकेतु की तरह जाज्वल्यमान रहे, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, बाबू जयप्रकाश नारायण, गुलजारी लाल नंदा,

पंडित रविशंकर शुक्ल, फिल्म जगत से अभिनेता दिलीप कुमार, नरगिस दत्त, अमिताभ बच्चन, उद्योगपति कृष्णा डालमिया, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे (मुम्बई), विद्याचरण शुक्ल आदि अनगिनत प्रभावशाली व्यक्तित्वों ने देश के उत्थान में महती भूमिका के जन नायक बने।
चन्द्र कुंडली से मांगलिक योग बनाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंहराव, ग्वालियर नरेश श्रीमंत जीवाजीराव सिंधिया, श्रीमंत माधवराव सिंधिया, हैदराबाद के संस्थापक हैदरअली, स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह, भैरव सिंह शेखावत, पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन तथा अनगिनत व्यक्तित्व मांगलिक कुंडलियों के प्रभाव से आभायुक्त रहे और कुछ व्यक्तित्व सदियों तक इतिहास के सुनहरे पन्नों पर अजर-अमर रहेंगे। आग्रह मात्र इतना? मांगलिक कुंडलियां चौंकाने की सामथ्र्य रखती हैं। मांगलिक चंगेज खां ने जिस रक्त रंजिश इतिहास को रचा, क्या वह भी हिटलर और मुसोलिनी की मानसिकता का पुरोधा तो नहीं था?

उत्तर भारत में वर एवं कन्या की जन्म कुंडली मिलाने की जो प्रथा है और जिसे साधारणत: मेलापक कहते हैं। वर-वधू के स्वभाव, रुचि-अरुचि, मनोवृत्ति, गृहस्थ सुख विचारों में कितनी समानता रहेगी। यह ज्योतिषी गणना मेलापक (कुंडली मिलान) से भली-भांति ज्ञात की जा सकती है।
परन्तु ग्रहीय आधार पर मेलापक में दोष होने पर वैचारिक मतभेदों के कारण जीवन में अशांति और दाम्पत्य जीवन के सुखों से वंचित हो जाते हैं, दम्पति। मेलापक का विचार सदैव जन्म नक्षत्र एवं जन्म कुंडली में ग्रहीय स्थिति के आधार पर ही करना शुभ फलदायी रहता है। कुंडली मिलान में सूक्ष्म गणित की आवश्यकता होती है। वैवाहिक जीवन का लम्बा सफर तय करने के लिए कुंडली मिलान करना एक उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य है। जीवन में वर-वधू के विचार मिल जाएं, तभी दाम्पत्य जीवन की सुखद अनुभूति परिवार एवं समाज को प्राप्त होगी।
भार्या विषयं चिन्तनमुदितमिदं जन्म लग्नविहगवशात्।
सहधर्म चरित नर: पुत्रांश्च लभेत भार्यया यस्मात्।।

इस श्लोक में जन्म राशि तथा लग्न के आधार पर भार्यया विचार बतलाया गया है, क्योंकि भार्या पति की सहधर्मिणी होती है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों में से धर्म, अर्थ तथा काम यह तीन वर्ग भार्या की सहायता से ही सुलभ होते हैं। संतान प्राप्ति भी भार्या से होती है। इसलिए इतना महत्व दिया गया है। कुंडली मिलान में कन्या एवं वर के गुणों के मिलान में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रहमैत्री, गण मैत्री, भकूट एवं नाड़ी के कुल गुण 36 होते हैं। ये वर्णादि आठ कूट विवाह में अवश्य विचारना चाहिए।
कुंडली मिलान में कम से कम 18 गुण मिलना चाहिये। ऐसा देवज्ञों का कथन पढऩे-सुनने को मिल जाता है। मेरा मत कुछ भिन्न है। गुण मिलान 28 और 30 भी हो जावें, यदि कुंडली में बलाबल की दृष्टि से ग्रह शत्रु क्षेत्री, नीच राशिगत बैठे हों, तो 28-30 गुणों के मिलान के बावजूद भी विवाहित दु:खी

रहेंगे। गुण मिलान चाहे कम हों, किन्तु कुंडली में सुख भवन, विद्या एवं संतान भवन, जीवन साथी का सप्तम भवन, आयु, भाग्य, राज्य और आय भवन के स्वामी भी यदि शुभ यानी उच्च, स्वक्षेत्री मित्र राशि या सम राशियों में विराजमान हों, तो मिलान शुभ रहेगा।
जन्म के समय जिस भाव-राशि में अच्छे ग्रह होते हैं, शरीर का वह भाग स्वस्थ रहता है। जिस राशि में क्रूर (दुष्ट) ग्रह रहते हैं, शरीर का वह भाग रोगमुक्त होता है। जन्म कुंडली के मिलान में मंगल को सबसे अधिक पापी मानने के कारण इस दोष को बोलचाल की भाषा में मांगलिक दोष कहते हैं, किन्तु वास्तव में मंगल, शनि, राहू, केतु और सूर्य इन पांचों का विचार करना चाहिए। मांगलिक दोषों की श्रेणी में ये पांचों हैं। इनका नेता मंगल है।
कन्या के विवाह में जन्म नक्षत्र को यथा संभव वर्जित करना चाहिए, किन्तु वर के जन्म नक्षत्र में विवाह करने में कोई दोष नहीं है।
पुष्य नक्षत्र में सब कार्यों को शुभ माना गया है किन्तु विवाह में वर्जित है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र को ऋषि वाल्मीकि ने शुभ माना है, किन्तु उस नक्षत्र में विवाह होने के कारण सीताजी को सुख नहीं मिला। अत: वह वर्जित है। मूल नक्षत्र का स्वामी राक्षस है। उसको विवाह में ग्रहण किया गया है। कारण यह कि उस नक्षत्र में देवकी का वासुदेव जी के साथ विवाह हुआ था और संसार का मंगल करने वाले भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ था। विवाह में पितृ कर्म वर्जित है, किन्तु मघा नक्षत्र जिसके स्वामी पितर हैं, विवाह में शुभ कहा गया है। गुरु, शुक्र, बुध तथा चन्द्रवारों में विवाह करने से कन्या भाग्यवती होती है। सब ग्रहों का स्वामी सूर्य है, अत: रविवार मध्यम है। शनिवार को रिक्ता तिथि हो और उसमें कन्या का विवाह किया जाए, तो पति की सम्पत्ति में वृद्धि होती है। कारण यह कि शनिवार के दिन रिक्ता तिथि होने से सिद्धा तिथि हो जाती है और वह सब दोषों का नाश करती है।

दक्षिण भारत में कुंडली मिलान
दक्षिण भारत में जिन सिद्धांतों पर वर एवं कन्या की कुंडलियां मिलाई जाती हैं, आनुकूल्य शब्द से जानी जाती है। आनुकूल्य का अर्थ है अनुकूलता। प्रतिकूल न हो- एक दूसरे को स्वास्थ्य, जीवन (दीर्घायु) संतान, स्वभाव, धन, धर्म, समृद्धि की दृष्टि से अनुकूल हों। दोनों विवाह जनित सुखोपलब्धि करें, यही आनुकूल्य का अर्थ है।
दम्पत्योर्जन्म ताराद्यैरानुकूल्यं परस्परम्।
विचिन्त्योपयम: कार्यस्तत्प्रकारो-थ कथ्यते।।

अर्थात् वर और कन्या को विवाहोपरान्त सब प्रकार की सुख-समृद्धि हो और उनमें परस्पर अनुकूलता हो। इसके विचार के लिए निम्न श्लोक से ज्ञात किया जा सकता है।
राशि राशिपवश्यौ माहेन्द्रगणाख्य योनिदिन संज्ञा:।
स्त्री दीर्घ चेत्यष्टौ विवाहयोगा: प्रधानत: कथिता:।।

अर्थात् प्रधान रूप से वर और कन्या की जन्म कुंडलियां मिलाने में नीचे लिखी आठ बातों पर विचार किया जाता है।
1. राशि 2. राशि का स्वामी 3. वश्य 4. माहेन्द्र 5. गण 6. योनि 7. दिन 8. स्त्री दीर्घ
1. यदि कन्या की राशि गिनने पर वर की राशि सप्तम, दशम या एकादश हो अथवा अष्टम, नवम या द्वादश हो तो भी शुभ है। यदि वर और कन्या की राशि एक हो, किन्तु जन्म नक्षत्र भिन्न-भिन्न हों तो अति उत्तम।

2. यदि कन्या की राशि वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर या मीन हो और कन्या की राशि से गिनने पर वर की राशि छठी हो तो विवाह में वर्जित है अथवा कन्या की राशि मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु या कुम्भ हो और कन्या की राशि से गिनने पर वर की राशि छठी हो तो मध्यम अर्थात् न उत्तम, न निंदनीय।
प्रश्न मार्ग (जो दक्षिण भारत का प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ है) का भी मत है।

विज्ञजन ध्यान दें इस श्लोक पर-
स्त्रीजन्मपूर्वमेवं विचिन्तये द्राशिसंज्ञितं योगम्।
स्त्रीपुरुष जन्मपत्योरैक्यं स्यादबन्धुभावमपि शुभद्म।।
यदि कन्या और वर की राशियों (दोनों की कुंडलियों में जिस-जिस राशि में चंद्रमा है) स्वामी एक ही हो या दोनों मित्र हों, तो मिलान शुभ होता है।
स्त्रीजन्मक्र्षत्रितयाच्चतुर्थदिक सप्तमेष्वयक्र्षेषु।
जात: शुभ कृत्पुरुषों माहेन्द्राय: प्रकीर्तितश्चैवम्।।

अर्थात् कन्या के जन्म नक्षत्र से गिनने पर वर का जन्म नक्षत्र यदि चौथा, सातवां, दसवां, तेरहवां, सोलहवां, उन्नीसवां, बाईसवां, पच्चीसवां हो, तो शुभ है। इसे महेन्द्र गुण कहते हैं।
गणयेत स्त्रीजन्मक्र्षात् जन्मक्र्षान्तं संख्याय।
पञ्चदशाभ्यधिका चेत स्त्री दीर्घाख्यो भवत्क्रमाच्छुभद:।।

अर्थात् कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के जन्म नक्षत्र तक गिनिये। यदि वह संख्या 15 से अधिक हो तो शुभ। इसे स्त्री दीर्घ विचार कहते हैं।
हे देवज्ञजन- कृपया इस श्लोक पर भी विचार कीजिएगा-
स्त्री जन्मभाद्वरक्षन्तिं गणयित्वा शरैर्हते।
मुनिभिर्बाजितं शिष्टं व्ययमायो न जन्यभात्।।

अर्थात् कन्या के जन्म नक्षत्र से प्रारंभ कर वर के जन्म नक्षत्र तक गिनिये। इस संख्या को पांच से गुणा कीजिए। गुणनफल को सात से भाग दीजिये। जो शेष रहे वह है 'व्ययÓ।
इसी प्रकार वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के जन्म नक्षत्र तक गिनिये। इस संख्या को पांच से गुणा कीजिएगा। गुणनफल को सात से भाग दीजिये। जो शेष रहे वह 'आयÓ।
आय, व्यय से अधिक होना चाहिये। यह पक्ष भी कुंडली मिलान की दृष्टि से विचारणीय है।
एक अन्य श्लोक पर भी ध्यान दें-
कन्याया जन्मोन्दोश्चाष्टकवर्गे फलाधिके राशौ।
पुरुस्य जन्म शुभदं पुरुषेन्दुवशात्तथैव कन्याया:।।

अर्थात् कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्राष्टक वर्ग बनाइये। कन्या के चंद्राष्टक वर्ग में जिस राशि में अधिक बिन्दु हों, वह राशि वर की हो तो कन्या की वह राशि हो, जिस राशि में वर के चन्द्राष्टक वर्ग में अधिक शुभ बिन्दु पड़े हों, तो वह कन्या के लिए शुभ है।

विवाह में नवांश का महत्व
कन्या, तुला, मिथुन, धनु के नवांश शुभ हैं। 9,7,6,3,12 नवांश शुभ हैं। इनमें विवाह होने पर दाम्पत्य जीवन सुखद होता है। दक्षिण भारत में नवांश कुंडलियों के आधार पर कुंडली मिलान को महत्ता प्रदान की गई है। यदि लग्न अच्छा न भी हो तो 3,11,7,6,9 नवांश शुभ हैं। लग्न तथा उसका नवांश पति का स्थान

होता है। स्त्री जातक की कुंडलियों में उनकी मित्रता होने पर वर-वधू की मित्रता रहती है।
ज्योतिष के विद्वानों से आग्रह
समयकाल के अनुसार आज वैज्ञानिक युग में वर-वधू के मेलापक में तर्क संगत गुण दोषों की व्याख्या करने में विद्वत्जन सहयोगी रुख अपनाएं। पुराने ग्रंथों में श्लोकों की रचना के समय सामाजिक व्यवस्थाएं भिन्न थीं। आज का सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक परिवेश बदला हुआ है। अत: कुंडली मिलाते समय दोषों को ज्यादा महत्व न देकर जातक की आयु, संतति, सौभाग्य, सुखभाव तथा इनके भावेशों की स्थिति को देखने से निश्चित ही दम्पति का भावी जीवन सुखी एवं समृद्ध होगा।

मांगलिक दोष तालिका

राशियां    प्रथम    द्वितीय    चतुर्थ    सप्तम्    अष्टम्    द्वादश
मेष लग्न    -    मंगल    -    -    -    -
वृष लग्न    मंगल    -    -    -    -    -
मिथुन लग्न    मंगल    मंगल    मंगल    मंगल    -    -   
कर्क लग्न    मंगल    -    -    मंगल    मंगल    -
सिंह लग्न    -    -    -    -    -    -
कन्या लग्न    मंगल    मंगल    मंगल    मंगल    -    मंगल
तुला लग्न    मंगल    -    -    -    -    मंगल
वृश्चिक लग्न    -    मंगल    -    -    मंगल    -
धनु लग्न    मंगल    -    मंगल    मंगल    मंगल    -
मकर लग्न    -    मंगल    -    -    -    मंगल
कुंभ लग्न    मंगल    मंगल    -    -    -    -
मीन लग्न    मंगल    -    मंगल    मंगल    -    मंगल

