मांगलिक कुंडलियों का चमत्कार
अनादिकाल से लेकर आज के वैज्ञानिक परिदृश्य में यदि हम आविष्कारिक दृष्टिकोण अपनाएं और ज्योतिष की पृष्ठभूमि में देवज्ञजन (ज्योतिर्विद) यदि मांगलिक कुंडलियों पर दृष्टिपात करें, तो वे पाएंगे कि अखिल विश्व में चाहे हमारी दृष्टि विशाल आर्यावर्त पर रहे या चीन, यूरोप, अमेरिका अथवा अफ्रीका की सरजमीं पर, अनेक विश्वात्माओं से लेकर उद्भट विद्वानों, आचार्यों, संतों तथा तानाशाहों से लेकर प्रजातांत्रिक मूल्यों की वसीयत थामे अनेक राजनयज्ञों की मांगलिक कुंडलियां आपको नजर आएंगी।
अभिप्राय, मेरा मात्र इतना है कि मांगलिक कुंडलियां जातक को प्रेरित करती हैं, उत्साहित करती हैं कि वे आगे बढ़ें, मार्ग प्रशस्त है। आप उच्चतम शिखरों को छू सकते हैं। मांगलिक कुंडलियां मंगलदायिनी होती हैं। फर्क मात्र इतना है कि आप जन्मे किस नक्षत्र में, गण आपका कौन सा है, देव मानव अथवा राक्षस।
आइये और निहारिये? उन मांगलिक कुंडलियों के नामों को-
विश्वात्माओं में प्रथम भगवान रामचंद्रजी, भगवान गौतम बुद्ध, भगवान महावीर स्वामी, आचार्यों एवं संतों में गुरु नानकदेव, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, जगद्गुरु चंद्रशेखर सरस्वती (कांचीपुरम), राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, आचार्य अरविन्द घोष। राजनयज्ञों में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ. केनेडी, जार्ज बुश, बिल क्लिंटन, शेख मुजीबुर्रहमान (बंगलादेश), एडोलफ हिटलर (जर्मन), मुसोलिनी (इटली), अयूब खां (पाकिस्तान)। चन्द्र कुंडली के अनुसार मांगलिक योग माओत्से सुंग (पूर्व राष्ट्रपति, चीन), ईरान के शक्तिशाली पूर्व राष्ट्रपति नासिर हुसैन, ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री और द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रख्यात रणनीतिकार सर चर्चिल, जुल्फिकार अली भुट्टो (पाकिस्तान) हेनरी फोर्ड (कार-उद्योगपति-अमेरिका) और ब्रिटेन की महारानी श्रीमती एलिजाबेथ द्वितीय आदि अनेक व्यक्तित्व नजर आएंगे- मांगलिक कुंडली धारी।
भारतीय राजनैतिक आकाश में धूमकेतु की तरह जाज्वल्यमान रहे, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, बाबू जयप्रकाश नारायण, गुलजारी लाल नंदा,
पंडित रविशंकर शुक्ल, फिल्म जगत से अभिनेता दिलीप कुमार, नरगिस दत्त, अमिताभ बच्चन, उद्योगपति कृष्णा डालमिया, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे (मुम्बई), विद्याचरण शुक्ल आदि अनगिनत प्रभावशाली व्यक्तित्वों ने देश के उत्थान में महती भूमिका के जन नायक बने।
चन्द्र कुंडली से मांगलिक योग बनाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंहराव, ग्वालियर नरेश श्रीमंत जीवाजीराव सिंधिया, श्रीमंत माधवराव सिंधिया, हैदराबाद के संस्थापक हैदरअली, स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह, भैरव सिंह शेखावत, पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन तथा अनगिनत व्यक्तित्व मांगलिक कुंडलियों के प्रभाव से आभायुक्त रहे और कुछ व्यक्तित्व सदियों तक इतिहास के सुनहरे पन्नों पर अजर-अमर रहेंगे। आग्रह मात्र इतना? मांगलिक कुंडलियां चौंकाने की सामथ्र्य रखती हैं। मांगलिक चंगेज खां ने जिस रक्त रंजिश इतिहास को रचा, क्या वह भी हिटलर और मुसोलिनी की मानसिकता का पुरोधा तो नहीं था?
