Thursday, 10 April 2014

लोकसभा चुनाव में ताजपोशी किसकी


  • ज्योतिष के ग्रहीय सुदर्शन चक्र में
  • नरेन्द्र मोदी, राहुल गांधी, लालकृष्ण आडवानी या कोई और
  • विषाक्त कालसर्प योगी अरविन्द केजरीवाल राजनैतिक चैपाल पर किसको डसेंगे?


चौदहवीं लोकसभा के चुनावी समर की तैयारी में जुट गए हैं, राजनैतिक खलीफा।10, जनपथ को जीतने की चिन्ता नहीं? बल्कि दिल्ली सरीखी राजनीतिक चौपाल पर अपनी 8 सीटों के बल पर 32 सीटों वाली भाजपा को सत्ता से बाहर कर अरविन्द केजरीवाल की 28 सीटों वाली आम आदमी पार्टी को सत्तारूढ़ करवा दिया। उसी तर्ज पर कांग्रेस: नरेन्द्र मोदी की दिल्ली की गद्दी पर ताजपोशी रोकने के लिए शरद पवार या किसी अन्य को समर्थन देकर प्रधानमंत्री बनवाने के राजनैतिक चक्रव्यूह की रचनाकार बन सकती है। दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुरी उस्ताद नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी के लिए कैसी व्यूह रचना करेंगे, इसकी तैयारी बदस्तूर चालू है। उन्हें खतरा है, लालकृष्ण अडवानी के उन राजनैतिक रणनीतिकारों से, जिसमें नीतिश कुमार, ममता बनर्जी, जगन रेड्डी, शिवसेना, अकाली दल तथा भा.ज.पा. का वह घड़ा, जो चुनावी संख्या बल के आधार पर  लालकृष्ण अडवानी की ताजपोशी में सिद्धहस्त एवं संकलित है।
ज्योतिष में सटीक भविष्यवाणी करने हेतु कुछ नये अनुसंधानों का सहारा लेकर भावी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की खोज करने का हम प्रयास कर रहे हैं।  1. दक्षिण भारत में नवांश कुण्डली के महत्व को प्रमुखता से स्वीकारा गया है, क्योंकि वर्गोत्तम ग्रह की खोज बिना नवांश कुण्डली के संभव नहीं। 2. अष्टक वर्ग के शुभ बिन्दु जातक के शुभाशुभ फल की वैज्ञानिक पद्धति है।  3. वर्ष कुण्डली, संबंधित वर्ष के फलाफल का चमत्कारिक आईना है। साथ ही विंशोत्तरी एवं योगनी महादशाओं का सहारा लेकर ज्ञात किया जा सकता है कि किसकी कुण्डली में दिल्ली के तख्ते-ताऊस पर ताजपोशी करवाने के योग प्रबल हैं।
इस आलेख के केन्द्र बिन्दु हैं: नरेन्द्र मोदी, राहुल गांधी और भाजपा के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवानी। विषाक्त कालसर्प योगी अरविन्द केजरीवाल के राजनैतिक बजूद का परीक्षण भी इन संसदीय चुनाव में स्वमेव हो जायेगा। यह प्रश्न अनुत्तरित है? आईये देखें! ज्योतिष के ग्रहीय सुदर्शन चक्र में कौन किस पर भारी पड़ रहा है?

14वीं लोकसभा के चुनाव का शंखनाद बजने वाला ही है। आतुर है! राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के रक्षा कवच से सुरक्षित भा.ज.पा. के घोषित प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी  नरेन्द्र मोदी, दूसरी ओर कांग्रेस के अघोषित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार  राहुल गांधी। भाजपा के पितृपुरूष  लालकृष्ण अडवानी भले ही प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर मौन हों? किन्तु शतरंज की बिसात पर उनकी उपस्थिति हैरतअंगेज मानी जा रही है। कांग्रेस भले ही हाल ही में सम्पन्न पांच विधानसभाओं में से चार विधान सभाओं में मिली पराजय से व्यथित हो, किन्तु लोकसभा चुनावों में वह पुन: सत्तासीन होने की हसरत पालकर बैठी है। कांग्रेस का राजनैतिक कौशल किसी तिलस्म से कम नहीं है। अल्पमत होने पर भी विगत् 10 वर्षों से सत्तासीन है।  सत्ता के गलियारों में ध्वनित एक ओर सच बनते बिगड़ते राजनैतिक समीकरणों में प्रतिबिम्बत हो रहा है कि कहीं यू.पी.ए. का प्रमुख घटक दल कांग्रेस भले ही 125-130 सीटों पर सिमट जाए, किन्तु अन्य घटक दल जो तेरहवीं लोकसभा अर्थात् 2009 में अपनी राजनैतिक काया ण कर चुके थे यदि वे सबल हो जाएं जैसे लालू यादव, रामविलास पासवान, शरद पवार तथा सत्ता से दूरी बनाये रखने वाले वामदल। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का मायावी राजनैतिक घटोत्कच्छ यदि 15-25 सीटें लोकसभा में जीत गया तो परकाया प्रवेश के माध्यम से कांग्रेस का लालीपॉप बन सकता है, दिल्ली सरकार की सुरक्षा के एवज में।  भा.ज.पा. के वेटिंग प्राइम मिनिस्टर  नरेन्द्र मोदी गुजरात के विकास की दुहाई देते नहीं थकते, किन्तु वे इतने आत्ममुग्ध न हों कि यह भूल जाएं कि गुजरात पहले से ही समृद्ध राज्य है तथा गुजरात के अधिसंख्य नागरिक परिवारों के सदस्य अप्रवासी भारतीय के रूप में विदेशों में रहकर अपने परिवारों को विदेशी मुद्रा भेजकर प्रदेश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। इसमें मोदी चमत्कार कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण है।  भा.ज.पा. ही नहीं शिवसेना तथा अकाली दल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एक धड़ा चिन्तित है कि मोदी के अहंकारी उद्घोष से सत्ता का स्वर्ण मारीच कहीं निगाहों से ओझल न हो जाए? और यही है यक्ष का मौन तोड़ता प्रश्न? कि कहीं लालकृष्ण अडवानी, ममता, नवीन पटनायक, जगन रेड्डी, चन्द्रबाबू नायडू, नीतिश कुमार तथा जे. जयललिता की राजनैतिक वैशाखियों पर एन.डी.ए. की सरकार बना कर दिल्ली के तख्तेताऊस पर विराजमान न हो जाएं? आईये! ज्योतिष के आईनें में देेखें 14वीं लोकसभा का चुनावी भविष्य। मूल पात्र हैं  नरेन्द्र मोदी,  राहुल गांधी तथा  लालकृष्ण आडवानी और राजनैतिक नवजात शिशु, जिसने अपने शाब्दिक मायाजाल से दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री पद की गद्दी हथिया ली।

जन्मकुंडली - 4
नरेन्द्र मोदी: जन्म 17 सितम्बर, सन् 1950,
समय: दिन के 11 बजे, स्थान: मेहसाना (गुजरात)  
 
 नरेन्द्र मोदी की जन्म राशि वृश्चिक है। शनि की साढ़े साती का प्रथम चरण चल रहा है। राजभवन में विराजे शुक्र में पराक्रमेश शनि की अन्तर्दशा में गुजरात के मुख्यमंत्री बने। 02.12.2005 को शुक्र की महादशा के बाद राज्येश सूर्य की महादशा जो 03.02.2011 तक चली। तत्पश्चात् 03.02.2011 से भाग्येश चन्द्र की महादशा का शुभारम्भ हुआ। ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित है कि एक तो भाग्येश की महादशा जीवन में आती नहीं है और यदि आ जाए तो जातक रंक से राजा तथा राजा से महाराजा बनता है।  मोदी भाग्येश की महादशा में मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बन सकते हैं, किन्तु चन्द्रमा में राहु की अन्र्तदशा ग्रहण योग बना रही है तथा 20.04.2014 से 20.07.2014 के मध्य व्ययेश शुक्र की प्रत्यन्तर दशा कहीं प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के प्रबल योग को ण न कर दें? यद्यपि योगनी की महादशा संकटा में सिद्धा की अन्तर्दशा तथा वर्ष कुण्डली में वर्ष लग्न जन्म लग्न का मारक भवन (द्वितीय) होते हुए भी मुंथा पराक्रम भवन में बैठी है तथा मुंथेश शनि अपनी उच्च राशि का होकर लाभ भवन में विराजमान है। जो अपनी तेजस्वीयता से जातक को 7 रेसकोर्स तक पहुंचा सकता है। किन्तु एक अवरोध फिर भी शेष है और वह है सर्वाष्टक वर्ग के राज्य भवन में लालकृष्ण आडवानी और राहुल गांधी की तुलना में कम शुभ अंक अर्थात् 27.  साथ ही ''मूसल योग'' जातक को दुराग्रही बना रहा है तथा केमद्रुम योग, जो चन्द्रमा के द्वितीय और द्वादश में कोई ग्रह न होने के कारण बन रहा है। उसका फल भी शुभ कर्मों के फल प्राप्ति में बाधा। वर्तमान में भाग्येश चन्द्रमा की महादशा चल रही है, जो दिल्ली के तख्ते ताऊस पर  मोदी की ताजपोशी कर तो सकती है किन्तु केमद्रुम योग तथा ग्रहण योग इसमें संशय व्यक्त करता नजर आ रहा है? 