उपरोक्त तालिका में मेष से लेकर मीन लग्नों (12 लग्नों) के सामने दर्शाये गए प्रथम भवन (लग्न) द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भवनों के सामने जहां-जहां लिखा हो, उन्हीं भावों में यदि मंगल बैठा हो, तो कुंडली मंगली मानी जाएगी, अन्यथा नहीं।
कुछ ज्योतिषी अपने स्वार्थ के कारण जनता को मांगलिक दोष का डर दिखा, भयभीत कर उपाय करने के नाम पर लूटते हैं। जो ज्योतिषसमाज के लिए युक्तिसंगत नहीं है।

मंगल दोष का परिहार
मंगल दोष का परिहार उस स्थिति में भी होता है, जब वह विभिन्न लग्नों से अपने दोष पूर्ण भावों में स्थित हों।

मंगल दोष परिहार
1. सप्तम भवन (दाम्पत्य जीवन) का स्वामी शुक्र के साथ हो तो मंगल दोष नहीं होता।
2. यदि किसी कन्या की कुंडली में, जिस स्थान पर मंगल हो तथा उसी स्थान पर वर की कुंडली में पाप ग्रह हो, तो मंगल दोष नहीं होता।
3. यदि मंगल बारहवें भवन में वृष या तुला राशि में बैठा हो, तो मंगल दोष नहीं बनता।
4. यदि जातक की कुंडली के सप्तम भवन (दाम्पत्य जीवन) में शुक्र और शनि हो तो मंगल दोष नहीं होता।
5. यदि राहु छठवें भवन या अष्टम भवन में हो तो मंगल दोष नहीं बनता।
6. मंगल राहु की युति हो तो मंगल दोष नहीं होता।
7. चंद्रदेव यदि लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भवन में विराजमान हो, तो मंगल दोष नहीं बनता।
8. मंगल, गुरु के साथ हो अथवा चंद्रमा मंगल के साथ हो, तो मंगल दोष नहीं होता।
9. यदि वर एवं वधू की कुंडली में मंगल, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भवन में हो तो मांगलिक दोष से कुंडली मुक्त होती है।
10. यदि नीच राशि (कर्क) भाव का स्वामी ग्रह मंगल अपने उच्च अथवा स्वराशि अथवा केन्द्र में हो तो मंगल दोष प्रभावी नहीं होता।
एस्ट्रोलॉजिकल मैग्जीन के संपादक विश्वविख्यात डॉक्टर बाराह वैंकटरमन् (आधुनिक युग के पाराशर) तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती राजेश्वरी रमन, में से एक मांगलिक तथा दूसरी मांगलिक नहीं है। उनके पुत्र-पुत्रियां विख्यात ज्योतिषी हैं। डॉ. रमन का 80 वर्ष की आयु में निधन हुआ। श्री एवं श्रीमती रमन ने ज्योतिष जगत में 60 वर्षों तक यशस्वी जीवन जिया। कहने का अर्थ यह है कि मंगली कुंडलियों को जीवन का अभिशाप न मानें। शास्त्रों में मंगल के परिहार के कुछ श्लोक दिए गए हैं, जो सुविज्ञ पाठकों, पंडितों का मार्गदर्शन करेंगे।
जामित्रे च यदा सौरिर्लग्नं वा हिबुके-थवा।
नवमें द्वादशे चैव भौमदोषो न विद्यते।।
अर्थात् जिसके जन्म लग्न से सातवें तथा लग्न में या चौथे, नवें तथा बारहवें शनिदेव विराजमान हों, तो मंगल का दोष नहीं होता।
सौरारयोर्मदयोर मृतांशुराशि,
संप्राप्तयोरिह भवेत्किल शोभना स्त्री।

अर्थात् यदि कर्क राशि में मंगल और शनि सप्तम भवन में विराजे हों, तो जातक को शोभना (शरीर और स्वभाव से सुंदर) पत्नी प्राप्त होती है। मंगल दोष वाले जातक मंगल के कारण नहीं, अपितु अन्य ग्रहों की प्रतिकूलता से दु:खों का अहसास करते हैं। मांगलिक कुंडली वाले जातक मांगलिक दोषों को दूर करने के लिए पंडितों और तांत्रिकों से समाधान के उपाय करवाते हैं। मेरा परामर्श है, उन्हें अपनी कुंडली में चलने वाली विंशोत्तरी/योगनी महादशाओं की जानकारी लेकर रत्न आदि धारण करना चाहिए। अशुभ समय में तनावग्रस्त न रहकर धैर्य के साथ विपरीत समय को प्रेम-स्नेह और विनम्रता की मानसिकता में जीवन यापन करना चाहिए।
मांगलिक योग-राजयोग बनाते हैं।
आज भारतीय राजनीति में शिखर पदों पर विराजमान अनेक आचार्य, साहित्यकार, चिकित्सक, समाजसेवी, खेल प्रतिभाएं, मंत्री, मुख्यमंत्री तथा प्रशासनिक पदों पर आसीन आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अधिकारी केन्द्रीय शासन से लेकर प्रान्तों में पदासीन हैं। विशाल भारत के सभी राज्यों में अनेक विधायक एवं सांसद भी मंगली कुंडली का रक्षा कवच पहने सत्ता के क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। शर्त मात्र इतनी है कि मंगली कुंडलियों में स्वक्षेत्री, उच्च राशिगत, वर्गोत्तम ग्रहों की उपस्थिति होना चाहिए, फिर देखिये। मंगली कुंडलियों का कमाल।

अलौकिक शक्तियों के स्वामी थे मांगलिक
  मांगलिक कुंडलियों के जातक भी अद्भुत होते हैं। यदि गृहीय स्थितियां और महादशाओं का अद्भुत संयोग रहे तो फिर देखिए- मांगलिक कुंडलियों के चमत्कार।
आप अपनी अंतरात्मा में झांकिए, छायाचित्रों की तरह निहारिए, फिर देखिए?
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, हंस योगी भगवान महावीर स्वामी सरीखी अलौकिक शक्तियों के स्वामी भी मांगलिक रहे। इतिहास के पृष्ठों को उलटिए, राजनीतिक परिदृश्य पर एक उड़ती निगाह डालिए, कितने विराट व्यक्तित्व मंगली कुंडलियों के आगोश में विचरण कर रहे हैं। भले ही उनका क्रीड़ागन राजनीति का क्षेत्र हो अथवा खेल का मैदान हो या सुन्दर नाक-नक्श वाली अभिनेत्रिओं का दृश्यांकन। तानाशाहों की कर्मभूमि  रहे यूरोप और एशिया।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 
लग्नस्थ गुरु, चन्द्र ने बनाया भगवान श्रीरामचन्द्र जी को मर्यादा पुरुषोत्तम। भगवान राम के जन्म का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है-

           नवमी तिथि मधुमास पुनीता।
                   सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।
            मध्य दिवस अति शीत न घामा।
                  पावन काल लोक विश्रामा।।
अभिजित मुहूर्त को मुहूर्तों में सर्वश्रेष्ठ व दोष रहित माना जाता है। भगवान राम जी की कुंडली भी मंगली है। सप्तम भवन में उच्च राशिगत्  मंगल बैठा है। यह जीवन संगिनी का भवन है। पौराणिक गाथा से सभी पाठकजन विज्ञ हैं। मैं तो प्रभु श्रीराम के चरणों में नमन् करते हुए मीमांसा करने में समर्थहीन हूं।

हंस योगी भगवान महावीर स्वामी
अहिंसा के अवतार भगवान महावीर स्वामी ने भी राजकुल में जन्म लिया। लग्न स्थ उच्च राशिगत् मंगल ने अपनी चतुर्थ दृष्टि से समस्त प्रकार के राज सुख उपलब्ध कराने के लिए आतुर था, किन्तु भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। सप्तम भवन जो जीवन साथी से संबंधित है, को मंगल अपनी नीच राशि कर्क में गुरु के साथ विराजे राहु के कारण हंस योगी  जितेन्द्रिय भगवान महावीर स्वामी ने समस्त प्रकार के वैभव त्यागकर अहिंसा के पथ पर अग्रसर हुए और समस्त विश्व को त्याग और शांति का संदेश दिया। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के रूप में  समस्त विश्व में इनकी प्रभावना है। भगवान महावीर की कुंडली भी मांगलिक है।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (पूर्व राष्ट्रपति)
जन्म 05.09.1888, समय 06.00 प्रात: (मद्रास)
    डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का लग्नेश सूर्य जो शासन का प्रतिनिधित्व करता है, लग्न में लग्नेश बनकर बैठा हुआ है। धनेश और लाभेश अपनी उच्च राशि बुध में द्वितीय भवन में विराजमान है। लग्नस्थ चन्द्रदेव से चतुर्थ भवन में

बैठकर पंचमेश गुरु गजकेसरी योग बना रहे हैं। कर्मेश जो स्वयं पराक्रमेश भी है। ऐसा शुक्र प्रबल राजयोग भी बना रहा है। भाग्येश मंगल चतुर्थ भवन में अपनी राशि में पदस्थ होकर राज्य भवन को देख रहा है। गजकेसरी योग ने उन्हें विश्व स्तरीय दार्शनिक बनाया तथा प्रबल राजयोग ने उन्हें 10वर्षों तक उपराष्ट्रपति तथा 5वर्षों तक स्वतंत्र भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य प्रदान किया। उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह कुंडली मांगलिक है।

मोरारजी भाई देसाई (पूर्व प्रधानमंत्री)
 जन्म 29.02.1896, समय 01.00 दोपहर: बलसाड़ (गुजरात)
कर्मठ गांधीवादी और राजनीतिज्ञ जातक की यह कुंडली मंगली है। शनि, मंगल, गुरु उच्च राशिगत् हैं। शनि भाग्येश, गुरु राज्येश तथा मंगल लाभेश और शत्रु भवन का स्वामी है। अष्टम में बैठकर आज से तीन दशक पूर्व जब गोचर का शनि उच्च राशि का था जातक को साढ़ेसाती लगी, तभी सन् 1977 में चुनाव सम्पन्न हुए। चुनावों में रायबरेली से श्रीमती इंदिरा गांधी पराजित हुईं और श्री मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। यह प्रबल राजयोग कारक मांगलिक कुंडली है।

चन्द्रशेखर (पूर्व प्रधानमंत्री)
भारत के जाने-माने समाजवादी चिंतक सफल राजनीतिज्ञ पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर जी की कुंडली भी मांगलिक है। भाग्येश शनि शत्रुहंता होकर षष्ठम भवन में शत्रु क्षेत्रीय होकर पदस्थ है। अष्टमेश शनि शत्रु क्षेत्रीय होकर षष्ठम भवन में विपरीत राजयोग बना है। राजभवन का स्वामी गुरु सप्तमेश होकर भाग्य भवन में विराजमान है। राजभवन के स्वामी गुरु की नवम दृष्टि चन्द्रमा पर होने से अल्पकालिक प्रधानमंत्री का योग सफलीभूत हुआ।         


महारानी ऐलिजावेथ, द्वितीय (इंग्लैंड)
महारानी ऐलिजावेथ, ब्रिटिश एम्पायर की एक सशक्त महिला शासक हैं। लग्नस्थ उच्च राशिगत मंगल राज्यभवन का स्वामी पराक्रम भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजमान हैं।
 कहने का तात्पर्य यह है कि पराक्रम एवं साहस के साथ शासनाध्यक्ष के रूप में आज भी वह महिमा मंडित हैं। पंचम भवन में वृष राशि का स्वामी शुक्र उच्च राशिगत होने के साथ आयु भवन का स्वामी सूर्य उन्हें शतायु बना सकता है? राहू भी मित्र क्षेत्री है। विवादों से दूर यह महारानी पारिवारिक सुखों के साथ यशस्वी हैं। यह कुंडली मांगलिक है।

एडोल्फ हिटलर(जर्मन)
जन्म 20.04.1889. समय 19.30 जर्मनी
   लग्नेश की लग्न पर दृष्टि, पराक्रमेश एवं दसमेश की युति साथ ही यह युति गजकेसरी योग बना रही है। भाग्य भवन में जन समूह का समर्थन, पंचमेश अर्थात वाणी का अधिपति शनि भाग्य भवन में पदस्थ होकर पराक्रम भवन तथा शत्रु भवन को निहार रहा है। उच्च राशिगत सूर्य, स्वक्षेत्री मंगल और गुरु मित्र

क्षेत्रीय भाग्यस्थ राहु और केतु पराक्रम भवन में होने से जातक को कलह प्रिय बनाता है। एडोल्फ हिटलर जर्मन का एक ऐसा शासक बना, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध का पुरोधा कहा जाता है। किन्तु इतिहास के गर्भ में 1914 से 1919 के मध्य चला प्रथम विश्व युद्ध था, जिसने जर्मन के विरुद्ध वारसा की संधि थोप दी। शरीर कमजोर, दृष्टि में भी कमजोर एक युवक ने अपने अदम्य साहस से सैनिक फिर जर्मन के चांसलर का ओहदा प्राप्त किया तथा संपूर्ण विश्व को झकझोर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध में लगभग 4 करोड़ मानव प्रभावित हुए थे, यूरोप तो लहूलुहान हो गया। 10 लाख पौलेंडवासी मारे थे। इसीलिए कहा जाता है कि किसी का इतना अपमान मत करो कि वह बदला लेते समय पागलपन की सीमा  लांघ जाए। यह कुंडली भी मांगलिक है।

तानाशाह मुसोलिनी (इटली) 
जन्म 29.07. 1883 को 15.00 बजे पीएम
प्रस्तुत कुंडली द्वितीय विश्व युद्ध में एडोल्फ हिटलर के प्रमुख सहयोगी रहे इटली के तानाशाह मुसोलिनी की है। इस कुंडली में राहु अपनी मित्र राशि में है। राज्य भवन का अधिपति सूर्य भाग्य भवन में तथा भाग्येश परमोच्च होकर, चतुर्थेश और पराक्रमेश शनि तथा लग्नेश मंगल के साथ सप्तम भवन में विराजमान हैं। इसीलिए सम्राट योग बना रहे हैं। शत्रुहंता मंगल (पराक्रमेश) शनि से युक्त होकर क्रूर शासक बनाते हैं। यह कुंडली मांगलिक है।