उत्तर भारत में वर एवं कन्या की जन्म कुंडली मिलाने की जो प्रथा है और जिसे साधारणत: मेलापक कहते हैं। वर-वधू के स्वभाव, रुचि-अरुचि, मनोवृत्ति, गृहस्थ सुख विचारों में कितनी समानता रहेगी। यह ज्योतिषी गणना मेलापक (कुंडली मिलान) से भली-भांति ज्ञात की जा सकती है।
परन्तु ग्रहीय आधार पर मेलापक में दोष होने पर वैचारिक मतभेदों के कारण जीवन में अशांति और दाम्पत्य जीवन के सुखों से वंचित हो जाते हैं, दम्पति। मेलापक का विचार सदैव जन्म नक्षत्र एवं जन्म कुंडली में ग्रहीय स्थिति के आधार पर ही करना शुभ फलदायी रहता है। कुंडली मिलान में सूक्ष्म गणित की आवश्यकता होती है। वैवाहिक जीवन का लम्बा सफर तय करने के लिए कुंडली मिलान करना एक उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य है। जीवन में वर-वधू के विचार मिल जाएं, तभी दाम्पत्य जीवन की सुखद अनुभूति परिवार एवं समाज को प्राप्त होगी।
भार्या विषयं चिन्तनमुदितमिदं जन्म लग्नविहगवशात्।
सहधर्म चरित नर: पुत्रांश्च लभेत भार्यया यस्मात्।।
इस श्लोक में जन्म राशि तथा लग्न के आधार पर भार्यया विचार बतलाया गया है, क्योंकि भार्या पति की सहधर्मिणी होती है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों में से धर्म, अर्थ तथा काम यह तीन वर्ग भार्या की सहायता से ही सुलभ होते हैं। संतान प्राप्ति भी भार्या से होती है। इसलिए इतना महत्व दिया गया है। कुंडली मिलान में कन्या एवं वर के गुणों के मिलान में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रहमैत्री, गण मैत्री, भकूट एवं नाड़ी के कुल गुण 36 होते हैं। ये वर्णादि आठ कूट विवाह में अवश्य विचारना चाहिए।
कुंडली मिलान में कम से कम 18 गुण मिलना चाहिये। ऐसा देवज्ञों का कथन पढऩे-सुनने को मिल जाता है। मेरा मत कुछ भिन्न है। गुण मिलान 28 और 30 भी हो जावें, यदि कुंडली में बलाबल की दृष्टि से ग्रह शत्रु क्षेत्री, नीच राशिगत बैठे हों, तो 28-30 गुणों के मिलान के बावजूद भी विवाहित दु:खी
रहेंगे। गुण मिलान चाहे कम हों, किन्तु कुंडली में सुख भवन, विद्या एवं संतान भवन, जीवन साथी का सप्तम भवन, आयु, भाग्य, राज्य और आय भवन के स्वामी भी यदि शुभ यानी उच्च, स्वक्षेत्री मित्र राशि या सम राशियों में विराजमान हों, तो मिलान शुभ रहेगा।
जन्म के समय जिस भाव-राशि में अच्छे ग्रह होते हैं, शरीर का वह भाग स्वस्थ रहता है। जिस राशि में क्रूर (दुष्ट) ग्रह रहते हैं, शरीर का वह भाग रोगमुक्त होता है। जन्म कुंडली के मिलान में मंगल को सबसे अधिक पापी मानने के कारण इस दोष को बोलचाल की भाषा में मांगलिक दोष कहते हैं, किन्तु वास्तव में मंगल, शनि, राहू, केतु और सूर्य इन पांचों का विचार करना चाहिए। मांगलिक दोषों की श्रेणी में ये पांचों हैं। इनका नेता मंगल है।
कन्या के विवाह में जन्म नक्षत्र को यथा संभव वर्जित करना चाहिए, किन्तु वर के जन्म नक्षत्र में विवाह करने में कोई दोष नहीं है।