जन्मकुंडली-4
राहुल गांधी: जन्म 19 जून, 1970
समय: प्रात: 5.50 बजे, स्थान: नई दिल्ली   

 राहुल गांधी,  नरेन्द्र मोदी की तरह वृश्चिक वाले जातक हैं। शनि की साढ़े साती का प्रथम चरण इन्हें भी चल रहा है। शनि के प्रभा मण्डल में दोनों जातक प्रजातांत्रिक तरीके से प्रधानमंत्री बनने की जोर अजमाइश कर रहे हैं।  राहुल गांधी की कुण्डली में बुध और गुरु ग्रह वर्गोत्तम है।  विंशोत्तरी में चन्द्रमा की महादशा में बुध की अंतर्दशा चल रही है। चन्द्रमा द्वितीय श्रेणी का मारक ग्रह है, वहीं बुध वर्गोत्तम होकर लग्न तथा मातृ भवन का स्वामी होकर द्वादश भवन में विराजमान है। अस्तु, माँ (मति सोनिया गांधी) का पुण्य प्रताप अनेक अवरोधों से निजात दिलाता नजर आ रहा है। चन्द्र में बुध की अन्तर्दशा तथा बुध में भाग्येश शनि की प्रत्यंतर दशा 06.04.2014 से 27.06.2014 तक चलेगी। शनि भाग्येश होकर अपनी उच्चराशि तुला में भ्रमणरत है।  साथ ही  राहुल गांधी की कुण्डली में योगनी महादशा में सिद्धा में सिद्धा की महादशा चल रही है, जो दिनांक 08.12.2014 तक चलेगी। सिद्धा की महादशा भी कार्यों की सिद्धि तथा सफलता में सहायक होती है।  वर्ष कुण्डली की लग्न जन्म लग्न मिथुन है। ताजिक नीलकंठी के अनुसार जब वर्ष लग्न जन्म लग्न बने तो वह वर्ष में संबंधित जातक को पुनर्जीवन वर्ष के सदृश्य होगी अर्थात् विगत् की राजनैतिक शून्यता शिखर पुरुष भी बना सकती है। किन्तु एक अवरोध है - मुंथा अष्टम् भवन में है, जो शारीरिक स्वास्थ्य की विपरीतता या किसी दुर्घटना की सूचक है।  आवश्यक चुनावी व्यवस्था में यात्राओं के दौरान सतर्कता बरतने से स्वास्थ्य हानि से बचा जा सकता है। कुण्डली में बने योगों में प्रमुख योग ''चक्रवर्ती राज योगÓÓ। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में देश का प्रधानमंत्री बनना भी चक्रवर्ती राजयोग के समकक्ष है। इसकी समयावधि 28.07.2020 तक है। सर्वाष्टक वर्ग के राज्य भवन में 35 शुभ बिन्दु देश के शिखर पद पहुंचाने में सहयोगी हो सकते हैं?

जन्मकुंडली-4
लालकृष्ण अडवानी: जन्म 08 नवम्बर, 1927
समय: प्रात: 9:16 बजे, स्थान: करांची (पाकिस्तान)

 लालकृष्ण आडवानी जी की कुण्डली वृश्चिक लग्न वाली है।  मोदी की जन्म लग्न भी वृश्चिक है। स्वभावगत् देखा जाए तो कोई भी किसी से कम नहीं।
 आडवानी जी की कुण्डली में वर्गोंत्तम ग्रह शनि है, जो पराक्रमेश और सुखेश भी है तथा गोचर में अपनी उच्चराशि तुला मे भ्रमणरत है। विंशोत्तरी दशा में वर्गोत्तम ग्रह शनि की महादशा में लाभेश बुध की अंतर्दशा 30.05.2014 तक चलेगी। लोकसभा के चुनावी परिणाम 30.05.14 तक आने की संभावना है।
यदि चमत्कार ने शनिदेव का नमस्कार कर लिया तो विचित्र किन्तु सत्य में घटित चुनावी सफलताएं  अडवानी को शिखर पद पर पहुंचा सकती है। योगनी महादशा में सिद्धा में सिद्धा की अंतर्दशा 01.06.2014 तक चलेगी। ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित है सिद्धा की महादशा जातक के समस्त प्रकार के कार्यों में सफलताओं के हस्ताक्षर करती हैं।  नवांश कुण्डली में सूर्य जो जन्म कुण्डली में राज्येश है, चन्द्र जो भाग्येश है, गुरु जो पंचमेश है तीनों ग्रह नवांश कुण्डली में अपनी-अपनी उच्च राशि में विराजमान है। अष्टमेश एवं लाभेश बुध भी नवांश कुण्डली में स्वक्षेत्री होकर केन्द्रस्थ है। सर्वाष्टक वर्ग की कुण्डली के राज्य भवन में 40 शुभ बिन्दु प्राप्त है, जो  राहुल गांधी और  नरेन्द्र मोदी से भी अधिक है। वर्ष कुण्डली, जन्म लग्न का द्वितीय भवन तथा मुंथेश शनि अपनी उच्च राशि तुला के साथ लाभ भवन में पदस्थ हैं। ज्योतिषीय गणनाओं का समग्र आंकलन कर यदि संकल्पित शब्दों में कहा जाए तो  नरेन्द्र मोदी अथवा  राहुल गांधी की तुलना में भा.ज.पा. का यह भीष्म पितामह दिल्ली के तख्ते-ताऊस पर विराजमान हो जावें, तो अकल्पनीय नहीं कहा जा सकता।

जन्मकुंडली-4
अरविन्द केजरीवाल (विषाक्त कालसर्प योग)
जन्म 16 अगस्त, 1968, समय: रात्रि 11:48 बजे, स्थान: हिसार (हरियाणा)    

वर्गोत्तम ग्रह: शनि और बुध विषाक्त कालसर्प योगधारी यह जातक भारतीय राजनीति में सुनामी की तरह 15 वर्षों तक स्थापित दिल्ली की मुख्यमंत्री मति शीला दीक्षित को विधान सभा के चुनावी समर में पराजित कर दिल्ली राज्य का स्वयं मुख्यमंत्री बन बैठा।   नरेन्द्र मोदी से लेकर भा.ज.पा. के अनेक कद्दावर नेता भी दिल्ली में भा.ज.पा. को सिंहासत्तारूढ़ कराने में असफल रहे। कालसर्प योग में जन्में पं. जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई, पी.व्ही. नरसिम्हाराव, मार्टिन लूथर किंग, मति सोनिया गांधी, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सद्दाम हुसैन, नेल्सन मण्डेला, पं. मदनमोहन मालवीय, हेराल्ड विल्सन, मोरारी बापू सरीखे विशिष्ट व्यक्तित्व भी काल सर्पयोग से प्रभावित रहे।   अरविन्द केजरीवाल की कुण्डली में शंख योग, मेरी योग, पर्वत योग, अखण्ड साम्राज्य योग, अमर योग, केन्द्र त्रिकोण आदि प्रबल राजयोगों ने देश की राजधानी दिल्ली प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवा दिया।  विधानसभा 2013 के चुनावी समर में किसी भी एक्जिट या ओपिनियन पोल ने 16 से अधिक सीटें नहीं दीं, किन्तु मैंने अपने चुनावी आलेख में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में ''आम आदमी पार्टीÓÓ के लिए लिखा था कि आम आदमी पार्टी राजनैतिक हनीमून मनायेगी तथा कांग्रेस पार्टी सत्ताच्युत होकर भी विपक्ष में नहीं बैठेगी - भविष्य वाणी अक्षरस: सत्य हुई।  अरविन्द केजरीवाल की कुण्डली में शनि और शुक्र स्वक्षेत्री है, जो भाग्येश तथा राज्येश एवं लग्नेश है। शनि गोचर में उच्च राशिगत् होकर शत्रु भवन में विचरण कर रहा है। सम्भव है राजनैतिक शत्रुओं के पराभव की ऐतिहासिक समीक्षा करने में यह आतुर हो।