 कपिल देव (पूर्व क्रिकेट कप्तान)
जन्म: 05.11.1959 समय 2.36 एएम: चंडीगढ़
   गुरु एवं बुध का मंगल से षडाष्टक योग एवं केतु से चंद्रमा का षडाष्टक योग से क्रिकेट क्षेत्र में कपिल देव की कप्तानी में वल्र्ड कप जीतने का पहली बार अवसर मिला। कपिल देव की कुंडली भी मांगलिक है। पारिवारिक जीवन भी सभी अर्थों में सुखद और यशस्वी है। विश्वख्याति प्राप्त यह जातक आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न है।      

 श्रीमती माधुरी दीक्षित (अभिनेत्री)
    लग्नेश शुक्र भाग्य भवन में मित्र गृही होकर स्थित है। राज भवन में गुरु , चन्द्र उत्तम गज केसरी योग बना रहे हैं। बुध एवं शुक्र का राशि परिवर्तन योग द्वादश भवन में मंगल में विराजमान होने से यह कुंडली भी मांगलिक बन गई है। फिल्मी दुनिया की इस विख्यात अभिनेत्री ने अमेरिका में रह रहे भारतीय से विवाह किया। संतान सुख उत्तम है।

बिल क्लिंटन (पूर्व राष्ट्रपति अमेरिका)
     प्रस्तुत कुंडली अमेरिका के 8वर्षों तक रहे राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की है। लग्न मंगल के साथ नीच राशिगत शुक्र ने चारित्रिक शिथिलता की ओर भले ही उन्मुख किया हो, किन्तु शुक्र भाग्येश भी है। राज्य भवन को गुरु अपनी नवमी दृष्टि से निहार रहा है। राज्येश लाभ भवन में है। संतान भवन पर शनि की स्वक्षेत्री दृष्टि है।
जीवन साथी के  भवन का स्वामी गुरु है, जो धन भवन में पदस्थ हैं। यह मांगलिक पुरुष सर्वसुखों से युक्त हैं। श्रीमती क्लिंटन वर्तमान में अमेरिका में
 विदेश मंत्री के पद पर पदारुढ़ हैं।

  पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
मोबाइल : 09407266609

       









Friday, 25 November 2011

कालसर्प योग - विश्व रंगमंच : व्यक्तियों की विलक्षण कर्मभूमि


पौराणिक संदर्भों में ईश्वरीय सत्ताएं कहीं न कहीं सर्पों (नागों) से आवद्ध रहीं। भगवान श्रीमन्न नारायण शेष शैय्या पर समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं। भगवान साम्ब सदा शिव आभूषणों के रूप में वासुकी आदि नागों को शरीर पर धारण किए हुए हैं। जैन धर्म से जुड़ी मान्यता के अनुसार 23वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ के सिर पर जो छत्र है वह नागों का है। उन्हें नागकुमार भी कहा गया है। ज्योतिष के आदि ग्रंथों के श्लोकों में कालसर्प योग की विशद विवेचना की गई है।
कौटिल्य, आचार्य चाणक्य, जो स्वयं काल सर्प योगी थे, ने ईसा पूर्व तीसरी सदी में अपनी कूटनीति से विश्व विजय का सपना लेकर आए सिकन्दर को व्यास नदी की तट सीमा पर ही रोक कर यूनानी सेना को (स्वदेश) वापस जाने को बाध्य किया तथा चन्द्रगुप्त मौर्य को विशाल आर्यावर्त का सम्राट बनवाया।
इतिहास साक्षी है, नवमी सदी तक जैन, बौद्ध तथा हिन्दु धर्मावलम्बी कापालिकों (तांत्रिक, मांत्रिक, बलिप्रथा) के कर्मकाण्डों से प्रभावित होकर अपनी धार्मिक मान्यताओं को विस्मृत करने लगे थे तथा आचार-विचारों से पतनोन्मुखी हो गए तभी दसवीं शताब्दी में केरल में नम्बूदिरिपाद ब्राह्मण आचार्य विद्याधर के धर्मात्मा पुत्र शिवगुरु के यहां शंकर ने जन्म लिया। उनकी कुंडली में भी कालसर्प योग था, जो आगे चलकर आदिगुरु शंकराचार्य के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने वैदिक धर्म की धर्मध्वजा फहरायी और हिन्दू धर्म को पुनर्जाग्रत कर चार धामों (केदारनाथ, बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम्) की स्थापना कर कापालिकों को निष्प्रभावी कर भारतीय जनजीवन में धार्मिक आस्थाओं को जीवन्त किया।
युद्धोन्मादी चंगेज खां, एडोल्फ हिटलर और मुसोलिनी सरीखे जातकों की कुंडली में भी कालसर्प योग था। मुगल बादशाह अकबर, राष्ट्रपति अय्यूब खां, सद्दाम हुसैन, श्रीमती भंडार नायके, सर हेरोल्ड विल्सन, श्रीमती मारग्रेट थैचर तथा स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू, पी.वी.नरसिंहराव, अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहीम लिंकन, बिल क्लिंटन, स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल, फिल्मी दुनिया से अशोक कुमार, दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, खेल जगत से मेजर ध्यानचंद (हाकी), सचिन तेंदुलकर आदि सभी व्यक्तियों की जन्म कुंडलियां कालसर्प योग से प्रभावित रही हैं। शब्दों का सौदागर, वाणी का जादूगर आचार्य रजनीश भी कालसर्प योगी थे।
मेरी दृष्टि में जो जानकारी आई- कालसर्प योग से प्रभावित व्यक्तियों की वह तो सूक्ष्मतम् है। मेरा मकसद मात्र इतना है कि जिन व्यक्तियों की कुंडली कालसर्प योग से प्रभावित हो, वे संघर्ष करें, विचलित न हों, अपने-अपने इष्ट की मनसा, वाचा-कर्मणा से साधना करें। विद्यार्थीगण 12 से 16 घंटे प्रतिदिन अपने अध्ययन, मनन में अध्ययनरत रहें, मेरा विश्वास है कि सफलताएं उनके कदम चूमेंगी।
भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना, अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वाहन के साथ ही पूरी करें। राष्ट्र सेवा सदैव ईमानदारी से करें। यथा संभव गरीबों की मदद करें। मानवीय संवेदनाएं आपके व्यक्तित्व को सजीवता प्रदान करेगी। पद का अंहकार कभी न करें अन्यथा पद से च्युत होते ही मानव समाज हिकारत की नजर से देखती है। वे कुर्सियां, वे लाल-पीली बत्तियां, वे मनुहार करते लोगों की भीड़ न जाने कहां गुम हो जाती हैं। यकीन न हो तो देखिये- वे राजनैतिक, प्रशासनिक चेहरे जो पदों से जैसे ही मुक्त हुए, समाज में रहते हुए भी वानप्रस्थ की मानसिकता में जी रहे हैं। प्रस्तुत है कालसर्प की विस्तृत व्याख्या और सभी को संदेश देने वाली आज की कवर स्टोरी।

मानव एक चिन्तनशील प्राणी है। वह अपने अतीत, वर्तमान अैर भविष्य के संबंध में निरन्तर चिन्तनशील रहता है। हमारा जीवन किन अज्ञात बिन्दुओं पर थिरकाता है? क्या कोई ऐसा अदृश्य नियन्ता है, जो हमारे जीवन को संचालित करता है? और भविष्य में झांकने का प्रथम प्रयास किया होगा, हमारे ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान अैर तपस्या के बल पर।
'योग वशिष्ठÓ नामक ग्रंथ के रचयिता भगवान श्रीराम के गुरु वशिष्ठ हैं। इस ग्रंथ के मूल में गुरु और शिष्य का संवाद है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने जब अपने गुरु से पूछा कि क्या आप सरीखे गुरु वशिष्ठ और मुझे सरीखे राम पूर्व में और भी जन्म ले चुके हैं? तब गुरुदेव ने उत्तर दिया - जिस तरह समुद्र में लहरें बनती हैं, उठती हैं औद समुद्र में ही विलीन हो जाती है, उसी प्रकार सरीखे पूर्व में 14 राम और मुझे सरीखे 14 वशिष्ठ जन्म ले चुके हैं। इसी प्रकार महर्षि बाल्मीकी ने भगवान राम का चरित्र बाल्मीकी रामायण में घटनाओं का विधिवत् चित्रण पूर्व में ही लिख दिया था। निरन्तर वैज्ञानिक शोधों और अविष्कारों के बल पर अब यह स्पष्ट हो गया है कि इस पृथ्वी पर जो प्रकाश दिखाई दे रहा है। वह केवल सूर्य का नहीं अपितु इस प्रकाश में अन्य सैकड़ों ग्रहों का प्रकाश भी मिला हुआ है। उन ग्रहों से निरन्तर प्रकाश आता रहता है और वे प्रकाश रश्मियां मानव जीवन को प्रेरित करती रहती हैं। तात्पर्य यह है कि ये रश्मियां मानव को आंदोलित करती हैं, परन्तु किस ग्रह की रश्मियों ने मानव को कितना प्रभावित किया, इसकी जानकारी के लिए ज्योतिष का सहारा लिया जाता है।
ज्योतिष और काल निर्णय अपने आप में एक महत्वपूर्ण कृति है। समय का चक्र निरन्तर चलता रहता है। आज तक संसार में जितने भी महाबलि विद्वान, योगी, तांत्रिक और मंत्री शास्त्री पैदा हुए हैं, उन सभी ने काल को बांधने की चेष्टा की है, परन्तु अपने इस उद्देश्य में कोई भी व्यक्ति पूर्णत: सफल नहीं हो सका।
महर्षि पाराशर एवं वराह मिहिर जैसे प्राचीन ज्योतिषाचार्यों ने काल सर्प योग को माना है। महर्षि भृगु, कल्याण वर्मा, बादनारायण, महर्षि गर्ग, मणित्थ आदि आचार्यों ने अपने-अपने ग्रंथों में इसका जिक्र किया है। जैन ज्योतिष में काल सर्प योग की व्याख्या है।
वास्तव में राहु-केतु छाया ग्रह है। राहु का नक्षत्र 'भरणीÓ है एवं इसका देवता 'कालÓ है। केतु का नक्षत्र 'अश्लेषाÓ है एवं इसके देवता 'सर्पÓ हैं। 'काल सर्प योगÓ के प्रभाव के कारण जातक के जीवन में संघर्षों की अनवरत धारा प्रवाहित होती रहती है किन्तु कुण्डली में बैठे अन्य शुभ योग जातक को आश्चर्यजनक सफलायें दिलाकर उन्हें पौराणिक नायक, स्वतंत्रता का जनक अथवा तानाशाहों का शहंशाह बना देता है।
जन्म कुण्डली में सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य स्थित हों, तो ऐसी स्थिति में जातक की कुण्डली में कालसर्प योग बनता है। राहु केतु की बजाय, केतु-राहु के बीच फंसे ग्रह ज्यादा कष्ट दायक देखे गए हैं। इनको हम राहुमुखी कुण्डली और केतुमुखी भी कह सकते हैं।
केतु मुखी काल सर्प योग वाली कुण्डली के जातक अत्यन्त कष्ट भोगने के बाद भी राज योग को भोगते हैं। 27 नक्षत्रों में से रोहणी एवं मृगशिरा नक्षत्रों की योनियां भी सर्प योनियां मानी जाती गई हैं। योग शास्त्र के अनुसार मूलधार चक्र में पीठ की रीढ़ के पास प्रारम्भ में कुण्डलिनी का आवास है, जो सर्प की भांति कुण्डली मारे बैठी है।
मनुष्य की वैज्ञानिक पूर्णता इस कुण्डलिनी के ज्ञान से ही होता है। इसलिए  कुण्डलिनी या सर्प दोनों अवस्थाएं एक समान हैं। भगवान श्री रामचन्द्र जी के चौदह वर्ष तक वनवास में साथ देने वाले लक्ष्मण जी शेष नाग के अवतार थे। भगवान शिव, देवों के देव महादेव हैं। ज्ञान और मोक्ष उनके ही आधीन है। सम्पूर्ण तंत्र शास्त्र पर भगवान महादेव का अधिकार है, उनका शरीर नागों से लिपटा हुआ है। जैन सम्प्रदाय के 23वें तीर्थंकर, जिनकी दिव्य चेतना, पे्ररणा आज भी अस्तित्व में है, शीघ्र प्रसन्न होने वाले भगवान श्री पाश्र्वनाथ जी का नाम नागकुमार, धरणेन्द्र के साथ ही लिया जाता है। फन वाले नाग का मस्तक छत्र भगवान पाश्र्वनाथ की पहचान है।
नाग सम्पत्ति का प्रतीक है, दुनिया की तमाम धन सम्पत्तियों पर नागों का ही अधिपत्य है, जो व्यक्ति धन सम्पत्ति की लालसा से मुक्त होते हैं, उनकी कुण्डलिनी जाग्रत होकर उन्हें इस नागपाश से पूर्णतया मुक्त कर देती है। राहु-केतु के नागपाश से केवल महपुरुष ही मुक्त होकर समय को अपने वश में कर लेते हैं।

राहु के गुण-अवगुण
राहु के गुण-अवगुण शनि जैसे हैं। शनि की तरह राहु भी आध्यात्मिक चिन्तन, दीर्घ विचार एवं गणित के साथ आगे बढऩे का गुण अपने पास रखता है। राहु मिथुन में उच्च तथा कन्या राशि में स्वगृही कहलाता है। राहु के मित्र  शनि, बुध और शुक्र हैं। सूर्य, चन्द्र और मंगल उसके शत्रु ग्रह हैं। गुरु उसका सम ग्रह है।
केतु में मंगल के गुण धर्म हैं। मंगल, शुक्र-केतु के मित्र हैं। चन्द्र, बुध, गुरु उसके सम ग्रह हैं। सूर्य और शनि उसके शत्रु हैं। जातक का 'भाग्य-प्रवाहÓ राहु-केतु (कालसर्प) अवरुद्ध अवश्य करते हैं, परिवार में कलह, वैवाहिक जीवन में कटुता या अलगाव रहता है किन्तु जातक के भाग्य का निर्णय करने में राहु-केतु का बड़ा योगदान है। दक्षिण भारत में राहु काल सभी शुभ कार्यों में निषिद्ध माना गया है। राहु भाग्य कारक है एवं केतु मोक्ष कारक है। केतु और शनि की युति फलदायक होती है।
कालसर्प योग कब नहीं बनता
सभी ग्रह राहु-केतु के मध्य में हों, यदि एक ग्रह भी अलग हो तो कालसर्प योग नहीं बनता। राहु-केतु की महादशा, अन्तर्दशा एवं गोचर भ्रमण का फल कथन महत्वपूर्ण है।
खण्डित काल-सर्प योग
जन्म कुण्डली में राहु केतु के मध्य सातों ग्रहों के आ जाने पर काल सर्प योग बनता अवश्य है किन्तु शेष पांच भावों में से एक भी भवन ग्रह रहित होगा, तो खण्डित कालसर्प योग होगा।