पुष्य नक्षत्र में सब कार्यों को शुभ माना गया है किन्तु विवाह में वर्जित है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र को ऋषि वाल्मीकि ने शुभ माना है, किन्तु उस नक्षत्र में विवाह होने के कारण सीताजी को सुख नहीं मिला। अत: वह वर्जित है। मूल नक्षत्र का स्वामी राक्षस है। उसको विवाह में ग्रहण किया गया है। कारण यह कि उस नक्षत्र में देवकी का वासुदेव जी के साथ विवाह हुआ था और संसार का मंगल करने वाले भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ था। विवाह में पितृ कर्म वर्जित है, किन्तु मघा नक्षत्र जिसके स्वामी पितर हैं, विवाह में शुभ कहा गया है। गुरु, शुक्र, बुध तथा चन्द्रवारों में विवाह करने से कन्या भाग्यवती होती है। सब ग्रहों का स्वामी सूर्य है, अत: रविवार मध्यम है। शनिवार को रिक्ता तिथि हो और उसमें कन्या का विवाह किया जाए, तो पति की सम्पत्ति में वृद्धि होती है। कारण यह कि शनिवार के दिन रिक्ता तिथि होने से सिद्धा तिथि हो जाती है और वह सब दोषों का नाश करती है।
दक्षिण भारत में कुंडली मिलान
दक्षिण भारत में जिन सिद्धांतों पर वर एवं कन्या की कुंडलियां मिलाई जाती हैं, आनुकूल्य शब्द से जानी जाती है। आनुकूल्य का अर्थ है अनुकूलता। प्रतिकूल न हो- एक दूसरे को स्वास्थ्य, जीवन (दीर्घायु) संतान, स्वभाव, धन, धर्म, समृद्धि की दृष्टि से अनुकूल हों। दोनों विवाह जनित सुखोपलब्धि करें, यही आनुकूल्य का अर्थ है।
दम्पत्योर्जन्म ताराद्यैरानुकूल्यं परस्परम्।
विचिन्त्योपयम: कार्यस्तत्प्रकारो-थ कथ्यते।।
अर्थात् वर और कन्या को विवाहोपरान्त सब प्रकार की सुख-समृद्धि हो और उनमें परस्पर अनुकूलता हो। इसके विचार के लिए निम्न श्लोक से ज्ञात किया जा सकता है।
राशि राशिपवश्यौ माहेन्द्रगणाख्य योनिदिन संज्ञा:।
स्त्री दीर्घ चेत्यष्टौ विवाहयोगा: प्रधानत: कथिता:।।
अर्थात् प्रधान रूप से वर और कन्या की जन्म कुंडलियां मिलाने में नीचे लिखी आठ बातों पर विचार किया जाता है।
1. राशि 2. राशि का स्वामी 3. वश्य 4. माहेन्द्र 5. गण 6. योनि 7. दिन 8. स्त्री दीर्घ
1. यदि कन्या की राशि गिनने पर वर की राशि सप्तम, दशम या एकादश हो अथवा अष्टम, नवम या द्वादश हो तो भी शुभ है। यदि वर और कन्या की राशि एक हो, किन्तु जन्म नक्षत्र भिन्न-भिन्न हों तो अति उत्तम।
2. यदि कन्या की राशि वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर या मीन हो और कन्या की राशि से गिनने पर वर की राशि छठी हो तो विवाह में वर्जित है अथवा कन्या की राशि मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु या कुम्भ हो और कन्या की राशि से गिनने पर वर की राशि छठी हो तो मध्यम अर्थात् न उत्तम, न निंदनीय।
प्रश्न मार्ग (जो दक्षिण भारत का प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ है) का भी मत है।
विज्ञजन ध्यान दें इस श्लोक पर-
स्त्रीजन्मपूर्वमेवं विचिन्तये द्राशिसंज्ञितं योगम्।
स्त्रीपुरुष जन्मपत्योरैक्यं स्यादबन्धुभावमपि शुभद्म।।
यदि कन्या और वर की राशियों (दोनों की कुंडलियों में जिस-जिस राशि में चंद्रमा है) स्वामी एक ही हो या दोनों मित्र हों, तो मिलान शुभ होता है।
स्त्रीजन्मक्र्षत्रितयाच्चतुर्थदिक सप्तमेष्वयक्र्षेषु।
जात: शुभ कृत्पुरुषों माहेन्द्राय: प्रकीर्तितश्चैवम्।।
अर्थात् कन्या के जन्म नक्षत्र से गिनने पर वर का जन्म नक्षत्र यदि चौथा, सातवां, दसवां, तेरहवां, सोलहवां, उन्नीसवां, बाईसवां, पच्चीसवां हो, तो शुभ है। इसे महेन्द्र गुण कहते हैं।