राजनीतिक समीकरण
चौदहवीं लोकसभा के चुनावों के राजनैतिक समीकरण  नरेन्द्र मोदी एवं  राहुल गांधी के मध्य शक्ति प्रदर्शन के रूप में प्रतिफलित होंगे। आशय यह कि भा.ज.पा. या कांग्रेस में से कौन सत्ता सिंहासन पर कब्जा जमाने में सफल होगा? प्रश्न का उत्तर स्पष्ट है कि जनादेश किस पार्टी एवं उसके सहयोगी दलों को बहुमत की सीमा रेखा में लाता है। ज्योतिष परिदृश्य मिले-जुले संकेत दे रहा है।  नरेन्द्र मोदी और  राहुल गांधी दोनों की कुण्डलियां वृश्चिक राशि तथा शनि की साढ़ेसाती से प्रभावित हंै। दोनों का स्वामी मंगल है।   नरेन्द्र मोदी की कुण्डली महादशाओं की दृष्टि से भाग्येश चन्द्र की दशा में, राहु की अन्तर्दशा ग्रहण योग, वर्ष मुंथा पराक्रम भवन में, मुंथेश शनि अपनी उच्च राशि लाभ में तथा दूसरी ओर  राहुल गांधी की कुण्डली के अनुसार चन्द्रमा जो मारक है कि महादशा में लग्नेश-सुखेश बुध की अंतर्दशा चल रही है और प्रत्यन्तर दशा शनि की, जो मारकेश तथा भाग्येश भी हैं। योगनी महादशा में सिद्धा में सिद्धा की अन्तर्दशा 08.12.2014 तक चलेगी। वर्ष कुण्डली में लग्न जन्म लग्न है, इसे पुनर्जन्म वर्ष के रूप में स्वीकारा जाता है। सर्वाष्टक वर्ग के राज्य भवन में  नरेन्द्र मोदी के शुभ बिन्दु 27 तथा  राहुल गांधी को शुभ बिन्दु 35 मिले हैं। दोनों में से कोई भी कम नहीं है, किन्तु नरेन्द्र मोदी की पराक्रम भवन में मुंथा, मुंथेश शनि उच्च तथा भाग्येश की महादशा के कारण  राहुल गांधी की तुलना में प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार  नरेन्द्र मोदी बनते दिख रहे हैं। किन्तु इन दोनों की तुलना में छिपे रुस्तम  लालकृष्ण आडवानी की कुण्डली को देखें तो नरेन्द्र मोदी की तुलना में ग्रहीय प्रभाव  आडवानी जी के प्रबल हैं। सर्वाष्टक वर्ग के राज्य भवन में शुभ बिन्दु 40 जो मोदी और गांधी की तुलना में सर्वाधिक है। विंशोत्तरी महादशा शनि में बुध की अन्तर्दशा। शनि वर्गोत्तम है। पराक्रमेश और सुखेश शनि की महादशा में लाभेश बुध की अन्तर्दशा जातक को प्रभावशाली बनाती है। शनि अपनी उच्च राशि तुला में भ्रमणरत है।  आडवानी की नवांश कुण्डली में सूर्य जो राज्येश है, चन्द्र जो भाग्येश है और गुरु जो पंचमेश (विवेक) है तीनों अपनी-अपनी उच्च राशि में विराजमान हैं। वर्ष कुण्डली में मुंथेश शनि अपनी उच्च राशि में भ्रमणरत् है। योगिनी महादशा में सिद्धा में सिद्धा की अन्तर्दशा 01.06.2014 तक चलेगी। ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित है कि सिद्धा अपने महादशा काल में कार्यों की सफलताओं के हस्ताक्षर करती है। यदि ज्योतिष की दृष्टि में संकल्पित शब्दों में कहा जाए कि भा.ज.पा. का यह भीष्म पितामह दिल्ली के तख्ते-ताऊस पर बैठकर देश का प्रधानमंत्री बन जाए, तो अकल्पनीय नहीं कहा जा सकता।  अरविन्द केजरीवाल इस चुनावी समर में कांग्रेस तथा भा.ज.पा. एवं स.पा. के लिए एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींचेगें जो विजय के पास खड़े चुनावी मुहरों को पराजय की दास्तान लिखने को मजबूर कर सकेंगे। आम आदमी पार्टी की 'लाईफ लाईन' इन्हीं चुनावों में छोटे या बड़े आकार में खींची जा सकती है। दिल्ली राज्य का भविष्य भी इसी चुनावी परिणाम से जुड़ा होगा?

पंडित पीएन भट्टअंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
मोबाइल : 09407266609, 8827294576
फोन: 07582-223168, 223159








सृष्टिरूपा दस महाविद्याएं शक्तितत्व रहस्य



यह विश्व शक्तिमय है। विश्व के अतिरिक्त भी जो कुछ सत्ता है, वह भी शक्ति है। शक्ति ही जड़ और चेतन दोनों हैं - ब्रह्म, जीव और माया तीनों हैं। शक्ति ही परात्पर है। शक्ति ही भगवती है, शक्ति ही भगवान है। शक्ति ही शक्तिमान है। शक्ति और शक्तिमान में अन्तर नहीं है। जो कुछ है शक्ति है जो कुछ नहीं है वह न होना भी शक्ति ही है। आइये जानते हैं आज की कवर स्टोरी में बसंत नवरात्र में मां आद्यशक्ति की आराधना, शक्ति तत्व का रहस्य।

योगवासिष्ठ महारामायण भारतीय अध्यात्म शास्त्रों में एक उच्च कोटि का ग्रंथ है। विद्वतजनों की ऐसी मान्यता है कि चारों वेदों के अध्ययन मनन के बाद योग वासिष्ठ के अर्थ को समझना ज्यादा सटीक होगा। योग वसिष्ठ में भगवान राम और उनके गुरू वसिष्ठ जी के मध्य संवाद है। भगवान राम, गुरू वसिष्ठ जी से पूछते हंै, हे गुरूदेव ! क्या आप सरीखे गुरू वसिष्ठ और मुझ सरीखे राम इस धरा पर पूर्व में भी जन्मे हैं ? गुरूदेव वसिष्ठ जी ने कहा है राम ! जिस तरह सम्रुद में लहरे उठती हैं और मिट जाती है, उसी प्रकार 14 राम और 14 वासिष्ठ इस धरा पर पूर्व में भी जन्में हैं। इसी ग्रंथ में वासिष्ठ जी कहते हैं, हे राम ! वह अनादि स्पन्द शक्ति प्रकृति, परमेष्वर षिव की इच्छा जगत-माता आदि के नाम से विख्यात हैं। सृष्टि का कारण होने से वह प्रकृति और अनुभूत दृष्य पदार्थों के उत्पादन करने से वह क्रिया कहलाती है। इस महाषक्ति के दूसरे नाम शुष्का, चण्डिका, उत्पला, जया, सिद्धा, जयन्ती, विजया, अपराजिता, दुर्गा, उमा, गायत्री, सावित्री, सरस्वती, गौरी, भवानी और काली आदि भी हैं।

माता का गुरुत्व

- मातृ देवों भव, पितृ देवों भव, आचार्य देवो भव ।
- मातृवान, पितृ मानाचार्यवान् पुरूषो वेद।।

मंत्रों में माता का स्थान सबसे पहले दिया गया है। इसका भी यही कारण है कि माता ही आदि गुरू है और उसी की दया और अनुग्रह से बच्चों का ऐहिक पारलौकिक और पारमार्थिक कल्याण निर्भर रहता है। सनातन वैवाहिक मंत्र- ''सम्राज्ञी भव हमारे वैवाहिक मंत्रों से ही स्पष्ट है कि स्त्री को अपने पति के घर में सर्वोत्तम अधिकार दिया जाता है, क्योंकि विवाह करने वाला पुरूष अपनी पत्नि से कहता है- ''सम्राज्ञी भवÓÓ। अर्थात ,मेरे घर की रानी, महारानी नहीं बल्कि सम्राज्ञी अर्थात सर्वाभौमिक चक्रवर्तिनी बनो। '' इसी से स्त्री को अपने पति के घर में कोई हीन पदवी नहीं मिलती, बल्कि सर्वोत्तम पदवी ही मिलती है।
अंतिम आश्रय: जगन्माता : जो जगन्माता - न केवल साधारण रेषु सर्वेषु, सुप्तेषु जागर्ति अपि तु सुप्तेेपि जगन्नाथे जागर्ति '' अर्थात साधारण सब जीवों के ही नहीं, बल्कि जगत्पिता के सोते रहने पर भी जो अपने बच्चों की रक्षा और कल्याण के लिए दिन-रात सदा-सर्वदा जागती रहती है, जिसका इसी प्रसंग के कारण चण्डीपाठ सप्तषती के एक ध्यान श्लोक में वर्णन है- ''यामस्तौत्सवपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम। और जिसको शंकरावतार और याति सर्वभौम भगवान जगद्गुरू श्री शंकराचार्यजी ने अत्यंत श्रद्धाभाव से कहा -  देशिकरूपेण दर्षिताभ्युदयाम् ।  विभिन्न श्लोकों के माध्यम से जगन्माता को जगदगुरू बताया है। आज के कलयुगी संकट काल में किसका आश्रय लें। इसी जगन्माता और जगदगुरू के श्री चरणों में शरणागत होकर अपने हृदयोदगार प्रार्थना के रूप में समर्पित कर दें।

शक्ति तत्व
शक्ति तत्व क्या है? जो निर्विषेष शुद्व तत्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार है उसी को पुंस्त्वदृष्टि से चित और स्त्रीत्व को चिति कहते हैं। शुद्व चेतन और चिति ये एक ही तत्व के दो नाम हैं। माया में प्रतिबिम्बित उसी तत्व को जब पुरूष रूप से उपासना की जाती है तब उसे ईष्वर, षिव अथवा भगवान आदि नामों से पुकारते हैं और जब स्त्री रूप से उपासना करते हैं तो उसी को ईष्वरी, दुर्गा अथवा भगवती कहते हैं। शक्तिं की उपासना प्राय: सिद्वियों की प्राप्ति के लिए की जाती  है। तंत्र शास्त्र का मुख्य उद्देष्य सिद्धि लाभ ही है। आसुरी प्रकृति के पुरूष मद्य-मांस आदि से पूजते हैं, जिससे उन्हें मारण उच्चाटन आदि आसुरी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। देवी प्रकृति के पुरूष गन्ध-पुष्प आदि सात्विक पदार्थों से पूजते हैं, जिससे वे नाना प्रकार की दिव्य सिद्धियां प्राप्त करते हैं। यद्यपि शक्ति के उपासक प्राय: सकाम पुरूष ही होते हैं किन्तु निष्काम उपासक भी होते हैं। राम कृष्ण परमहंस निष्काम उपासक थे। ऋग्वेद के दसम मण्डल के 125 वें सूक्त में आदि शक्ति जगदम्बा कहती हैं -
'' मैं ब्रहाण्ड की अधीष्वरी हँू। मैं ही सारे कर्मो का फल भुगताने वाली और ऐष्वर्य देने वाली हूँ। मैं चेतन एवं सर्वज्ञ हूँ। मैं एक होते हुए भी अपनी शक्ति से नाना रूप धारण करती हूँ । मैं मानव जाति की रक्षा के लिए युद्ध कर शत्रुओं का संहार कर पृथ्वी पर शक्ति की स्थापना करती हूँ। मैं ही भू लोक, स्वर्ग लोक का विस्तार करती हूँ । जैसे वायु अपने आप चलती है, वैसे ही मैं भी अपनी इच्छा से समस्त विष्व की स्वयं रचना करती हूँ। मैं सर्वथा स्वतंत्र हूँ । मुझ पर किसी का प्रभुत्व नहीं। अखिल विष्व मेरी विभूति है।
इस प्रकार जगदम्बा को सब कुछ कहा गया है। उस जगज्जननी के अन्दर ही हम जीवन धारण करते हैं, चलते फिरते हैं और अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं।