काल सर्प योग की विशेषताएं
इस योग की खासियत है कि काल सर्प योगियों का जन्म निश्चित रूप से कर्म-भोग के लिए है। किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए अवतरित आत्मा की सन्तान भी कालसर्प योगी ही होगी। सूक्ष्म दिव्य संचालन राहु केतु करते हैं। अब्राहिम लिंकन एवं पंडित जवाहर लाल नेहरू इस योग के अच्छे उदाहरण हैं। मान लीजिए किसी दम्पत्ति को बाल बच्चा नहीं हो रहा है। ऐसे प्रसंग में किसी सिद्ध ब्रह्मनिष्ठ संत के आशीर्वाद से उन्हें बाल-बच्चा हो गया तो वह बालक भी काल सर्प योग का ही होगा। पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म से भी ऐसी किवदंती जुड़ी है कि पंडित मोतीलाल नेहरू को एक ब्रह्मनिष्ठ साधु ने आशीर्वाद दिया था, फलस्वरूप काल सर्प योगी पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म हुआ।
'काल सर्पÓ योग व्यक्ति, सामान्य व्यक्ति से कुछ अलग होते हैं। इसके अलावा इस योग के सकारात्मक फल भी होते हैं। साथ ही नकारात्मक फल भी इस योग में अन्य ग्रहों के कारण बनते हैं।

स्वतंत्र भारत की कुण्डली
कालसर्प योग सकारात्मक हो तो जन्म के समय के राहु पर से गोचर में राहु का जब भ्रमण होगा तब या राहु की अठारह वर्षों के दशाकाल में श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है। रिलायंस इण्डस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी का जन्मांक इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। वहीं दूसरी ओर कालसर्प योगी हर्षद मेहता रंक से राजा और राजा के रंक बनकर मृत्यु को प्राप्त हुआ।
पैसे से समृद्ध लोगों में काल सर्प के साथ राहु चन्द्र की युति या अंशात्मक केन्द्र योग राहु की महादशा में या गोचर राहु के भ्रमण काल में कंगाल योग भी बना देती है। ऐसे प्रसंगों में नाग देवता का पूजन काफी हद तक समाधान कारक होता है।
जन्म कुण्डली में द्वादश भवन में बैठा शुक्र बेशुमार सम्पत्ति का स्वामी बनाता है, यदि अन्य ग्रह अनुकूल हों। किन्तु काल सर्प योग में धनेश एवं भाग्येश व्यय स्थान में होने से रंक (दरिद्र) का योग बना देता है।
स्वतंत्र भारत की कुण्डली में कालसर्प योग है। इस कालसर्प योग से भारत को स्वतंत्रता के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू के रूप में पहला प्रधानमंत्री भी काल सर्प योग प्राप्त हुआ। काल सर्प योग की कुण्डलियों में सदैव बुरे फल नहीं मिलते। अपवाद स्वरूप कुछ ग्रही योगों के कारण अच्छे फल भी व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। काल सर्प योग वाली कुण्डली के किसी भाव में सूर्य और चन्द्र की युति हो तो व्यक्ति उन्नति के लिए अथक परिश्रम करते हैं, मुसीबतों से सामना करते हैं और अन्तोगत्वा सफल जीवन बिताते हैं।
कालसर्प योग की कुण्डली में चन्द्रमा से केन्द्रस्थ गुरु, बुध से केन्द्रस्थ शनि हो तो ऐसे जातक पर्याप्त में ऐश्वर्य भोगते हैं।

कालसर्प योग में राजयोग
जातक की कुण्डली में काल सर्प योग भी बन रहा है। किन्तु सप्तम भवन का स्वामी कर्म भवन में स्थित हो और कर्मेश अपनी उच्च राशि में स्थित होकर भाग्येश के साथ हो तो श्री नाग योग बनेगा। इस योग वाले जातक राजयोग तो भोगेंगे ही।
काल सर्प योग वाला यह जातक केन्द्रीय मंत्री बना। राजभवन में गज केसरी योग। हवाला काण्ड में अभियुक्त बना, परन्तु केतु में लग्नेश की अन्तर्दशा में आरोपों से बरी हो गया। यह विषधर कालसर्प योग वाली कुण्डली है। यह सुनिश्चित है कि काल सर्प योग वाला जातक (स्त्री+पुरुष) कितने भी समृद्ध अथवा गरीब परिवार मेें जन्म लें-संघर्षों की वेदना का अहसास तो उसे करना ही होगा, किन्तु शुभ योगों के चमत्कार से युगपुरुष बन सकता है। जातक को, फिर चाहे चाणक्य रहे हो या महात्मा गांधी या पंडित नेहरू अथवा सरदार बल्लभ भाई पटेल या अनगिनत काल सर्प योगी स्त्री-पुरुष।

अनिष्ट निवारण :-
जनश्रुतियों के अनुसार काल सर्प से अरिष्ट निवारण हेतु भगवान आशुतोष (शिव) के मंदिर में सवा लाख ऊँ नम: शिवाय का जाप करें। पाठोपरान्त रुद्राभिषेक करवाने का विशेष महत्व है। साथ ही शिवलिंंग पर चांदी का सर्प युगल नाग स्त्रोत, नाग पूजनादि करके चढ़ाना शुभ होगा।
नाग गायत्री मंत्र
(1) ऊँ नव कुलाय विदमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
(2) प्रत्येक शनिवार एक नारियल को तेल एवं काले तिल का तिलक लगाकर मौली लपेटकर अपने सिर पर से तीन बार घुमाकर 'ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:Ó मंत्र कम से कम तीन बार पढ़कर बहते पानी (नदी) में बहा देवें, ऐसा कम से कम पांच शनिवार करें।
(3) घर के चौखट द्वार पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर लगाएं।
(4) शांति के अन्य विधान भी हैं। ज्योतिषत तंत्र में अन्य उपाय भी बताएं गए हैं।

रत्न धारण :-
जन्म कुण्डलियों के अनुसार यदि राहु अथवा केतु की दशा चल रही हो तो राहु के लिए 'गोमेदकÓ एवं केतु के लिए 'लहसुनियाÓ विधि-विधान से धारण करें।
जैन सम्प्रदाय :-
जैन धर्म की मान्यता से जुड़े व्यक्ति भगवान पाश्र्वनाथ की विधि-विधान से पूजन करें।

कालसर्प वाले जातकों की कुंडलियां

एक व्यक्ति, जो कालसर्प योग की गति को पहचान कर चलने लगा है?
अरुण सहलोत, सीएमडी (राज ग्रुप, भोपाल)
जन्म दिनांक : 4 जुलाई 1964, जन्म समय : 5.30 शाम, जन्म स्थान : अकोला (राजस्थान)
प्रस्तुत कालसर्प योग वाली कुंडली में वर्गोत्तम ग्रह बुध एवं स्वक्षेत्री शुक्र तथा चतुर्थ भवन का स्वामी शनि जन समर्थन का प्रतीक होकर मूलत्रिक राशि में पदस्थ है। राहु-केतु भी मूलत्रिक राशि में पदस्थ है। गजकेसरी योग, शश योग,मालव्य योग, केन्द्र त्रिकोण योग, सरल योग, स्व-अर्जित धन योग, कर्मजीव योग, मंगल-शुक्र योग, बुध-आदित्य योग, प्रबल राजयोग तथा अखण्ड साम्राज्य योग बन रहा है।
जातक के जीवन में 30 जनवरी 1992 से भाग्य की महादशा का आगमन हुआ। ज्योतिष ग्रंथों में कहा गया है कि एक तो भाग्येश की महादशा जीवन में आती ही नहीं, और जिन्हें आ जाती है वह रंक से राजा और राजा से महाराजा बनता है। जातक को गजकेसरी योग के साथ भाग्येश (चन्द्रमा) की महादशा आई, जो 30 जनवरी 1992 से 30 जनवरी 2002 तक रही। भाग्येश की महादशा ने इस जातक को 'फर्श से अर्सÓ तक पहुंचाया, किन्तु कालसर्प योग कहां मानने वाला था। भूमि-भवन, वाहन की महादशा-मंगल की आई, सात वर्षों के लिए। 30 जनवरी 2002 से 30 जनवरी 2009 तक भूमि-भवन के निर्माण तथा विक्रय एवं दैनिक राजएक्सप्रेस का स्वामी बनकर यह जातक राजनीतिज्ञों तथा प्रशासन तंत्र से जुड़े व्यक्तियों की छत्र-छाया में विकास का एक नया अध्याय रचने में सफल हुआ। अब आई राहु की महादशा- सब कुछ ठीक चल रहा था, किन्तु राहु में राहु का अन्तर तथा सूर्य और चन्द्र के प्रत्यन्तर ने 7 अप्रैल 2011 से 13 अक्टूबर 2011 तक जो ग्रहण योग बनाया उस समय आपदाओं का एक ऐसा दौर चला कि बाहरी व्यक्तियों ने समझा कि यह व्यक्ति तो तहस-नहस हो गया है, दोष किसी का नहीं? राहु ने इस जातक को अभिमानी बनाया और जिसकी परिणिति सुखदायी नहीं रही। किन्तु कालसर्प योगी यह जातक अपने अद्म्य साहस से पुन: राजनैतिक सामंतों का प्रिय पात्र बनने में सफल होता जा रहा है। अप्रिय अन्तर-प्रत्यन्तर दशाएं कालातीत हो चुकी हैं।
यक्ष प्रश्न मौन खड़ा है? राजयोग और अखण्ड साम्राज्य योग कब और कैसे बनेगा? राजनीति के जानकार इस प्रश्न का उत्तर साधारण रूप में दे सकते हैं। यथा, नवम्बर 2013 में मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव तथा अप्रैल 2014 में लोकसभा के चुनाव हैं। जातक आर्थिक दृष्टि से समृद्ध है, एक बड़े दैनिक समाचार पत्र राजएक्सप्रेस का मालिक है। सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष को भी हर प्रकार से सहयोग की आतुरता तो रहेगी ही? राज्यसभा से सांसद बनने का योग भी राजनीतिज्ञ देख सकते हैं।
किन्तु, मैं एक ज्योतिषी हूं। कालसर्प योग वाला व्यक्ति अद्भुत आंतरिक शक्तियों का स्वामी होता है। जातक के जीवन में राहु में गुरु का अन्तर 7 मार्च 2014 तक चलेगा, साथ ही सिद्धा की महादशा 28 मई 2012 से 29 मई 2019 तक चलेगी। राजनीति के किस शिखर बिन्दु पर यह जातक पहुंचेगा, आज यह बात कहना समयोचित नहीं? प्रतीक्षा कीजिये और देखिये जातक की कालसर्प योग वाली कुंडली में 'राजयोगÓ एवं 'अखण्ड साम्राज्य योगÓकब, कैसे फलीभूत होता है?

महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य की कुण्डली
महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य की कुण्डली में इसी प्रकार का कालसर्प योग था। इन्हें प्राचीन काल में गुप्त साम्राज्य का संचालक और बिना ताज का बादशाह माना जाता रहा है। राहु-केतु सदैव पीछे (वक्री) की ओर चलते हैं। ग्रह जब अपनी नैसर्गिक गति से आगे की राशि को पार करते हैं, वहीं उल्टी (वक्र गति) चाल से चलता हुआ राहु-केतु उन सभी ग्रहों को बीधता रहता है। एक अजीब बिडम्बना है कि जब राहुल की छाया से सभी ग्रह एक बार गुजर जाते हैं तो जातक की पुन: कालसर्प योग की दशा आरम्भ हो जाती है।
काल सर्पयोग एक सत्त अनुसंधान का विषय है। इसमें कुल मिलाकर सैकड़ों किस्म के कालसर्प योग पैदा होते हैं और इतने विपरीत 'राजयोगÓ भी कालसर्प योग के कारण बनते बिगड़ते रहते हैं।

आदिगुरू शंकराचार्य
प्रस्तुत जन्म कुण्डली में भाग्येश गुरू, शनि की राशि कुम्भ में तथा शनि गुरू की राशि में अंतर महायोग बना रहा है। अर्थात् षष्ठेश गुरू का अष्टमेश शनि से राशि  परिवर्तन आध्यात्मिक योगी का सूचक है। पंचमेश मंगल भाग्य भवन में तथा पंचम में उच्च राशिगत केतु के ऊपर लग्नेश चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि पडऩे से ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक नींव रखने वाला शिव शक्ति का उपासक होता है।
कुम्भ राशिस्थ गुरू अष्टम् भवन में होने से ऐसा जातक पूर्वजन्म का योगी होता है। आत्मज्ञानी महापुरुष ही फिर इस पृथ्वी पर जन्म लेता है।
यह काहल योग से प्रभावित कालसर्प योग वाली कुण्डली है। ऐसा व्यक्ति दृढ़ चरित्र, बलिष्ठ शरीर, साहसिक कार्यों में ज्यादा रूचि, सेना में उच्च पद। चंगेज खां ने विश्व विजय का सपना देखा था। खतरनाक कार्यों एवं युद्धोन्माद में ही  असीम आनंद प्राप्त करता था, परन्तु पतन भी उसकी असफल नीतियों से हुआ।

विषधर कालसर्प योग : अकबर महान (मुगल बादशाह)
जन्म 23.11.1542, समय 4.30 शाम (अमरकोट) पाकिस्तान
राज्य भवन के अधिपति चंद्रदेव की भाग्य भवन पर पूर्ण दृष्टि। पंचमेश-चतुर्थेश शनि अपनी उच्च राशि तुला में लग्नेश शुक्र के साथ विराजमान है। चतुर्थ भवन (जन भावनाओं का प्रतीक) में उच्च राशिगत मंगल राज्य भवन को निहार रहा है। यह सर्वविदित है कि मुगल साम्राज्य में अनेक बादहशा हुए मगर बादहशाह अकबर को ही इतिहास में अकबर महान कहा गया है।