गणयेत स्त्रीजन्मक्र्षात् जन्मक्र्षान्तं संख्याय।
पञ्चदशाभ्यधिका चेत स्त्री दीर्घाख्यो भवत्क्रमाच्छुभद:।।
अर्थात् कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के जन्म नक्षत्र तक गिनिये। यदि वह संख्या 15 से अधिक हो तो शुभ। इसे स्त्री दीर्घ विचार कहते हैं।
हे देवज्ञजन- कृपया इस श्लोक पर भी विचार कीजिएगा-
स्त्री जन्मभाद्वरक्षन्तिं गणयित्वा शरैर्हते।
मुनिभिर्बाजितं शिष्टं व्ययमायो न जन्यभात्।।
अर्थात् कन्या के जन्म नक्षत्र से प्रारंभ कर वर के जन्म नक्षत्र तक गिनिये। इस संख्या को पांच से गुणा कीजिए। गुणनफल को सात से भाग दीजिये। जो शेष रहे वह है 'व्ययÓ।
इसी प्रकार वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के जन्म नक्षत्र तक गिनिये। इस संख्या को पांच से गुणा कीजिएगा। गुणनफल को सात से भाग दीजिये। जो शेष रहे वह 'आयÓ।
आय, व्यय से अधिक होना चाहिये। यह पक्ष भी कुंडली मिलान की दृष्टि से विचारणीय है।
एक अन्य श्लोक पर भी ध्यान दें-
कन्याया जन्मोन्दोश्चाष्टकवर्गे फलाधिके राशौ।
पुरुस्य जन्म शुभदं पुरुषेन्दुवशात्तथैव कन्याया:।।
अर्थात् कन्या की जन्म कुंडली में चन्द्राष्टक वर्ग बनाइये। कन्या के चंद्राष्टक वर्ग में जिस राशि में अधिक बिन्दु हों, वह राशि वर की हो तो कन्या की वह राशि हो, जिस राशि में वर के चन्द्राष्टक वर्ग में अधिक शुभ बिन्दु पड़े हों, तो वह कन्या के लिए शुभ है।
विवाह में नवांश का महत्व
कन्या, तुला, मिथुन, धनु के नवांश शुभ हैं। 9,7,6,3,12 नवांश शुभ हैं। इनमें विवाह होने पर दाम्पत्य जीवन सुखद होता है। दक्षिण भारत में नवांश कुंडलियों के आधार पर कुंडली मिलान को महत्ता प्रदान की गई है। यदि लग्न अच्छा न भी हो तो 3,11,7,6,9 नवांश शुभ हैं। लग्न तथा उसका नवांश पति का स्थान
होता है। स्त्री जातक की कुंडलियों में उनकी मित्रता होने पर वर-वधू की मित्रता रहती है।
ज्योतिष के विद्वानों से आग्रह
समयकाल के अनुसार आज वैज्ञानिक युग में वर-वधू के मेलापक में तर्क संगत गुण दोषों की व्याख्या करने में विद्वत्जन सहयोगी रुख अपनाएं। पुराने ग्रंथों में श्लोकों की रचना के समय सामाजिक व्यवस्थाएं भिन्न थीं। आज का सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक परिवेश बदला हुआ है। अत: कुंडली मिलाते समय दोषों को ज्यादा महत्व न देकर जातक की आयु, संतति, सौभाग्य, सुखभाव तथा इनके भावेशों की स्थिति को देखने से निश्चित ही दम्पति का भावी जीवन सुखी एवं समृद्ध होगा।
मांगलिक दोष तालिका
राशियां प्रथम द्वितीय चतुर्थ सप्तम् अष्टम् द्वादश
मेष लग्न - मंगल - - - -
वृष लग्न मंगल - - - - -
मिथुन लग्न मंगल मंगल मंगल मंगल - -
कर्क लग्न मंगल - - मंगल मंगल -
सिंह लग्न - - - - - -
कन्या लग्न मंगल मंगल मंगल मंगल - मंगल
तुला लग्न मंगल - - - - मंगल
वृश्चिक लग्न - मंगल - - मंगल -
धनु लग्न मंगल - मंगल मंगल मंगल -
मकर लग्न - मंगल - - - मंगल
कुंभ लग्न मंगल मंगल - - - -
मीन लग्न मंगल - मंगल मंगल - मंगल