शक्ति तत्व व कलाएं
शक्ति तत्वों के साथ कलाओं का भी संबंध है। ये कलाएं शक्ति रूप में तत्वों की क्रियाएं हैं। उदाहरणत: सृष्टि ब्रह्मा की कला है, पालन विष्णु की कला है और मृत्यु रूद्र की कला है।  शाक्त तंत्रों में चौरानवे कलाओं का उल्लेख मिलता है, जिनमें 19 कलाएं सदाषिव की, छ: ईष्वर की, ग्यारह रूद्र की, दस विष्णु की, दस ही ब्रह्मा की, उतनी ही अग्नि की, बारह सूर्य की, सोलह चन्द्रमा की मानी गई हंै। ''सौभाग्य रत्नाकर ग्रंथÓÓ के अनुसार निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या, शान्ति, इन्धिका, दीपिका, रेचिका, मोचिका, परा, सूक्ष्मा, सूक्ष्मामृता, ज्ञानामृता, अमृता, आव्यायिनी, व्यापिनी, व्योमरूपा, मूलविद्या मंत्र कला, महामंत्र कला और ज्योतिष कला ये उन्नीस कलाएं सदाषिव की हैं। पीता, श्वेता, नित्या, अरूणा, असिता और अनन्ता ये छ: कलाएं ईष्वर की हैं। तीक्ष्णा, रौद्री, भया, निद्रा, तद्रा , क्षुदा, क्रोधिनी क्रिया, उद्गारी अभाया और मृत्यु- ये ग्यारह रूद्र की कलाएं हैं। जड़ा, पालिनी, शान्ति, ईष्वरी, रति, कामिका, ह्लादिनी, प्रीति और दीक्षा- ये दस विष्णु की कलाएं हैं। सृष्टि, सिद्धि, स्मृति, मेघा, कान्ति, लक्ष्मी, द्युति, स्थिरा, स्थिति और सिद्धि-ये दस ब्रह्मा की कलाएं हैं। ध्रूमार्चि, उष्मा, ज्वलिनी, जवालिनी, विस्फुलिंगनी, सुश्री, सुरूपा, कपिला, हव्यवहा और कव्यवहा- ये दस कलाएं अग्नि की हैं। तापिनी, तपनी, धूम्रा, मरीचि, ज्वालिनी, रूचि, सुषुम्णा, भोगदा, विष्वा, बोधिनी, धारिणी और क्षमा  ये बारह सूर्य की कलाएं हैं। अमृता, मानदा, पूषा, तुष्टि, पुष्टि रति, धृति, शषिनी, चन्द्रिका, कान्ति, ज्योत्सना , श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्णा और पूर्णामृता, ये सोलह कलाएं चन्द्रमा की है। इन चौरानवें कलाओं में से पचास मातृका-कलाएं हैं। जो इस प्रकार हैं - निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विद्या , शान्ति, इन्धिका, दीपिका, रेचिक, मोचिका, परा, सूक्ष्मा, सूक्ष्मामृता, ज्ञानामृता, आव्यायिनी, व्यापिनी, व्योमरूपा अनन्ता, सृष्टि, ऋद्धि, स्मृति, मेधा, कान्ति, लक्ष्मी, द्युति, स्थिरा, स्थिति, सिद्धि, जडा, पालिनी, शान्ति, ऐष्वर्या, रति, कामिका, वरदा, ह्लादिनी, प्रीति, दीर्घा, तीक्ष्णा, रौद्री, भया, निद्रा-तन्द्रा, क्षुधा, क्रोधिनी, क्रिया उदगारी, मृत्युरूपा, पीता, श्वेता, असिता, और अनंता इन पचास कलाओं का उस सुरा कुम्भ में पूजन होता है, जिसमें तारा द्रवमयी निवास करती है। इनका नाम संवित्कला है। यह बाल योगनी हृदय- तंत्र में की गई है।

शक्ति पूजा और योग रहस्य
हिन्दुओं की समस्त साधना की कुंजी है ''तंत्रÓÓ । सब सम्प्रदायाओं की सब प्रकार की साधना का गूढ़ रहस्य तंत्र-षास्त्र में निहित है। तंत्र केवल शक्ति उपासना का ही नहीं अपितु सभी साधनाओं का एक मात्र आश्रय है। जिस प्रकार मनुष्य की प्रकृति सात्विक, राजसिक और तामसिक भेद में तीन प्रकार की है- उसी प्रकार तंत्र शास्त्र भी सात्विक, राजसिक और तामसिक भेद से तीन प्रकार का है तथा उसकी साधना प्रणाली भी उसी प्रकार गुण भेद से तीन प्रकार की व्याख्यात होती है।।

महाकाल पुरूष और उसकी शक्ति
1. महाकाली
परात्पर नाम से प्रसिद्ध विष्वातीत महाकाल पुरूष की शक्ति का नाम ही महाकाली है। शक्ति शक्तिमान से अभिन्न है। अतएव अद्वैतवाद अक्षुण रहता है। अग्नि की दाहक शक्ति अग्नि से अभिन्न है, प्रकाष शक्ति जैसे सूर्य से अभिन्न है। वह एक ही तत्व शक्ति रूप से परिणत हो रहा है। शक्ति से पहिले इसी महाविद्या का साम्राज्य रहता था। वह पहला स्वरूप है। अतएव महाकाली आगम शास्त्र में प्रथमा, आद्या आदि नामों से व्यवहृत हुई है। सूर्योदय से पहिले- रात्रि के 12 बजे से बीच का समय महाकाली का है। सृष्टि काल उनकी प्रतिष्ठा नहीं, प्रलय काल उनकी प्रतिष्ठा है। अनंताकाष रूप चतुर्भुज रूप में परिणत होकर ही, वह विष्व का संहार करती है।
2.अक्षोम्य पुरूष और उसकी महाषक्ति 'तारा
महाकाली की सत्ता रात्रि 12 बजे से सूर्योदय के पूर्व तक रहती है। इसके पष्चात् ''तारा का साम्राज्य है। हिरण्यगर्भ विद्या के अनुसार निगम शास्त्र ने सम्पूर्ण विष्व की रचना का आधार सूर्य माना है। सौरमण्डल आग्नेय होने से हिरण्यमय कहलाता है। जिस प्रकार विष्वातीते काल पुरूष की शक्ति महाकाली थी वैसे ही विष्वधिष्ठाता इस हिरण्यगर्भ पुरूष की शक्ति 'तारा है। यह पुरूष तंत्र शास्त्र में अक्षोम्य नाम से प्रसिद्ध है। जब तक अन्नाहुति होती रहती है तब तक तारा शान्त रहती है। अन्नाभाव में वही उग्र बन कर संसार का नाष कर डालती है। महाकाली और उग्र तारा दोनों का काम प्रलय करना है।
3.पंचवक्त्र षिव और उसकी महाषक्ति षोडषी
आगम रहस्यानुसार स्वर - वाक की अधिष्ठाती यही हैं। इसी पंचवक्त्र षिव की शक्ति का नाम षोडषी है। भू: भुव: स्व: रूप तीनों ब्रह्मपुर इसी महाषक्ति से उत्पन्न हुए हैं अतएव तंत्र में यह त्रिपुर सुन्दरी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। सूर्य को लोक चक्षु कहा जाता है। ताप (अग्नि) आहुत सोम (चन्द्रमा) और सूर्य प्रकाष- षिव शक्ति ने इन्हीं तीन रूपों से विष्व को प्रकाषित किया है। सोमाहुति से यह शान्ति बनी रही। प्रात: काल का बाल सूर्य इनकी साक्षात प्रतिकृति है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, पालक विष्णु, संहारक, रूद्र खण्ड प्रलय के अधिष्ठाता, यम, ये चारों देवता उसके अधीन है।
4.त्रयम्बक षिव और उनकी महाषक्ति ''भुवनेष्वरी
यह चैथी सृष्टि धारा है, चैथी सृष्टि विद्या है। यदि सूर्य में सोमाहुति न होती तो यज्ञ असम्भव था। बिना यज्ञ के भुवन - रचना का अभाव था। बिना भुवन के भुवनेष्वरी उन्मुग्ध थी। संसार में जितनी भी प्रजा है सबको उसी त्रिभुवन व्याप्ता भुवनेष्वरी से अन्न मिल रहा है। भुवनों को उत्पन्न कर उनका संचालन करती हुई वही शक्ति आज भुवनेष्वरी बन गई है।
5.कबन्ध षिव और महाषक्ति छिन्न मस्ता -
पाड्क्तों वै यज्ञ: (ष. 1/1/12) के अनुसार सृष्टि का मूल यज्ञ- पाक यज्ञ, हविर्यज्ञ, महायज्ञ, अतियज्ञ और षिरो यज्ञ- भेद से पांच भागों में विभक्त है। स्मार्त यज्ञ पाक यज्ञ है। अग्नि चयन, राजसूय, अष्वमेघ और वाजपेय ये चार अति यज्ञ हैं। जो महामाया षोडषी तथा भुवनेष्वरी बन संसार का पालन करती हैं वहीं अन्त काल में छिन्नमस्ता बनकर नाष कर डालती हैं।
6.दक्षिणामूर्ति काल भैरव और उसकी महाषक्ति: भैरवी
यमराज को दक्षिण दिषा का लोकपाल बतलाया जाता है। दक्षिण में अग्नि की सत्ता है। उत्तर में सोम का साम्राज्य हे। सोम स्नेह - तत्व है, संकोच धर्मा है। अग्नि तेज तत्व है, रूद्र की शक्ति का नाम व भैरवी किवा त्रिपुर भैरवी हैं। कल्याणेच्छुकों को उनका निरन्तर ध्यान करना चाहिए।
7.पुरूष शून्या अथवा विघवानाम से प्रसिद्व महाषक्ति ''धूमावती
संसार में दुख के मूल कारण- रूद्र, यम, वरूण, निर्ऋूति ये चार देवता है। विविध प्रकार के ज्वर महामारी, उन्माद आदि आग्रेय (सन्ताप) संबंधी रोग रूद्र की कृपा से होते हैं। मूच्र्छा, मृत्यु, अंग-भंग आदि रोग यम की कृपा के फल हैं। गठिया शूल- गृध्र्रसी लकवा आदि के अधिष्ठाता वरूण हैं एवं सब रोगों में भयंकर शोक कलह दरिद्रता आदि की संचालिका निर्ऋति है। ध्यान से ही निदान स्पष्ट है। आषाढ़ शुक्ल एकादषी से वर्षाकाल प्रारंभ हो जाता है तथा कार्तिक शुक्ला एकादषी वर्षा की परम अवधि मानी जाती है। इस चार महीनों को चातुर्मास्य कहते हैं। चातुर्मास्य देवताओं का सुषुप्तिकाल कहलाता है। इतने दिनों तक आसुरी प्राण का साम्राज्य रहता है। इसीलिए दिव्य प्राण की उपासना करने वाले कोई दिव्य कार्य (विवाह-यज्ञोपवीत, यात्रा आदि) नहीं करता। निर्ऋति रूपा धूमावती प्रधान रूप से चतुर्मास्य में रहती हैं।
8.एक वक्त्र महारूद्र और उसकी महाषक्ति ''बगुलामुखी-
प्राणियों के शरीर में एक अर्थवा नाम का प्राण सूत्र निकला करता है। प्राण रूप होने से हम इसे स्थूल दृष्टि से देखने में असमर्थ रहते हैं। यह एक प्रकार की वायरलेस टेलीग्राफी है। सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले आत्मीयजनों के दुख से हमारा चित्त परोक्ष रूप से व्याकुल हो उठता है, उसी परोक्ष सूत्र का नाम अथर्वा है। निगमोक्त बल्गा - शब्द आगम में बगला के रूप में परिणत हो गया। निगम-शास्त्र की बगला ही आगम की बगलामुखी हं। इस कृत्या शक्ति की आराधना करने वाला मनुष्य अपने शत्रु को मनमाना कष्ट पहुंचा सकता है।
9.मतंग षिव और उसकी महाषक्ति ''मातंगी
नवमी महाविद्या शक्ति मातंगी देवी हैं। यह तंत्र में अपना प्रमुख स्थान रखती हंै। इन्हें राज मातंगी भी कहते हंै। इस शक्ति से उन्मत्त हाथी भी वष में हो जाते हैं। यह राजसी भाव से उपासित होकर आराधना करने से राज योग प्रदायनी महाषक्ति बन जाती हैं। इसमें वषीकरण करने की शक्ति है। इनका स्वरूप तंत्र शास्त्र में इस प्रकार लिखा है कि यही राज मातंगी श्यामला, शुक्र श्यामला, राज श्यामला विद्या हैं।
10. सदाषिव पुरूष और उसकी महाषक्ति ''कमला -
धूमावती और कमला में प्रतिस्पर्धा है। वह ज्येष्ठा थी और यह कनिष्ठा। वह अवरोहिणी थी, यह रोहणी है। वह आसुरी थी यह दिव्या है। वह दरिद्रा थी, यह लक्ष्मी है। दसवीं सदाषिव की महाषक्ति ''कमला महाविद्या है। जिसका रोहणी नक्षत्र में जन्म होता है, वह सुखी और समृद्ध होता है। कमला ही महालक्ष्मी हैं। ये धन धान्य, वसु, रत्नप्रदा, रत्नधारा, कनकधारा वसुधारा हैं। यह दरिद्रता का विनाष करती हैं। इस प्रकार उपरोक्त दस महाविद्या शक्तियों का संक्षिप्त दिग्दर्षन नाम मात्र से किया गया हैं।