शेष नाग काल सर्प योग : पण्डित जवाहर लाल नेहरू (प्रधानमंत्री)
जन्म 14.11.1889 समय 2.30 रात्रि (इलाहाबाद)
पंडित जवाहरलाल नेहरू की कुण्डली के कालसर्प योग में सभी ग्रह केतु मुखी गोचर के हैं। यहां पर राहु अपनी मित्र क्षेत्रीय राशि मिथुन में बैठा होने से बलवानहै तथा शत्रु भवन में बैठे केतु को स्वक्षेत्री गुरू का बल मिला है, जो प्रबल शत्रुहन्ता योग बना रहा है। शत्रुहल्ता योग प्रबल होने से कामकाज योजना के माध्यम से तत्कालीन राजनैतिक दिग्गजों को सत्ता के सिंहासन से राजनैतिक वन-गमन का योग चरितार्थ वन-गमन का योग चरितार्थ करवा दिया। स्वक्षेत्री चन्द्र, शुक्र, गुरू तथा द्वितीयस्थ शनि की तृतीय दृष्टि उच्च राशि (चतुर्थ भवन तुला) में होने के कारण जन-जन का उन्हें समर्थन मिला। एक दर्शनीय बात यह भी है कि अनेक संघर्षों के बाद एक दिन वह सफलता को प्राप्त कर ही लेता है। जिसा प्रकार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करते रहे, अनेक बार जेल गए, पुलिस की लाठियों की मार झेली ओर संघर्षों के बाद एक दिन वह सफलता को प्राप्त कर ही लेता है। जिस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करते रहे, अनेक बार जेल गये, अनेक बार जेल गये, पुलिस की लाठियों की मार झेली और संघर्ष करते-करते 60 साल की आयु में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और लगभग 17 वर्षों तक (जीवनपर्यन्त) विशाल भारत के प्रधानमंत्री रहे। क्या यह योग चक्रवर्ती राजा के समान नहीं है।

शेष नाग कालसर्प योग : डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (राष्ट्रपति)
जन्म 6.9.1888, समय 6.00 प्रात: (मद्रास)
डॉ. सर्वपल्ली राधा कृृष्णन का लग्नेश सूर्य जो शासन का प्रतिनिधित्व करता है, लग्न में लग्नेश बनकर बैठा है। धनेश और लाभेश अपनी उच्च राशि बुध में द्वितीय भवन में विराजमान है। लग्नस्थ चन्द्रदेव से चतुर्थ भवन में बैठकर पंचमेश गुरू गजकेसरी योग बना रहे हैं। कर्मेश जो स्वयं पराक्रमेश भी है।
ऐसा शुक्र प्रवल राजयोग भी बना रहा है। भाग्येश मंगल चतुर्थ भवन में अपनी राशि में पदस्थ होकर राज्य भवन को देख रहा है। गजकेसरी योग ने उन्हें विश्वस्तरीय दार्शनिक बनाया तथा प्रबल राजयोग में उन्हें 10 वर्षों तक उपराष्ट्रपति तथा 5 वर्षों तक स्वतंत्र भारत का द्वितीय राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य प्रदान किया।

शेषनाग कालसर्प योग : सरदार वल्लभ भाई पटेल (प्रथम गृहमंत्री : भारत)
जन्म 30.10.1875 समय 5.25 सांय (गुजरात)
लौह पुरूष के नाम से ख्याति प्राप्त सरदार वल्लभ भाई पटेल की कुण्डली में पंचमेश और भाग्येश स्वक्षेत्री सप्तमेश के साथ सप्तम भवन में विराजमान है। परमोच्च लग्नेश (मंगल) अष्टमेश होकर स्वक्षेत्री शनि केसाथ अपनी उच्च राशि मकर में राज्य भवन में विराजे हैं। शेष नाग कालसर्प योग का यह जातक स्वतंत्र भारत को एक ऐसा दुर्धस्थ राजनयज्ञ था, जिसने तत्कालीन सभी राजाओं और नबावों को भारत में विलय के संधि पत्रों में हस्ताक्षर करवाये।
निजाम ओर बूंदी के नबाव सहज में सहमत नहीं थे तो उन्हें किस तरह सहमत करवाया। अनेक किवदंतियां मशहूर हैं- दूसरे शब्दों में कहें कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। मात्र एक विवाद शेष रहा, जो आज भी सिर दर्द बना है - कश्मीर समस्या? नेहरू जी कश्मीर के मसले पर अति संवेदनशील थे। उन्हीं के आग्रह पर सरदार पटेल चुप हो गये। दुर्भाग्यवश उनकी सत्ता की भागीदारी लम्बी नहीं चली और उनका देहान्त हो गया। सरदार पटेल, नेहरू जी से 14 वर्ष बड़े भी थे।

वासुकी काल सर्प योग : एडोल्फ हिटलर (जर्मन)
जन्म 20.4.1889, समय 19.30 जर्मनी
लग्नेश की लग्न में दृष्टि, पराक्रमेश एवं दसमेश की युति साथ ही यह युति गजकेसरी योग बना रही है। भाग्य भवन में जन समूह का समर्थन, पंचमेश अर्थात् वाणी का अधिपति शनि भाग्य भवन में पदस्थ होकर पराक्रम भवन तथा शत्रु भवन को निहार रहा है। उच्च राशिगत सूर्य, स्वेक्षेत्री मंगल और गुरू मित्र क्षेत्रीय भाग्यस्थ राहु और केतु पराक्रम भवन में होने से जातक को कलह प्रिय बनाता है। वासुकी काल सर्प योगी एडोल्फ हिटलर जर्मन का एक ऐसा शासन बना, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध का पुरोधा कहा जाता है। किन्तु इतिहास के गर्भ में 1914 से 1919 के मध्य चला प्रथम विश्व युद्ध था, जिसने जर्मन के विरूद्ध वारसा की संधि थोप दी। शरीर कमजोर, दृष्टि में भी कमजोर एक युवक ने अपने अद्म्य साहस से सैनिक फिर जर्मन के चॉसलर का ओहदा प्राप्त किया तथा सम्पूर्ण विश्व को झकझोर दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध में लगभग 4 करोड़ मानव प्रभावित हुये थे- यूरोप तो लहुलहूान हो गया। 10 लाख पौलेण्ड वासी मारे थे? इसलिए कहा जाता है कि किसी का इतना अपमान मत करो कि वह बदला लेते समय पागलपन की सीमा लांघ जाये।

मुसोलिनी इटली : शेष नाग कालपर्स योग
प्रस्तुत कुण्डली द्वितीय विश्वयुद्ध में एडोल्फ हिटलर के प्रमुख सहयोगी रहे इटली के तानाशाह मुसोलिनी की है। इस कुण्डली में राहु अपनी मित्र राशि में है। राज्य भवन का अधिपति सूर्य का भवन में तथा भाग्येश परमोच्च होकर, चतुर्थेश और पराक्रमेश शनि तथा लग्नेश मंगल के साथ सप्तम भवन में विराजमान है। इसलिए सम्राट योग बना रहे हैं। शत्रुहन्ता मंगल (पराक्रमेश) शनि से युक्त होकर कू्रर शासक बनाते हैं।

अब्राहम लिंकन (राष्ट्रपति अमेरिका)
पराक्रमेश मंगल अपनी सप्तम दृष्टि से पराक्रम भवन को निहार रहा है तथा अष्टम दृष्टि से सुख भवन को। सप्तमेश (सूर्य) एवं पंचमेश (बुध) लग्न में युत होकर केन्द्र त्रिकोण योग के साथ गुध आदित्य योग बना रहे हैं। लग्नेश दसम भवन में दिग्बली होकर बलवान स्थिति में विराजमान है। कालसर्प योग की इस कुण्डली ने जातक को राष्ट्रपति का योग बना।
 
श्रीमती मारग्रेट थैचर (पूर्व प्रधानमंत्री, इंग्लैण्ड)
प्रस्तुत कुण्डली बिट्रेन की प्रधानमंत्री रह चुकी श्रीमती मारगे्रट थैचर की है।यह भी कालसर्प योगी है। लग्नेश मंगल राज्य भवन के स्वामी सूर्य के साथ लाभ भवन में विराजमान है। जो प्रबल योग कारक है सूर्य तो स्वयं राज्य कृपा का कारक है। शनि, तुला राशि में उच्च का होकर स्थित है और गुरू स्वराशि का होकर द्वितीय भवन में स्थित है।
जन शक्ति का स्वामी शनि उच्च शाशिगत, पंचम स्थान बुद्धि, द्वितीय स्थान वाणी, और शासन करने की योग्यता का स्वामी होकर स्वराशि गुरू अपनी नवम दृष्टि से राजभवन को देख रहा है, जहां भाग्येश चन्द्रमा भी विराजमान है।
श्री अय्युब खांन : शेष नाग काल सर्प योग
प्रस्तुत कुण्डली में राहु अपनी मित्र राशि तुला में है। चतुर्थेश शनि जो पराक्रमेश भी है। स्वराशि होकर पराक्रम भवन में विराजमान है। पंचम अर्थात् विद्या बुद्धि-विवेक तथा नवम भवन (भाग्य भवन) तथा द्वादश भवन को निहार रहे हैं। लग्न भवन में सप्तमेश एवं लग्नेश की युति प्रबल राजयोग कारक है, साथ में बुध आदिपत्य योग भी राजयोग बना रहा है।
पंचमेश गुरू एवं भाग्येश चन्द्र पूर्ण बली होकर गजकेसरी योग के साथ महाप्रतापी सम्राट योग बना रहे हैं।
शंखपाल कालसर्प योग - सद्दाम हुसैन (राष्ट्रपति : इराक) की कुण्डली
धनेश सूर्य राज्य भवन में उच्च राशिस्थ पदस्थ है। भाग्य भवन में गुरू एवं भाग्येश गुरू स्वयं विराजमान है साथ्ज्ञ जनमानस का प्रतिनिधित्व करने वाले चतुर्थ भवन के स्वामी जो लग्नेश भी है अर्थात् शुक्र भाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजमान हैं। शत्रु भवन के स्वामी गुरू भी भाग्येश होकर भाग्य भवन में बैठा है।
अत: ऐसा जातक अनुशासन प्रिय तथा प्रबल राज्य योग प्राप्त कर जीवन पर्यन्त विश्व शक्तियों के समक्ष नहीं झुका।

कुलिक कालसर्प योग : पीवी नरसिंहराव (पूर्व प्रधानमंत्री)
जन्म : 28 जून 1921, जन्म समय : दोपहर 1 बजे, जन्म स्थान : करीम पट्टी (आंध्रप्रदेश)
प्रस्तुत कुंडली में गुरु सप्तमेश एवं चतुर्थेश होकर पंचमेश एवं षष्ठेश के साथ बारहवें भवन में बैठकर शत्रु भवन को पूर्ण दृष्टि से निहार रहे हैं। गुरु और शनि शत्रु भवन के कारक ग्रह हैं।
ज्योतिषी चमत्कार देखिये : प्रधानमंत्री राजीवगांधी ने नरसिंहराव को राज्यसभा का टिकट भी देने से मना कर दिया था। सन् 1991 के चुनावी समर में तमिलनाडु की एक चुनावी सभा में मानव बम से राजीव गांधी की हत्या हो गयी। हत्या से उपजी सहानुभूति ने कांग्रेस को सत्ता के करीब लाकर खड़ा कर दिया। भाग्यवश चौधरी अजीत सिंह के लोकदल के सहयोग से पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बन गए। कांग्रेस में शत्रु दलन का जो खेल नरसिंहराव ने खेला वह कम चमत्कारिक नहीं था। माधवराव सिंधिया तथा अर्जुनसिंह सत्ता और पार्टी से अलग कर दिए गए। श्रीमती सोनिया गांधी 10 जनपथ तक सीमित रह गईं। स्मरणीय रहे, किन्तु तत्कालीन समय में अर्जुन सिंह ही भारतीय राजनीति में चाणक्य की भूमिका में सफल हुए और 10 जनपथ उस समय से आज भी भारतीय राजनीति का सिरमौर बना हुआ है किन्तु कुलिक कालसर्प योग वाले पीवी नरसिंहराव ने शतरंज की ऐसी चाल चली कि कांग्रेसी दिग्गज उनके शासनकाल में अपनी राजनीतिक काया को तलाशते रहे।

श्रीमती भंडार नायके (प्रधानमंत्री, श्रीलंका)
प्रस्तुत कुंडली में लग्नेश शनि एवं सप्तमेश सूर्य दोनों में दिग्बली ग्रह शुभ ग्रह चंद्रमा से युत होकर राज्य भवन में स्थित है। इसलिए यह कालसर्प योग वाली महिला श्रीलंका की प्रधानमंत्री रहीं। भाग्येश स्त्री ग्रह है। भाग्येश और पंचमेश बुध की युति के कारण इनकी पुत्री भी श्रीलंका की राष्ट्रपति रहीं।

मोहनलाल सुखडिय़ा (पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान)
प्रस्तुत कुंडली राजस्थान के उस मुख्यमंत्री की है जो 17 वर्षों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। कालसर्प योग वाली कुंडली में पंचमेश मंगल दिग्बली होकर राज्य भवन में विराजमान होकर लग्न, चतुर्थ और पंचम भवन में स्थित लग्नेश गुरु को देख रहे हैं।

माधवराव सिंधिया (महाराजा, ग्वालियर)
भाग्येश चंद्र धन भवन में स्थित है। लग्नेश मंगल उच्च राशिगत होकर पराक्रम भवन में विराजमान है और अपनी अष्टम दृष्टि से राज्य भवन को निहार रहे हैं। लाभेश बुध नीच राशि का होकर पंचम भवन में पदस्थ है। राज्येश सूर्य चतुर्थ में बैठकर अपनी पूर्ण दृष्टि से राज्य भवन को निहार रहे हैं। चौथा भवन जनता का भाव भी है। अत: जन्म से तो श्रीमंत महाराजा थे, जनता द्वारा ये चुनावी समर में जीवन पर्यन्त विजयी रहे। कथन यह है कि कालसर्प योग में जन्मा यह विशिष्ट व्यक्ति हंसमुख और जन प्रिय नेता के रूप में सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

जमशेद टाटा
सुखेश और लाभेश उच्च राशिगत होकर (शुक्र) भाग्य भवन में विराजमान हैं। कुंडली गज केसरी योग तथा चंद्र मंगल की युति प्रबल धन योग बनाती है। सप्तमेश शनि पंचम भाव में स्थित होकर सप्तम, आय एवं लग्न भवन को निहार रहा है। यह काल सर्प योग वाली कुंडली भी देश में अग्रणी उद्योगपति टाटा ग्रुप के संस्थापक की है।