उपरोक्त तालिका में मेष से लेकर मीन लग्नों (12 लग्नों) के सामने दर्शाये गए प्रथम भवन (लग्न) द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भवनों के सामने जहां-जहां लिखा हो, उन्हीं भावों में यदि मंगल बैठा हो, तो कुंडली मंगली मानी जाएगी, अन्यथा नहीं।
कुछ ज्योतिषी अपने स्वार्थ के कारण जनता को मांगलिक दोष का डर दिखा, भयभीत कर उपाय करने के नाम पर लूटते हैं। जो ज्योतिषसमाज के लिए युक्तिसंगत नहीं है।
मंगल दोष का परिहार
मंगल दोष का परिहार उस स्थिति में भी होता है, जब वह विभिन्न लग्नों से अपने दोष पूर्ण भावों में स्थित हों।
मंगल दोष परिहार
1. सप्तम भवन (दाम्पत्य जीवन) का स्वामी शुक्र के साथ हो तो मंगल दोष नहीं होता।
2. यदि किसी कन्या की कुंडली में, जिस स्थान पर मंगल हो तथा उसी स्थान पर वर की कुंडली में पाप ग्रह हो, तो मंगल दोष नहीं होता।
3. यदि मंगल बारहवें भवन में वृष या तुला राशि में बैठा हो, तो मंगल दोष नहीं बनता।
4. यदि जातक की कुंडली के सप्तम भवन (दाम्पत्य जीवन) में शुक्र और शनि हो तो मंगल दोष नहीं होता।
5. यदि राहु छठवें भवन या अष्टम भवन में हो तो मंगल दोष नहीं बनता।
6. मंगल राहु की युति हो तो मंगल दोष नहीं होता।
7. चंद्रदेव यदि लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भवन में विराजमान हो, तो मंगल दोष नहीं बनता।
8. मंगल, गुरु के साथ हो अथवा चंद्रमा मंगल के साथ हो, तो मंगल दोष नहीं होता।
9. यदि वर एवं वधू की कुंडली में मंगल, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भवन में हो तो मांगलिक दोष से कुंडली मुक्त होती है।
10. यदि नीच राशि (कर्क) भाव का स्वामी ग्रह मंगल अपने उच्च अथवा स्वराशि अथवा केन्द्र में हो तो मंगल दोष प्रभावी नहीं होता।
एस्ट्रोलॉजिकल मैग्जीन के संपादक विश्वविख्यात डॉक्टर बाराह वैंकटरमन् (आधुनिक युग के पाराशर) तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती राजेश्वरी रमन, में से एक मांगलिक तथा दूसरी मांगलिक नहीं है। उनके पुत्र-पुत्रियां विख्यात ज्योतिषी हैं। डॉ. रमन का 80 वर्ष की आयु में निधन हुआ। श्री एवं श्रीमती रमन ने ज्योतिष जगत में 60 वर्षों तक यशस्वी जीवन जिया। कहने का अर्थ यह है कि मंगली कुंडलियों को जीवन का अभिशाप न मानें। शास्त्रों में मंगल के परिहार के कुछ श्लोक दिए गए हैं, जो सुविज्ञ पाठकों, पंडितों का मार्गदर्शन करेंगे।
जामित्रे च यदा सौरिर्लग्नं वा हिबुके-थवा।
नवमें द्वादशे चैव भौमदोषो न विद्यते।।
अर्थात् जिसके जन्म लग्न से सातवें तथा लग्न में या चौथे, नवें तथा बारहवें शनिदेव विराजमान हों, तो मंगल का दोष नहीं होता।
सौरारयोर्मदयोर मृतांशुराशि,
संप्राप्तयोरिह भवेत्किल शोभना स्त्री।
अर्थात् यदि कर्क राशि में मंगल और शनि सप्तम भवन में विराजे हों, तो जातक को शोभना (शरीर और स्वभाव से सुंदर) पत्नी प्राप्त होती है। मंगल दोष वाले जातक मंगल के कारण नहीं, अपितु अन्य ग्रहों की प्रतिकूलता से दु:खों का अहसास करते हैं। मांगलिक कुंडली वाले जातक मांगलिक दोषों को दूर करने के लिए पंडितों और तांत्रिकों से समाधान के उपाय करवाते हैं। मेरा परामर्श है, उन्हें अपनी कुंडली में चलने वाली विंशोत्तरी/योगनी महादशाओं की जानकारी लेकर रत्न आदि धारण करना चाहिए। अशुभ समय में तनावग्रस्त न रहकर धैर्य के साथ विपरीत समय को प्रेम-स्नेह और विनम्रता की मानसिकता में जीवन यापन करना चाहिए।