शक्ति ही जड़ और चेतन
यह विष्व शक्तिमय है। विष्व के अतिरिक्त भी जो कुछ सत्ता है, वह भी शक्ति है। शक्ति ही जड़ और चेतन दोनों हैं - ब्रह्म, जीव और माया तीनों हैं। शक्ति ही परात्पर है। शक्ति ही भगवती है, शक्ति ही भगवान है। शक्ति ही शक्तिमान है। शक्ति और शक्तिमान में अन्तर नहीं है। जो कुछ है शक्ति है जो कुछ नहीं है वह न होना भी शक्ति ही है। भगवती शक्ति क्या नहीं है? कौन कह सकता है ? 'सर्वस्य या शक्ति: सा त्वं किं स्तूयसे मयाÓÓ  कौन स्तुति करने में समर्थ है।

श्री शतचण्डी पूजन: सप्तषती महामंत्र
किसी षिवालय अथवा दुर्गा मंदिर के निकट एक सुन्दर मण्डप बनावे, जिसमें दरवाजे और वेदी भी बनी हो। उसके चारों ओर तोरण (बन्दनवारे) लगावें और ध्वाजारोपण भी करें। मण्डप के अंतर्गत पष्चिम भाग या मध्य भाग में होम कुण्ड बनावे। स्नान और नित्य क्रिया से निवृत्त होकर दस उत्तम ब्राम्हणों का वरण करें। ये ब्राम्हण जितेन्द्रिय, सदाचारी कुलीन, सत्यवादी तथा बोधयुक्त हों साथ ही दयालु और प्रतिदिन दुर्गा सप्तषती का पाठ करने वाले हों। उन्हें विधिवत विधि पूर्वक (पाद्य अध्र्य, आचमनीय के साथ अनन्तर) निवेदन करके वस्त्रादि दान, जप के लिए आसन और माला दें तथा हविष्य - भोजन अर्पण करें। तथा विधि विधान पूर्वक जप सम्पुट- पाठ से (प्रत्येक मंत्र के आदि- अंत में किसी बीज अथवा अन्य मंत्र का उच्चारण करने से मंत्र सम्पुटित होता है) एक सहस्त्र जाप प्रत्येक ब्राह्मण को करना चाहिए।  अनुष्ठान में यजमान को नव कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो कि दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की उम्र वाली हो उनके नाम क्रमष: 1 कुमारी, 2. त्रिमूर्ति, 3. कल्याणी 4. रोहिणी, 5. कालिका, 6. शाम्भवी 7. दुर्गा, 8. चण्डिका 9. सुभद्रा। इन्हीं नाम मंत्रों से इनकी पूजा करना चाहिए। अपने सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिए ब्राह्मण कन्या का, यष के लिए, क्षत्रिय कन्या का, धन के लिए वैष्य कन्या का और पुत्र के लिए शूद्र कन्या का पूजन करना चाहिए। गंध, पुष्प, धूप, दीप, भक्ष्य भोज  तथा वस्त्राभरणों द्वारा अपनी शक्ति के अनुसार कन्याओं का पूजन करें। इनका आवाहन करने के निमित्त शंकरजी का कहा हुआ मंत्र बतलाया जा रहा हैं। ''मैं मन्त्राक्षरमयी, लक्ष्मीरूपिणी, मातृ रूपधारिणी तथा साक्षात दुर्गा स्वरूपिणी कन्या का आवाहन करता हूं।
महायन्त्रादि- पूजन विधि
वेदी पर सुन्दर सर्वतो भद्र मण्डल बना कर उस पर विधि पूर्वक कलष स्थापन करें और कलष के ऊपर मां भगवती पार्वती जी का आवाहन करें। पीठ की पूर्वादि दिषाओं में गणेष आदि चार की स्थापना करें उनके नाम है भगवान जय महागणेष, क्षेत्रपाल, दो पादुकाएं और तीन बटुक। आग्नेय आदि चारों कोणों में जया, विजया, जयन्ती और अपराजिता इन चार देवियों की आराधना करें एवं पूर्वादि दिषाओं में इन्द्रादि देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इसी प्रकार चार दिनों तक पूजा करें। उनमें भी प्रथम दिन सप्तषती का एक पाठ, दूसरे दिन दो, तीसरे दिन तीन और चैथे दिन चार पाठ प्रत्येक ब्राह्मण करें पांचवे दिन हवन होना चाहिए।