फिल्म अभिनेता अशोक कुमार
जन्म : 16 सितंबर 1911, समय : रात्रि 8 बजे, स्थान : कलकत्ता
फिल्म अभिनेता अशोककुमार की कालसर्प योग वाली इस कुंडली में मेष लग्न से लेकर सप्तम भवन तक सभी सातों ग्रह राहु के मध्य विराजमान हैं। चंद्र, मंगल योग वाला धनवान होता है तथा अर्थ संचय में प्रवीण होता है। अनेक स्त्रियों से उसका संपर्क रहता है। इस कालसर्प योग वाला जातक दीर्घायु, धनवान, भोगी और ऐशो-आराम में जीवन बिताने वाला होता है।

फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार
सुखेश चंद्रदेव केंद्र भवन में बैठकर अपने स्वगृही स्थान चतुर्थ भवन को देख रहे हैं। लग्नेश सप्तमस्थ होकर लग्न को देख रहे हैं। सूर्य बुध की युति से बुधादित्य योग बना रहा है। भाग्येश भाग्य स्थान में पदस्थ होकर धनेश शुक्र के साथ षष्टम भवन में स्थित है। पंचमेश  गुरु व्यय भवन में स्थित होकर सुखेश (जनता) शनि एवं भाग्येश चंद्रमा को अपनी पूर्ण दृष्टि से निहारते हुए गजकेसरी योग भी बना रहे हैं। राज्य भवन का स्वामी सूर्यदेव पराक्रम में बैठकर भाग्य भवन को निहार रहे हैं। इसलिए कालसर्प योग धारी गजकेसरी योग से प्रभावित यह जातक अमेरिका का राष्ट्रपति बना।

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर
जन्म दिनांक : 8 सितंबर 1929, समय : 9.55 बजे, इंदौर (मप्र)
कुंडली विश्वविख्यात स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की है। इस कुंडली में व्यय स्थान से छठे स्थान तक सभी ग्रह होने के कारण शेषनाग कालसर्प योग बन रहा है। इस योग के कारण वे आजीवन वैवाहिक सुख से वंचित रहीं। वाणी का स्वामी बुध त्रिकोण पंचम भाव में चतुर्थेश सूर्य के साथ बुधादित्य योग बना रहा है। इसी कारण जातक की सुरीली, मधुर आवाज ने उन्हें विश्व की सर्वश्रेष्ठ गायिका बना दिया। नाम और पैसा बहुत मिला, जीवन पर्यन्त कभी विवादास्पद नहीं रहीं। उन्होंने अपना सारा जीवन संगीत साधना में लगा दिया।

वासुकी कालसर्प योग : शब्दों का सौदागर आचार्य रजनीश
यह जन्मकुंडली महान वक्ता, दार्शनिक और तर्क शास्त्री आचार्य रजनीश की है, जिसने अपने तर्कों से सदियों से चले आ रहे रीति-रिवाजों, परंपराओं और आदर्शों पर अपने विचार रखे। उन्होंने संभोग से समाधि तक मानव को ले जाने वाले सूत्र पर अपने सारगर्भित अकाट्य और तार्किक विश्लेषण प्रस्तुत करके आधुनिक समाज को झकझोर दिया। अष्टम भवन में पंचग्रही योग ने जातक को पराशक्ति से सम्पन्न बनाया। रजनीश से ओशो बने इस कालसर्प योगी ने विश्वख्याति अर्जित की।

विश्वप्रसिद्ध रामकथाकार मुरारी बापू
जन्म दिनांक 25 सितंबर 1946
विश्वप्रसिद्ध रामकथाकार मुरारी बापू की जन्म कुंडली में भाग्य भवन में राहु एवं तृतीय भवन में केतु के मध्य अन्य सभी ग्रह स्थित हैं। शंखचूड़ कालसर्प योग वाली यह कुंडली लोकप्रिय कथाकार की है। जो पूरे देश में भ्रमण कर रामायण का संदेश जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। कन्या लग्न की जन्म कुंडली में बुध के साथ, मन का कारक चंद्रमा और आत्मा का कारक सूर्य भी लग्नस्थ है।  इन तीनों की युति के कारण वे मन, वचन और आत्मा से पूर्णतया राममय हो गए हैं। स्वक्षेत्री शुक्र के कारण मधुर वाणी में भजन, चौपाइयां एवं शास्त्रीय ज्ञान की शक्ति प्राप्त है। शनि त्यागमय प्रवृत्ति का ग्रह है। वह एकादश भवन में बैठकर सादा जीवन और उच्च विचार का संदेश दे रहा है।



कालसर्प योग की कुंडलियों में विशिष्ट ग्रह स्थिति
कालसर्प योग की सभी कुंडलियों में सदैव बुरे फल नहीं मिलते। अच्छे ग्रह योगों के फल स्वरूप ऐसे व्यक्ति हर क्षेत्र में अपनी धाक जमा लेते हैं। असंभव लगने वाला कार्य भी सफलता पूर्वक सम्पन्न करा लेते हैं। ऐसे व्यक्ति धुन के पक्के और रसिक मिजाज तथा किसी कला के विशेषज्ञ होने के कारण समाज में लोकप्रिय हो जाते हैं।
कालसर्प योग के साथ किसी भाव में सूर्य-चन्द्र की युति हो तो जातक उन्नति के लिए अथक प्रयत्न करते हैं, अन्ततोगत्वा सफलता के शिखर को छू लेते हैं। सूर्य के साथ शनि और चन्द्र के साथ बुध की युति हो तो कालसर्प योग वाले जातक धनवान, ख्यातिमान एवं धार्मिक होते हैं। चतुर्थ भवन का स्वामी, जो जनता का प्रतिनिधित्व करता है, स्वक्षेत्री, उच्च राशिगत अथवा वर्गोतम हो तो विधायिका (संसद/विधानसभा) में अपनी उपस्थिति से सत्ताधीशों को चकित कर देता है।

राहु प्रधान व्यक्ति के गुण
जन्म कुंडली में राहु शुभ योग में हो तो व्यक्ति मायावी, किसी भी कार्य को गुप्त रखने वाला, सोच विचार कर कार्य करने वाला, स्वाभिमानी, सम्मानप्रेमी, बोलने से ज्यादा प्रत्यक्ष कर गुजरने वाला तेजस्वी, एक मार्गी, स्वतंत्र रूप से व्यवसाय करने वाला, अपने काम में दूसरों का हस्तक्षेप सहन न करने वाला, अन्याय का मुकाबला करने वाला, सामाजिक और राजकार्यों में कूटनीतिज्ञ, भाग्यवान, चतुर, व्यवहार में दक्ष तथा शत्रुओं का दमन करने वाला होता है। 0 से 20 अंश में राहु अच्छा फल देता है। 20 से 30 अंश में राहु हो तो मिश्रित फल देता है। राहु-केतु के संबंध में ऋग्वेद, अमर कोष, महाभारत, याज्ञवलक्य, स्मृति, अथर्ववेद और जैन ज्योतिष तथा नाड़ी ग्रंथों में विशद् विवेचना की गई है। राहु-केतु का अस्तित्व वेदकालीन होने से फलादेश में उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है।
ज्ञातव्य : किसी जातक की जन्म कुंडली में गुरु पंचम भाव या नवम् भाव में होने से जातक के ऊपर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता है। ऐसे व्यक्ति माया के त्यागी एवं संत समान विचारों से ओत-प्रोत रहते हैं। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों जातक ब्रह्माज्ञानी बनता चला जाता है। ऐसे व्यक्ति की श्राप भी अच्छा असर डालती है। कालसर्प योग वाले जातक दूसरों के लिए जीते हैं। 'स्वान्त: सुखायÓ जीने के लिए ही अपना जीवन है- ऐसा मानने वाले को 'कालसर्पÓ योग दु:खदायी सिद्ध नहीं होगा। जातक के भाग्य का निर्णय करने में राहु-केतु का बड़ा योगदान है। आप पुरुषार्थ करें पर उसकी फलश्रुति राहु-केतु के द्वारा होती है। जातक के पूर्व संचित कर्मों के भोगों की लगाम राहु-केतु के हाथों में है। राहु-केतु की महादशा, अन्तर्दशा एवं गोचर भ्रमण पर नजर रखना महत्वपूर्ण है।

12 प्रकार के कालसर्प योग
प्राचीन विद्वानों ने 12 प्रकार के 'कालसर्पÓ योगों का विश्लेषण किया है और इन योगों को 1. अनंत कालसर्प योग 2. कुलिक कालसर्प योग 3. वासुकी कालसर्प योग 4. शंखपाल कालसर्प योग 5. पदमकाल कालसर्प योग 6. महापदम कालसर्प योग 7. तक्षत कालसर्प योग 8. कर्कोटक कालसर्प योग 9. शंखचूड़ कालसर्प योग 10. घातक कालसर्प योग 11. विषधर कालसर्प योग 12. शेषनाग कालसर्प योग।

ये है महत्वपूर्ण
- राहु से प्रारंभ होने वाला कालसर्प योग ज्यादा खतरनाक होता है। जातक पद, प्रतिष्ठा व पराक्रम प्राप्ति हेतु संघर्षरत रहता है।
- केतु से प्रारंभ होने वाला कालसर्प योग ज्यादा खतरनाक नहीं होता। पद प्रतिष्ठा व पराक्रम थोड़े से संघर्ष में ही फलीभूत हो जाने की संभावना बनी रहती है।


कालसर्प योग के अन्य प्रकार
दृश्य गोलाद्र्ध कालसर्प योग
राहु बारहवें स्थान में एवं अन्य ग्रह 11,10,9,8 स्थानों में होना चाहिए। तभी दृश्य गोलाद्र्ध काल सर्प योग बनता है। इस योग में अच्छी नौकरी, उत्तम कारोबार, धार्मिक ज्ञान और धर्म के प्रति जातक में रुचि रहती है। किन्तु दुर्घटना के योगों का डर बना रहता है। अचानक खर्चा अथवा अन्य किसी कारण नुकसान होता है। आशीर्वादों का प्रभाव भी जातक के जीवन को सुरक्षित रखता है।

अदृश्य गोलाद्र्ध कालसर्प योग
गोलाद्र्ध कालसर्प योग में छठे स्थान में राहु और बारहवें स्थान में केतु रहता है। 5,4,3,2,1 इन स्थानों में अन्य ग्रह होते हैं। यह योग स्वयं एवं परिवार के लिए अनिष्ट फल देने वाला होता है। किन्तु जीवन के उत्तरार्ध में सफलताएं चरण चूमती हैं।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार सत्यवादी, सात्विक एवं सत्कर्म करने वालों को यह योग अनिष्ट फल प्रदान नहीं करता। हम जो भी सत्कर्म करते हैं वह भविष्य के अच्छे भाग्य की नींव है। लेकिन कर्म सिद्धान्त के अनुसार जो हमारा पूर्व कर्म है, वह तो हमें भोगना ही पड़ेगा। 12 वां शुक्र संपत्ति का लाभ व्यक्ति को देता है।


जन्मकुंडली के भावों में राहु की स्थिति
जन्मकुंडली में राहु की स्थिति के आधार पर बनने वाले कालसर्प योग का नामकरण

जन्म कुंडली में स्थित राहु    नामकरण
1. प्रथम भवन, लग्न में राहु    अनंत कालसर्प योग
2. द्वितीय भवन धनभाव में राहु    कुलिक कालसर्प योग
3. तृतीय भवन पराक्रम भाव में राहु    वासुकि कालसर्प योग
4. चतुर्थ भवन सुख भाव में राहु    शंखपाल कालसर्प योग
5. पंचम भवन विद्या, संतान भाव में राहु    पद्म कालसर्प योग
6. षष्ठम भवन रोग, शत्रु भाव में राहु    महापदम कालसर्प योग
7. सप्तम भवन दाम्पत्य भाव में राहु    तक्षक कालसर्प योग
8. अष्टम भवन आयु भाव में राहु    कर्कोटक कालसर्प योग
9. नवम भवन भाग्य भवन में राहु    शंखचूड़ कालसर्प योग
10. दसम भवन राज्य भवन में राहु    पातक कालसर्प योग
11. एकादश भवन आय भवन में राहु    विषाक्त कालसर्प योग
12. द्वादश भवन व्यय भवन में राहु    शेषनाग कालसर्प योग

राहुकाल देखने का तरीका
दक्षिण भारत में तो 'राहुकालÓ को सभी शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है। सप्ताह के दिनों में कौन सा समय 'राहुकालÓ है। इस तालिका से देखें-
दिन    राहुकाल
सोमवार    प्रात: 7.30 से 9.00 बजे तक
मंगलवार    दोपहर 3.00 से 4.30 बजे तक
बुधवार    दोपहर 12.00 से 1.30 बजे तक
गुरुवार    1.30 बजे से 3.00 बजे तक
शुक्रवार    प्रात: 10.30 बजे से 12.00 बजे तक
शनिवार    रात्रि 9.00 बजे से 10.30 बजे तक
रविवार    सायं 4.30 बजे से 6.00 बजे तक


लाल किताब में कालसर्प योग
कालसर्प योग अत्यन्त ही चर्चित विषय है। इस विषय में सही जानकारी एवं ज्ञान रखने वाले ज्योतिषी अत्यन्त ही सीमित संख्या में हैं। कालसर्प योग इतना प्राचीन है कि 'लाल किताबÓ जैसी पुस्तक में भी इसके निवारण के उपाय मिलते हैं। कालसर्प योग मूलत: सर्पयोग का ही परिष्कृत स्वरूप है। किसी भी जातक के भाग्य का निर्णय करने में राहु-केतु का बहुत योगदान रहता है। इसी कारण विंशोतरी महादशा में अठारह वर्ष और अष्टोत्तरी महादशा में बारह वर्ष राहु दशा मानी गई है।

कालसर्प योग का निवारण
- गले में चांदी का चौकोर ठोस टुकड़ा धारण करें।
- 108 कोयले के टुकड़े बुधवार को जल में प्रवाहित करें।
- केसर का तिलक प्रतिदिन मस्तक पर लगाएं।
- रात को सोते समय 'जौÓ सिरहाने रखें और सुबह होते ही पक्षियों को खाने के लिए डाल दें।
- वैवाहिक जीवन में बाधा आती हो तो अपनी पत्नी के साथ दुबारा फेरे लें।
- 108 दिनों तक नित्य पांच पाठ के हिसाब से हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- चांदी की डिब्बी में शहद भरकर घर में रखें।