मांगलिक योग-राजयोग बनाते हैं।
आज भारतीय राजनीति में शिखर पदों पर विराजमान अनेक आचार्य, साहित्यकार, चिकित्सक, समाजसेवी, खेल प्रतिभाएं, मंत्री, मुख्यमंत्री तथा प्रशासनिक पदों पर आसीन आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अधिकारी केन्द्रीय शासन से लेकर प्रान्तों में पदासीन हैं। विशाल भारत के सभी राज्यों में अनेक विधायक एवं सांसद भी मंगली कुंडली का रक्षा कवच पहने सत्ता के क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। शर्त मात्र इतनी है कि मंगली कुंडलियों में स्वक्षेत्री, उच्च राशिगत, वर्गोत्तम ग्रहों की उपस्थिति होना चाहिए, फिर देखिये। मंगली कुंडलियों का कमाल।
अलौकिक शक्तियों के स्वामी थे मांगलिक
मांगलिक कुंडलियों के जातक भी अद्भुत होते हैं। यदि गृहीय स्थितियां और महादशाओं का अद्भुत संयोग रहे तो फिर देखिए- मांगलिक कुंडलियों के चमत्कार।
आप अपनी अंतरात्मा में झांकिए, छायाचित्रों की तरह निहारिए, फिर देखिए?
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, हंस योगी भगवान महावीर स्वामी सरीखी अलौकिक शक्तियों के स्वामी भी मांगलिक रहे। इतिहास के पृष्ठों को उलटिए, राजनीतिक परिदृश्य पर एक उड़ती निगाह डालिए, कितने विराट व्यक्तित्व मंगली कुंडलियों के आगोश में विचरण कर रहे हैं। भले ही उनका क्रीड़ागन राजनीति का क्षेत्र हो अथवा खेल का मैदान हो या सुन्दर नाक-नक्श वाली अभिनेत्रिओं का दृश्यांकन। तानाशाहों की कर्मभूमि रहे यूरोप और एशिया।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम
लग्नस्थ गुरु, चन्द्र ने बनाया भगवान श्रीरामचन्द्र जी को मर्यादा पुरुषोत्तम। भगवान राम के जन्म का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है-
नवमी तिथि मधुमास पुनीता।
सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।
मध्य दिवस अति शीत न घामा।
पावन काल लोक विश्रामा।।
अभिजित मुहूर्त को मुहूर्तों में सर्वश्रेष्ठ व दोष रहित माना जाता है। भगवान राम जी की कुंडली भी मंगली है। सप्तम भवन में उच्च राशिगत् मंगल बैठा है। यह जीवन संगिनी का भवन है। पौराणिक गाथा से सभी पाठकजन विज्ञ हैं। मैं तो प्रभु श्रीराम के चरणों में नमन् करते हुए मीमांसा करने में समर्थहीन हूं।
हंस योगी भगवान महावीर स्वामी
अहिंसा के अवतार भगवान महावीर स्वामी ने भी राजकुल में जन्म लिया। लग्न स्थ उच्च राशिगत् मंगल ने अपनी चतुर्थ दृष्टि से समस्त प्रकार के राज सुख उपलब्ध कराने के लिए आतुर था, किन्तु भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। सप्तम भवन जो जीवन साथी से संबंधित है, को मंगल अपनी नीच राशि कर्क में गुरु के साथ विराजे राहु के कारण हंस योगी जितेन्द्रिय भगवान महावीर स्वामी ने समस्त प्रकार के वैभव त्यागकर अहिंसा के पथ पर अग्रसर हुए और समस्त विश्व को त्याग और शांति का संदेश दिया। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के रूप में समस्त विश्व में इनकी प्रभावना है। भगवान महावीर की कुंडली भी मांगलिक है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (पूर्व राष्ट्रपति)