होम द्रव्य
विधि पूर्वक स्थापित हुए अग्नि में तीन बार मधु से भिगोये हुए हविष्य, द्राक्षा, केला, मातुलिंग, ईख, नारियल, तिल, जातीफल, आम तथा अन्य मधुर द्रव्यों से दस आवृत्ति सप्तषती के प्रत्येक मंत्र पर हवन करें और एक सहस्त्र नवार्ण मंत्र से भी हवन करें। फिर आवरण देवताओं के लिए उनके नाम मंत्रों द्वारा हवन करके यथोचित रूप से पूर्ण आहूति दें। तत्पष्चात् ब्राह्मणवृन्द देवताओं सहित अग्नि का विसर्जन करके यजमान को कलष के जल से अभिषित करें। यजमान प्रत्येक ब्राह्मण को एक सहस्त्र मुद्राएं दक्षिणा रूप में प्रदान करें । फिर नाना प्रकार के भक्ष्य भोज्यों द्वारा ब्राह्मणों को भोजन करावे और उन्हें दक्षिणा देकर आषीर्वाद लें। ऐसा विधि विधान से पूजन करने पर मां जगदम्बा की कृपा से सुबुद्धि समृद्धि और आपदा, विपदा और झंझाओं से मुक्ति मिल सकेगी। शतचण्डी श्रीदुर्गा सप्तषती का परम अस्त्र है और उसकी शक्ति तथा प्रयोग सन्निहित है इस महामंत्र में। इसकी विधिवत साधना से साधक का जीवन दिव्य और पूर्ण हो जाता है। सप्तषती महायंत्र भोज पत्र पर लिखना हो तो केषरयुक्त चन्दन से बिल्व लेखनी द्वारा अंकित करना चाहिए तथा विधि- विधान से यंत्र की पूजा-प्रतिष्ठा करना चाहिए।

- पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
मोबाइल : 09407266609, 8827294576
फोन: 07582-223168, 223159


ज्योतिष के आइने में मर्यादा पुरुषोत्तम राम



ब्रह्माण्ड नायक प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव पर विशेष

सृष्टि संचालक विराट महापुरुष की सूर्य व चन्द्रमा के समान ये दोनों आंखें, सम्पूर्ण मानव सभ्यता को प्रेरणा देती रहेंगी। मर्यादा पुरुषोत्तम राम युग-युगाब्द तक याद किए जाएंगे। भगवान श्रीराम राघवेन्द्र थे। इनका जन्म अयोध्या में हुआ। वे समस्त भारत भू-मंडल के चक्रवर्ती सम्राट कहलाते थे। सूर्यवंशीय श्रीराम चैत्र शुक्ल, नवमी, दिन को ठीक 12 बजे अभिजित मुहूर्त में अवतीर्ण हुए। भगवान श्रीराम की कुंडली में सूर्य, मंगल, गुरु, शनि उच्च राशिगत तथा चन्द्र स्वक्षेत्री थे। भगवान राम का जन्म चर लग्न में हुआ। उनकी जन्म पत्रिका के चारों केन्द्रों में उच्च के ग्रह पंच महापुरुष के योग का निर्माण कर रहे है। वृृहस्पति से हंस योग, शनि से षष योग, मंगल से रूचक योग का निर्माण हो रहा है। लग्नस्थ कर्क राशि गत गुरु और चंद्र गजकेसरी योग। कर्क लग्न में सप्तमस्थ उच्च राशिगत मंगल पंचमेश और राज्येश बन कर प्रबल राजयोग बना रहा है। सूर्य उच्च राशिगत होकर राज्य भाव (कर्म भाव) में होने से भगवान राम चक्रवर्ती बने। उन्होंने युगों तक राज्य किया। भगवान श्रीरामचन्द्र जी की जन्म कुंडली पर अपनी अल्प बुद्धि से ज्योतिषीय विवेचना का प्रयास किया। विद्वतजनों से आग्रह है त्रुटियों को क्षमा करें। भगवान श्रीराम के जन्मदिन पर प्रस्तुत हैं बड़े विनम्र भक्तभाव से यह ज्योतिषीय कलेवर, कौतुकता से इसे निहारें। भगवान श्रीराम दीर्घकाल तक सभी जातकों की रक्षा करें।

भगवान श्रीराम की जन्म कुंडली
भगवान श्रीराम की कुंडली के दसम भवन में सूर्य उच्च राशि में विराजमान हैं। सूर्यदेव 12 कलाओं में मर्यादित हैं, फलत: श्रीराम का चरित्र मर्यादित है। इसलिये उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा गया है। वे सत्य वक्ता थे। उनके मुख से जो वचन निकल गया वह सत्य होता था, पूर्ण होता था, अमोघ होता था। महाकवि तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाहि पर वचन नहीं जाही। सूर्य, दसम भवन में राज्य, कीर्ति का कारक ग्रह भी हैं, अस्तु प्रभु राम चाहें वे अयोध्या में रहे हों या अपने विद्याकाल में गुरु वसिष्ठ के गुरुकुल में अथवा वन में या चक्रवर्ती सम्राट के रूप में अयोध्या में रहे हों। उनकी यश, कीर्ति, न्याय व्यवस्था मानव सभ्यता में सदैव स्तुत्यनीय तथा अनंतकाल तक कीर्ति पताका दिग्दिगंत तक फहराती रहेगी। दशरथ पुत्र राम की जन्म कुंडली में चन्द्र देव स्वक्षेत्री कर्क लग्न में उच्च राशिगत देव गुरु वृहस्पति के साथ विराजमान होकर कह रहे हैं कि यह जातक तन, मन से विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न होकर सुदर्शनीय तो होगा ही, साथ ही शील तत्व, स्वभाव कार्यकुशलता की दृष्टि से एक ऐेसे विराट व्यक्तित्व का धनी होगा, जिसे विश्व मानव समाज श्रद्धामयी दृष्टि से अपलक निहारता हुआ राममय हो जाएगा।

द्वितीय भवन
भरताग्रज राम की कुंडली के द्वितीय भवन का स्वामी नवग्रहों का राजा सूर्य विराजमान है, सूर्य कुलभूषण श्रीराम इक्ष्वाकु वंश की महानता को कलकल करती गंगा की तरह सदैव यशस्वी बनाये रखेंगे। द्वितीय भवन ज्योतिषीय ग्रंथों में द्वितीय भवन से जातक के नाक, कान, नेत्र, मुख, दंत, कंठ स्वर, सौन्दर्य, प्रेम आदि से जातक के व्यक्तित्व को देखा जाता है। भगवान श्रीराम सौन्दर्य की अद्भुत प्रतिमा तथा प्रेम के अर्थ को समझने के लिए तीनों माताओं के प्रति श्रद्धा, भाइयों के प्रति अगाध स्नेह, सुमंत से लेकर समस्त अयोध्यावासियों के प्रति कर्तव्यपरायणता, सुग्रीव, विभीषण आदि अनगिनत मित्रों के प्रति चिरस्मरणीय स्नेहमूर्ति तथा भार्या जनकनंदिनी सीता के प्रति अलौकिक प्रीति ने ही उन्हें लंकापति रावण से युद्ध की अनिवार्यता स्वीकारी थी।
तृतीय भवन - पवन पुत्र हनुमानजी के इष्ट प्रभु श्रीराम की कुंडली के तृतीय भवन में कन्या राशिगत स्वक्षेत्री राहु विराजमान हैं। तृतीय भवन बन्धु, पराक्रम, शौर्य, योगाभ्यास, साहस आदि का मीमांसा का गृह है। भगवान श्रीराम का शौर्य, पराक्रम तो राम-रावण के भीषण युद्ध में परिलक्षित होकर सदैव अविस्मरणीय रहेगा। भ्रात प्रेम में तो प्रभु श्रीराम का भरत प्रेम, जो समस्त प्रेमों की ज्ञानगंगा है।

चतुर्थ भवन

कौशल्यानंदन श्रीराम की जन्म कुंडली के चतुर्थ भवन में तुला राशि में उच्च राशिगत शनिदेव विराजमान हैं। ज्योतिष ग्रंथों में चतुर्थ भवन से व्यक्ति के अन्त:करण, सुख, शान्ति, भूमि, भवन बाग-बगीचा, निधि, दया, औदार्य, परोपकार, मातृ सुख आदि का निरूपण जातक की जीवन शैली में देखा जा सकता है। प्रभु श्रीराम की कुंडली का चतुर्थेश शुक्र, भाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजमान हैं। उच्च राशिगत शनि प्रभु श्रीराम से मर्यादित जीवन के प्रति आग्रहशील हैं। भूमि, भवन का सुख तो चक्रवर्ती राजा के लिए सहज सुलभ हैं। अन्त:करण की दृष्टि से सर्वत्र प्रेम का अनुग्रह तथा दया और औदार्यता महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या को श्रापमुक्त कर पाषाण से नारी रूप प्रदान करना तथा शबरी के जूठे बेर खाना औदार्यता का सुखद पक्ष है। मातात्रय कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा के प्रति मातृ भक्ति सदैव स्तुत्यणीय एवं प्रेरणास्पद रहेगी।

पंचम भवन
लवकुश के पिता प्रभु श्रीराम की जन्म कुंडली में पंचम भवन में वृश्चिक राशि है। वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल सप्तम भवन में उच्च राशि में (मकर में)  विराजमान हैं। पंचम भवन से जातक की संतान, स्थावर जंगम, हाथ का यश, बुद्धि चातुर्य, विवेकशीलता, सौजन्य तथा परीक्षा में यश प्राप्ति से जुड़ी है। लवकुश के रूप में महान प्रतापी पुत्र तथा स्थावर संपत्ति के रूप अयोध्या का चक्रवर्ती साम्राज्य एवं अपनी बुद्धि-विवेक के बल सीता की खोज में सुग्रीव से मित्रता, लंंका विजय में लंकापति रावण के अनुज विभीषण का युद्ध के पूर्व लंकापति बनाने के लिए राजतिलक करना तथा मर्यादा में रहते हुए खर दूषण, कुम्भकरण, लंकापति रावण से लेकर अनेक आतातायी असुरों का वध कर रामराज्य की स्थापना करना बुद्धिचातुर्य की रहस्यमयी परिणिति के सिवा और क्या है?
असुर विजेता राम
षष्टम् भवन - श्रीराम की जन्म कुंडली षष्टम् भवन धनु राशि अवस्थित है। षष्टम् भवन रोग, शत्रुओं से जातक की कथा व्यथा का सांकेतिक है। इस भाव से शत्रु कष्ट के अभाव से जुड़े प्रश्नों की रहस्यमयता को उजागर करते हैं।
श्रीराम की कुंडली का षष्ठेष धनु राशि के स्वामी देव गुरु वृहस्पति लग्न भवन में कर्क राशिगत चन्द्रमा के साथ अपनी उच्च राशि (कर्क) में विराजमान होकर गजकेसरी योग बना रहे हैं। जिसका सामान्य भाषा में अर्थ है : वनराज सिंह हाथियों को अपनी एक हुंकार (गर्जना) में भगा देता है। गज याने हाथी, केशरी याने सिंह। गुरु विश्वामित्र से शस्त्र शिक्षा में अनेक रहस्यमयी विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया। जिसका सर्वप्रथम प्रयोग ताड़का और सुबाहु के वध के रूप में घटित हुआ। श्री रामचंद्र जी ने जहां जहां अपने पग रखे, वहां उन्हें यश मिला। शत्रु विजय सीता स्वयंवर से लेकर खरदूषण तथा वानरराज बालि तथा दशानन रावण तक अनेक शक्तिशाली अपराजेय योद्धाओं का वध किया।