कालसर्प योग दूर करने के विशिष्ट उपाय
- शिवलिंग पर तांबे का सर्प प्राण-प्रतिष्ठा करके, विधि-विधान पूर्वक चढ़ाएं।
- कालसर्प योग का शांति विधान योग्य विद्वान से करवायें।
- 'ऊँ नम: शिवायÓ का मानसिक जाप हर समय करते रहें।
- घर तथा कार्यलय में मोर पंख स्थापित करें।
- राहु रत्न (गोमेद) की अंगूठी मध्यमा अंगुली में विधि-विधान से धारण करें।
- घर पर 'सिद्ध कालसर्प योग शांति यंत्रÓकी स्थापना करें और उसका नित्य पूजन, दर्शन करें।
- चंदन की लकड़ी के छोटे चौकोर टुकड़े पर चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा बनवाकर जड़वा लें और वह ताबीज गले में धारण करें।
- कुंडली में कालसर्प योग के साथ चन्द्र-राहु, चन्द्र-केतु, सूर्य-राहु, सूर्य-केतु इनमें से एक भी ग्रह योग होने पर केतु रत्न लहसुनिया मध्यमा अंगुली में चांदी में जड़वाकर धारण करें।

पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
मोबाइल : 09407266609

Thursday, 24 November 2011

परिवर्तनों की गाथा लिखेगा शनि का तुला राशि में प्रवेश




शनि का उच्च राशि तुला में प्रवेश की तिथियों पर विवाद है। मतान्तर में गणितज्ञ 2.6.14 नवंबर 2011 मान रहे हैं। इन परिस्थिति में 2 से 14 नवंबर 2011 के मध्य जन्में जातकों की कुंडलियों में शनि की गणना में निश्चित रूप से अन्तर-विरोध खड़े होंगे। यह एक गहन शोध का विषय है, किन्तु सामान्यत: ज्योतिर्विद शनि का तुला राशि में प्रवेश 13 नवंबर 2011 को रात्रि 10 बजकर 22 मिनट पर मान रहे हैं। यक्ष प्रश्न निरुत्तर खड़ा है? तुला राशि में 2 वर्ष 6 माह के लगभग का भ्रमण काल क्या राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक तथा आर्थिक जगत में किसी बड़े उलट फेर का संकेत तो नहीं दे रहा? किन-किन राशियों में शुभ-अशुभ, उत्थान-पतन की इवारत लिखेंगे-शनिदेव।
विचलित मत होइए, ज्योतिषीय दर्पण में शनिदेव क्या संकेत दे रहे हैं? उन्हीं की काल गणना में रंक से राजा और राजा से रंक बनते नजर आएंगे- अनेक जातक। पूंजीपतियों से लेकर राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक तथा सामाजिक क्षेत्रों के चमकदार चेहरों को शनिदेव कब खलनायकों की पंक्ति में खड़ा कर दें, आज इसका अनुमान लगाना कुंडलियों की कालगणना से ही संभव हो सकेगा।
क्या तुला राशि के भ्रमणकाल में बिलखती मानवता, दीनों, दलितों, शिक्षित बेरोजगारों के जीवन में शनिदेव अपनी आशीषों की इन्द्रधनुषी छटा बिखेरेंगे। दस्तक दे रहे हैं- परिवर्तनों की गाथा के सृजक।
आकाशस्थ ग्रहों में शनि सबसे सुन्दर ग्रह माना जाता है। इसके चारों ओर तीन वलय-कंकण जैसे चक्र निरंतर घूमते रहते हैं। जिसके कारण अन्य ग्रहों की तुलना में इसकी शोभा अधिक बढ़ जाती है। अन्य किसी ग्रह में ऐसे वलय नहीं हैं।
सात ग्रहों में शनि सुमेरू है। राहु-केतु छाया ग्रह हैं। ऑग्ल भाषा में इसे स्ड्डह्लह्वह्म्ठ्ठ कहते हैं। अरबी में जौहल, फारसी में केदवान व संस्कृत में असित सूर्य पुत्र कहते हैं। मकर-कुंभ स्वयं शनि की राशियां हैं। शनि की 3,7,10 वीं दृष्टियां हैं। दैत्य पुत्र शुक्र तथा बुध मित्र हैं, वहीं गुरु प्रबल शत्रु तथा सूर्य, चंद्र, मंगल के साथ भी शत्रुवत व्यवहार करता है। वृष, मिथुन मित्र राशियां, कर्क, सिंह, वृश्चिक शत्रु राशियां हैं। लोहा, सीसा, शनि की विशेष धातुएं हैं।
जन्म कुंडली में शनि की स्थितिनुसार-आयु, मृत्यु, चौरकर्म, द्रव्य हानि, कारावास, मुकद्दमा, पांसी, शत्रुता, राज्यभय, त्यागपत्र, बाहु पीड़ा, तस्करी, दुष्कर्म, अंधेरे के कार्यादि का ज्ञान शनि द्वारा किया जाता है।
वृष-तुला में योग कारक हैं-शनिदेव। अश्विनी, मघा, मूल, विशाखा, पुनर्वसु पर उत्तम फल। पुष्य, अनुराधा, मृगशिरा, धनिष्ठा व भरणी नक्षत्र पर अशुभ फल ही प्रदान करते हैं-शनिदेव। शनिदेव भगवान शिव के उपासक हैं।
शनि को ज्योतिष में विच्छेदात्मक ग्रह माना गया है। एक ओर शनि मृत्यु प्रदान ग्रह माना गया है, वहीं दूसरी ओर शुभ होने पर जीवन में श्रेष्ठता देता है। राज्य, वैभव, शान, शौकत, ख्याति शनिदेव की कृपा से मिलती है। शनि देव तत्काल फल देते हैं।
मनुष्य के मन का भेद लेने में शनि प्रधान व्यक्ति दक्ष होता है। सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक क्रांति में शनि का चमत्कारिक योगदान रहता है। शनि प्रधान व्यक्ति किसी से शत्रुता हो जाने पर जब तक शत्रु को जड़ मूल से नष्ट (नाश) न कर दे तब तक शान्ति से नहीं बैठते और किसी से मित्रता रखते हैं, तो अपने अस्तित्व को दांव पर लगाकर मित्र का सुरक्षा कवच बन जाते हैं।
भारतीय राजनैतिक आकाश में चाणक्य का शनि प्रधान व्यक्तित्व इतिहास के सुनहले पृष्ठों में सदियों से अंकित है।


मेष
अश्विनी, भरणी, कृतिका के 9 चरणों के योग से बनी यह राशि देव, मनुष्य और राक्षस गणों की प्रकृति को समाहित कर अपने व्यक्तित्व में सात्विक, राजसी तथा तामसी स्वभाव के गुणों से परिपूर्ण रहती है। शनि की सप्तम दृष्टि इस राशि के जातकों, विशेषकर महिला वर्ग को आने वाले 30 माहों के अन्तराल में ग्रहीय अनुकूलताओं में पुरुस्कृत कर चुनावी विजय, कार्यों में
सफलता, पदोन्नति, सेवा क्षेत्र में सुअवसर तथा विवाह योग्य जातकों को दाम्पत्य जीवन की मधुरता का रसास्वादन कराती नजर आएगी। किन्तु? सावधान, ग्रहीय प्रतिकूलता में आपका स्वास्थ्य, खासकर रक्तचाप, उदर विकार, जोड़ों का दर्द तथा षडयंत्रकारी व्यूह रचना में आपको संकटों का सामना करना पड़ सकता है। संकटों से मुक्ति हेतु इष्ट की साधना तथा भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करने से अनिष्टों का शमन सहज होगा।

वृष
कृतिका, रोहणी एवं मृगशिरा के 9 चरणों के योगदान से बनी यह राशि एवं मनुष्यगण क्रमश: तामसी और राजसी गुणों का जातक के व्यक्तित्व पर असर डालती है। शनिदेव का आभा मंडल दैत्य गुरु शुक्राचार्य से सामान्जस्य बनाकर आश्वस्त कर रहा है। वृष राशि के जातकों को कि आपने बहुत पीड़ा भोगी है बीते 30 माहों में। मैं आपकी पीड़ा का हरण कर आपको पुन: स्वस्थ, तेजोमय, शैक्षणिक सफलताएं, आर्थिक संकटों से मुक्ति तथा सेवा क्षेत्र से प्रभावित जातकों को सुयोग प्रदान कर, परिवार में मांगलिक कार्यों के आयोजन के अवसर प्रदान कराऊंगा। शक्ति सम्पन्न बनाने में सहयोग दूंगा।कुंडली में ग्रहीय प्रतिकूलताएं पीड़ा तो अवश्य देगी आपको। कर्म के उपहार के रूप में, मैं आपकी सामथ्र्यता को पुनर्जागृत करूंगा। राजनैतिक परिदृश्य से ओझल हो चुके जातकों की, सत्ता क्षेत्र में पुन: पदचाप सुनाई देगी। चुनावी जंग आपको चुस्त दुरुस्त रखेगी। स्वास्थ्य के प्रति आप असावधान रहे तो नेत्र पीड़ा, कमर के नीचे के दर्दों का अहसास तो आप करेंगे ही, साथ ही धन हानि भी संभव है। आपदाओं, विपदाओं से रक्षा हेतु भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करें तथा इष्ट की साधना आपके मनोबल को सुदृढ़ बनाएगी।

मिथुन
मृगशिरा, आद्र्रा और पुनर्वसु के 9 चरणों के सहयोग से बनी मिथुन राशि देव तथा मनुष्य गण के गुणों से आच्छादित है। शनि के अढैया के कुप्रभाव से जिन जातकों ने पीड़ा भोगी उन्हें उच्चराशि के शनि से लंबित कार्यों में सफलता से सुखद अनुभूतियों का अहसास होगा। विवाह योग्य जातकों के वैवाहिक योग बनेंगे, सुखद दाम्पत्य जीवन के। रोगों से मुक्ति, आय के साधनों में वृद्धि अर्थात् नौकरी अथवा व्यवसाय में शनि की नवम-पंचम दृष्टि सौभाग्य की सूचक बनेगी।
मिथुन राशि के जातको, आप में से अनेकों ने कुंडली में आए ग्रहीय सुयोगों से बीते 30 माहों में आपने अपने पद और कद से अधिक शक्तिशाली दिखे होंगे। किन्तु अब आप सावधान हो जाइए- यदि, ंिशोत्तरी/योगिनी महादशाओं की प्रतिकूलता रही, तो संकटों के ऐसे जलजले आएंगे, जो आपके व्यक्तित्व को कहीं तिरोहित न कर दें? कर्म की साधना तथा भाग्येश का रत्न धारण करने से कष्टों से शमन संभव है।

कर्क
कर्क राशि पुनर्वसु, पुष्य और अश्लेषा के 9 चरणों के सुयोग तथा देव एवं राक्षसगण की प्रकृति से प्रभावित होती है। इस राशि के जातक की कर्क जलचर राशि है। शनि की दशम दृष्टि कर्क राशि पर आ जाने से शनि का अढैया अपना मिश्रित फल देगा। जलोदर बीमारियों से इस राशि को सावधान रहना चाहिए, उदर विकार तथा मधुमेह अथवा गैसीय बीमारियां भी जातक को पीड़ा दे सकती है। जातक आवश्यकतानुसार चिकित्सीय मार्गदर्शन लेते रहें। वाहनादि से सावधानी रखें। चंद्र एवं गुरु के सहयोग से बनने वाले गजकेसरी योग से युक्त जातक मनोकूल सफलताएं प्राप्त कर सकेंगे। सफलताओं की प्राप्ति हेतु कर्मेसु कौशलम् का यथेष्ट पालन परमावश्यक है। भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करें-सुखद होगा। अनिष्ट से बचाएगा इष्ट।

सिंह
मघा, पूर्वा फाल्गुनी तथा उत्तरा फाल्गुनी के 9 चरणों के योग से बनने वाली राशि राक्षस एवं मनुष्य गण की स्वभावगत कृति है। तामसी एवं राजसी गुणों से मुखर यह राशि नवग्रहों के राजा सूर्य के अधिपत्य में है। सिंह राशि के जातकों ने बीते साढ़े सात वर्षों में सुखों से अठखेलियां भी की हैं और दु:खों ने उन्हें जिन वेदनाओं का अहसास कराया, वे भी अकथनीय रही होंगी। अब भाग्य की देवी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है, और कह रही है- हे जातक, भूल जाओ, उव पीड़ाओं को, अपमान का हलाहल काफी पी लिया। अब मैं आपके सौभाग्य की ऐसी इवारत लिखने को आतुर हूं, जो आपके व्यक्तित्व को ऊर्जावान बनाकर सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक दृष्टि से श्री समृद्धि बना देगा। किन्तु आपकी राशि में नवग्रहों के राजा सूर्य के कारण अहंकार भी है। अगर अहंकार का परिमार्जन नहीं किया तो आपका पराभव भी सुनिश्चित है। भाग्येश का रत्न, इष्ट की साधना आपकी गरिमा को सुरक्षित रखने में रक्षा-कवच का काम करेगी।

कन्या
कन्या राशि के प्रभा मंडल में उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा नक्षत्रों के 9 चरणों का सुयोग बना है। तीनों नक्षत्रों में क्रमश: मनुष्य, देवता और राक्षसगण प्रभावी है। अस्तु इस राशि के जातकों का स्वभाव सात्विक, राजसी तथा तामसी प्रकृति के अधीन रहता है। बौद्धिक सामथ्र्य इस राशि के जातकों में अद्वितीय रहती है। कन्या राशि पर शनि की साढ़े साती के दो चरण अर्थात् लगभग 5 वर्ष बीत गए हैं। निश्चित रूप से किसी को प्रथम चरण में, किसी को दूसरे चरण में शनिदेव ने व्यथित किया होगा। अब स्थितियां बदल जाएंगी। उच्च राशि में शनि यदि जन्मांक में भी उच्च राशिगत होगा, तो शनिदेव उन्हें पुरुष्कृत करने में आतुर रहेंगे। न्यायालयीन प्रकरणों से उन्हें राहत मिलेगी। खोई हुई प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त होगी। आय के स्रोतों में तरलता महसूस करेंगे। राजनैतिक दृष्टि से उच्च राशिगत शनि संगठन और सत्ता में सबलता प्रदान करेंगे। ग्रहीय प्रतिकूलता में दंत क्षय, नेत्र विकार अथवा आपरेशन, जोड़ों में पीड़ा भी प्रभावित कर सकती है। ज्योतिषीय परामर्शनुसार पन्ना या नीलम धारण करें। इष्ट साधना आपकी मानसिक शक्ति को सबल बनाएगी। विवाह योग्य जातक दाम्पत्य सूत्र में बंधेंगे। सेवा क्षेत्र में प्रवेश के सुयोग बन रहे हैं।