जन्म 05.09.1888, समय 06.00 प्रात: (मद्रास)
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का लग्नेश सूर्य जो शासन का प्रतिनिधित्व करता है, लग्न में लग्नेश बनकर बैठा हुआ है। धनेश और लाभेश अपनी उच्च राशि बुध में द्वितीय भवन में विराजमान है। लग्नस्थ चन्द्रदेव से चतुर्थ भवन में
बैठकर पंचमेश गुरु गजकेसरी योग बना रहे हैं। कर्मेश जो स्वयं पराक्रमेश भी है। ऐसा शुक्र प्रबल राजयोग भी बना रहा है। भाग्येश मंगल चतुर्थ भवन में अपनी राशि में पदस्थ होकर राज्य भवन को देख रहा है। गजकेसरी योग ने उन्हें विश्व स्तरीय दार्शनिक बनाया तथा प्रबल राजयोग ने उन्हें 10वर्षों तक उपराष्ट्रपति तथा 5वर्षों तक स्वतंत्र भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य प्रदान किया। उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह कुंडली मांगलिक है।
मोरारजी भाई देसाई (पूर्व प्रधानमंत्री)
जन्म 29.02.1896, समय 01.00 दोपहर: बलसाड़ (गुजरात)
कर्मठ गांधीवादी और राजनीतिज्ञ जातक की यह कुंडली मंगली है। शनि, मंगल, गुरु उच्च राशिगत् हैं। शनि भाग्येश, गुरु राज्येश तथा मंगल लाभेश और शत्रु भवन का स्वामी है। अष्टम में बैठकर आज से तीन दशक पूर्व जब गोचर का शनि उच्च राशि का था जातक को साढ़ेसाती लगी, तभी सन् 1977 में चुनाव सम्पन्न हुए। चुनावों में रायबरेली से श्रीमती इंदिरा गांधी पराजित हुईं और श्री मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। यह प्रबल राजयोग कारक मांगलिक कुंडली है।
चन्द्रशेखर (पूर्व प्रधानमंत्री)
भारत के जाने-माने समाजवादी चिंतक सफल राजनीतिज्ञ पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर जी की कुंडली भी मांगलिक है। भाग्येश शनि शत्रुहंता होकर षष्ठम भवन में शत्रु क्षेत्रीय होकर पदस्थ है। अष्टमेश शनि शत्रु क्षेत्रीय होकर षष्ठम भवन में विपरीत राजयोग बना है। राजभवन का स्वामी गुरु सप्तमेश होकर भाग्य भवन में विराजमान है। राजभवन के स्वामी गुरु की नवम दृष्टि चन्द्रमा पर होने से अल्पकालिक प्रधानमंत्री का योग सफलीभूत हुआ।
महारानी ऐलिजावेथ, द्वितीय (इंग्लैंड)
महारानी ऐलिजावेथ, ब्रिटिश एम्पायर की एक सशक्त महिला शासक हैं। लग्नस्थ उच्च राशिगत मंगल राज्यभवन का स्वामी पराक्रम भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजमान हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि पराक्रम एवं साहस के साथ शासनाध्यक्ष के रूप में आज भी वह महिमा मंडित हैं। पंचम भवन में वृष राशि का स्वामी शुक्र उच्च राशिगत होने के साथ आयु भवन का स्वामी सूर्य उन्हें शतायु बना सकता है? राहू भी मित्र क्षेत्री है। विवादों से दूर यह महारानी पारिवारिक सुखों के साथ यशस्वी हैं। यह कुंडली मांगलिक है।
एडोल्फ हिटलर(जर्मन)
जन्म 20.04.1889. समय 19.30 जर्मनी
लग्नेश की लग्न पर दृष्टि, पराक्रमेश एवं दसमेश की युति साथ ही यह युति गजकेसरी योग बना रही है। भाग्य भवन में जन समूह का समर्थन, पंचमेश अर्थात वाणी का अधिपति शनि भाग्य भवन में पदस्थ होकर पराक्रम भवन तथा शत्रु भवन को निहार रहा है। उच्च राशिगत सूर्य, स्वक्षेत्री मंगल और गुरु मित्र