तुलसी की रामचरित मानस में
खरदूषण मो सम बलबन्ता। मार सकें न बिनु भगवन्ता।
रावण संहिता में दशानन रावण ने धनु राशिगत षष्टम् भवन की व्याख्या करते हुए लिखा है ऐसा जातक शत्रुओं का घमंड चूर करने वाला तथा अपने बड़ों को मान देने वाला होता है। त्रेतायुगीन राम ने धरती पर आसुरी शक्तियों का तो नाश किया, साथ ही अपने गुरुओं, ऋ षियों-मुनियों को यथेष्ठ सम्मान देकर उनका मान भी बढ़ाया है।

सीता पति रघुनन्दन श्रीराम सप्तम भवन
रघुनन्दन श्रीराम की जन्म कुंडली के सप्तम भवन में मकर राशि में उच्च राशिगत भूमि पुत्र मंगल विराजमान हैं। सप्तमस्य मंगल होने सेे श्रीरामजी की कुण्डली मंगली बन गई। मंगल पंचमेश और राज्येश है। गजकेशरी योग की सप्तम दृष्टि दाम्पत्य जीवन को भी प्रभावित कर रही है। जनकनंदिनी सीताजी सेे उनका विवाह धनुषभंजन के बाद विवाह हुआ, किन्तु भूमि पुत्र मंगल उच्चासीन होकर कह रहे हंै। जातक को दाम्पत्य जीवन का सुख तो दूंगा, किन्तु अल्पकालीन।

सप्तम भवन
पारिवारिक झगड़े तथा भूत, भविष्य, वर्तमान की स्थिति का सिंहावलोकन भी किया जाता है। मंथरा की षडयंत्रमयी योजना ने कैकेयी की मति भ्रष्ट की। परिणितीवश श्रीराम को वनगमन, सीताहरण, आसुरी शक्तियों का विनाश, लंका विजय के पश्चात् अध्योध्या में राजतिलक, वैदेही सीता का त्याग, ऋ षि वाल्मीकि के आश्रम में श्रीसीताराम के पुत्रों लवकुश का जन्म, जनकनंदिनी सीता का भूमि में प्रवेश। ये सारे कथानक सप्तमस्थ उच्च राशिगत मंगल की चेष्टाओं का फल है।

रघुनंदन का आयु भवन 
अष्टम भवन : श्रीराम जी की कुंडली में अष्टम भवन में कुम्भ राशि का स्वामी शनि चतुर्थ भवन में अपनी उच्चराशि तुला में विराजमान है। अष्टमेश शनि जातक की दीर्घायु का परिचायक है। किन्तु सप्तमेश और अष्टमेश शनि बलवान स्थिति में होकर जातक को दीर्घायु तो देता है, वहीं दूसरी ओर दाम्पत्य जीवन में अशुभता भी लाता है। साथ ही मृत्यु स्थान भी यह निर्धारित करता है। अष्टमेश शनि चतुर्थ भवन में होने से पारिवारिक विवाद के कारण वनगमन से सुख की हानि हुई। किन्तु वहां असुरों का विनाश कर यश मिला। रण रिपु अर्थात युद्ध क्षेत्रों में शत्रुओं का वमन भी किया। पृथ्वी से प्रस्थान के बाद चिरकाल तक यशोगाथा अनेक प्रतीकों में बनी रहेगी। यह भी उनके अष्टमेश उच्च राशिगत न्याय के देवता शनि की महिमा का फल है।

भाग्य भवनस्थ शुक्र
श्री राघव की कुंडली का भाग्य भवन कम चमत्कारी नहीं है। भाग्य भवन का स्वामी नवमेश गुरु अपनी उच्च राशि कर्क में चन्द्रदेव की युति के साथ लगनस्थ है। भाग्येश गजकेशरी योग बन रहा है, लग्न भवन में। भाग्य भवन में उच्च राशिगत शुक्र चतुर्थेश तथा द्वादशेष का स्वामी है। माता से लेकर भूमि, भवन, वाहन (रथ) आदि सभी सुखों से पूरित रहे, किन्तु अपनी सप्तम् दृष्टि से पराक्रम भवन को निहारते शुक्र ने पराक्रम के प्रदर्शन का माध्यम नारी जाति को बनाया। शुक्र स्त्री ग्रह है। महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या की मुक्ति, रावण से युद्ध में विजयश्री प्राप्त कर अशोक वाटिका से जनक नंदिनी सीता जी की मुक्ति, बालि वध से सुग्रीव की पत्नी रोमा की मुक्ति, श्रीराम की यशोगाथा का एक पक्ष है। वहीं दूसरी ओर आसुरी शक्तियों का नाश कर ऋ षियों तथा जन-जन को निर्भय जीवन दिया, यह प्रभु श्रीराम के भाग्य भवन का पुण्य प्रताप ही तो था।

दसमस्थ सूर्य बुध
रघुनंदन श्रीराम की कुंडली के दसम भाव अर्थात राज्य भवन में सूर्य के साथ बुध की युति बुध आदित्य योग तो बना रहा है, किन्तु बुध व्ययेश होने से राजतिलक होते होते 14 वर्षीय वनवास का योग बन गया। व्ययेश बुध ने राजयोग खंडित किया, क्योंकि व्ययेश जिस भवन में विराजमान होता, उसे किंचित सम्मान की हानि तो देता ही है। बुध ने ही उन्हें पिता के सुख से वंचित किया। किन्तु सूर्य उच्च राशिगत होकर राजभवन में विराजने से गौरव, ऐश्वर्य एवं नेतृत्व का स्वामी बनाया।  पिता की आज्ञा से वन गये। पिता का मान बढ़ाया। आसुरी शक्तियों के विनाश हेतु वानर जाति की सेना का नेतृत्व कर विजयश्री प्राप्त की। अधिकार प्राप्ति के रूप में सम्राट बने अयोध्या के। ईश्वर प्राप्ति भी दसम भवन से देखी जाती है, तो जो स्वयं त्रिभुवनपति हो उसे अपनी भक्ति में लगाकर मोक्ष प्रदान कराने में बुध का योगदान महत्वपूर्ण है। क्योंकि द्वादश भवन मोक्ष का भवन भी है। अपनी भक्ति से अनेक साधु, संतों, भक्तों तथा पापियों को भी मोक्षगामी बनाने में पथ-पथ पर प्रेरणा दी। प्रभुता भी दसम भवन का एक गुण है। तो श्रीराम प्रभुता पाकर भी दीनों के प्रति भी सहृदय बने रहे, यही उनकी अनुग्रहमयी प्रभुता है। किन्तु स्मरणीय रहे। चतुर्थ भवन उच्चराशिगत शनि की सप्तम दृष्टि नीच राशि पर होने के कारण ही उन्हें वनवास में 14 वर्षीय वनवासी जीवन बिताना पड़ा। भले ही प्रकृति की रहस्यमयता आसुरी शक्तियों के विनाश के रूप मेें रूपांतरित हो गई हो। किन्तु मंगल की चतुर्थ स्वक्षेत्री दृष्टि और सूर्य के उच्च राशिगत प्रभाव से वनवास की समाप्ति के पश्चात् पुन: राज्यारोहण ग्रहों की अपनी रहस्यमयी कलात्मक शक्तियों की ओजस्वीयता है।

एकादश : लाभस्थ भवन
एकादश भवन मूलत: लाभ, सम्पन्नता, वाहन, वैभव, स्वतंत्र चिन्तन के रूप में ज्योतिषीय ग्रंथों में स्वीकारा गया है। जन-जन के प्रभु राम स्वतंत्र चिन्तन के रूप में नैसर्गिक अर्थात प्राकृतिक सम्पदाओं से मुक्ति का बोध कराते हैं। भक्तवत्सल श्रीराम का मानव से लेकर समस्त जीवों के प्रति उदार भाव तो था ही, किन्तु एकादशेष शुक्रभाग्य भवन में अपनी उच्च राशि मीन में विराजने से सभी के प्रति करुणा भाव बनाए रखने के प्रति संकल्पित रहे। अवतारी होने के बाद भी अपनी मानवीय मर्यादा में बने रहे। एक पत्नी व्रतधारी होने से उन्होंने सम्पूर्ण नारी समाज को गरिमा प्रदान की। मित्रों को सहोदर की तरह मान दिया। शत्रुओं के प्रति भी मानवीय मूल्यों का क्षरण उन्होंने नहीं स्वीकारा। वचन बद्धता राघव की निष्ठा का अमोघ शस्त्र रही।