तुला
चित्रा, स्वाति, विशाखा नक्षत्रों के 9 चरणों के योगदान से तुला राशि स्वरूप ग्रहण करती है। दैत्य पुत्र शुक्र इस राशि का स्वामी है। इस राशि की प्रकृति में देवगण एवं राक्षस गण अर्थात सात्विक एवं तामसी स्वभाव की प्रबलता रहती है। अनुभव में भी आता है कि स्वभावगत अन्तर कला पक्ष (चित्रकारी, काव्य, संगीत, नृत्य, लालित्य कलाएं) इस राशि का सबल पक्ष है। तुला राशि में उच्च राशि गत शनि अचल संपत्ति के क्रय-विक्र या निर्माण के सुयोग बनाएगा। सेवा क्षेत्र की प्रतियोगी परीक्षा में चयन की संभावना के योग बन सकते हैं। जन्म कुंडली में अन्य ग्रह सहयोगी हों, तो विदेश यात्रा के इच्छुक तुला राशि के जातक समुद्रपारीय यात्राओं का आनंद ले सकेंगे। शनि की साढ़े साती का द्वितीय चरण चमत्कारी हो सकता है। सेवारत जातक पदोन्नित/अनुकूल पदस्थापना, विवाह योग्य जातक दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करेंगे। चुनावी जंग में प्रभावी भूमिका निभाएंगे। उदर विकार, उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह की प्रभावना से बचकर रहें। सुरक्षा कवच हेतु इष्ट साधना तथा नीलम या भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करें।

वृश्चिक
विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा नक्षत्रों के 9 चरणों के योग से वृश्चिक राशि स्वरूप ग्रहण करती है। यह राक्षस एवं देवगण से प्रभावित होकर सात्विक एवं तामसिक स्वभाव से प्रभावित होते हैं- इस राशि के जातक। शनि की साढ़े साती के प्रथम चरण की शुरुआत होने से इस राशि के जातकों के जीवन में कुछ ऐसा घटित होगा जो जीवन की धारा को बदल देगा। स्वभाव से ऐसे जातक उग्र होते हैं। शनि की साढ़े साती का प्रथम चरण इन्हें शैक्षणिक, सफलताएं प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता दिला सकती है। अनुकूल ग्रहीय स्थितियां पदोन्नति से उच्च सोपान की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करेगी। राशि स्वामी मंगल-भूमि भवन का स्वामित्व दिलाने में सफलता दिलाएगा। यदि इस राशि के जातकों को षष्ठेश (रोग+शत्रु) अष्टमेश (दुर्घटना, अस्थि रोग) की महादशा या अन्तर्दशा चल रही हो तो स्वास्थ्य या अप्रत्याशित दुर्घटना में हानि की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। जातक यदि संयम से अपने कर्तव्य का निर्वाहन करेंगे तो पद, प्रतिष्ठा, परिवार में मांगलिक कार्य तो सम्पन्न होंगे ही साथ ही श्री समृद्धि के सुयोग भी प्राप्त कर सकेंगे।

धनु
मूल, पूर्वाषाढ़ तथा उत्तराषाढ़ा के 9 चरणों के योग से बनने वाली धनु राशि राक्षस एवं मनुष्य अर्थात् तामसिक तथा राजसी गुणों से प्रभावित रहती है। इस राशि के जातक कुसंगति में पड़कर दुव्र्यसनों की लत में गिरफ्त हो जाते हैं। माननीय संवेदनाओं की अतिरेकता और कभी-कभी ऐसे जातक षडय़ंत्रों की संरचना में लिप्त पाए जाते हैं। ग्रहीय अनुकूलता और देव गुरु बृहस्पति की कृपा से सत्ता की चाहरदीवारी में ऐसे राजनीतिज्ञों की पदचाप अनेक महारथियों की वाचालता को मूक और बघिरता की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है। ऐसे जातकों में चुनावी समरागण में विजयश्री को वरण की क्षमता भी अद्वितीय होती है। तुला राशि स्थित शनि अपनी तृतीय दृष्टि से धनु राशि को निहार रहा है। तृतीय दृष्टि से पराक्रम भाव की मीमांसा की जाती है। स्पष्ट है कि धनु राशि पर शनि की पराक्रमी दृष्टि जातक को बलशाली बना सकने में समर्थ होगी। जातक को शनि से मिला पराक्रम, स्त्री जाति के सहयोग से व्यसायिक सफलताएं प्रदान कराएगा। अन्य अर्थों में यह भी संभव है कि जीवन साथी का नौकरी में होना या ससुराल से संपत्ति मिलना या विवाह में मिलने वाली संपदा। पुखराज या भाग्येश का रत्न धारण करने से धनु राशि के जातक ग्रहीय प्रतिकूलता में भी संबल पाकर अपने आत्मविश्वास से अन्तोगत्वा सफलता अर्जित कर ही लेते हैं।

मकर
उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा नक्षत्रों के सुयोग से मकर राशि स्वरूप ग्रहण करती है। यह राशि विचित्र होती है। इसमें मनुष्य, राक्षस तथा देवगण वाले जातक आते हैं। इनमें राजसी, तामसी तथा सात्विक प्रवृत्तियों का मिश्रण देखने में आता है। इनका व्यक्तित्व विश्वास की परिधि में रहस्यमय होता है। इस राशि के जातक मित्र को शत्रु और शत्रु को मित्र बना लेने में सिद्धहस्त होते हैं। स्वार्थजन्य प्रवृत्ति के कारण इन्हें आकाशीय सफलताएं और रसातलीय पतन के दौर से गुजरना पड़ सकता है। मकर राशि, स्वामी शनि अपनी उच्च राशि में भ्रमणरत है। गजकेसरी योग वाले मकर राशि के जातक निर्माण कार्यों अथवा पुलिस, आर्मी के त्रेज्ञ में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। धन, वैभव तथा प्रतिष्ठा की दृष्टि से शनि का उच्च राशि में होना इस राशि के जातकों को अनेक क्षेत्रों में सफलता दिलाएगा। शनि अपनी उच्च राशि में गोचरवश जब-जब वक्री होगा तब-तब इस राशि के जातकों को ग्रहीय प्रतिकूलता के कारण समस्याओं से सामना करना पड़ेगा। नीलम या भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण सुखद रहेगा।

कुं भ
धनिष्ठा, शतभिषा तथा पूर्वाभाद्रपद के संयोग से बनी यह राशि राक्षस एवं मनुष्यगण से प्रभावित है, जो राजसी और तामसी प्रकृति से जुड़ी है। शनि के अढैया ने इन्हें बीते 2 वर्ष 6 माहों में इनका ऐसी अग्नि परीक्षा ली कि भूल गए, अपने कौशल को। अस्वस्थता, मानसिक व्यथा, असफलता, पारिवारिक क्लेश और धन हानि ने इन्हें दु:खी तो अवश्य किया  होगा। किन्तु कुंभ राशि को अब शनि के अढैया से मुक्ति मिल गई है। उच्च राशि में भ्रमण करता शनि इस राशि के जातकों को सुख, वैभव, भवन सुख, वाहन सुख, रोगों से मुक्ति का सुयोग तथा आपके जीवन में मनमाफिक सफलताओं के आशादीप भी जगमागाएंगे। मांमलिक कार्यों का आयोजन, पद प्रतिष्ठा बढ़ेगी। सेवा क्षेत्र में पदोन्नति के योग हैं। प्रतिकूल परिस्थितयों में में खासकर, शत्रु भवन या मारक भवन करे स्वामियों की महादशा में जातकों को न्यायालयीन प्रकरणों तथा व्यवसायिक परेशानियों से निजात पाने हेतु नीलम/भाग्येश का रत्न ज्योतिषीय परामर्श लेकर विधि विधान से धारण करें। इष्ट साधना समर्थता तथा मनोबल को बढ़ाएगी। राजनैतिक परिदृश्य में कुंभ राशि के जातक चुनावी समर में अपनी उपस्थिति दर्ज तो कराएंगे, सफलता मिलना अन्य ग्रहीय योगों पर निर्भर करेगी।

मीन
पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के 9 चरणों के सुयोग से बनी राशि मनुष्य एवं देवगण के प्रभामंडल से आवृत्त है। राजसी और सात्विक अवधारणा लिए ऐसे जातक जिन भी पदों पर रहें उच्च स्तरीय मानसिकता को लेकर जीते हैं। अनुभव सिद्ध देखने में यह आया है कि तामसी मानसिकता वाले व्यक्तियों के आभामंडल से प्रभावित या अनजाने में विधि सम्मत कार्यों के न करने से ऐसे जातक परेशानियों में फंस जाते हैं।
शनि का अढैया मीन राशि वालों के लिए षडाष्टक योग से भी प्रभावित करेगा। इससे शत्रुहन्ता योग बनकर जातकों को गद्दीनसीन करवाएगा। शत्रुओं का पराभव सुनिश्चित है। प्रशासनिक क्षेत्रों में कार्यरत जातक अपनी तेजोमय ऊर्जा से सफलताओं के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकेंगे- यदि कुंडली में भाग्येश की अनुकूलता तथा गजकेसरी योग का सुयोग बन रहा हो तो पुखराज रत्न/भाग्येश का रत्न विधि विधान से धारण करने से जीवन में प्रतिकूलता अनुकूलन में परिवर्तित ले सकेगी। इष्ट साधना सुरक्षा कवच का काम करेगी।

- पं. पीएन भट्ट (ज्योतिर्विद)
जी-4/4 जीएडी कॉलोनी,
गोपालगंज, सागर (मप्र)
फोन: 07582-223168, 227159
मोबाइल : 09407266609






Wednesday, 23 November 2011

गणेश

गणेश


गणेश
बशोली लघु चित्रकारी, 1730 ईसवी,  राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली, भारत.[1]
बशोली लघु चित्रकारी, 1730 ईसवी, राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली, भारत.[1]
देवनागरी गणेश
सहबद्धता हिन्दु देवता
मंत्र ॐ गणेशाय नमः
शस्त्र परशु,[2]
पाश,[3]
अंकुश[4]
पत्नी बुद्धि,
रिद्धि ,
सिद्धि
वाहन मूषक
इस संदूक को: देखें  संवाद  सम्पादन
गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है, और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेशजी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। ईसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है।

अनुक्रम

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[संपादित करें] शारिरिक संरचना

गणेश
गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रवण (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।
चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।

[संपादित करें] कथा

प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवती और पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहाँ आया और उसने अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया।
कौंच ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और काँपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख माँगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा 'तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरेगा।
काँपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की-'दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे (हर युग में गणेशजी ने अलग-अलग अवतार लिए) तब तू उनका वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे।

[संपादित करें] बारह नाम

गणेश
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं-
सुमुख, एकदंत,कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। उप्रोक्त द्वादश नाम नारद पुरान मे पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि मे आया है| विद्यारम्भ तथ विवाह के पूजन के प्रथम मे इन नामो से गणपति के अराधना का विधान है|
  • पिता- भगवान शिव
  • माता- भगवती पार्वती
  • भाई- श्री कार्तिकेय
  • पत्नी- दो 1.रिद्धि 2. सिद्धि (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
  • पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ
  • प्रिय भोग (मिष्ठान्न)- मोदक, लड्डू
  • प्रिय पुष्प- लाल रंग के
  • प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब) शमी-पत्र
  • अधिपति- जल तत्व के
  • प्रमुख अस्त्र- पाश, अंकुश

[संपादित करें] ज्योतिष के अनुसार

ज्योतिष्शास्त्र के अनुसार गणेशजी को केतु के रूप मे जाना जाता है,केतु एक छाया ग्रह है,जो राहु नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध मे रहता है, बिना विरोध के ज्ञान नही आता है, और बिना ज्ञान के मुक्ति नही है, गणेशजी को मानने वालों का मुख्य प्रयोजन उनको सर्वत्र देखना है, गणेश अगर साधन है तो संसार के प्रत्येक कण मे वह विद्यमान है। उदाहरण के लिये तो जो साधन है वही गणेश है, जीवन को चलाने के लिये अनाज की आवश्यकता होती है, जीवन को चलाने का साधन अनाज है, तो अनाज गणेश है, अनाज को पैदा करने के लिये किसान की आवश्यकता होती है, तो किसान गणेश है, किसान को अनाज बोने और निकालने के लिये बैलों की आवश्यक्ता होती है तो बैल भी गणेश है,अनाज बोने के लिये खेत की आवश्यक्ता होती है, तो खेत गणेश है,अनाज को रखने के लिये भण्डारण स्थान की आवश्यक्ता होती है तो भण्डारण का स्थान भी गणेश है, अनाज के घर मे आने के बाद उसे पीस कर चक्की की आवश्यक्ता होती है तो चक्की भी गणेश है, चक्की से निकालकर रोटी बनाने के लिये तवे, चीमटे और रोटी बनाने वाले की आवश्यक्ता होती है, तो यह सभी गणेश है, खाने के लिये हाथों की आवश्यक्ता होती है, तो हाथ भी गणेश है, मुँह मे खाने के लिये दाँतों की आवश्यक्ता होती है, तो दाँत भी गणेश है, कहने के लिये जो भी साधन जीवन मे प्रयोग किये जाते वे सभी गणेश है, अकेले शंकर पार्वते के पुत्र और देवता ही नही।

[संपादित करें] मोदक

मोदक गणेश का प्रिय व्यन्जन है।
चावल आटा…………………………………३ कप
नमक……………………………………………२ चुटकी
देशी गाय का घी…………………………१ छोटा चम्मच
भरने के लिए
ताजा कसा नारियल……………………१ कप
कसा हुआ गुड……………………………१½ कप
इलायची………………………………………२ चुटकी