क्षेत्रीय भाग्यस्थ राहु और केतु पराक्रम भवन में होने से जातक को कलह प्रिय बनाता है। एडोल्फ हिटलर जर्मन का एक ऐसा शासक बना, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध का पुरोधा कहा जाता है। किन्तु इतिहास के गर्भ में 1914 से 1919 के मध्य चला प्रथम विश्व युद्ध था, जिसने जर्मन के विरुद्ध वारसा की संधि थोप दी। शरीर कमजोर, दृष्टि में भी कमजोर एक युवक ने अपने अदम्य साहस से सैनिक फिर जर्मन के चांसलर का ओहदा प्राप्त किया तथा संपूर्ण विश्व को झकझोर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध में लगभग 4 करोड़ मानव प्रभावित हुए थे, यूरोप तो लहूलुहान हो गया। 10 लाख पौलेंडवासी मारे थे। इसीलिए कहा जाता है कि किसी का इतना अपमान मत करो कि वह बदला लेते समय पागलपन की सीमा लांघ जाए। यह कुंडली भी मांगलिक है।
तानाशाह मुसोलिनी (इटली)
जन्म 29.07. 1883 को 15.00 बजे पीएम
प्रस्तुत कुंडली द्वितीय विश्व युद्ध में एडोल्फ हिटलर के प्रमुख सहयोगी रहे इटली के तानाशाह मुसोलिनी की है। इस कुंडली में राहु अपनी मित्र राशि में है। राज्य भवन का अधिपति सूर्य भाग्य भवन में तथा भाग्येश परमोच्च होकर, चतुर्थेश और पराक्रमेश शनि तथा लग्नेश मंगल के साथ सप्तम भवन में विराजमान हैं। इसीलिए सम्राट योग बना रहे हैं। शत्रुहंता मंगल (पराक्रमेश) शनि से युक्त होकर क्रूर शासक बनाते हैं। यह कुंडली मांगलिक है।
कपिल देव (पूर्व क्रिकेट कप्तान)
जन्म: 05.11.1959 समय 2.36 एएम: चंडीगढ़
गुरु एवं बुध का मंगल से षडाष्टक योग एवं केतु से चंद्रमा का षडाष्टक योग से क्रिकेट क्षेत्र में कपिल देव की कप्तानी में वल्र्ड कप जीतने का पहली बार अवसर मिला। कपिल देव की कुंडली भी मांगलिक है। पारिवारिक जीवन भी सभी अर्थों में सुखद और यशस्वी है। विश्वख्याति प्राप्त यह जातक आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न है।
श्रीमती माधुरी दीक्षित (अभिनेत्री)
लग्नेश शुक्र भाग्य भवन में मित्र गृही होकर स्थित है। राज भवन में गुरु , चन्द्र उत्तम गज केसरी योग बना रहे हैं। बुध एवं शुक्र का राशि परिवर्तन योग द्वादश भवन में मंगल में विराजमान होने से यह कुंडली भी मांगलिक बन गई है। फिल्मी दुनिया की इस विख्यात अभिनेत्री ने अमेरिका में रह रहे भारतीय से विवाह किया। संतान सुख उत्तम है।
बिल क्लिंटन (पूर्व राष्ट्रपति अमेरिका)
प्रस्तुत कुंडली अमेरिका के 8वर्षों तक रहे राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की है। लग्न मंगल के साथ नीच राशिगत शुक्र ने चारित्रिक शिथिलता की ओर भले ही उन्मुख किया हो, किन्तु शुक्र भाग्येश भी है। राज्य भवन को गुरु अपनी नवमी दृष्टि से निहार रहा है। राज्येश लाभ भवन में है। संतान भवन पर शनि की स्वक्षेत्री दृष्टि है।
जीवन साथी के भवन का स्वामी गुरु है, जो धन भवन में पदस्थ हैं। यह मांगलिक पुरुष सर्वसुखों से युक्त हैं। श्रीमती क्लिंटन वर्तमान में अमेरिका में
विदेश मंत्री के पद पर पदारुढ़ हैं।
पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
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