मोक्ष का पर्याय द्वादश भवन
सीता पति राघव की कुंडली के बारहवें भवन में मिथुन राशि की स्थापना ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कथनी करनी में कहीं भी अवरोध पैदा नहीं होने दिया। द्वादश भवन से ज्ञान तन्तु, स्वभाव, शान्ति, विवेक, व्यसन, संन्यास, शत्रु की रोक तथा धन, सुख, सम्मान का व्यय आदि का लेखाजोखा देखा जाता है। द्वादश भवन में मिथुन राशि होने सीता पति राघव भावुक थे। वैदेही हरण एवं लक्ष्मण को शक्तिलगने पर वे कैसे व्यथित हुए, यह तुलसीकृत रामायण में रोमांचकारी शब्द शैली में अंकित है। वनवास में राज सत्ता से 14 वर्षों तक दूर रहे, किन्तु पिता की आज्ञा को सर्वोपरि माना। सीता हरण में सुख और सम्मान का व्यय हुआ, किन्तु अपने विवेक से वानर सेना का नेतृत्व कर शत्रुओं पर रोक ही नहीं लगाई, अपितु उनका नाश भी किया। वनवासी राम ने एक संन्यासी के रूप में 14 वर्ष वनों में बिताए। किसी भी नगर में 14 वर्षों की अवधि में उन्होंने प्रवेश नहीं किया, ऐसे थे संन्यासी राम।

ब्रह्माण्ड नायक राम
राम, ब्रह्मवादियों का ब्रह्म, ईश्वरवादियों का ईश्वर, अवतारवादियों का अवतार, आत्मवादियों व जीववादियों का आत्म एवं जीव है। रामायण महाकाव्य बना। उतरोत्तर राम नाम के साथ साहित्य में भक्तिभाव का वातावरण बनता गया। ईसा के पांच सौ वर्ष के बाद इसका ज्यादा विस्तार हुआ तथा ईसा के एक हजार वर्ष बाद दाशरथि राम परमात्मा के रूप में गूंज गये। हमारी भारतीय सभ्यता के उषाकाल में साहित्य चार वेदों में था, जिनमें ऋ ग्वेद प्रथम था। वैदिक साहित्य में खेती की अधिष्ठात्री देवी का नाम सीता था, क्योंकि मूल में सीता लांगल पद्धति (खेत की हराई) थी। इसीलिए मिथिला में जनक के हल चलाते समय खेत में, जो नवजात बच्ची पाई गई, उसका नाम सीता रखा गया। ऋ ग्वेद में इक्ष्वाकु दशरथ और राम के नाम आए हैं। ऐतिहासिक ढंग से अध्ययन करने वाले प्राय: समस्त विद्वान एक स्वर में कहते हैं कि महाभारत तथा प्रचलित वाल्मीकि रामायण के पूर्व राम कथा संबंधी आख्यान प्रचलित थे। ये आख्यान निश्चित रूप से बुद्धकाल के आसपास के रहे होंगे। इसी आधार पर भारत (महाभारत का प्रथम रूप) तथा बौद्ध जातक कथाओं में राम कथा के अंश आये हंै। वाल्मीकि रामायण में महाभारत के पात्रों तथा कथानकों की चर्चा नहीं है, परन्तु महाभारत के प्राचीन अंशों में रामकथा के पात्रों की चर्चा है। महाभारत के शान्ति पर्व के 29 वे अध्याय के 12 वें श्लोक में नारद संजय को उपदेश देते हुए कहते हैं कि संसार में कौन नित्य रहने वाला है। सुना गया है कि दशरथ पुत्र राम बड़े प्रजापालक थे, किन्तु उन्हें भी इस संसार से जाना पड़ा। महाभारत में भी राम का अवतार रूप पहुुंच गया था। बौद्ध साहित्य में अनामक जातकम् के नाम से अन्य कथा भी है, जिसमें राम कथा है, इस जातक में राम-सीता का वनवास, सीताहरण, जटायु वृतान्त, बाली और सुग्रीव का युद्ध, सेतु बन्ध, सीता की अग्नि परीक्षा, इन सभी के संकेत मिलते हैं।

वाल्मीकि रामायण और अवतारवाद
रामकथा के स्फुट रूप देशी भाषा में बुद्धकाल के थोड़े पूर्व से ही उत्तरी भारत में प्रचलित थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व वाल्मीकि ऋ षि ने रामकथा के स्फुट रूप एवं लोकगीत को एक काव्य रूप में गुंफित किया। भगवतगीता के लेखक श्रीकृष्ण के मुख से कहलाते हैं : मैं शस्त्रधारियों में राम हूं। श्राम: षस्त्रभृतामहम् (गीता 10:31) तक राम की प्रसिद्धि केवल शस्त्रधारी योद्धा के रूप में थी। किन्तु श्रीकृष्ण को अवतार के रूप में मान्यता पहले मिल चुकी, बाद में श्रीराम को। अवतारवाद के विकास में छठी या सातवीं शताब्दी में महात्मा बुद्ध भी विष्णु के अवतार माने जाने लगे।

पुराण साहित्य
हरिवंश पुराण, मार्केडेय पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, मत्स्य पुराण, भागवत पुराण, कूर्मपुराण आदि सभी पुराणों में भगवान राम को विष्णु का अवतार मानने की बात दोहराई गई है। इसके आगे वाराह पुराण (800 ई.) अग्नि पुराण तथा स्कंद पुराण (900 ई.), लिंग पुराण, गरूण पुराण (1000 ई.) वामन पुराण और भविष्य पुराण अधिक अर्वाचीन हैं। इन सब पुराणों में रामावतार तथा राम भक्ति का प्राबल्य होता गया।


रामायण साहित्य
योग वासिष्ठ महारामायण (11 वीं सदी), अध्यात्म रामायण (1500 ई.), अद्भुत रामायण (1600 ई.), आनंद रामायण (1600 ई.), तत्व संग्रह रामायण (1700 ई.), कालनिर्णय रामायण तथा अन्य रामायण जिसमें अपने अपने ढंग से राम चरित्र वर्णन है। अन्य बीस रामायणों की सूची :-
1. महारामायण (35000 श्लोक),
2. संवृत रामायण (2400 श्लोक),
3. अगस्त्य रामायण (16000 श्लोक),
4. ओम रामायण (32000 श्लोक)
5. राम रहस्य रामायण (22000 श्लोक)
6. मंजुल रामायण (120000 श्लोक)
7. सौ पद्म रामायण (62000 श्लोक)
8. रामायण महामाला (56000 श्लोक)
9. सौहार्द्र रामायण (40000 श्लोक)
10. रामायण मणिरत्न (3600 श्लोक)
11. शौर्य रामायण (62000 श्लोक)
12. चांन्द्र रामायण (75000 श्लोक)
13. भैंद रामायण (52000 श्लोक)
14. स्वायंभुव रामायण (18000 श्लोक)
15. सुब्रह रामायण (32000 श्लोक)
16. सुवर्चस रामायण (15000 श्लोक)
17. देव रामायण (100000 श्लोक)
18. श्रमण रामायण (125000 श्लोक)
19. दुरन्त रामायण (61000 श्लोक)
20. रामायण चंपू (15000 श्लोक)

महाकाव्य रामायण
वाल्मीकि रामायण का कवि जगत में बहुत प्रभाव पड़ा और राम कथा लिखने की एक बाढ़ सी आ गई। ईसा की चौथी शताब्दी से संस्कृत ललित (श्रृंगार प्रधान) साहित्य में महाकाव्य, नाटक, खण्ड काव्य आदि लिखे जाने लगे।

विदेशी भाषाओं में राम कथा
1. तिब्बती रामायण (800 ई.)
2. खेतानी रामायण (900 ई.)
3. रामायण कविन (हिंदेनेशिया 1000 ई.)
4. हिकायत सेरीराम
5. राम केलिंग
6. पतानी राम कथा
7. सेरत कांड
8. रामकेर्ति
9. रामकियेन
10. राम गायन (1800 ई.)

पाश्चात्य भाषा में राम कथा
1.लिब्रो डा सैंटा : लेखक: जे. फेनिचियों (1609 ई.)
2.दि ओपन दोरे : लेखक ए. रोजेरियुस (1700 ई.)
3.आफ गोडेरैयउर इण्डिषेहाइडेनन : लेखक पी. बलडेयुस (1700 ई.)
4.असिया : लेखक ओ. डेप्पर (1700 ई.)
5.असिया पोर्तुगेसा : लेखक डे फरिया (1700 ई.)
6.रलसियों डे एरयर (1700 ई.)
7.ला जानिटिलिटे डु वेंगाल (1700 ई.)
8.पुर्तगाली वृतांत, क (1700 ई.)
9.पुर्तगाली वृतांत, ख (1800 ई.)
10.पुर्तगाली वृतांत, ग (1800 ई.)
11.ट्रावल्स इन इंडिया : लेखक जे. पी. टापर्निये (1700 ई.)
12.वोयाज ओस एन्ड आरियन्टाल : लेखक एम सोनेरा (1800 ई.)
13.मिथोलॉजी डेस इण्डू : लेखक डे. पोलियो (1800 ई.)
14. हिन्दू मेनर्स, कस्टम एन्ड सेरेमोनिस : लेखक जे. ए. दुब्वा (1900 ई.)
15. इलवियाजियो अल इन्डिये आरियेन्टालि : लेखक पी. एफ. विनजेनजा मरिया (1700 ई.)
16. स्टोरिया डी मोगोर : लेखक एन. मनुच्ची (1700 ई.)
17.हिस्तोरिया दो मालावार : लेखक दिओगो गोंसाल्वेस (1700 ई.)

Z1पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
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